जीन एडिटिंग से फसलों में हो सकेगा सुधार प्रोफेसर एनके सिंह

सरदार वल्लभभाई पटेल  कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में एक दिवसीय जीन एडिटिंग कि भविष्य में संभावनाएं विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया

कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर केके सिंह ने कहा छात्रों को नई-नई तकनीकों से अवगत करा कर भविष्य में खेती की संभावनाओं और उत्पादकता को बढ़ाने में सहायता मिलेगी उन्होंने कहा इस प्रकार की वर्कशॉप से छात्रों तथा शिक्षकों को लाभ होता है उन्होंने कहा जब कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का वैज्ञानिक छात्रों से रूबरू होता है तो उसे शिक्षकों और छात्रों दोनों को ही फायदा होता है और विज्ञान आगे बढ़ता है

आज कॉलेज ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के सभागार में नेशनल प्रोफ़ेसर तथा पूर्व निदेशक

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ प्लांट बायोटेक्नोलॉजी ने छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि भविष्य में जीन एडिटिंग के द्वारा फसलों में सुधार किया जा सकेगा और उनको और अधिक उपयोगी बनाकर उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा जीन एडिटिंग तकनीक ट्रांसजेनिक टेक्नोलॉजी से बिल्कुल अलग है
पूर्व निदेशक एवं नेशनल प्रोफेसर एन के सिंह ने कहा कि यह तकनीकी अनुवांशिक रूप से कार्य करने में  सहायक साबित होगी और इसकी सहायता से अनुवांशिक रोगों को समाप्त भी किया जा सकता है स्वास्थ वर्धक खाद पदार्थ बनाने के लिए इस तकनीक को इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि जेनेटिक इंजीनियरिंग के उपयोग से ऐसा भोजन तैयार किया जा सकता है जो स्वास्थ्यवर्धक हो पोषक तत्वों से भरपूर हो और कठोर परिस्थितियों का सामना कर सके

प्रोफेसर एनके सिंह ने कहा की आदमी के लगभग 1500 ऐसे जीन होते हैं जो धान में पाए जाने वाले जीव से एकरूपता रखते हैं अर्थात दोनों की संरचना एक से होती है डॉ सिंह ने बताया कि उन्होंने धान अरहर चना तुलसी टमाटर, आदि फसलों की सीक्वेंसिंग की है जिससे पौधों और प्रजातियों के रखरखाव में सहायता मिल रही है उन्होंने कई फसलों की चिप विकसित की है जिससे आसानी से फसलों की गुणवत्ता को पहचाना जा सके

डॉ सिंह ने बताया कि भारत सरकार ने जिनोम एडिटिंग की परमिशन दे दी है और वैज्ञानिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं भविष्य में यह तकनीकी कृषि के क्षेत्र में एक क्रांति लाएगी क्योंकि यह तकनीकी ट्रांसजेनिक से बिल्कुल भिन्न है इसमें अच्छे गुणों की पहचान कर फसलों को आगे बढ़ाया जाता है

उन्होंने बताया की जेनेटिक मॉडिफाइड ऑर्गेज्मा जीएमओ और जीन एडिटिंग के बीच विदेशी सामग्री का परिचय बुनियादी अंतर है अनुवांशिक रूप से संशोधित जीव मेजबान अनुवांशिक संपादन के जीन को बदलने के लिए विदेशी सामग्री की शुरुआत का उपयोग करता है जबकि जीन संपादन में कोई विदेशी सामग्री शामिल नहीं होती है दोनों सामग्रियों का उपयोग उन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है जो बेहतर उपज और अधिक प्रतिरोध वाली फसलें दे सकते हैं जीन एडिटिंग का इस्तेमाल इंसानों में एचआईवी और स्किल सेल डिजीज जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए भी किया जा सकता है उन्होंने बताया कि बीटी कपास एक अनुवांशिक रूप से संशोधित जीव का एक उदाहरण है जो एक मिट्टी के जीवाणु से एक या एक से अधिक जनों को सम्मिलित करके बनाया जाता है कुछ अन्य उदाहरणों में गोल्डन राइस जीएम मकई और जीएम आलू शामिल है उन्होंने आने वाले समय में प्रजातियां के विकास में जीन एडिटिंग के विकास की संभावनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की

इस दौरान जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉक्टर रविंद्र कुमार निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट प्रोफ़ेसर आरएसएस डॉक्टर वैशाली डॉक्टर रेखा दिक्षित डॉक्टर आकाश तोमर डॉ मनोज कुमार डॉ मुकेश कुमार डॉक्टर पुरुषोत्तम डॉ नीलेश कपूर तथा महाविद्यालय के छात्र छात्राओं काफी संख्या में उपस्थित रहे

लेखकः डा0 आर0 एस0 सेंगर, प्रौफेसर, विभागाध्यक्ष कृषि बायोटेक्नोलॉजी विभाग सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौ0 विश्वविद्यालय मोदीपुरम, मेरठ।