दर्द से ही होती है दिन की शुरूआत

                                                                   दर्द से ही होती है दिन की शुरूआत

                                                                                                                                        डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                          

‘‘एक अनुमान के अनुसार दुनियाभर में 10 प्रतिशत से अधिक लोग फाइब्रोमायल्जिया की समस्या से जूझ रहें हैं, इसके उपरांत भी इसके सम्बन्ध में जानकारी काफी कम उपलब्ध है। प्रतिदिन कहीं भी दर्द, थकान, नींद पूरी नही ले पाने की समस्या, याददाश्त में कमी और मूड़ सम्बन्धी लक्षण हमारी जीवनशैली की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती हैं। अतः इसके प्रति हमें क्या करना चाहिए और क्या नही इसके बारे में जानकारी प्रदान कर रहें हैं डॉ0 दिव्याँशु सेंगर, मेडिकल ऑफिसर, प्यारे लाल शर्मा जिला असपताल मेरठ-’’

दोस्तों, पिछले दो से तीन दशकों के दौरान शरीर में अकारण एवं मांसपेशियों एवं की समस्या काफी अधिक बढ़ चुकी है। यह गठिया अथवा बाय के दर्द से अलग एक स्थिति होती है, जिसे फाइब्रोमाल्जिया कहते हैं। हालांकि भारत में कोविड-19 महामारी के बाद के से ही इसके मामलों में वृद्वि देखी जा रही है।

हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार देश में इस समय लगभग चार करोड़ से अधिक लोग इस मसस्या से जूझ रहे हैं। नेशनल इन्स्टिीट्यूट ऑफ आर्थराटिस एण्ड स्क्नि डिजीज की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय अमेरिका में 18 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लगभग 50 लाख से अधिक लोग फाइब्रोमाल्जिया की समस्या से ग्रस्त हैं।

आखिर क्या है फाइब्रोमाल्जिया

                                                                    

    फाइब्रोमाल्जिया मानव शरीर के केन्द्रीय तन्त्र से सम्बन्धित एक ऐसी समस्या है, जो मस्क्युलोस्कैलटल सिस्टम अर्थात हड्डियों, जोड़ों, मांसपेशियों, विभिन्न अगेां को जोड़ने वाले ऊतकों एवं स्नायु तन्त्र को प्रभावित करती है। इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण गठिया से मिलते-जुलते होने के कारण अक्सर इसकी पहिचान करने देरी भी हो जाती है, जबकि इस रोग में तनाव की भूमिका भी काफी अधिक रहती है।

इस रोग में शरीर में दर्द, तनाव, मूड का स्विंग होना और नींद नही आना जैसी समस्याएं रोगी को जकड़ लेती हैं। रोगी के शरीर में अकड़न एवं दर्द अक्सर प्रातः काल में अधिक रहता है जो समय के साथ धीरे-धीरे कम होती जाती हैं।

हालांकि, यह समस्या किसी भी आयु वर्ग को प्रभावित कर सकती है परन्तु हाल ही में किये गये कुछ शोधों के निष्कर्ष बताते हैं कि पुरूषों की अपेक्षा चालीस वर्ष या उससे अधिक आयु की महिलाएं इस रोग से अधिक प्रभावित होती हैं।

यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर की मांसपेशियों में लगातार तेज दर्द बना रहता हैं। गर्दन, कन्धे व कमर के आस-पास के क्षेत्र में लम्बे समय तक दर्द के लक्षण देखने को मिलते हैं। रात में नींद का पूरा नही हो पाना, यादद्शत की कमी अथवा अकारण ही मूड का बिगड़ना आदि लक्षणों के चलते प्रभावित व्यक्ति की मानसिक सेहत पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।  इससे प्रभावित लोगों में टेम्परोमेंडीब्युलर ज्वॉइन्ट डिसऑर्डर, प्रभावित व्यक्ति के दाँत एवं जबड़ों में दर्द, आँतों के रोग और अवसाद आदि के खतरों में भी वृद्वि होती है।

फाइब्रोमाल्जिया के कारण

    वस्तुतः अभी तक इस रोग के स्पष्ट कारणों के बारे में कुछ भी क्लियर नही हैं, अपितु हर समय का शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक तनाव इस रोग की एक बड़ी वजह के रूप में जानी जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मानव मस्तिष्क में उपलब्ध सेरोटोनिन एवं नोरपेनोफ्रिन नामक कैमिकल्स में होने वाला असंतुलन इस समस्या का कारण हो सकता है।

    कैमिकल असंतुलन की इस स्थिति में मस्तिष्क के दर्द को पहचानने वाले संकेत इससे प्रभावित होने लगते हैं, जिससे स्पर्श जैसी मामूली संवेदना को मस्तिष्क दर्द के रूप में पहिचानने लगता है, जिसके कारण ही मरीज को दर्द की अनुभूति होती है।

    इसके अतिरिक्त कोई गम्भीर दुर्घटना, लम्बे समय तक बने रहने वाला कोई ंसक्रमण अथवा कोई रोग, भौगोलिक स्थिति में कोई बड़ा परिवर्तन या फिर कोई मानसिक आघात (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसआर्डर) आएि भी इस समस्या को जन्म दे सकते हैं।

    तनाव या मूड स्विंग्स प्रभावित व्यक्ति के शरीर में हार्मोन्स का असंतुलन पैदा कर सकते हैं, जिसके कारण इस समस्या का खतरा अधिक बढ़ जाता है। रूमेटाइड आर्थराइटिस और लुफ्स से ग्रस्त लोगों को भी फाइब्रोमाल्जिया होने की सम्भावनाएं होती हैं, तो आनुवांशिक इतिहास भी इसकी सम्भावनाओं में वृद्वि करता है।

फाइब्रोमाल्जिया के लक्षणों की पहिचान

                                                                

    फाइब्रोमाल्जिया के लक्षण कोई विशिष्ट प्रकार के लक्षण नही होते हैं। इसके लक्षण अक्सर किसी तीव्र मानसिक अथवा शारीरिक आघात या तनावपूर्ण स्थितियों के बाद ही सामने आते हैं। दर्द-निवारक दवाओं से कुछ समय के राहत पाई जा सकती है, परन्तु जीवनशैली में लक्षणों के अनुरूप सुधार और नियमित व्यायाम के माध्यम से दर्द का प्रबन्धन किया जाना सम्भव है। फिर भी कुछ ऐसे लक्षण हैं जिनके आधार पर इस रोग की पहिचान करना सम्ीाव है वे इस प्रकार से हैं-

- बिना किसी कारण के ही शरीर में दर्दः- हाथ-पैरों में दर्द, कमर में दर्द, सिर का  दर्द, पेट, कूल्हे तथा जोडों आदि में बिना किसी कारण ही दर्द का अनुभव करना, जो कि महीनों तक जारी रह सकते हैं। प्रभावित शरीर के अंग में चोट लगने जैसा तीव्र दर्द, जलन एवं सरसराहट का अनुभव होता है।

- थकान का हर समय बने रहनाः- शारीरिक श्रम किए बिना भी रोगी हर समय थकान का अनुभव करता है जिसमें आराम कर लेने के बाद भी ताजगी से वंचित रहता है।

- नींद नही आनाः- प्रभावित व्यक्ति रात में भरपूर नींद नही ले पाता है, रेस्टलेस लेग जिसमें रोगी के लेटते ही पैरों में बेचैनी होने लगती है, एक ऐसी समस्या है, जो कि फाइब्रोमाल्जिया के दर्द को बढ़ा देती है। 

- फाइब्रो फॉगः- इस समस्या के दौरान पीड़ित व्यक्ति को अपना ध्यान केन्द्रित करने में समस्या होती है। पीड़ित की याददाशत कमजोर होने से उसे भूलने की समस्या से भी दो-चार होना पड़ता है।

- कुछ अन्य लक्षणः- तीव्र रोशनी, विशेष प्रकार की गंध एवं तापमान के प्रति संवेदनशीलता, कब्ज, डायरिया, त्वचा पर रैसेज, खुजली, इर्रीटेबल बाउल सिंड्राम, हाथ एवं पैरों में झनझनाहट, अकडन व पेट के निचले हिस्से में दर्द का अनुभव होता हैं।

- फाइब्रोमाल्जिया की समस्या में जीवनशैली की है बड़ी भूमिका  

फाइब्रोमाल्जिया की समस्या में जीवनशैली की बड़ी है भूमिका

    फाइब्रोमाल्जिया की समस्या से निजात पाने के लिए जीवनशैली में बदलाव, सही समय पर उउचित उपचार के माध्यम से इसके लक्षणें की गम्भीरता को कम किया जा सकता हैं। इस रोग के सभी मामले एक दूसरे से भिन्न प्रकृति के होते हैं, जिसके कारण प्रत्येक रोगी में रोग को ट्रिगर करने वाले कारण एवं लक्षण भी भिन्न ही होते हैं। चिकित्सक मरीज के लक्षणों के आधार पर ही उसका उपचार करते हैं।

क्या करें मरीज

                                                     

- मरीज स्वयं को तनावमुक्त रखते हुए सामान्य बने रहने का प्रयास करें।

- मरीज के सोने का स्थान स्वच्छ एवं शांत हो तथा मरीज अपने सयन करने के समय को नियमित कर उसका पालन करते रहे।

- नियमित रूप से व्यायाम करें या सुबह और शाम के समय नियमित रूप से घूमने जाएं। इससे रोगी की मांसपेशियां सक्रिय रहती हैं तथा गहरे श्वास का अभ्यास करें।

क्या न करें

- धूम्रपान न करें, क्योंकि इससे मांसपेशियों में सूजन आने की समस्या बढ़ सकती है।

- शरीर की मालिश करने से रक्त संचार में तीव्रता आती है और इससे दर्द में भी राहत प्राप्त होती है। अतः स्नान करने से पूर्व शरीर की अच्छे से मालिश करें।

फाइब्रोमाल्जिया से पीड़ित व्यक्ति का आहार

- संतुलित एवं पौष्टिक आहार का सेवन करें। प्रातःकाल गुनगुने पानी का सेवन करे एवं गुनगुने पानी से ही स्नान करें। इसके साथ ही डिहाईड्रेशन से बचें।

- एंटीऑाक्सीडेन्ट्स एवं रेशेदार पदार्थों जैसे गाजर, पालक, सेब, टमाटर, लहसुन, प्याज और अंगूर आदि का अधिक मात्रा में सेवन करें। इससे शरीर की सूजन कम करने में मदद मिलती है।

- ग्लूटन से एलर्जी की समस्या गम्भीर रूप धारण कर सकती है। अतः इसके प्रति सचेत रहें।

- चीनी एवं मीठी वस्तुओं का उपयोग सीमित मात्रा में ही करें।

- यदि मरीज लगातार थकना का अनुभव करता है तो एसे रिफाइंड एवं तले हुए पदार्थों का सेवन बन्द कर देना चाहिए।

- शरीर में कैल्शियम एवं मैग्नीशियम की पूर्ति के लिए पनीर, अंड़ें, चिकन, दही एवं दूध जैसी चीजों को आवश्यक रूप से शामिल करें।

- मांसपेशियों के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त जैसे फ्लेक्स सीड्स का सेवन करें। शरीर में विटामिन डी-3, बी-12, जिंक एवं सेलेनियम आदि की कमी न होने दें, अन्यथा दर्द के लक्षण गम्भीर होने लगते हैं।

- कैफीन एवं अल्केाहल से बचें।

उपचार की विधिः-

    हालांकि, इस समस्या का अभी तक कोई स्थाई उपचार उपलब्ध नही है। इस रोग के अन्तर्गत रोगी को कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक दर्द की स्थिति बनी रहने के बाद राहत मिल सकती है, परन्तु इसके बाद भी दर्द कभी भी हो सकता है। डॉक्टर किसी विशेष प्रकार के टेस्ट्स कराए बिना मरीज के अन्दर विद्यमान लक्षणों के आधार पर ही टेस्ट कराते है।

मस्तिष्क एवं रीढ़ की एमआरआई, पेट का अल्ट्रासाउण्ड, छाती एवं शरीर की लम्बी हड्डियों का एक्स-रे आदि कुछ ऐसे टेस्ट हैं जो डॉक्टर करा सकते हैं। वहीं कई बार डॉक्टर रक्त की जाँच जैसे सीबीसी आदि का सुझाव भी दे सकते हैं। इससे मरीज के शरीर में विटाम्सि एवं खनिजों की कमी का पता लगाया जा सके। इसके साथ ही किसी अन्य प्रकार के सम्भावित रोग की पुष्टि भी की जा सकें।

    इसके अतिरिक्त गठिया की जाँच, ईएसआर टेस्ट एवं थॉयराइड टेस्ट भी कराया जा सकता है। मानसिक रूप से परेशान मरीजों में कॉग्नटिव बिहेवाियल थेरेपी का प्रभाव भी अच्छा है। मसाज थेरेपी, तनाव कम करने वाली तकनीकें, एक्युप्रेशर एवं शारीरिक शक्ति में वृद्वि करने के लिए फिजिकल थेरेपी के माध्यम से भी उपचार किया जाता है।

    आयुर्वेद में पाचन से जुड़ी समस्याओं से राहत के लिए एवं इम्युनिटी (रोग-प्रतिरोधकता) को बढ़ाने के लिए विशेषज्ञ त्रिफला एवं आँवला आदि के नियमित सेवन करने की सलाह भी देते हैं। सूजन एवं दर्द में गुग्गुल, हल्दी एवं काली मिर्च का सेवन करना राहत प्रदान करता है।

    इसके साथ ही शरीर के प्रभावित अंग पर नारियल, तिल और लेवेंडर आदि के तेलों की मालिशन करने से भी राहत प्राप्त होती है। तनाव एवं थकन आदि को दूर करने के लिए अश्वगंधा, ब्राम्ही एवं शतावरी भी राहत प्रदान करने वाले पदार्थ हैं।     

                                                         दुनिया में बढ़ रहे पीठ दर्द की समस्या

                                                      

                                             वर्ष 2050 तक हो सकते हैं 80 करोड़ से ज्यादा पीड़ित

पीठ दर्द की समस्या से आज दुनिया की एक बड़ी आबादी जूझ रही है। लैंसेट के एक ताजा अध्ययन में अनुमान लगाया है कि वर्ष 2050 तक दुनिया के 80 करोड़ से अधिक लोग पीठ दर्द की समस्या का सामना कर रहे होंगे। इसमें बड़ी संख्या में उम्रदराज लोग शामिल हैं। वर्तमान में पीठ के निचले हिस्से में दर्द की समस्याए दुनिया में दिव्यांगता का एक कारण बड़ा कारण बन चुका हैं।

लैंसेट रूमेटोलॉजी जनरल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने इसके लिए 30 वर्ष तक के डाटा का विश्लेषण किया। इसमें पता चला कि एशिया और अफ्रीका में पीठ दर्द से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वहीं पीठ दर्द को लेकर उपचार के सीमित विकल्प के कारण शोधकर्ताओं की चिंता को बढ़ा दिया है।

                                                           

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले ऑस्ट्रेलिया के सिडनी यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मैनुएल फरेरा ने कहा कि हमारे विश्लेषण का मुख्य बिंदु पीठ के निचले हिस्से में दर्द की समस्या और स्वास्थ्य प्रणाली पर उसके बढ़ते दबाव को उजागर करना है। फरेरा ने कहा कि पीठ दर्द की समस्या को हल करने के लिए एक संक्षिप्त व राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है समय पर रहते इस समस्या के निदान के लिए बयान तथा डॉक्टर की सलाह से इलाज शुरू करा लें तो इससे होने वाली अन्य दुष्प्रभावों से बचा जा सकेगा।

                                                               हर्निया की बढ़ती समस्या और उपचार

                                              

ऑपरेशन से ही ठीक होने वाली इस बीमारी के उपचार में लेप्रोस्कोपिक और रोबोटिक सर्जरी ने क्रांति ला दी है। डे.केयर सर्जरी की तर्ज पर हर्निया के ऑपरेशन के कुछ घंटे बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है और चार.पांच दिन बाद वह अपने कार्य पर फिर से लौट जाता है।

यह बीमारी बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक किसी को भी हो सकती है लेप्रोस्कोपिक हुआ रोबोटिक सर्जरी में छोटा सा चीरा लगाकर ऑपरेशन किया जाता है।

कारणः-

मांसपेशियों की कमजोरी हर्निया का मुख्य कारण है। मांसपेशियां कमजोर होने के कई कारण हैं जैसे चोट लगनाए गर्भावस्थाए मोटापाए ज्यादा वजन उठानाए लंबे समय तक खाँसी का आना, पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीजए जन्म के दौरान शिशु का वजन कम होनाए धूम्रपान करनाए कब्ज रहना और लगातार छींक आना आदि है जबकि यह बीमारी अनुवांशिक भी हो सकती है।

क्या होते हैं लक्षण

पुरुषों में दर्द सहित या दर्दरहित हर्निया प्रभावित हिस्से का उभरना, मल-मूत्र त्याग में एक समस्याए कमर और शरीर के अन्य भाग में सूजन, प्रभावित हिस्से में दर्द, जी मिचलाना, बार-बार उल्टी आना, मल के साथ खून आना और सीने में दर्द रहना आदि प्रमुख लक्षण है।

क्यों होती है हर्निया होने की आशंका

नाभि व जाँघ समेत शरीर का कुछ हिस्सा जन्मजात कमजोर होता है। जहां हर्निया होने की आशंका अधिक रहती है। ऑपरेशन से मांसपेशियां कमजोर होने से हर्निया हो जाता है। शरीर के अंदर के अंग बाहर निकलने लगते हैं। लेप्रोस्कोपिक व रोबोटिक सर्जरी ने इसका उपचार आसान कर दिया है। इससे हर्निया के ऑपरेशन में ज्यादा बड़ी जाली लगाना आसान हो जाता है।

                                                       

ऑपरेशन सर्जरी से उपचार के बाद भी 5 से 7% मरीजों में हर्निया दोबारा हो जाता था। लेप्रोस्कोपिक रोबोटिक सर्जरी के बाद 1% से भी कम मरीजों में दोबारा हर्निया की आशंका रहती है।

महिलाओं में सिजेरियन डिलवरी,, बच्चेदानी के ऑपरेशन आदि में हर्निया होने की आशंका बढ़ जाती है। इस तरह के ऑपरेशन से मरीज जल्द स्वस्थ होकर कार्य पर लौट सकता है। आजकल रोबोटिक व लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से लोग हर्निया का इलाज काफी कराने लगे हैं

लेखकः डॉ0 दिव्यान्शु सेंगर, प्यारे लाल जिला अस्पताल मेंरठ में मेडिकल ऑफिसर हैं।