जैव ईंधन का एक वैकल्पिक स्रोत है कैमेलिना

                                                                       जैव ईंधन का एक वैकल्पिक स्रोत है कैमेलिना

                                                                                                                                                 डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                     

‘‘कैमेलिना, एक कम दिनों में तैयार होने वाली तिलहनी वर्ग की फसल है जिसे अनुपजाऊ भूमि में व अन्य किसी भी फसल के साथ अन्तःसस्य फसल के रूप में उगाया जा सकता है।

यह बायोडीजल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है क्योंकि इसके बीजों में तेल की मात्रा 36-41 प्रतिशत तक होती है और इस प्रकार कैमेलिना हमारे देश को बायोडीजल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में व आने वाले समय में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करने में सहायता कर सकता है।

रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान, हल्द्वानी द्वारा इसकी खेती बृहत स्तर पर जैट्रोफा के साथ अन्तःसस्यन के रूप में भी की जा रही है।’’  

दुनिया के समस्त देश आज जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहे हैं व बढ़ती जनसंख्या के कारण से संसाधनों की भी मांग बढ़ रही है। विश्व के सभी देश अपने-अपने जीवाश्म ईंधन एवं पेट्रोलियम भण्डारों को बचाने की कोशिश में हैं।

भारत के परिप्रेक्ष्य में ही नहीं वरन् पूरा विश्व ही चिंतित है कि पेट्रोलियम पदार्थों के भण्डारों का समाप्त होना निश्चित है क्योंकि जीवाश्म ईंधनों के अधाधुंध प्रयोग से न केवल इनका भूगर्भ से दोहन तेजी से बढ़ा है अपितु वायु प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है।

यह माना जा रहा है कि विगत वर्षों की तरह आने वाले वर्षों में हमारे देश में ऊर्जा संसाधनों की माँग लगभग 40-45 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी व देश में उत्पादित करने वाले क्षेत्रों से आपूर्ति में मात्र 10-12 प्रतिशत की ही वृद्धि हो सकेगी। हमारे देश में एक वर्ष में पट्रोलियम पदार्थों की खपत लगभग 141.785 मिलियन मीट्रिक टन है और हम दुनिया के चौथे सबसे बड़े उपभोक्ता है।

यदि औद्योगिक विकास की गति को बढ़ाये रखना है और अपने वातावरण को बचाना है तो हमे जैव ईंधन/जैव ऊर्जा पर विशेष ध्यान देना होगा।

भारत सरकार ने भी राष्ट्रीय बायोडीजल पॉलिसी (2009) के अन्तर्गत इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं और भारत में बायोडीजल उत्पादन हेतु खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अखाद्य तेल एवं तेल देने वाली फसलों को अनुपजाऊ भूमि पर उत्पादन की स्वीकृति दी है जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर न पड़े। जिसमें से एक महत्वपूर्ण पौधा है कैमेलिना सटाइवा जो इस क्षेत्र में बहुउपयोगी सिद्ध हो सकता है।

कैमेलिना का वानस्पतिक विवरण

कैमेलिना सटाइवा सरसों वर्गीय कुल की एक वर्षीय तिलहनी वर्ग की फसल है। कैमेलिना शरद ऋतु में उगने वाली फसल यह 85-100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।

इसके पौधे 30-100 सें.मी. लम्बे और शाखाएं, सरसों की तरह एवं पत्तियाँ 4.5 सें.मी. 9 से.मी. तक लम्बी, चिकनी व गहरे हरे रंग की होती हैं। इसके पौधों पर बीज अलसी की तरह फलियों में बनते हैं। इसके बीजों में सुप्तावस्था भी नहीं पायी जाती है।

कैमेलिना का उद्गम यूराल पर्वत का पूर्वी क्षेत्र, फिनलैण्ड से रोमानिया तक का क्षेत्र माना जाता है। सर्वप्रथम इसकी खेती उत्तरी यूरोप में कांस्य युग में की जाती थी और इसके बीजों को फाड़कर एवं उबालकर, तेल का प्रयोग खाने, औषधीय एवं रोशनी के लिए किया जाता था।

यूरोप में कैमेलिना को कई नामों से भी जाना जाता है जैसे झूठा अलसी, गोल्ड ऑफ प्लेजर एवं साइबेरियन मस्टर्ड आदि जबकि इसकी खेती 1940 में यूरोप व रूस में विस्तृत रूप से की गयी, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् उच्च उपज वाली फसलों के द्वारा कैमेलिना की खेती को प्रतिस्थापित कर दिया।

पिछले कुछ वर्षों से इसके बीजों में उपस्थित तेल की मात्रा 36-41 प्रतिशत तक बढ़ाने व तेल में उपस्थित ओमेगा 3 वसा अम्लो के महत्व के कारण ध्यान दिया जा रहा है। प्रजनन एवं फसल विकास की दशा में कमेलिना पर बहुत कम कार्य हुआ है।

रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान, हल्द्वानी द्वारा कॅमेलिना को राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के माध्यम से पुरःस्थापन कर उत्तराखण्ड व अन्य स्थानों पर सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है। कैमेलिना एक ऐसा पौधा है जिसको बायोडीजल हेतु सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।

जलवायु एवं मृदा

कैमेलिना एक लघु अवधि (85-100 दिन) की फसल है जो शरद ऋतु में आसानी से उगायी जा सकती है। यह फसल वर्षा आधारित क्षेत्रों में, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी आसानी उगायी जा सकती है। कैमेलिना की खेती करने हेतु अत्यधिक उपजाऊ मृदा की आवश्यकता नहीं होती है।

यह कम उपजाऊ, अनुपजाऊ, पथरीली एवं ककड़  पम्थर वाली भूमि में भी उगायी जा सकती है। रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान, हल्द्वानी द्वारा किए गए परीक्षणों में देखा गया है कि यह फसल वर्ष भर भी उगायी जा सकती है केवल अत्यधिक वर्षा से फसल को हानि पहुंचती है। शरद ऋतु फसल उत्पादन हेतु उपयुक्त ऋृतु है। यह पाला एवं सूखा के प्रति सहिष्णु है।

खेत की तैयारी

कैमेलिना की बुआई हेतु खेत को एक बार मिट्टी पलट तथा अच्छे उत्पादन हेतु सड़े हुए गोबर की खाद एवं उर्वरक को छिड़कर कर देशी हल या हैरो चलाकर (एक या दो बार) अच्छी प्रकार से मिलाकर क्यारियाँ तैयार कर लेते हैं।

बीज दर

एक हैक्टर खेत की बुआई हेतु 3.0-40 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है क्योंकि कैमेलिना का बीज अत्यन्त छोटे आकार का होता है। 1000 बीजों का भार लगभग 1.020-1.050 ग्राम होता है।

बुआई का तरीका

बीज का आकार छोटा होने के कारण बीज को महीन बालू या बारीक मिट्टी में 1:10 अनुपात में मिला लेते हैं तथा अच्छे उत्पादन हेतु लाइन से लाइन की दूरी 25-30 सें.मी. एवं कतारों में बुआई करते हैं।

बुआई से पूर्व क्यारियों के आकार के आधार पर बीज को बराबर मात्रा में अलग-अलग कर बोने से खेत में बीज की मात्रा ठीक रहती है। परीक्षणों में देखा गया है कि कतारों में तथा छिटकवाँ विधि से बुआई करने पर उपज में काफी अंतर रहता है।

अतः कतारों में बुआई करना ही लाभकारी रहता है।

क्योंकि कैमेलिना का उपयोग बायोडीजल हेतु किया जाना है अतः बड़े भूखण्डों में बुआई हेतु सीड़ड्रिल से बुआई करने के लिए मानक तैयार करने की आवश्यकता है।

कैमेलिना का महत्व

                                                           

आज विश्व के अलग-अलग देशों में जैव ईंधन, विभिन्न फसलों जैसे मक्का, सोयाबीन, पामालिन, गन्ना, चुकंदर, सरसों, रेपसीड, गेहूं एवं जैट्रोफा आदि से बनाया जा रहा है।

कैमेलिना के बीजों से प्राप्त तेल खाने व औद्योगिक उत्पादों के लिए उपयोग किया जा सकता है इसके बीजों में तेल की मात्रा 36-41 प्रतिशत तक पायी जाती है, कैमेलिना के तेल में ओमेगा-3 वसा अम्ल तथा संतृप्त वसा अम्लों की मात्रा और विटामिन ई (टोकोफीराल) भी पाया जाता है जो एन्टीआक्सीडेन्ट है।

कैमेलिना का तेल अन्य तेलों की तुलना में अधिक स्थायित्व प्रदान करता है इसलिए यह बायोडीजल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। कैमिलिना तेल में ईरुसिक अम्ल तथा इकोसिनोइक अम्ल की मात्रा आवश्यकता से अधिक होती है जिस कारण इसके तेल को स्वास्थ्य कारणों से खाने योग्य नहीं माना जाता है।

अमेरिकी संस्था एफ.डी.ए. (फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) द्वारा भी इसको खाद्य श्रेणी में नहीं रखा गया है। परन्तु बिस्कुट एवं कनफैक्शनरी उत्पाद बनाने में छूट दी गई है। इसका उपयोग सौन्दर्य त्वचा हेतु औषधियों, साबुन एवं मृदु डिटरजेन्ट, ग्लिसराल आदि के उत्पादन हेतु भी किया जा सकता है। खली का उपयोग जानवरों के खिलाने हेतु भी किया जा सकता है। 

खाद तथा उर्वरक

कैमेलिना की खेती के लिए खेत में 100-150 किंवटल गोबर की खाद (सड़ी खाद) बुआई से पूर्व डालते हैं। नाइट्रोजन- 50 कि.ग्रा., फॉस्फोरस 30 कि.ग्रा. एवं पोटाश 20 कि.ग्रा. तथा सल्फर 15 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से से डालना चाहिए।

नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस, पोटाश एवं सल्फर की पूरी मात्रा बुआई से पूर्व एवं शेष नाइट्रोजन की मात्रा को फूल आने से पूर्व 1-2 बार में टॉप ड्रेसिग के रूप में देनी चाहिए।

अन्तःकर्षण क्रियाएं

कैमेलिना की खेती करने के लिए अन्य फसलों की तुलना में कृषि में आवश्यक इनपुट कम लगते हैं, जैसे सिंचाई, गुड़ाई, खाद एवं उर्वरक आदि।

खरपतवार नियंत्रण

कैमेलिना सामान्यतया खरपतवारनाशी का उपयोग किये बिना ही उगाया जाता है, क्योंकि यह एलीलोपैथिक प्रभाव दर्शाता है (अन्य पौधों की वृद्धिको रोकता है) लेकिन बहुवर्षीय खरपतवारों जैसे दूब घास एव मौथा का नियंत्रण करना कठिन है।

कैमेलिना के लिए अभी तक कोई भी खरपतवारनाशी पंजीकृत नहीं है, परन्तु बुआई से पूर्व खरपतवारनाशी का उपयोग करके फसल के प्रारंभिक काल में खरपतवारों द्वारा होने वाले कुप्रभाव को कम किया जा सकता है।

बुआई से पूर्व खरपतवारनाशी के रूप में पेन्डीमिथोलिन दवा को 1.0-1.5 कि.ग्रा. एक्टिव इन्सोडेन्ट/हैक्टर की दर से प्रयोग किया जा सकता है।

प्रजातियाँ

हमारे देश में अभी तक इसकी प्रजातिया विकसित नहीं की गयी है। रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान द्वारा कुछ प्रजातियां आयात करके परीक्षण की गयी है। इसमें कैलिना (ऑस्ट्रिया से आयातित) ने अच्छे परिणाम दिए हैं। प्रजाति विकसित करने की दिशा में प्रयास जारी हैं।

कटाई व मड़ाई

जब कैमेलिना की अधिकांश फलियाँ पक कर सुनहरे रंग की हो जाती है तब इसकी कटाई आरंभ करनी चाहिए तथा छोटे-छोटे बण्डल बना लेने चाहिए। फलियों से बीज निकालकर भण्डारण किया जाता है। कैमेलिना की फसल में एक बहुत अच्छा गुण है कि इसमें पकते समय बीज झड़ने की समस्या नहीं पायी जाती है। परन्तु फिर भी यदि कटाई सुबह के समय की जाए तो नुकसान कम होता है।

उपज

कैमेलिना की उपज लगभग 12-16 किंवटल प्रति हैक्टर तक प्राप्त की जा सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगकी विश्वविद्यालय, मेरठ के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर में प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।