स्मार्ट वॉच दिल से जुड़े रोगों का समय रहते पता लगाने में है

                                                 स्मार्ट वॉच दिल से जुड़े रोगों का समय रहते पता लगाने में है

                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

स्मार्ट वॉच का क्रेज आजकल लोगों के बीच काफी तेजी से बढ़ता जा रहा हैए यह ईसीजी जैसी सुविधाओं से लैस होती जा रही है। ऐसे में स्मार्ट वॉच कलाई की खूबसूरती बढ़ाने के साथ.साथ पहनने वालों के दिल से जुड़े रोगों का समय रहते पता लगाने में भी कारगर साबित हो सकता है। यूरोपियन हार्ड जनरल डिस्टल हेल्प में प्रकाशित शोध में कहा गया है, कि स्मार्ट वॉच में उपलब्ध ईसीजी दिल के अनियंत्रित धड़कन और हार्ट फेल होने जैसी संभावनाओं का पता लगाने में सक्षम है।

                                                          

इस दौरान स्मार्ट वॉच की क्षमता के बराबर ईसीजी का प्रयोग किया गया है इसमें बड़ी संख्या में लोगों से जुड़े आंकड़ों को शामिल किया गया था। यह सभी 15 सेकंड के एक ईसीजी जांच से गुजरे थे, इसमें पाया गया कि इस दौरान दर्ज अधिक हार्टबीट वाले व्यक्ति में अगले 10 वर्षों के दौरान हार्ट फेल या अनियंत्रित धड़कन जैसी परेशानी होने की संभावना दुगनी थी। ईसीजी जांच में 50 से 70 वर्ष तक के लोगों के आंकड़ों को शामिल किया गया था।

आने वाले समय में स्मार्ट वॉच दिल की बीमारियों और उनके रोगियों के लिए काफी सहायक साबित हो सकती है। दिन पर दिन लोग इसको पहचान रहे हैं और इसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने लगे हैं।

                                                       मोटे अनाज की खपत बढ़ेगी तो उत्पादन भी बढ़ेगा

                                                

खेत से थाली तक मोटे अनाज की पहुंच बड़ी लोगों की इम्यूनिटी को होगा फायदा

वर्ष 2023 मोटा अनाज वर्ष के रूप में बनाए जाने के कारण मोटे अनाज के बारे में लोगों की सोच बढ़ी है और यह खेत से थाली तक बड़ी तेजी से पहुंचने लगा है और लोग इसकी मांग काफी तेजी से कर रहे हैं।

नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फूड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट सजापुर ने हाल ही में चेन्नई में राष्ट्रीय मोटा अनाज सम्मेलन अर्थात नेशनल मिलेट समिति 2023 की मेजबानी की है। यहां भी एक स्वर में यह विचार उभर कर सामने आया है कि मोटे अनाज भविष्य के भोजन है और राष्ट्रीय स्तर पर अब किसी को संदेह नहीं रह गया है कि मोटे अनाज का उत्पादन उसकी खपत प्रसंस्करण निर्यात और उसमें कदन्न का इस्तेमाल बढ़ना तय है।

मोटे अनाज केवल भविष्य ही नहीं मोटे अनाज का समृद्ध इतिहास रहा है मोटे अनाज में मुख्य तौर पर ज्वारए बाजराए कुट्टु, मक्का, कोदो, सावा, कुटकी, कंगनी और अन्य अनाज शामिल है इन्हें श्री अन्न या चंदन या मोटे अनाज भी कहा जाता है। श्री अन्न भारत और दुनिया के लोगों द्वारा खेती और उपयोग किए जाने वाले सबसे शुरुआती अनाजों में से एक है। वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है इसका असर भी जगह-जगह दिखाई दे रहा है।

फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार कदन्न फसलों को विश्व में 75.70 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है जिसका उत्पादन 90.35 मिलियन मेट्रिक टन है। भारत मोटे फसलों को उगाने वाला सबसे बड़ा निर्यातक देश  है लेकिन यहां उत्पादन ज्यादा है। वर्ष 2020 में भारत ने वैश्विक मोटा अनाज उत्पादन में 41% का योगदान दिया था। यह सच है कि भारत मोटे अनाज की खेती पिछले 5,000 वर्षों में उत्तरोत्तर कम होती गई है।

वर्ष 1950 से 2018 तक मोटे अनाज का क्षेत्रफल 9.02 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 7.38 मिलियन हेक्टेयर रह गया था।

राजस्थान बाजरा के क्षेत्र और उत्पादन दोनों में अग्रणी राज्य है जबकि महाराष्ट्र ज्वार के लिए क्षेत्र और उत्पादन में सबसे आगे है। वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से अनाजों के उत्पादन पर असर दिखने लगा है। भविष्य में अति विषम जलवायु का अनुमान लगाया जा रहा है जो मोटे अनाज की फसलें जलवायु स्मार्ट साबित हो सकती है।

                                                      

कृषि वैज्ञानिकों ने भी मोटे अनाजों के महत्व को समझ लिया है। अनेक मोटे अनाज की खेती कम पानी एवं विषम जलवायु में भी संभव है। इसका प्रचार बुनियादी रूप से भारतीय कृषि को मजबूत करने में होगा।

हैदराबाद स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मिलेट्स रिसर्च निरंतर अनुसंधान में जुटा है और मोटे अनाज की 2,000 से अधिक किसानों के विकास का काम कर रहा है। भारत में अकेले ज्वार एवं बाजरा की ही सैकड़ों किस्में मौजूद है। जलवायु और जमीन के हिसाब से मोटे या पोषक अनाजों की खेती को बढ़ावा देने का कार्य युद्ध स्तर पर किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश और बिहार में मोटे अनाज के उत्पादन की असीम संभावनाएं उपलब्ध है। बिहार को 2015 से 2016 में मोटे अनाज के वर्ष के रूप में पूरे देश में सर्वोच्च उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिल चुका है बिहार में मोटे अनाज को लोग कतई भूले नहीं है।

अगर हम भारत में कदन्न के उपयोग या खपत को देखें तो आज 18.82 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष और बिहार 18.65 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष में मोटे अनाज की खपत सबसे अधिक है।

बिहार, जहां सब्जी उत्पादन में तीसरे और फल उत्पादन में चौथे स्थान पर है वहीं मोटे अनाज के उत्पादन में यहां बहुत कुछ करने की जरूरत है।

यह अनाज गरीब राज्यों या किसानों के लिए ज्यादा कारगर हो सकते हैं, क्योंकि मोटे अनाज के उत्पादन में लागत कम आती है यह फसलें मिट्टी की कमियों के प्रति भी कम संवेदनशील होती हैं तथा इन्हें कम उपजाऊ या लोनी मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है। इन्हें जल, उर्वरक और कीटनाशकों की भी बहुत कम जरूरत पड़ती है।

मोटे अनाज की खेती कार्बन फुटप्रिंट को भी कम करने में मदद करती है। मोटे अनाज से किसानों का स्वयं का स्वास्थ्य भी शुद्ध हो सकता है इसलिए किसानों को भी चाहिए कि वह कम से कम अपने खाने के लायक ही मोटे अनाज का उत्पादन अवश्य करें जिससे उनका स्वास्थ्य अच्छा बना रहे।

किसानों को इस बात से भी प्रेरित होना चाहिए कि मोटे अनाज की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है मोटे अनाज का वैश्विक निर्यात 2019 में $38 करोड़ से बढ़कर 2020 में 40 करोड़ 27 लाख डॉलर हो गया है। निर्यात बढ़ने के साथ घरेलू खपत में भी तेजी से वृद्धि हो रही है।

तमाम कृषि संस्थान किसानों को मोटे अनाज उत्पादन के लिए प्रेरित कर रहे हैं मोटे अनाज का उत्पादन और निर्यात आने वाले वर्षों में तेजी से बढ़ना तय है। इस वर्ष देखा जाए तो मोटे अनाज को बोने में किसान दिलचस्पी ले रहे हैं और लगातार इसका क्षेत्रफल बढ़ रहा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष और डाईरेक्टर प्लेसमेंट हैं।