मशरूम के पोष्टिक एवं औषधीय गुण

                                                                      मशरूम के पोष्टिक एवं औषधीय गुण

                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

‘‘मशरूम एक विशेष प्रकार का कवक होता है। मानव के द्वारा इसका उपयोग अनेक प्रकार से ताजा एवं सुखाकर किया जाता है। सम्पूर्ण विश्व में मशरूम की लगभग 14,000 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। इनमें से 3,000 खने के योग्य और लगभग 300 औषधीय गुणयुक्त होती हैं। सामान्य तौर पर श्वेत बटन मशरूम को ही मशरूम के रूप मे पहिचाना जाता है। मशरूम के फल में डंठल एवं टोपी के अलावा गलफड़ों में सूक्ष्म बीजाणु पाये जाते हैं, जो कि कवक को एक से दूसरे स्थान पर फैलने में सहायता करते हैं।

                                                                       

विश्व के कुल मशरूम उत्पादन यानी लगभग 40 मिलियन मीट्रिक टन में से लगभग 33 मिलियन मीट्रिक टन का उत्पादन अकेला चीन ही करता है जो कि कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत से भी अधिक है। भारत में मशरूम का उत्पादन मात्र 1.55 लाख मीट्रिक टन वार्षिक है। विश्वभर में इसकी वार्षिक खपत 2-3 कि.ग्रा. प्रतिवर्ष है, जबकि इसकी खपत चीन में 20-22 कि.ग्रा. और भारत में 70-80 ग्राम प्रतिवर्ष है।’’

     मशरूम एक पौष्टिक, स्वास्थ्यवर्धक एवं औषधीय गुणों से भरपर खुम्ब एक चमत्कारिक भोजन है, जिसके कारण इसे सुपर फूड की उपाधि से भी नवाजा गया है। मशरूम में सभी पोषक तत्व संतुलित मात्रा में पाये जाने के कारण अनेक रोगों के नियंत्रण के लिए चीन में इसे महाऔषधी एवं रोम में भगवान के आहार के नाम से भी पुकारा जाता है। यह पोषक गुणों से भरपूर शाकाहारी जनता के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प है।

                                                                      

पौष्टिकता की दृष्टि से यह शाकाहारी एवं मांसाहारी भोजन के बीच का स्थान रखता है। मशरूम का सेवन मानव स्वास्थ्य के लिए एक रामबाण है। मशरूम शरीर में होने वाले विभिन्न विकारों एवं व्याधियों को नियंत्रित करता है। मशरूम में उपलब्ध एंजाईम एवं रेशे कॉलेस्ट्रॉल को कम कर व्यक्ति को हृदय रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। कॉलेस्ट्रॉल के अतिरिक्त इसमें वसा सोडियम कम मात्रा में पाया जाता है, जिसके फलस्वरूप मशरूम अच्छे स्वास्थ्य के लिए किसी वरदान से कम नही है।

मशरूम में शर्करा (0.5 प्रतिशत) तथा स्टार्च कम होने से मधुमेह के रोगियों के लिए मशरूम को एक आदर्श आहार की संज्ञा प्रदान की जाती है। कम ऊर्जायुक्त (35 कैलोरी) खाद्य पदार्थ होने के कारण मशरूम मोटापा जो वर्तमान में एक महामारी रूप धारण कर चुका है, को कम करने भी सहायक सिद्व होता है। भोजन के चयापचय के के लिए मशरूम में पाये जाने वाले विटामिन सहायता करते हैं।

                                                                           

पौधों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन की अपेक्षा मशरूम में 22-35 प्रतिशत उच्च कोटि का प्रोटीन, जिसकी पाचन शक्ति 60-70 प्रतिशत तक होती है, पाया जाता है। कालवासिन, क्यूनाइड, लैंटीसिन, क्षारीय एवं अम्लीय प्रोटीन की उपस्थिति शरीर में ट्यूमर बनने से रोकती है। मशरूम में 4-5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट्स, मेनीटोल 0.90, हेमीसेलूलेज 0.91, ग्लाईकोजन 0.50 प्रतिशत विशेष रूप से पाया जाता है। इसका रेशा कब्ज, अपचन, अति अम्लीयता के विभिन्न विकारों का शमन करता है।

मशरूम के पौष्टिक गुण

     मशरूम में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध प्रोटीन, विटामिन, प्रति-ऑक्सीकारक (सेलेनियम), रेशा तथा अनेक खनिज जैसे-लौह, मैग्नीशियम, जिंक, मैगनीज, पोअेशियम, फॉस्फोरस, सल्फर, कैल्शियम ओर कॉपर इत्यादि तथा कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा आदि को मानव स्वास्थ्य के लिए वरदान कहे जा सकते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा आदि की कम मात्रा होने के कारण यह विशेष रूप से दिल के रोगियों, मधुमेह और मोटापे से ग्रसित लोगों के लिए एक आदर्श आहार है।

मशरूम में प्रचुर मात्रा में लौह तत्व के उपस्थित होने के कारण यह रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाये रखने में सहायता है। इसमें उपलब्ध फोलिक एसिड तथा लौह तत्व लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण में सहयोग करते हैं। मशरूम आवश्यक अमीनों अम्लों की पूर्ति करने के साथ ही अनेक विटामिनों का प्रचुर भण्ड़ार होता है, जबकि इसके अपेक्षाकृत प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा मात्रा में उपलब्ध होता है जो कि हमारे दैनिक संतुलित आहार का एक महत्वपूर्ण अंश होता है। मशरूम दुनिया में उपलब्ध सर्वाधिक प्रोटीनयुक्त खाद्य-पदार्थों में से एक हैं, जो कुपोषण आदि से बचाता है।

मानव शरीर में जल के पश्चात् सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला पदार्थ प्रोटीन ही होता हैं। वर्तमान में अधिकाँश आबादी प्रोटीन की कमी के कारण कुपोषण से ग्रसित है, जिसकी पूर्ति खुम्ब का उपयोग करने से की जा सकती है। मानव शरीर के अधिकतर रोगों की शुरूआत कोशिकाओं के संक्रमण के चलते होती है और मशरूम का एक विशेष गुण यह होता है कि यह रोगस्त और टूटी हुई कोशिकाओं का पुननिर्माण कर उनकी मरम्मत करता है।

यह एक ऐसा आहार है जिसमें विटामिन-डी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है, जो हमारी अस्थियों को सुदृढ़ता प्रदान करने के साथ-साथ कैल्शियम एवं फॉस्फोरस के अवशोषण में भी सहयोग करता हैं। मशरूम में उपलब्ध रेशा शरीर के पाचन तंत्र को सुदृढ़ता के साथ ही भूख को भी बढाता है। वैसे यह यह बात अलग है कि बहुत से लोग आज भी इसे मांसाहार मानकर मशरूम का सेवन करने से परहेज करते हैं हालांकि यह एक भ्रम से अधिक और कुछ नही है।

वर्तमान समय में लोगों के अन्दर बढ़ती स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता, उत्पादन में वृद्वि एवं उपलब्धता के कारण आज मशरूम अनेक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर ताजे उपोत्पाद के रूप उपयोग किया जा रहा है।

मशरूम के औषधीय गुण

     हमारे देश में जागरूकता एवं जानकारी होने के अभाव में आज भी मशरूम आमजन के आहार का हिस्सा नही बन पाया है। इसके लिए मशरूम का उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाना आवश्यक है जिससे कि यह सभी के भोजन का एक अभिन्न अंग अंग बन सकें। इसमें उपलब्ध प्रति-ऑक्सीकारक जेसे एर्गोथियोनिन हमारी फ्री रेडिकल्स से रक्षा करते हैं।

                                                        

बीटा ग्लूकॉन्स और लीनोलिक अम्ल के एंटीकार्सिजेनिक प्रभाव के कारण प्रोटेस्ट (पोरूष ग्रन्थि) तथा ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर को नियन्त्रित किया जा सकता है। अस्थियों की सुदृढ़ता तथा शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ानें में मशरूम की विशेष भूमिका होती है। मशरूम की कुछ प्रजातियाँ शरीर में गाँठें बनने का कारण बन सकती हैं। अनेक मशरूमों में से गैनोडर्मा और औषधीय खुम्बों का राजा है, जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता, यकृत की सुरक्षा तथा कोलेस्ट्रॉल को कम करता है।

कार्डिसेपस महत्वपूर्ण अंगों जैसे कि फेफड़ों, यकृत, प्रजनन अंगों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ शारीरिक शक्ति में भी वृद्वि करती है। मशरूम न केवल भोजन की पोष्टिकता को बढ़ाता है अतिु अनेक प्रकार के रोगों को नियंन्त्रित करने में भी सहायता करता है। यह तभी सम्भव है, जब देश में मशरूम के उत्पादन में एक नयी क्रॉन्ति आयेगी जिसके माध्यम से प्रत्येक नागरिक के लि मशरूम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होगा।

     कोलेस्ट्रॉल को कम करने के साथ मशरूम गठिया का नियन्त्रित करने, हीमोग्लेबिन का स्तर बनाए रखने के साथ ही बालों एवं दाँतों को सुरक्षित बनाए रखने में भी सहायक सिद्व होता है। 100 ग्राम मशरूम में 20 प्रतिशत से अधिक विटामिन-बी, आवश्यक खनिज लवण जैसे कि सेलेनियम (30.0 प्रतिशत), कॉपर (25.0 प्रतिशत) तथा 10-19 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं पोटेशियम की दैनिक पूर्ति करता है।

एक मध्यम मशरूम में संतरे के रस के गिलास या एक केले से अधिक पोटेशियम पाया जाता है। सेलेनियम मुख्य रूप से पशुओं में पाये जाने वाले प्रोटीन में पाया जाता है इसलिए मशरूम शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन का एक बहुत अच्छा स्रोत है। भारतीय जनता के दैनिक आहार में प्रोटीनयुक्त ऊर्जा के अभाव में कुपोषण से ग्रसित होने के कारण मशरूम की लोकप्रियता को बढ़ाना समय की माँग है। उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए तो खुम्ब एक वरदान है।

मशरूम में सोडियम की अपेक्षा पोटेशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो कि स्मरण शक्ति तथा ज्ञान को संजोकर रखने में अधिक महत्वपूर्ण हैं। शरीर की प्रत्येक कोशिका को ग्लूकोज की आवश्यकता होती है, परन्तु सम्पूर्ण शर्करा का उपयोग नही हो पाता है और शेष शर्करा मोटापे का कारण बनती है। मशरूम एक कम ऊर्जा वाला खाद्य पदार्थ है। मशरूम में 90 प्रतिशत तक पानी होता है जिसके चलते मोटापे की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सकता हैं। 

किसानों को आमदनी बढ़ाने का विकल्पः मशरूम

‘‘स्वरोजगार आजीविका का एक प्रमुख साधन रहा है। वर्तमान में भी केन्द्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं पर निरंतर बल दे रही हैं। ऐसी ही स्वरोजगार की अनेक योजनाओं में से मशरूम उत्पादन भी एक उेसी ही योजना है। मशरूम की निरंतर बढ़ती माँग के फलस्वरूप मशरूम का उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय सिद्व हो रहा है। प्रस्तुत लेख का प्रयोजन यही है कि स्व-रोजगार के लिए प्रेरणा देते हुए यह ग्रामीण युवाओं के बीच लोकप्रिय बन सकें। ’’

     कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। बेलगाम बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, और कम होती खेती योग्य भूमि, जलावयु परिवर्तन, पानी की कमी, और गुणवत्तायुक्त खाद्य सामग्री की अनुपलब्धता आदि वर्तमान समय में कृषि की ज्वलन्त समस्याएं हैं। उक्त चुनौतियों का समाना करने के लिए कृषि विविधता के द्वारा किसी भी कृषि प्रणाली में स्थिरता आती है।

मशरूम इसी कड़ी का एक ऐसा घटक है, जो न केवल कृषि विविधता को बल्कि खाद्य-पदार्थों की गुणवत्ता एवं हमारी तथा पर्यावरण की सेहत पर ध्यान देने के साथ-साथ बेरोजगारी की समस्या का समाधान भी उपलब्ध कराता है। मशरूम की खेती के द्वारा कृषि के अवशोषों को उपयोग में लाकर उनके निपटान की समस्या को भी दूर किया जा सकता है। पौष्टिकता की दृष्टि से भी यह एक अत्यंत लाभकारी फसल है।

मशरूम के माध्यम से उच्च गुणवत्तायुक्त प्राप्त होता है, जिसके माध्यम से भारत में कुपोषण की समस्या को भी दूर किया जा सकता है। मशरूम की पौषकीय एवं औषधीय संरचना इस प्रकार की होती है कि यह मधुमेह, हृदय रोग, दमा एवं पेट के अन्य रोगों के साथ-साथ कैंसर एवं एड्स जैसे भयाावह रोगों को ठीक करने क्षमता इसके अंदर उपलब्ध होती है।

     मशरूम उत्पादन के लिए बहुत अधिक जमीन की आवश्यकता नही होती है। इस फसल को बन्द कमरों में भी उगाया जा सकती है तथा कक्ष के उर्ध्वाधर स्थान का प्रयोग भी इसकी फसल के लिए किया जा सकता है। मशरूम प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिकतम प्रोटीन प्रदान करने वाली फसल है। इसके साथ ही बन्द कक्ष में उगाये जाने के कारण यह वातावरणीय बदलावों और प्राकृतिक आपदाओं से भी पूर्णतः सुरक्षित रहती है।

विगत 6-8 वर्षों पूर्व मशरूम एक खाद्य-पदार्थ के रूप में बहुत अधिक स्वीकार्य नही था, परन्तु आजकल लोग के अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने के कारण मशरूम का उपयोग उनके दैनिक भोजन का एक आवश्यक अंग बनने लगा है।  इस कारण से की माँग अब बाजार में भी बढ़ने लगी है, और इससे मशरूम के उत्पादकों को अब विपणन की भी कोई विशेष समस्या नही है।

जिला उद्यम सिंह नगर स्थित पंत नगर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र का शुभारम्भ वर्ष 2003 में किया गया था। तब से लकर अब तक निरंतर मशरूम के उत्पादन में रूचि रखने वाले लोगों प्रशिक्षण प्रदान करने का कार्य भी संचालित किया जा रहा है। प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत बहुत से किसान एवं युवाओं ने मशरूम का उत्पादन कर न केवल स्वयं को सम्पन्न बनाया है बल्कि बहुत से अन्य लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया है।

लाभकारी मशरूम

                                                             

     मशरूम की खेती एक लाभकारी व्यवसाय है, जिसे अपनाकर कोई भी व्यक्ति एक अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकता है और न केवल अपने लिए बल्कि समाज एवं पर्यावरण के हित में भी कार्य कर सकता है। हमारे देश में कृषि अवशेषों का निपटान अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है जिसे मशरूम उत्पादन के माध्यम से इसको हल किया जा सकता है और स्वयं के अतिरिक्त कुछ अन्य लोगों के लिए रोजगार भी उपलब्ध कराया जा सकता है।

गाँवों का शहरीकरण होने के कारण कृषि योग्य भूमि निरंतर कम होती जा रही है। ऐसी स्थिति में कम स्थान अथवा कृषि कार्यों के लिए अनुपयुक्त भूमि पर मशरूम का उत्पादन कर अच्छे, पोषक तत्वों से भरपूर एवं मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य-पदार्थ का उत्पादन सफलता पूर्वक किया जा सकता है।

लेखकः आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी के प्रोफेसर तथा कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।