महिलाओं के पाँच घातक रोग

                                                               महिलाओं के पाँच घातक रोग                                                                                          

                                                                                                                                   डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

हम सभी लोगों को जीवन में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ परेशान करती रहती हैं। हालाँकि, जीवन की कोई गारंटी नही होती है तथापि इसके लिए वैज्ञानिकों के द्वारा बहुत से अनुसंधान किए जा चुके है। वर्तमान समय में स्त्रियों को भी बहुत सी बीमारियों का सामना करना पड़ता है, और इनमें से 5 बीमारियाँ इतनी खतरनाक हैं, जिनका प्रभाव इनके स्वास्थ्य पर बहुत अधिक गहरा पड़ता है।

इन बीमारियों में दिल की बीमारी, स्तन कैंसर, ऑस्टियोपोरोसिस, तनाव तथा ऑटोइम्यून डिसीज आदि शामिल हैं। दोस्तो आज की इस पोस्ट में दुनिया की आधी आबादी की इन बीमारियों के बारे कुछ जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं-

दिल की बीमारियाँः वर्तमान दौर में लगभग 30 प्रतिशत नारियों की मृत्यु दिल की विभिन्न बीमारियों के चलते हो जाती है। इस बीमारी का सबसे बड़ा खतरा तो यह होता है कि इसके कारण महिलाओं की असमय मृत्यु और स्थाई विकलाँगता की स्थिति भी आ जाती है। इनमें से बहुत-सी महिलाएं तो ऐसी हैं जो कि दिल की बीमारियों के साथ अन्य बहुत सी तकलीफों को भोगती रहती हैं, जैसे कि सीढ़ियाँ चढ़ने में असमर्थता, श्वास प्रवास में कठिनाइयों का होना आदि।

                                                                     

     चूँकि दिल की बीमारी इन औरतों की इस प्रकार की समस्त क्षमताओं को नष्ट कर देती हैं। हृदय रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि वास्तव में देखा जाए तो हृदय रोगों में कोरोनरी हृदय रोग सबसे घातक रूप ले चुका है। ‘‘परन्तु पाँच बीमारियाँ इतनी खतरनाक हैं, जिनका प्रभाव इनके स्वास्थ्य पर बहुत अधिक गहरा पड़ता है। इन बीमारियों में दिल की बीमारी, स्तन कैंसर, ऑस्टियोपोरोसिस, तनाव तथा ऑटोइम्यून डिसीज आदि’’।

स्तन कैंसर

                                                                             

    महिलाओं में पायी जाने वाली सबसे आम बीमारी है। यह बीमारी लंग कैंसर के बाद दूसरी सबसे अधिक पाये जाने वाली बीमारी है, जो कि महिलओं की असमय मृत्यु होने में भी प्रमुख कारण के रूप में जानी जाती हैं।

विशेषज्ञ बताते हैं कि स्तन कैंस का डर कभी-कभी तो इतना अधिक बढ़ जाता है कि इसके कारण महिलाएं इसकी जाँच करावाने के लिए डॉक्टर के पास नही जाती है तो कभी-कभी यह निर्णय लेने में भी देर कर जाती हैं कि इसका ईलाज जरूरी है कि नही। वर्तमान में स्तन कैंसर के बहुत से ईलाज सम्भव है, बस आवश्यकता है तो केवल इस बात की कि महिलाओं को इसके बारे में जागरूक किया जाए।

हमारे देश में ‘‘कैंसर’’ आज भी भय पैदा करने वाला है, जबकि पश्चिमी देशों में कैसर का ईलाज भी उसी प्रकार से किया जाता है जैसा कि अपने देश में तपेदिक अथवा टीबी का किया जाता है। पश्चिमी देशों में की गई नई खोजों के माध्यम से अब स्तन कैंसर का ईलाज भी काफी आसान हो गया है।

पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में भी अब महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले प्रमुखता के साथ सामने आए हैं। वह प्रत्येक बात जो किसी बदलाव का कारण होती है वही बात अक्सर तनाव का कारण भी बनती है। इससे कोई फर्क नही पड़ता कि बदलाव अच्छा है या फिर बुरा।

यह दोनों ही रूपों में तनाव का कारण होता है। यह हमारे लिए स्वास्थ्यकर हैं अथवा अस्वास्थ्यकर यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए तनाव के कारणों पर निर्भर करता है।

ऑस्टियोपोरोसिस

                                                           

    यह बीमारी भी व्यक्ति को डराने वाली बीमारी है, एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में लगभग 60 प्रतिशत महिलाएँ इसी रोग की चपेट में हैं। यह रोग एक बड़े स्तर पर उपचार कराने वाला रोग है। इस बीमारी को विकसित करने में, महिलाओं का व्यवहार जो कि वह अपने बचपन और अपनी किशोरावस्था में करती हैं वह वास्तव में एक बहुत बड़ा योगदान देता है। ज्यादातर महिलाएँ 40 वर्ष की आयु के बाद मोटी होने लगती हैं, जिसके कारण इन महिलाओं की नई हड्डियाँ बननी तो बन्द हो जाती है तो वहीं पुरानी हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं।

तनाव

     तनाव की स्थिति पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक पाई जाती है। प्रत्येक वर्ष लगभग 12 करोड़ महिलाएं इससे प्रभावित होती हैं, हालांकि, उन्हें कई बार हार्मोनल परिवर्तन के कारण भी इस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। प्रत्येक वह बात जो किसी बदलाव का कारण होती है वही बात अक्सर तनाव का कारण भी बनती है। इससे कोई फर्क नही पड़ता कि बदलाव अच्छा है या फिर बुरा। यह दोनों ही तनाव का कारण होते है और यह हमारे शरीर को स्वास्थ्य अथवा अस्वास्थ्य रखने में एक अहम भूमिका निभाते हैं। यह प्रत्येक व्यक्ति के तनाव के कारणों पर निर्भर करता है, यह तनाव शारीरिक, सामाजिक एवं मानिकसक किसी भी कारण से हो सकता है।

ऑटोइम्यून डिसीज

    ऑटोइम्यून डिसीज ऐसी बीमारियों के समूह के अन्तर्गत आती है, इनके अन्तर्गत हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम, हमारे शरीर पर अटैक करता है और यह टिश्यूज को नष्ट कर देता है अथवा उनमें परिवर्तन कर देता है। इस श्रेणी में 80 से भी अधिक गम्भीर एवं क्रॉनिक बीमारियाँ आती है, जिनमें ल्यूपस, मल्टीपल स्किरोइसिस तथा मधुमेह आदि भी शामिल हैं।

माना जाता है कि 75 प्रतिशत ऑटोइम्यून रोग केवल महिलाओं में ही पाया जाती हैं। हालांकि ऑटोइम्यून रोग अधिक प्रचलन में नही हैं इसलिए इनके जोखिमों पर दृष्टि डालना बेहद कठिन होता है। इसके कोई विशिष्ट लक्षण भी नही होते हैं, परन्तु इसका पूर्ण उपचार लेना अति आवश्यक होता है।

यदि आपकी जानकारी में ऐसा कुछ है कि आपके किसी सगे-सबन्धी के साथ कुछ गलत घटित हो रहा है, तो आपके लिए यह आवश्यक है कि आप किसी अच्छे परामर्शदाता से मिलकर इसके बारें में बात करें तथा उसका आवशयक ईलाज कराएं।

दोस्तों अब बात करते हैं एक ऐसी बीमारी की, जो कि जानलेवा तो नही होती है, परन्तु इससे कुछ कम भी नही होती है। यह बीमारी किसी महिला के जीवन को पूरी तरह से बर्बाद करने में भी सक्षम होती है।

इस बीमारी का नाम है बच्चेदानी में रसौली अर्थात (Ovarian Cyst) है। एक सर्वे के अनुसार वर्तमान समय में हमारी गलत जीवन शैली और खान-पान के कारण सम्पूर्ण विश्व में लगभग 85 प्रतिशत से अधिक महिलाएं इस बीमारी की चपेट में हैं। पहले केवल शादीशुदा औरतों में ही पाए जाने वाली यह बीमारी आजकल यह बीमारी बिन-ब्याही (Un-merried Girls) लड़कियों में भी बहुत देखने में आ रही है।

     पहले इस बीमारी का ईलाज केवल ऑपरेशन कर बच्चेदानी को बाहर निकाल देना ही था, जिसके कारण बिना बच्चे वाली औरतों एवं बिन ब्याही लड़कियों का तो भविष्य ही बर्बाद हो जाता था। परन्तु अब सौभाग्य से होम्योपैथी चिकित्सा पद्वति के द्वारा इसका उपचार भी सम्भव हो गया है।

स्वयं लेखक मुकेश शर्मा के द्वारा भी कई बिन ब्याही लडकियों एवं बिना बच्चे वाली महिलाओं का उपचार सफलता पूर्वक किया जा चुका है जो अब अपना सामान्य जीवन व्यतीत कर रही हैं। यदि किसी महिला को यह परेशानी है और वह अपना ऑपरेशन नही कराना चाहती है तो वह लेखक से सम्पर्क कर सकती है।

विशेषः मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हे। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवाए दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। अतः बिना किसी होम्योपैथी के एक्सपर्ट की सलाह के बिना किसी भी दवा सेवन कदापि न करें।

      ऐसा भी हो सकता है कि आपकी दवा कोई और भी हो सकती है और कोई दवा आपको फायदा देने के स्थान पर नुकसान भी कर सकती है। अतः बिना चिकित्सीय परामर्श के किसी भी दवा का सेवन न करें।

डिस्कलेमरः प्रस्तुत लेख में दिये गये विचार लेखक के स्वयं के हैं।