मीठे का विकल्प ‘मोंक फ्रूट’

                                                                     मीठे का विकल्प ‘मोंक फ्रूट’

                                                                                                                                                                        डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

   मधुमेह के रोगियों के लिए मोंक फ्रूट, मीठे का एक उत्तम विकल्प साबित हो रहा है और अब देश में मोंक फ्रूट की खेती भी आरम्भ हो चुकी है।

                                                                       

    चीनी से 300 गुना अधिक मीठा है मोंक फ्रूट न तो रक्त में शर्करा के स्तर में वृद्वि करता है और न ही यह मधुमेह के रोगियों के लिए हानिकारक पाया गया है। इसकी विशेष बात तो यह है कि इसमें ऊर्जा कैलोरी भी नही होती है, जबकि वर्तमान में देश में मधुमेह के रोगियों की संख्या लगभग 9 करोड़ की आंकी जा रही रही है।

    अभी तक भारत में मोंक फ्रूट की खेती नही की जाती थी, लेकिन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की पालमपुर स्थित प्रयोगशाला सीएसआईआर इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स एण्ड टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी) के द्वारा हिमाचल प्रदेश के पालमपुर, चम्बा एवं कुल्लु में मोंक फ्रूट की खेती को आरम्भ कराया गया है।

                              

सात स्थानों पर किया आरम्भः- अभी हाल ही में सेवा निवृत हुए इस संस्थान के निदेशक डॉ0 संजय कुमार ने बताया कि मोंक फ्रूट के पौधों को एक समझौते के तहत चीन से आयात किया गया था। इसके बाद तीन वर्ष तक प्रयोगशाला में इसके फील्ड ट्रॉयल किए गए जो पूरी तरह से सफल रहे हैं।

    इसके प्रथम चरण में पालमपुर के साथ-साथ कुल्लु और चम्बा के गाँवों में सात स्थानों पर किसानों से मोंक फ्रूट की खेती कराई जा रही है।

मधुमेह आंखों को पहुंचाता है नुकसान

                                                              

मधुमेह अर्थात डायबिटीज के कारण भारतीयों की आंखों की रोशनी जा सकती है। केरल में हुए एक अध्ययन में यह दावा किया गया है कि भारत में डायबिटीज के कारण 40 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 30,00,000 लोगों पर डायबीटिक रेटिनोपैथी का खतरा मंडरा रहा है। इस अध्ययन को मेडिकल जनरल लॉस एंड में प्रकाशित किया गया है।

                                                                

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत के 10 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में 40 वर्ष और उससे अधिक आयु के 42,146 लोगों को शामिल किया था, इन्हें डायबिटीज होने की कोई जानकारी नहीं थी। अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 2 साल तक डायबिटीज के कारण उनमें हो रहे बदलाव पर नजर रखी गई।

इस दौरान शोधकर्ताओं ने एक कंपलेक्स क्रिस्टल्स सैंपलिंग डिजाइन का इस्तेमाल करते हुए लोगों की स्क्रीनिंग की इसमें 19 प्रतिशत लोग डायबिटीज से पीड़ित पाए गए जबकि 78 प्रतिशत लोगों में ग्रेडेबल रेटिनल छवियां थी। अध्ययन में शामिल दिल्ली स्थित मैक्स हॉस्पिटल के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर निखिल पाल ने बताया कि यदि किसी को डायबिटीज है तो उस व्यक्ति को रेटिनोपैथी यानी आंख की रोशनी कमजोर करने या होने की संभावना 15 से लेकर 20 प्रतिशत तक हो सकती है।

उन्होंने कहा कि रीना में खून की नसें होती है और डायबिटीज होने पर यह नसें बाधित होने लगती हैं और इससे नसों में खून रिसने लगता है। इसलिए डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को सचेत रहने की आवश्यकता होती है और आवश्यकतानुसार अपने आंखों का परीक्षण कराते रहना चाहिए और समय रहते डॉक्टरों से इलाज कराते रहें और अपने शुगर लेवल को नियंत्रित रखें तो सम्भवतः उनकी आंखों को नुकसान नहीं होगा।

धूल के प्रदूषण से बढ़ रहा है अस्थमा का खतरा

अस्थमा दिवस पर विशेष

                                                  

वर्तमान समय में देखा गया है कि बच्चों में अस्थमा तेजी से बढ़ रहा है, बच्चों में ऐसे मामले समान्य ही नहीं बल्कि काफी ज्यादा मामले अब सामने आने लगे हैं और इसके लिए डस्ट माइट्स यानी धूल के छोटे-छोटे कीडे और धूल के सूक्ष्म कण इसके लिए जिम्मेदार हैं। ऐसा नहीं है कि यह कीड़े केवल बाहर की हवा में ही है, यह घर के अंदर भी हो सकते हैं।

इसका खुलासा नेशनल कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशियन और भारतीय बालरोग अकादमी की स्टडीज में हुआ है। चेस्ट फिजिशियन के अनुसार 70 बच्चे जिनकी उम्र में 7 से 17 के बीच थी, की केस हिस्ट्री के साथ एलर्जी टेस्ट कराए गए तथा उसमें देखा गया कि 54 में अस्थमा का कारण हाउस डस्ट माइट्स मिला।

वहीं भारतीय बाल रोग एकेडमी की एक विशेष रिपोर्ट में 100 बच्चों में से 80 फ़ीसदी बच्चों में अस्थमा का कारण डस्ट माइट्स ही रहा।

डस्ट माइट्स को समझे

डस्ट माइट धूल में रहने वाले छोटे-छोटे कीड़े हैं जो हमारी मृत कोशिकाएं खाते हैं और इससे एलर्जी, अस्थमा और त्वचा संबंधी रोग हो सकते हैं।

घर के प्रत्येक भाग में यह पाए जाते हैं, परन्तु बेडरूम में सबसे ज्यादा रहते हैं। औढ़ने और बिछाने की चादर, तकिया, कारपेट, पर्दे और फर्नीचर में यह कहीं भी मौजूद हो सकते हैं।

इन माइट्स से बचने के लिए घर की साफ सफाई पर अधिक ध्यान देना आवश्यक होता है अतः लोगों को अपने घर के पर्दे, चादर, तकिया तथा कारपेट की सफाई रखनी चाहिए जिससे इनमें डस्ट माइट्स न पनप सकें।

डस्ट माइट से कैसे करें बचाव

सफाई का ध्यान रखने नमी को कंट्रोल में रखने से इनकी संख्या कम हो सकती है।

पानी के 50 प्रतिशत से कम होने पर डस्ट माइट कम हो जाते हैं और खिड़की खुली रखें और धूप को घर के अंदर आने की व्यवस्था करें।

चादर और तकियों के कवर की नियमित धुलाई करने से इससे निजात मिल सकती है।

मोटे अनाजों को अपने राशन में शामिल करेगी भारतीय सेना

                                                                          

    लगभग पाँच दशक के बाद भारतय सेना ने अपने राशन में मिलेट्स अर्थात मोटे अनाजों को अपने राशन में शामिल किया है। अब सेना के जवानों को मोटे अनाजों से बने नाश्ता और भोजन परोसा जायेगा।

    सेना के द्वारा जारी किए गए बयान कहा गया कि यह फैसला सैनिकों को स्थानीय और पारम्परिक अनाजों की आपूर्ति सुनिश्चित् करने के लिए किया गया है।

    इस बयान के अनुसार, पारम्परिक रूप से श्री अन्न से बने व्यंजन सेहत के लिए लाभदायक साबित हुए हैं। यह हमारी भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल है। इससे जीवनशैली सम्बन्धी रोगों के असर को कम करने और सैनिकों में संतुष्टि का भाव उत्पन्न करने में सहायता मिलेगी। अब से समस्त पदों पर आसीन सेवा के जवानों के दैनिक भेजन का श्री अन्न एक अभिन्न अंग होगा।

    ज्ञातव्य रहे कि सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए सेना के कुल राशन में से 25 प्रतिशत तक श्री अन्न खरीदने के लिए अधिकृत किया है। हालांकि यह खरीद विकल्प एवं माँग पर आधारित होगी और इसके अन्तर्गत ज्वार, बाजरा और रागी के आटे का विकल्प होगा।

यह हैं मिलेट्स अर्थात मोटे अनाजः- मिलेट्स यानी कि मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा, रागी, सांवा, कंगनी, चरना, कोदो, कुटकी और कुट्टु आदि की फसलों को शामिल किया गया है। मिलेट्स में अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध होने के कारण इन्हें सुपर फूड्स भी कहा जाता है।

    भारतीय मिलेट्स अनुसंधान संस्थान के अनुसार, रागी में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है।

स्वरोजगार  की व्यापक सम्भावनाएंः मत्स्य बीजोत्पादन

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली के सौजन्य से आयोजित किए गए मत्स्य प्रजनन एवं हैचरी प्रबन्धन विषय पर सात दिवसीय दक्षता विकास प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।

आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि केन्द्रीय मत्स्य शिक्षण संस्थान, मुम्बई के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ0 वी के तिवारी ने इस प्रशिक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के साथ ही राज्य सरकारों की अनेक योजनाओं के माध्यम से मत्स्य पालन के विभिन्न क्षेत्रों में स्वरोजगार को विशेष प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा है।

    प्रदेश में बढ़ते मछली पालन उद्योग की दृष्टि से सदैव क्वालिटी फिश सीड की माँग रहती है। अतः हैचरी प्रबन्ध और बीज उत्पादन से इसमें प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार प्राप्त होने की प्रबल सम्भावनाएं हैं।

लेखक सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ के जैव प्रौद्योगिकी विभागाध्यक्ष तथा एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं तथा लेख में प्रस्तुत विचार उनके स्वयं के हैं।