कृषि क्षेत्र के विकास से निर्यात में वृद्वि

                                                                            कृषि क्षेत्र के विकास से निर्यात में वृद्वि

                                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

किसी भी अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कृषि को यदि आर्थिक प्रणाली की रीढ़ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। वास्तव में, कृषि क्षेत्र खाद्यान्न और कच्ची सामग्री तो उपलब्ध कराता ही है, यह अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से को रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है।

भारत की कार्यशील आबादी का एक प्रमुख व्यवसाय कृषि ही है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि और संबद्व क्षेत्र से परोक्ष रूप से जुड़ी हुई है। इसके विपरीत, विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का अनुपात बहुत ही कम होता है, जो कि ब्रिटेन में औसतन 05 प्रतिशत, अमेरिका में 04 प्रतिशत, फ्रांस में 14 प्रतिशत, जापान में 21 प्रतिशत और रूस में 32 प्रतिशत है।

भारत में कृषि क्षेत्र का यह ऊंचा अनुपात तेजी से बढ़ रही आबादी की आवश्यकतानुसार गैर-कृषि क्षेत्र की गतिविधियां प्रयाप्त रूप से विकसित नही हो पाना है।

कृषि हमारी राष्ट्रीय आय का एक प्रमुख स्रोत है। केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन के अनुसार, वर्ष 1960-61 में कृषि एवं संबद्व क्षेत्रों का योगदान 52 प्रतिशत था।वर्ष 2001-02 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 32.4 प्रतिशत दर्ज की गई। चाय, चीनी, चावल, तम्बाकू और मसाले जैसे कृषि पदार्थों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान है और भारत इन वस्तुओं का बड़े पैमाने पर निर्यात करता है। 

                                                                           

कृषि क्षेत्र के सुचारू विकास के से निर्यात में वृद्वि होती है और आयात में कमी आती है। जिसके परिणाम स्वरूप, भुगतान संतुलन देश के अनुकूल बनाने में सहायता मिलती है और विदेशी मुद्रा की बचत भी होती है। इस बचत का उपयोग देश के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक वस्तुओं, कच्ची सामग्री, मशीनरी, उपकरण तथा अन्य अवसंरचना संबंधी मदों के आयात में किया जा सकता है। इससे आर्थिक विकास की गति में तेजी आएगी और देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।

कृषि और किसानों की बेहतरी के लिए यू तो हमेशा से ही प्रयास किए जाते रहे हैं, परन्तु प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने इस बारे में गम्भीर एवं निष्ठापूर्ण प्रयास किए हैं, उनके सकारात्मक और उत्साहवर्धक परिणाम सामने आ रहे हैं।

सरकार ने कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देते हुए इसके लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान किया है। पिछली सरकार ने पांच वर्षों-2009 से 2014 के दौरान कुल 1,21,082 करोड़ रूपये के बजट का प्रावधान किया था।

वहीं, वर्तमान सरकार ने वर्ष 2014 से 2019 की पांच वर्ष की अवधि के लिए कृषि क्षेत्र को 2,11,694 करोड़ रूपये आवंटित किए हैं जो कि पिछली सरकार की तुलना में 74.5 प्रतिशत अधिक है। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2017 से वर्ष 2020 के लिए 2 कार्पस फंड भी बनाए गए हैं।

‘‘सूक्ष्म सिंचाई कोष‘ के लिए 5 करोड़ रूपये तथा डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना विकास कोष, के लिए 10,881 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। वर्ष 2018-19 के बजट में 2000 करोड़ रूपये के कृषि बाजार अवसंरचना विकास कोष, 7550 करोड़ रूपये के ‘मत्स्य एवं जलीय विज्ञान अवसंरचा विकास कोष की व्यवस्था की गई है।

भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की सिफारिशों के अनुरूप, खरीफ मौसम 2018-19 से विभिन्न कृषि जिंसों पर लागत मूल्य का डेढ़ गुना या उससे अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई है। इसका लाभ सभी किसानों को मिल सके, इसके लिए नीति आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों के साथ मिलकर नई व्यवस्था तैयार की है।

किसानों के अनुकूल पहलों को बढ़ावा देने के साथ-साथ अन्नदाता के प्रति अपनी संकल्प और वचन बद्वता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक नयी समावेशी योजना- ‘प्रधनमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पी.एम-आशा)‘ को स्वीकृति प्रदान की गई है। इस योजना का उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य उपलब्ध कराना है।

                                                               

इसकी घोषणा माननीय वित्तमंत्री ने वर्ष 2018 के केंद्रीय बजट में की थी। इस योजना के अंतर्गत सरकार उत्पादन लागत से डेढ़ गुनी आमदनी तय करने का सिद्वांत अपनाते हुए खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में पहले ही वृद्वि की जा चुकी है। न्यूनतम समर्थन मूल्यों में वृद्वि से राज्य सरकारों के सहयोग से खरीफ फसल को बढावा मिलेगा और इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।

किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए वर्ष 2022 तक उनकी आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया है। नीती आयोग ने नये व्यवसाय मॉडलों के जरिए किसानों की आय दुगुनी करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक कार्यदल का गठन भी किया है। इस परिकल्पना को वर्ष 20220 तक मूर्त रूप देने के लिए उत्पादकता बढ़ाने, खेती की लागत को घटाने, और बाजार ढांचें सहित फसल की कटाई के उपरान्त प्रबन्धन को सुदृढ़ बनाने पर विशेष बल दिया जा रहा है।

इसके लिए मॉडल कृषि उपज ण्वं पशुधन विपणन अधिनियम, 2017 और मॉडल अनुबंध खेती एवं सेवा अधिनियम, 2018 जैसे अनेक बाजार सुधारोन्मुखी उपाय लागू किए गए हैं। देश के विभिन्न राज्यों ने कानून के द्वारा इसको अपनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं हैं।

  प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानियों से किसानों के बचाव हेतु उन्हें सुरक्षा-कवच प्र्रदान करने के लिए वर्ष 2016 के खरीफ मौसम से ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना‘ का शुभारम्भ किया गया। खरीफ की फसल के लि प्रीमियम राशि अधिकतम 02 प्रतिशत और रबी की फसल के लिए 1.5 प्रतिशत प्रीमियम रखी गई है।

                                                                                   

इस बीमा योजना में खड़ी फसल के साथ-साथ बुआई से पहले और कटाई के उपरान्त के जोखिमों को भी शामिल किया गया है। इतना ही नही, नुकसान के दावों का 25 प्रतिशत भुगतान तत्काल ऑनलाईन प्रक्रिया के द्वारा किया जा रहा है। किसानों के बीच यह योजना काफी लोकप्रिय हो रही है।

पिछली सरकार के अंतिम 2 वर्षों के दौरान 17,509 रूपये की बीमित राशि थी, जिसे वर्तमान सरकार ने बढ़ाकर 2 वर्षों 2016.17 तथा 2017-18 के दौरान 120 प्रतिशत वृद्वि के साथ 38,496 रूपये कर दिया है। पहले 1750 रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से बीमा दावों का भुगतान किया जाता था, अब वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान इसे 76 प्रतिशत बढ़ाकर 3,084 रूपये प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है।

प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानियों के राहत नियमों में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। अब केवल 33 प्रतिशत फसल की हानि पर भी वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। इसके अतिरिक्त, अब इसकी सहायता राशि को भी बढ़ाकर 1.5 गुना कर दिया गया है।

कृषि विपणन क्षेत्र में पारदर्शिता और सुधार लाने, किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने और प्रतिस्पर्धा का वातावरण तैयार करने के लिए सरकार ने ‘राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना‘ आरम्भ की है।

‘ई-नाम‘ प्लेटफार्म की शुरूआत 8 राज्यों की 21 मंड़ियों में 14 अप्रैल, 2016 को की गई। इसके अन्तर्गत 31 मार्च, 2018 तक सभी 585 नियमित बाजारों में ई-मार्केट  प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जा चुका था ताकि ऑनलाईन ट्रेडिंग करने, ई-परमिट जारी करने और ई-भुगतान के साथ-साथ बाजार की समस्त गतिविधियों के डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित किया जा सके।

इस प्रणाली से लेन-देन की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और पूरे देश के बाजारों तक किसानों की पहुंच को आसान बनाने में सहायता मिली है। इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने का वातावरण बना ही है और देश ‘एक राष्ट्र, एक बाजार‘ की दिशा में आगे भी बढ़ा है।

परम्परागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत जैविक कृषि को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। जैव-रसायनों, जैव-कीटनाशकों और जैव-उर्वरकों के अधिक से अधिक उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। सिंचाई सुविधाओं में विस्तार, बागवान का विस्तार, कृषि-वानिकी, बांस मिशन, मधुमक्खी-पालन, दुग्ध, मछली एवं अंड़ा उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ कृषि-शिक्षा, अनुसंधान और विकास पर भी बल दिया जा रहा है।

सरकारी संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए अधिक निवेश किया गया है। दलहन एवं तिलहन में आत्मनिर्भरता लाने के लिए नई पहलें की जा रही हैं्र। देश के सभी जिलों में आकस्मिक योजना उपलब्ध कराई गई है तथा सूखा एवं ओला वृष्टि से प्रभावित किसानों को प्रदान की जाने वाल राहत को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में किसानों के हितों को प्राथमिकता प्रदान की गई है।

समकेतिक कृषि-प्रणाली पर भी बल दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत बहु-फसल प्रणाली, चक्रीय फसल प्रणाली और मिश्रित फसल प्रणाली के साथ बागवानी, पशुधन, मछली-पालन और मधुमक्खी-पालन जैसे सबंद्व कार्यकलापों पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। इससे किसान न केवल सतत आजीविका के लिए उत्पादन को बढ़ानें में सक्षम हो रहा है, बल्कि उस पर सूखा, बाढ़ अथवा अन्य मौसमी आपदाओं का प्रभाव भी कम हुआ है।

इस प्रणाली के अंतर्गत न्यूनतम जुताई, मिट्ठी की सतह पर फसल अवशेषों के उपयोग और फसल चक्रण को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। इन सभी उपायों से उपजाऊ मृदा को कम से कम नुकसान की स्थिति में लाया गया है।

सरकार सूक्ष्म सिंचाई सुविधाओं के विस्तार पर जोर दे रही है। वर्ष 2017-18 के दौरान 9 लाख 26 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के दायरे में लाया गया, जो किसी भी कैलेण्डर वर्ष में अभी तक का सर्वोच्च स्तर है। सरकार  वर्ष 2022-23 तक इसमें प्रतिवर्ष 1.5 से 02 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को जोड़ने के लक्ष्य पर कार्य कर रही है। 

भारत की मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना आज पूरे विश्व में एक चर्चा का विषय बनी हुई है। सरकार ने 12 पैरामीटरों के लिए मिट्ठी के नमूनों के परीक्षण के आधार पर किसानों को उनकी भूमि की उर्वरता के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना को लागू किया है। देश में सभी भूमि जोतों के लिए प्रति दो वर्ष में मृदा स्वास्थ्स कार्ड जारी करने की व्यवस्था लागू की गई है।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के दूसरे चक्र में 2017-18 से 2018-19 तक मृदा के 255.48 लाख नमूनें एकत्रित किए गए, 202.34 लाख नमूनों का परीक्षण किया गया और किसानों को 687.59 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए हैं।

एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड से जुड़ी सिफारिशों के अनुसार उर्वरक और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग किए जाने से रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में 8 से 10 फीसदी कमी दर्ज की गई है, जबकि फस्लों की उपज 5 से 6 प्रतिशत तक बढ़ी है।

नीमलेपित यूरिया को बढ़ावा दिये जाने से यूरिया का उपयोग स्वतः ही नियंत्रित हो गया है। अब फसलों के लिए यूरिया की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है और उर्वरक की लागत में भी कमी आई है। आज घरेलू तौर पर उत्पादित और आयातित यूरिया की पूरी की पूरी मात्रा ही नीमलेपित हो गई है।

देश में एक समय था, जब दालों की काफी कमी हुआ करती थी, जिससे दालों की कीमते काफी ऊंची होने से दालें आम आदमी की पहुंच से बाहर थी। आज प्रसन्नता की बात यह है कि भारत अब दलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है। इसके फलस्वरूप दालों को आयात करने की आवश्यकता अब नही है।

देश में खाद्य तेलों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु और तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने हेतु राष्ट्रीय तिलहन और तेल मिशन पर कार्य चल रहा है। इस मिशन के विभिन्न कार्यक्रमों को राज्य कृषि या बागवानी विभाग के माध्यम से लागू किया जा रहा है।

कृषि एवं खाद्य सुरक्षा, भारत सरकार के सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शमिल हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण-अनुकूल माहौल में किफायती मूल्यों पर पर खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित् करना है। हमारे देश के संदर्भ में कृषि विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारी आबादी का अधिकांश भाग आज भी अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह से कृषि पर ही निर्भर है।

कृषि क्षेत्र हमारे तेजी से बढ़ रहे विनिर्माण क्षेत्र को भी कच्चे माल की आपूर्ति करने में अपना महत्वपूर्ण योगउान प्रदान करता है। भारत में कृषि क्षेत्र बहुत बड़ी संख्या में ग्रामीण व्यक्तियों और युवाओं को उद्यमशीलता के अवसर और रोजगार उपलब्ध करा रहा है।

यदि देखा जाए तो भारत ने कृषि एवं इससे संबद्व क्षेत्रों में पहले की तुलना में बहुत सफलताएं और उपलब्धियां अर्जित की हैं। पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में हरित क्रांति और श्वेतक्रांति खाद्यान्न और दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी कर आत्मनिर्भरता प्रदान की है, मात्र इतना ही नही, अब हम इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता से भी आगे बढ़ चुके हैं।

बागवानी, मत्स्य और दलहन के उत्पादन में भी हमारा प्रदर्शन बहुत सराहनीय रहा है। हमारी नीतियों और कायक्रमों का लक्ष्य ऐसी कृषि तकनीक, प्रौद्योगिकी और कार्यप्रणाली विकसित करना है, जिनसे सभी नागरिकों के लिए खाद्य और पोषणीय सुरक्षा तथा कृषक समुदाय के लिए आजीविका सुनिश्चित् की जा सके।

कृषि अर्थव्यवस्था पर आधारित हमारा देश वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, भू-आधार के सिकुड़नें, जल-संसाधनों की कमी, कृषि श्रम की कम उपलब्धता और राष्ट्रीय एवं अंतरर्राष्ट्रय बाजारों में बढ़ती लागतों, कृषि उत्पादन में अस्थिरता एवं अनिश्चितता जैसी अनेक चुनौतियों का समाना कर रहा है।

इन सभी कारकों को दृष्टिगत रखते हुए हमें अधिक मूल्य प्रदान करने वाली विधि फसलों और पशुधन के विधिीकरण की ओर भी ध्यान देना होगा। इससे न केवल कृषिगत आय में सुधार होगा, अपतिु तेजी से कम हों रहे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव में भी कमी आयेगी।

खेती की लागत में कमी, फसलों की पैदावार बढ़ानें और फसल अवशेषों के प्रबंधन के उद्देश्य से ‘कृषि यंत्रीकरण प्रोत्साहन‘ नाम से एक नई केंद्रीय योजना की शुरूआत की गई है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में इस पर कार्यान्वयन भी किया जा रहा है।

इसमें फसल अवशेषों के यथा-स्थान प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस योजना की घोषणा वर्ष 2018 के बजट के दौरान की गई थी। इसके अंतर्गत वर्ष 2018-19 से 2019-20 की अवधि के दौरान केंद्रीय निधि से कुल 1151.80 करोड़ रूपये व्यय किए जाएंगे।

किसानों को फसल प्रबंधन के उद्देश्य से मशीनरी खरीदने के लिए व्यक्तिगत आधार पर मशीनरी/उपकरण की 50 प्रतिशत लागत, वित्तीय सहायता के रूप में दी जा रही है। इसके अतिरिक्त सूचना, शिक्षा एवं संचार (आई.सी.टी.) से जुड़ी गतिविधियों के लिए राज्य सरकारों, कृषि विज्ञान केंद्रों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्व संस्थानों, केंद्र सरकार के संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को भी यह वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।

आज भारत में पशुधन की संख्या लगभग 30 करोड़ है, जो विश्व के कुल पशुधन का 18 प्रतिशत है। पशु हमारे देश के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है। इसे ध्यान में रखते हुए पशुधन की उत्पादकता को दकरने और श्वेतक्रांति के नए आयाम प्राप्त करने के लिए इस दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहें हैं।

इसके लिए हमें देशी गोवंशीय और महिष-वंशीय नस्लों का बड़े पैमाने पर विकास करना होगा। भारत सरकार ने इसके महत्व को समझा है और देशी नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 28 राज्यों में 1496 करोड़ रूपये की परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की गई है। देशी गाय की 41 नस्लों और 13 महिष-वंशीय नस्लों संरक्षण एवं संवर्धन किया जा रहा है।

गोकुल ग्राम योजना के अंतर्गत 13 राज्यों में 20 गोकुल ग्रामों के लिए 196 करोड़ रूपये स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से 3 गोकुल ग्रामों का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। देशी नस्ल के पशुओं के समग्र विकास और स्वदेशी नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धनके लिए देश में पहली बार 50 कारेड़ रूपये की लागत से 2 नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं।

825 करोड़ रूपये के राष्ट्रय पशुधन उत्पादकता मिशन के तहत 9 करोड़ दुधारू पशुओं को नकुल स्वास्थ्य-पत्र उपलब्ध कराने का कार्य प्रगति पर है। अब तक 1 करोड़ 8 लाख से अधिक पशुओं को चिन्हित किया जा चुका है।

देशी बोवाइन नस्लों के प्रजनकों और किसानों को जोड़ने के लिए नवम्बर, 2016 में ई-पशुधन हाट पोर्टल की स्थापना की गई है, डेयरी विकास की प्रगति भी बहुत उत्साहवर्धक रही है। आज भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व के पहले स्थान पर है और विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में भारत का योगदान 19 प्रतिशत का है।

हमारे देश में प्रतिव्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता भी पहले के मुकाबले काफी बढ़ी है। इसी तरह वर्ष 2010 से 2014 की तुलना में 2014 से 2016 के दौरान डेयरी किसानों की आमदनी में 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्वि हुई है। वर्ष 2017-18 के दौरान दूध के उत्पादन में 35.70 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई है।

मत्स्य विकास की भरपूर क्षमताओं को देखते हुए मात्स्यिकी क्षेत्र नीली क्रांति की घोषणा की जा चुकी है। भारत में नीली क्रांति के द्वारा मत्स्य विकास के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी राष्ट्र बनने के संकल्प को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। यह क्रांति अपनी बहु-आयामी गतिविधियों के साथ जलीय कृषि, अंतर्देशीय और समुद्री मात्स्यिकीय संसाधनों के जरिए मत्स्य उत्पादन बढ़ाने की ओर केंद्रित है। नीली क्रांति के तहत ‘डीप-सी फिशिंग‘ नाम की एक नई योजना की शुरूआत की गई है।

इससे जुड़े उद्देश्यों को हासिल करने के लिए दिसम्बर, 2015 में 3,000 करोड़ रूपये लागत की एक योजना घाषित की गई है। इसके तहत वर्ष 2019-20 तक मछली उत्पादन में बढ़ोत्तरी करते हुए उसे 15 मिलियन टन के स्तर तक लाया जायेगा।

पिछले 4 वित्तवर्षों- 2014-15 से 2017-18 के दौरान राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को नीली क्रांति योजना के कार्यान्वयन हेतु 1194 करोड़ रूपये से अधिक की धनराशि जारी की जा चुकी है। वर्ष 2017-18 के दौरान मछली उत्पादन 126.14 मिलियन टन रहा जो कि वर्ष 2010-14 के औसत वार्षिक मछली उत्पादन 88.69 मिलियन टन से 42.22 प्रतिशत अधिक है।

वर्तमान सरकार के पिछले पांच वर्षों के दौरान कृषि साख में 57 प्रतिशत की वृद्वि हुई है और वह 11 लाख करोड़ रूपये तक पहुंच गई है। ब्याज सब्सिडी भी 1.5 गुना से बढ़कर 15 हजार करोड़ रूपये हो गई है।

किसानों की आय बढ़ाने के लिए स्माल फार्मर्स एग्री बिजिनेस कंसोर्टियम (एसएफएसी) ने 546 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का गठन किया है। भूमिहीन किसानों के लिए संयुक्त देनदारी समूह का आकार 6.70 लाख से बढ़कर 27.49 लाख हो गया है।

भारतीय कृषि को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए नई निर्यात नीति तैयार की गई है। सरकार के इमानदार प्रयासों से समुद्री उत्पादों के निर्यात में 95 प्रतिशत, चावल के निर्यात में 85 प्रतिशत, फलों में 77 प्रतिशत, ताजी सब्जियों में 43 प्रतिशत और मसालों के निर्यात में 38 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई है। तिलहन और दलहनों के आयात पर शुल्क लगाकर किसानों के हितों का संरक्षण किया गया है।

कृषि क्षेत्र में शोध के जरिए किसानों के लिए 795 नई किस्में जारी की गई हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सहने की क्षमता मौजूद है। इससे उत्पादन में वृद्वि होगी और किसानों की आमदनी बढ़ेगी। कृषि शिक्षा और पशु-चिकित्सा से जुड़ी शिक्षा के कई नए कॉलेज खोले गए हैं, सीटों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है और छात्रवृत्ति में भी बढ़ोत्तरी की गई है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा विकसित की गई विभिन्न प्रौद्योगिकियों ने खाद्यान्न, बागवानी, फसलों, दूध, मछली और अंड़े का उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्रों में कृषि से जुड़े अनेक विषयों पर किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी संसाधनों के जरिए सहायता प्रदान की जा रही है।

कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के बीच बेहतर समन्वय के लिए फार्मर फर्स्ट, मेरा गांव, मेरा गौरव और आर्या जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। ग्रामीण शिक्षित युवाओं के लिए कृषि कार्यों को आकर्षक बनाने की दिशा में ‘आर्या-अट्रैक्टिंग एंड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चर‘ योजना बहुत कारगर सिद्व हो रही है।

छात्रों के लिए ग्रामीण उद्यमिता जागरूकता योजना रेडी की भी शुरूआत की गई है। सरकार की नीतियों और योजनाओं की सफलता की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि वर्ष 2017-18 के दौरान 284.83 मिलियन टन का रिकार्ड अनाज उत्पादन और 306.82 मिलियन टन का रिकार्ड बागवानी का उत्पादन हुआ। दलहन का उत्पादन 40 प्रतिशत की वृद्वि के साथ 25.23 मिलियन टन दर्ज किया गया।

इस तरह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के क्षमतावान नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने और कृषि को लाभदायक व्यवसाय बनाने की दिशा में गहन प्रयास किए हैं और यह सिलसिला अभी यहीं रूकने वाला नहीं हैं। सरकार का दृढ़ संकल्प है कि खेती का व्यवसाय अन्य प्रमुख व्यवसायों की तरह आकर्षक बने ताकि उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी इसे मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाने में कोई संकोच न करें।

निकट भविष्य में एक दिन ऐसा अवश्य आएगा, जब कृषि भी एक प्रमुख उद्योग के रूप धारण करेगी और देश के किसानों को अपने इस व्यवसाय पर गर्व की अनुभूति होगी। गांव का किसान शहरों की ओर छोटे-मोटे रोजगार की तलाश में पलायन नही करेगा। उसे गांव में ही कृषि से संबधित क्षेत्र में ऐसी आजीविका प्राप्त हो जाएगी जो उसकी आवश्यकताओं को आसानी से पूरी कर सकेगी और वह अपनी जड़-जमीन पर ही बना रहकर एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकेगा।

वास्तव में, कृषि क्षेत्र का जितना अधिक विकास होगा, किसान भी उतना ही खुशहाल होगा, गांव और समाज उतनी ही गति से आगे बढ़ेगा और ऐसी स्थिति में देश विकसित राष्ट्र बनने की परिकल्पना को जमीनी सच्चाई में बदल सकेगा। 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ स्थित कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर में प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष हैं तथा लेख में प्रस्तुत विचार उनके स्वयं के हैं ।