आर्थिक लाभ हेतु मधुमक्खी पालन

                                                                                          आर्थिक लाभ हेतु मधुमक्खी पालन

                                                                                                                             डॉ0 आर. एस. सेगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

                                                                      

मधुमक्खी पालन कृषि आधारित एक ऐसा उद्योग है, जिससे कम समय एवं कम लागत में अधिक आमदनी प्राप्त होने लगती है। गावों के आर्थिक विकास के लिए मधुमक्खी पालन से बेहतर कोई अन्य दूसरा घरेलू रोजगार उपलब्ध नही है। गावों के लगभग 80 प्रतिशत लोग या तो छोटे व मढौले किसान है या फिर भूमिहीन मजदूर हैं, जिनके पास कोई स्थाई रोजगार नही है।

जानकारी सरल होने के कारण अशिक्षित व्यक्ति भी इसका व्यवसाय भली-भॉंति कर सकता है। गरीब एवं भूमिहीन भी इस व्यवसाय को 5 से 10 मधुमक्खी के बॉक्स लेकर कम से कम पूंजी में शुरू कर 3 वर्षों के अंदर 50-100 बॉक्स का मालिक बन सकता है। साथ ही प्रतिवर्ष मधुमक्खी मोम तथा मधु बेचकर लाखों रूपये की आमदनी प्राप्त कर सकता है। इस व्यवसाय में बड़े भूखण्ड़, बिजली अथवा किसी इमारत की आवश्यकता नही पड़ती है। इस व्यवसाय में अप्य उद्योगों की तरह कच्चे माल की आवश्यकता भी नही होती है।

मधुमक्खी के बॉक्सों को खेत के पेड़, सड़क के किनारे, बागीचा या कहीं भी रखा जा सकता है। मधुमक्खी लगभग 3 की.मी. क्षेत्र से अपना भोजन (फूलों का रस एवं पराग) एकत्र कर लेती है। आमतौर पर भूमिहीन मजदूर को पूरे एक साल काम नही मिल पाता, पूंजी अभाव के कारण मधुमक्खी पालन ही उनके लिए बेहतर आमदनी का स्रोत हो सकता है। सेवानिवृत्त व्यक्ति, बेरोजगार नवयूवक, नवयुवतियां एवं महिलाएं इसे रोजगार का स्रोत बनाकर बेहतर तरीके से अपना जीवन यापन कर सकते हैं।

मधुमक्खी पालन हमारे जीवन में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से लाभदायक है। मधुमक्खियों के द्वारा प्रत्यक्ष रूप में हमें शहद, मोम तथा इसे भी अधिक मूल्यवान एवं पोष्टिक पदार्थ रॉयल जैली, डंक विष, प्रोपोलिस इत्यादि प्राप्त होता है। वहीं अप्रत्यक्ष रूप से फसलों में परपरागण की क्रिया को सम्पन्न कर फसल की पैदावार में वृद्वि करती हैं और इस प्रकार हमारी फसलों की पैदावार बढ़ानें में अपना अद्भुत सहयोग प्रदान करती हैं। अतः स्वारोजगार एवं अतिरिक्त आय हेतु मधुमक्खी पालन एक उत्तम घरेलू उद्योग है, इसे अपनाकर लोग अपनी अर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकते हैं।

     किसान मधुमक्खी पालन को अतिरिक्त आय का एक साधन बनाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकते हैं। गावों में कुछ लोग मधुमक्खी पालन में काम आने वाले औजार, बॉक्स, मधु-नियकाशन यंत्र इत्यादि बनाकर इसे कुठीर उद्योग का रूप दे कर दोहरा लाभ भी अर्जित कर सकते हैं। मधुमक्खी से जहां एक ओर मधु, मोम आदि का अतिरिक्त उत्पादन किया जा सकता है, वहीं पर-परागण से फसलों के उत्पादन में भी वृद्वि होती है। मधुमक्खियों से मिलने वाला मधु अनगिनत रोगों में व्यवहार किया जाता है।

मधुमक्खी का डंक गठिया रोग तथा अन्य कई रोगों में लाभदायक सिद्व होता है। मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाला मोम भी बहुत से उद्योगों में उपयोग किया जाता है। मधुमक्खियां मानव के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण हैं। अतः मधुमक्खी पलन एक ऐसा घरेलू उद्योग है, जिस पर आम के आम और गुठिलियों के दाम चरितार्थ होती है।

मधुमक्खी पालन कब, कहां और कैसे

     साधारणतः मधुमक्खी पालन कभी भी आरम्भ किया जा सकता है। अक्टूबर-नवम्बर या फरवरी-मार्च में आरम्भ करने पर अधिक सफलता मिलती है। यह मौसम अनुकूल होने के कारण मधुमक्खियों को अपना भोजन एकत्र करने में परेशानी नही होती है। उनका भोजन (पुष्परस और पराग) प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है, अधिक भोजन उपलब्ध होने के कारण मधुमक्खियों की संख्या भी तेजी से बढ़नें लगती है। इस समय में रोगों के आक्रमण भी कम होते हैं। आने वाले समय में यदि भोजन की कमी भी होती है, तो इस अवधि में एकत्र किया हुआ भोजन ही काम आता है। जब नए परिवार की शुरूआत करते हैं तो पहले मौसम का पहला शहद एवं मोम का निष्कासन नही करना चाहिए।

     मधुमक्खी पालन की शुरूआत सदैव 3-5 परिवार के साथ ही करनी चाहिए, ताकि मधुमक्खी पालक को धरे-धरे इनके स्वभाव, आवश्यकता एवं प्रबंधन का व्यवहारिक ज्ञान हो सकें। नये मौन समुदाय को स्थापित करते समय प्रत्येक मौन पेटिका में 5 फ्रेम मधुमक्खी अवश्य खरदनी चाहिए, इनकी बिक्री फ्रेम पर ही होती है। रानी मधुमक्खी लगभग 2,000 अंड़ें प्रतिदिन देती है, जिससे मधुमक्खियों की संख्या तेजी से बढ़ जाती है।

परिवार में तीन प्रकार के सदस्य होते हैं, रानी कामेरी एवं नर। एक बॉक्स में एक ही रानी मधुमक्खी होती है। कामेरी मधुमक्खियां सेवा (नर्स) करने का कार्य करती हैं। वे अपने जन्म के तीसरे दिन से ही छत्त बनाने कार्य करने लगती है। 20वें और 25वें दिन तक पुष्परस खोजने, ढोने, परिवर्तित एवं परिशोधित करने का कार्य करने लगती हैं। कामेरी मधुमक्खी यह कार्य करते-करते 40-50 दिन के अंदर मर जाती हैं। नर युवा रानी मधुमक्खी से मेटिंग का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त मौनालय के तीन किलोमीटर की परिधि में वर्षभर भोजन स्रोत की उपलब्धता आवश्यक है।

मधुमक्खी के लिए उत्त्म भोजन स्रोत

     मधुमक्खियों के लिए उत्तम एवं बहुतायत मात्रा मं भोजन के स्रोत उपलब्ध हैं। उत्तर प्रदेश में दलहन (अरहर, मूंग, खेसरी, चना, मटर, मसूर और सोयाबीन इत्यादि), तिलहन (सरसों, सूरजमुखी, अरंडी और तिल इत्यादि), मसाले वाली फसलें (धनिया, सौंफ, मेथी, मंगरैला और अजवायन इत्यादि), फल वृक्ष (आम, लीची, अमरूद, नींबू, बेर, आंवला, जामुन और केला इत्यादि), सब्जी की फसलें (करेला, कुम्हडा, टमाटर, नेनुआ, लौकी, मिर्च, प्याल, गाजल, मूली और सहजन आदि), शोभाकारी पुष्प (गुलाब, हरपतिया, जिनिया, गेंदा, मेंहदी, और ग्लेडिवोलस इत्यादि), चारे वाली फसलें (ज्वार, बाजरा, जई, मकई और बरसीम इत्यिादि), रेशे वाली फसलें (सनई एवं जूट) तथा घास के पौधें (मोथा, पुट्स, वनभिण्ड़ी, सारेमारी, सुपुमा, भांग और घुटमी इत्यादि) बहुतायत मात्रा में उपलब्ध है।

ये वर्षभर पुष्प अवस्था में ही रहते हैं। तिलहनी एवं दलहनी फसलों का रकबा अपेक्षाकृत अधिक होता है। मक्का, सब्जी, धान एवं सूरजमुखी से मधुमक्खी को वर्षभर पुष्परस एवं पराग प्राप्त होते रहते हैं। बरसात के दिनों में मुख्य रूप से जूट, मक्का, सनई, इमली, बाजरा एवं कुछ घास फलों से मधुमक्खियों को पुष्परस या पराग अथवा दोनों ही एक साथ प्राप्त होते हैं। मधुमक्खियों के लिए भोजन के अभावकाल बहुत ही कम समय का होता है। इस समय में इनके स्थानान्तरण की व्यवस्था की जाती है।

मधुमक्खी का प्रबन्धन

     आदर्श मौनालय में मधुमक्खी परिवार यथाासंभव एक समान ही होना चाहिए, अन्यथा मजबूत परिवार, कमजोर परिवार के साथ लूटमार कर सकता है। रानी मधुमक्खी को प्रतिवर्ष बदल देनें से परिवार की वृद्वि अधिक तेजी से होती है। यदि पुराने छत्तें काले पड़ जाएं तो उनको साफकर नया छत्ता बना लेना चाहिए। पुराने छत्तों पर मधुमक्खी कम काम करती हैं, साथ ही मधु की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

सुदृढ़ परिवार की रानी बनने देना चाहिए क्योंकि कमजोर परिवार की रानी भी कमजोर होती है। परिवार का बंटवारा करते समय नई गर्भित रानी दे देने से परिवार में बढ़ोत्त्री बनी रहती है। मधुकाल से पूर्व एवं मौसम के खराब होने पर कृत्रिम भोजन की व्यवस्था की जानी चाहिए।भोजनाभाव काल में अतिरिक्त छत्तों को निकालकर भंड़ारित कर देना चाहिए।

     सर्द मौसम में मौनवंश का निरीक्षण दोपहर में एवं गर्मी के मौसम में सुबह-शाम को करना चाहिए। मधु स्राव में मौनवंश का निरीक्षण सप्ताह में एक दिन तथा भोजनाभाव काल में 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए। वर्षा के दौरान बॉक्स का निरीक्षएा नही करना चाहिए। भोजनाभाव काल में पराग के विकल्प के रूप में सोयाबीन का आटा एवं स्किम दूध को 5:1:1 के अनुपात में पराग/सप्लीमेंट के रूप में प्रदान करना चाहिए। प्राकृतिक पराग, सोयाबीन का आटा, मधु एवं चीनी का निश्चित् अनुपात में मिश्रण बनाकर देना अति लाभप्रद पाया गया है।

     मधुमक्खी परिवार के शिशुओं विषाणु, जीवाणु एवं फंफूद रोग इन्हें काफी परेशान करते हैं। इटालियन मधुमक्खी में किसी प्रकार का कोई रोग नही पाया जाता है, फिर भी टेट्रामाइसीन का एक कैप्सूल (250 मि.ली. ग्राम) को 5 लीटर भोजन के लिए चाशनी में मिलाकर देने से कई रोगों की रोकथाम स्वतः ही हो जाती है। व्यस्क मधुमक्खियों में प्रायः अकरीन, नोसिमा, लकवा एवं पेचिस आदि रोग लगते हैं। गंधक पाउडर का 2 ग्राम प्रति बॉक्स फ्रेमों के ऊपरी भाग में नियमित रूप से छिड़काव कर देने से अफरीन रोग का प्रभावी नियंत्रण होता है। 5 मि.ली. फार्मलिन से प्रजनन संबंधी अनेक रोगों से निजात पाई जा सकती है।

मौनवश का स्थानांतरण

     अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए मौनो का फूलों की उपलब्धता के आधार पर स्थानांतरण करना अति आवश्यक होता है। यदि मौनालयों के आस-पास 2 से 3 कि.मी. के क्षेत्र में ऋतु अनुसार बी फ्लोरा उपलब्ध हो तो फिर स्थानांतरण करने की आवश्यकता नही होती है। मौनों को अन्य स्थान पर तब ही ले जाना चाहिए जब कम से कम 10 प्रतिशत पुष्प खिल गए हों।

मधुमक्खी-पालन से लाभ

     मधुमक्खी पालन हमारे जीवन में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से लाभदायक है। मधुमक्खियों के द्वारा प्रत्यक्ष रूप में हमें शहद, मोम तथा इसे भी अधिक मूल्यवान एवं पोष्टिक पदार्थ रॉयल जैली, डंक विष, प्रोपोलिस इत्यादि प्राप्त होता है। वहीं अप्रत्यक्ष रूप से फसलों में परपरागण की क्रिया को सम्पन्न कर फसल की पैदावार में वृद्वि करती हैं और इस प्रकार हमारी फसलों की पैदावार बढ़ानें में अपना अद्भुत सहयोग प्रदान करती हैं।

     मधुमक्खियों से मधु जैसे बहुमल्य, बहुउद्देशीय एव बहुगणीय पदार्थ प्राप्त होते हैं, जो फूलों के रस या पौधों के दूसरे भागों के मीठे तत्वों से मधमक्खियों के द्वारा तैयार किए जाते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि शहद में कई प्रकार के पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं। आयुर्वेद में शहद को इसके गुणों के कारण ही अमृत के बाद दूसरा स्थान प्रदान किया गया है।

शहद एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिससे कुछ भी निष्क्रिय पदार्थ नही निकलता है। सेवन किया गया शहद मात्र 30 मिनट में पूरी तरह से पच जाता है, और इसमें उपलब्ध सभी पोषक तत्व हमारे शरीर को तुरन्त ही प्राप्त हो जाते हैं। शहद के पाचन में शरीर के पाचन तंत्र को अधिक शक्ति व्यय नही करनी होती है, इसी कारण नवजात शिशु को प्रथम भोजन के रूप में शहद का ही सेवन कराया जाता है। शहद में कार्बोहाइड्रेट्स काफी मात्रा में पाए जाते हैं।

शहद हमारे शरीर के लिए ऊर्जा के एक मुख्य स्रोत के रूप में कार्य करता है, जो हमारे लिए एक टॉनिक की तरह से है। एक कि.ग्रा. शहद की ऊर्जा का मूल्ष् ऊर्जा के अन्य स्रोतों की तुलना में यह 65 अंड़े, 13 लीटर दूध, 8 कि.ग्रा. पल्स, 19 कि.ग्रा. हरे मटर, 12 कि.ग्रा. सेव, 20 कि.ग्रा. गाजर, 2.5 कि.ग्रा. मछली, 2 कि.ग्रा. मांस, तथा 8 कि.ग्रा. ताड़ के रस के बराबर होता है। शहद मुख्यतः होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक एवं एलोपैथिक दवाओं के माध्यम से ग्रहण किया जाता है।

यह अपच, खोसी, जुकाम और पेचिस आदि रोगों में उपयोगी पाया गया है। यह सभी प्रकार के घावों, अल्सर, कैंसर, पेट दर्द एवं जले हुए भागों पर शीघ्र ही लाभ पहुंचाता है। शहद रक्तचॉप को कम करता है, रक्त-शोधन करता है, रक्त में हीमोग्लोबिन की प्रतिशतता को बढ़ाता है एवं रक्त के गाढ़ेपन और रक्त के जमाव को रोकता है।

     मधुमक्खियां शहद पक जाने के बाद कोपों का मुंह बंद कर देती है, जब कम से कम तीन चौथाई कोप बंद हो जाए तो उसे निकालने के लिए मधुखंड़ का उपयोग करते हुए निकालना चाहिए। इसके बाद एक-एक करके छत्ते को हाथ से लेकर छिलन थाली में ऊपर रखकर गर्म छिलन छुरी से छीलना चाहिए। इस प्रकार सभी कोषों की मोम टोपी छिल ाएगी। छिले हुए छत्तों को शहद के निष्कासन यंत्र में डालकर शहद निकालना चाहिए। मधु की औसतन पैदावार पैदावार 60-65 कि.ग्रा. प्रति बॉक्स प्रतिवर्ष होती है।

मधुमक्खी का कृत्रिम भोजन

     फलों के अभाव में मधुमक्खी को क्रमशः 200 ग्राम तथा 500 ग्राम शुद्व चीनी के शरबत का घोल बनाकर प्रति सप्ताह प्रदान करना चाहिए। इससे प्रजनन क्षमता बराबर बनी रहती है। पराग के अभाव की स्थिति में सोयाबीन का बारीक आटा शरबत या चीनी या फिर शहद में मिलाकर देना चाहिए। गर्मी के मौसम में 60 प्रतिशत पानी तथा 40 प्रतिशत चीनी, बरसात के मौसम में 50 प्रतिशत पानी, 50 प्रतिशत चीनी एवं सर्द मौसम में 40 प्रतिशत पानी तथा 60 प्रतिशत चीनी का घोल बनाकर देना चाहिए।

मोम

     मधुमक्खी द्वारा उत्पादित दूसरा अनमोल पदार्थ मोम होता है। मोम का मूल्य मधु से अधिक होता है, मोम का उपयोग अनेक उद्योगों जैसे मोमबत्ती, औषधि, मॉडलिंग और लिखने आदि में किया जाता है। फर्नीचर की उत्तम पॉलिश के रूप में मोम प्रयुक्त किया जाता है। मधुमक्खी के छत्ताधार बनाने से प्रति मोन 1 कि.ग्रा. प्रतिवर्ष होता है।

पराग

     प्रकृति में जब फलों की अधिकता रहती है, उस काल में मधुमक्खियां पराग का संचय बहुत तीव्र गति से करती हैं। पराग का उत्पादन करने वाले अच्छे स्रोत सरसों, सूरजमुखी, मक्का और सुरगुजा हैं। पराग मधुमक्खियों का प्रमुख भोजन होता है, इससे उनकी प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति होती है।

यह नवजात शिशुओं से लेकर व्यस्क मधुमक्खियां बनने तक सम्पूर्ण भोजन का कार्य करता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि पराग और शहद का मिश्रण या केवल पराग का उपयोग करने से आयु में वृद्वि होती है और बुढ़ापा भी देर से आता है। श्रमिक मधुमक्खी अपने पिछले पैरों में पाए जाने वाली पराग की टोकरी में भरकर पराग लाती है और चौखटों के कोष्ठों में एकत्र करती हैं। पराग का अभाव होने पर रानी मधुमक्खी अंड़े देना बंद कर देती है।

रॉयल जैली

     रॉयल जैली एक बहुत ही उपयोगी पदार्थ होता है, जिसे 6 से 12 दिनों की उम्र की श्रमिक मधुमक्खियां अपने सिर की ग्रन्थियों के द्वारा उत्पन्न करती हैं और जिसे सभी बनने वाले शिशुओं को दिया जाता है। इसके सेवन से रानी बनने वाली शिशुओं का वजन दूसरे शिशुओं की अपेक्षा कई गुना बढ़ जाता है। कई देशों में इसे मानव के आम आहार के रूप में उपयोग किया जाता है। रॉयल जैली दूध जैसा सफेद या हल्के पीले रंग की आभा लिए हुए होता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन्स तथा खनिज लवण उपस्थित पाए जाते हैं। रॉयल जैली रानी मधुमक्खी का आजीवन मुख्य भोजन होता है, जबकि नर एवं श्रमिक मधुमक्खियों को केवल तीन दिन तक ही प्राप्त होता है।

मधुमक्खी विष/डंक विष

     मधुमक्खियों के पास डंक होता है, जो उसकी विष ग्रन्थियों के साथ जुड़ा रहता है। मधुमक्खी डंक मारती है तो यह विष ग्रंथि से उत्पन्न होकर शरीर में प्रवेश कर जाता है। मधुमक्खियां अपनी या अपने वंश के दुश्मनों से या अन्य खतरों से सुरक्षा के लिए अपने विष का उपयोग करती हैं। इस डंक के औषधीय गुण सर्वविदित हैं। यह विष विभिन्न प्रकार के रोगों जैसे- गठिया, फाइब्रोसाइटिस एवं न्यूटाइटिस आदि छुटकार दिलाने में एक वरदान माना गया है।

मधुमक्खियों द्वारा फसलों के उत्पादन में वृद्वि

     मधुमक्खियां विभिन्न प्रकार के पौधों पर जाकर अपने मौनवंश के लिए पराग एवं पुष्परस एकत्र करती हैं। इन फसलों में फल, सब्जियां, तिलहन और दलहन आदि शामिल हैं। प्रकृति में पाए जाने वाले फलों में 5 प्रतिशत स्व-परागण तथा 95 प्रतिशत पर-परागण कीटों के द्वारा और कीटों में भी 80 प्रतिशत मात्रा मधुमक्खियों के द्वारा संपन्न की जाती है, इस प्रकार मधुमक्खियां एक उपयोगी परागणकर्ता सिद्व होती हैं। विभिन्न फसलों में मधुमक्खी परागण के प्रयोग किए गए, और पाया गया है कि मधुमक्खियों के द्वारा पर-परागण से उपज में लगभग 20-25 प्रतिशत तक की वृद्वि होती है।

इसके अतिरिक्त बीजों के आकार, वजन एवं उनकी अंकुरण क्षमता में भी वृद्वि होती है। यदि विश्व में मधुमक्खियों को पूरी तरह से हटा दिया जाए तो विश्व का कृषि उत्पादन स्वतः ही एक चौथाई कम हो जाएगा। ऐसा पाया गया है कि जितने समय में मधुमक्खियां पांच रूपये का शहद जमा कर सकती हैं, उतने ही समय में कृषि की पैदावार बढ़ाकर 100 अतिरिक्त दे सकती हैं। अतः स्पष्ट है कि मधुमक्खी पालन से शहद उत्पादन की तुलना में कृषि उत्पादन ही 20 गुना अधिक लाभदायक है।

मधुमक्खी गोंद

मधुमक्खी गोंद गहरे भूरे रंग का पदार्थ होता है। श्रमिक मधुमक्खियों के द्वारा यह वृक्षों तथा अन्य वनस्पतियों या कलियों जैसे पापुलर या छत्तों से अपनी पराग टोकरियों से पराग की भॉति एकत्रित किया जाता है। मधुमक्खियां अपने छत्तों को पेटिका से सटाती हैं तथा अपनी पेटिका की दरारों को भी बंद करती हैं। मधुमक्खी गोंद का उपयोग अब औषधियों के रूप में भी किया जाने लगा है। इसमें कीटाणु एवं फंफूदी प्रतिरोधक गुण पाए जाते हैं।

एक सहायक व्यवसाय

     बेरोजगारी की समस्या को हल करने में मधुमक्खी-पालन उद्वोग बहुत हद तक सहायक सिद्व हुआ है। इस उद्योग के साथ और भी कई उद्योग जुड़े हुए है, जैसे मोमबत्ती, बढईगिरी एवं दर्जी आदि को भी बढ़ावा मिलेगा। अतः स्वरोजगार एवं अतिरिक्त आय के लिए मधुमक्खी-पालन एक उत्तम घरेलू उद्योग सिद्व हुआ है।

लेखकः डॉ0 सेंगर, सरदार वल्ल्भभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वद्यिालय मेंरठ के कृषि महाविद्यालय के कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।