अद्भुत पौधा जिंकगो बाइलोबा

                                                                                अद्भुत पौधा जिंकगो बाइलोबा

                                                                                                                                            डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

     पिछले लगभग 2,000 वर्षों से मानव जाति के द्वारा जिंकगो बाइलोबा नाम के पौधें का एक बहुमूल्य पौधे के रूप में मान्यता प्रदान की गई है, इसे ‘‘लिविंग फॉसिल’’ भी कहते हैं। यह पौधा   प्राकृतिक रूप से चीन, कोरिया एवं जापान में पाया जाता है, लेकिन माना जाता है कि इस पौधे की उत्पत्ति चीन के एक प्रान्त जेजीयोम स्थित पहाड़ी घाटियों में हुई थी।

चीन में जिंकगों के बीजों का उपयोग पूजा के लिए किया जाता है और इसीलिए अभी भी चीन में मंदिरों के आसपास 100 से अधिक वृक्ष जिनकी आयु 1,000 वर्ष से भी अधिक है, लगे हुए हैं।

     वर्तमान समय में पादप जगत में जिंकगो का कोई भी करीबी पौधा उपलब्ध नही है और इसी के चलते जिंकगो को एक अलग कुल जिंकगोफाइटा (Ginkgophyta) के रूप में बर्गीकृत किया गया है।

     जिंकगो बाइलोबा 18वीं शताब्दी में यूरापीय देशों में लाया गया और अब यह चीन, कोरिया, फ्राँस, जर्मनी एवं अमेरिका की गलियों एवं उद्यानों में भी उगाया जाने लगा था। हिमालय जैव-सम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के द्वारा किए गए सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ है कि सम्पूर्ण भारत में जिंकगो के लगभग 30 वृक्ष, जो कि अधिकतर उत्तर-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रों में में उपलब्ध हैं।

फार्मकोलॉजिकल महत्व

     जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि जिंकगो बाइलोबा का वृक्ष लगभग 2,000 वर्ष पुराना वृक्ष है, परन्तु इसके औषधीय गुणों का ज्ञान अब से कुछ शताब्दी पूर्व ही हो पाया है। जिंकगों के औषधीय गुण उसके ताजे सूखे हुए पत्तों एवं इसके बीज, जिनके बाहरी हिस्से को निकाल दिया जाता है, आदि में पाये जाता हैं। जिंकगो के अन्दर विभिन्न प्रकार के औषधीय तत्व पाये जाते है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण फ्लैवोनॉल ग्लाइकोसाइड एवं टर्पीन ट्राइलैक्टोन होते हैं।

जिंकगो के पत्ते के सार का उपयोग इन्हीं दो तत्वों के लिए किया जाता है। जिंकगो के सार तत्व रक्त के प्रवाह में वृद्वि करते हैं, रक्त के थक्के जमने से रोकते हैं और ऑक्सीजन की कमी होने पर रक्त संचार से सम्बन्धि परेशानियों को ठीक करने में उपयोग किए जाते है। इसके सार का सेवन करने से दमा को रोकना, घावों के भरने और मानसिक क्षमताओं में वृद्वि होती है।

जिंकगो का अर्थिक महत्व

     वानस्पतिक औषधियों पर लगभग 7 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष व्यय किए जाते है, जबकि भेषज दवाईयों जिंकगो को प्रथम स्थान प्राप्त है। जिंकगो के लगभग 500 लाख वृक्ष विशेष रूप से चीन, फ्राँस एवं दक्षिण कैरोलिना के विभिन्न शहरों में पाए जाते है, जिससे लगभग 8,00 टन सूखें पत्ते प्रतिवर्ष प्राप्त हो जाते हैं, जो जिंकगो के उत्पादकों की माँग को पूरा करते हैं।

विश्व में जिंकगो सबसे अधिक बिकने वाला हर्बल औषधीय घटक है, जिसके सूखे पत्तों की खपत वर्ष 2001 में 45 लाख पाउंड से 5.1 पाउंड के बीच रही थी, इसका अर्थ यह है कि जिंकगो का उपयोग पूरी दुनिया में तेजी के साथ बढ़ रहा है और वैश्विक बाजार में इसकी माँग 25 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है।

     वर्तमान समय में जिंकगो के लगभग 142 उत्पादक ग्लोबल मार्केट में हैं और माना जाता हैं कि आगामी वर्षों के दौरान इसके में कई गुना वृद्वि होगी। जिंकगो के पत्तों को चूर्ण, सार एवं टिंक्चर आदि के रूपों में विभिन्न फार्मास्यूटिकल एवं हर्बल कम्पनियों को बेचा जाता हैं।

जिंकगो बाइलोबा के औषधीय महत्व

जिंकगो बाइलोबा में उपलब्ध पाए जाने वाले विभिन्न प्रमुख तत्व

1.   टर्पीन्सः- मोनोटर्पीन्स, सेस्क्वीटर्पीन्स, डाइटर्पीन्स, स्टीरॉयड्स, फाइटोस्टेरॉल्स, कैरोटीनॉयड्स और पॉलीफिनॉल्स आदि।

2.   फ्लेवोनायड्सः- एम्लाइकोन्स, ग्लाइकोसाइड्स ऑफ एम्लाइकोन्स, डाइमर्स, एनेसायनिडिन, बाइफ्लेवोन्स, बाइफ्लेवोन्स, बाइफ्लेवॉन ग्लुकोसाइड्स, एल्काइल फिनॉल्स एवं एल्काइल फिनॉलिक एसिड कार्डेनॉल्स।

3.   ऑर्गेनिक एसिड

4.   नार्गेनिक साल्ट/कॉम्पलेक्सेस

5.   कार्बोाइड्रेट्स

6.   लाँग चेन हाइड्रोकार्बन्स एवं लिपिड्स

जिंकगो बाइलोबा के लाभ

1.   कैंसर में फायदेमंद:

जिंकगो बाईलोबा में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंटए टेपेरेनोड्सए फ्लेवेनोइड्स और पॉलीफेनायलिक यौगिक मिलकर शरीर के मुक्त कणों को ख़त्म करने में सहायक साबित होते हैं। इस प्रकार ये हमारे शरीर को क्रोनिक बिमारियों जैसे कि कैंसर आदि से बचाता है।

2.   अल्जाइमर के इलाज में लाभकारी:

संज्ञानात्मक विकार, अल्जाइमर और मनोभ्रंश से पीड़ित लोगों के उपचार में भी इसकी सकारात्मक भूमिका देखी गई है, ऐसा इसके अर्क में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट यौगिक के कारण होता है। आपको बता दें कि एंटीऑक्सीडेंट यौगिकों में टेरेपेनोड्स और फ़्लेवेनोइड्स पाए जाते हैं, ये तंत्रिका तंत्र के गतिविधि को बढ़ाते हैं।

3.   रक्तसंचार बढ़ाए:

कई शोधों में ये पाया गया है कि ये रक्त संचार को बढ़ाता है दरअसल इसका अर्क रक्त वाहिकाओं को फ़ैलाने और शरीर में त्वचा के विभिन्न अंगों के लिए जरुरी ऑक्सीजन बनाने, उर्जा और शक्ति बढाने में भी सहायता करता है

4.   मानसिक तनाव से राहत:

जिंकगो बाईलोबा, हार्मोनल स्तर को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए ये मानसिक अवसाद से पीड़ित लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित होता है। इसके साथ ही ये हमारा मूड भी बनाता है और तनाव को जन्म देने वाली भावनाओं को दूर करता है।

5.   एंटी एजिंग के रूप में:

जैसा कि हम देख चुके हैं कि इसके अर्क में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है। एंटीऑक्सीडेंट के गुणों के आधार पर हम ये कह सकते हैं कि ये त्वचा की कसावट और स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। घावों को जल्दी भरने और झुर्रियों को कम करने में भी सहायक है।

6.   मस्तिष्क का सेहत भी बनाए:

मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में भी इसकी भूमिका देखी गई है। ये याददाश्त बढ़ानेए ध्यान केन्द्रित करने और रचनात्मक क्षमता बढ़ाने में काफी मददगार साबित होता है, ये आपके मस्तिष्क की कार्यक्षमता को भी बढ़ाता है।

7.   दिल को स्वस्थ रखता है जिंकगो बाईलोबा:

इसके अर्क के कई फायदों में एक ये भी है कि ये उच्च रक्त चाप को कम करके ह्रदय प्रणाली में रक्त के थक्कों को समाप्त करता है। इससे दिल के दौरे या स्ट्रोक की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है।

8.   आँखों को भी रखे स्वस्थ:

जिंकगो बाईलोबा हमारे आँखों के देखभाल में भी बेहद लाभकारी है। इसमें पाए जाने वाले तत्व आँखों की कई परेशानियों जैसे कि मोतियाबिंद, ग्लूकोमा आदि के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

9.   पेन किलर के रूप में:

सूजन और दर्द को जन्म देने वाली समस्याओं से भी जिंकगो बाईलोबा खूब निपटता है, इसका फायदा चोट या घावों से उबरने में मिलता है। पुराने सरदर्द से पीड़ित लोगों के लिए भी ये एक बेहतर विकल्प है।

10.  टिटनस के उपचार में:

कई शोधों में जिंकगो बाईलोबा को टिटनस के इलाज में भी महत्वपूर्ण माना गया है, शुरुवाती शोध तो यही बताते हैं लेकिन इसे लेकर अब भी शोध जारी है।

जिंकगो बाइलोबा के नुकसान (Side Effects of Ginkgo Biloba)

1.   जिंकगो बाईलोबा में मौजूद गिंकग्लिक एसिड के कारण कुछ लोगों को इससे एलर्जी की समस्या हो सकती है।

2.   ये एक शक्तिशाली हर्बल सप्लीमेंट है इसलिए इसके उपयोग से पहले हमेशा सावधानी बरतें, हो सके तो डॉक्टर से जरुर सलाह लें।

3.   इसका प्रयोग गर्भवती महिलाओं, पीरियड्स चल रही महिलाओं और कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे ब्लीडिंग डिसऑर्डर है, वो इसे न ले।

माध्यमिक मेटाबोलाइट्स

     जिंकगो में उपलब्ध विभिन्न तत्वों के लिए रासायनिक शोध किए गए हैं। इन शोधों में पाया गया है कि जिंकगो में विभिन्न प्रकार के माध्यमिक मेटाबोलाइट्स जैसे कि टर्पीनॉयड्स पॉलीफिनॉल्स, अलाइल फिनॉल्स, कार्बनिक अम्ल, कार्बोहाइड्रेट्स, फैटी एसिड्स, लिपिड्स, अकार्बनिक एवं अमीनो एसिड्स आदि पाए जाते हैं। टर्पीन ट्राइलैटोन्स और फ्लेवेनॉयड्स को जिंकगो का महत्वपूर्ण तत्व माना जाता हैं। जिंकगो में पाए जाने वाले मुख्य तत्वों का विवरण ऊपर दिया गया है।

टर्पीन ट्राइलैटोन्स

     जिंकगोलाइट्स की संरचना के (Cage) के प्रकार की होती है। फुरूकावा ने पहली बार जिंकगोलाइड A, B, C और M को जिंकगो की ड़ की छाल से विलगित किया। माना जाता है कि जिंकगोलाइड A, B, C और J भी जिंकगो के पत्तों में पाए जाते हैं। यह एक उत्तम स्थिति है कि यह समस्त जिंकगोलाइड्स जिंकगो के पत्तों में पाए जाते हैं, जबकि केवल जिंकगोलाइड M इसकी जड़ों की छाल में पाया जाता है।

इसके अतिरिक्त जिंकगो में बाइलोबालाइड भी पाया जाता है जो कि जिंकगोलाइड के लगभग समरूप ही होता है और जिंकगोलाइड और बाइलोबालाइड दोनों को एक साथ में टर्पीन ट्राइलैक्टोन्स कहते हैं। अभी तक देखा गया है कि टर्पीन ट्राइलैक्टोन्स केवल जिंकगो में ही पाए जाते हैं।

                            R1      R2      R3

जिंकगोलाइड “A”               H       H      OH

जिंकगोलाइड “B”              OH      H       H

जिंकगोलाइड “C”              OH     OH     OH

जिंकगोलाइड “J”                H     OH     OH

     टर्पीन ट्राइलैक्टोन्स एकमात्र ऐसे प्राकृतिक उत्पाद हैं जिनके स्ट्रक्चर में t.butyl ग्रुप होता है। जिंकगो बाइलोबा के बाकी तत्वों में से टर्पीन ट्राइलैक्टोन्जस ने सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है। जिंकगोलाइड्स, डाइटर्पीन्स होते हैं जिनमें 6 पाँच मैम्बर्ड कार्बोसाइक्लिक रिंग, तीन लैक्टोन्स और एक टेट्राहाइड्रोयूरेन होता है। बइलोबालाइड एक सैस्क्किटर्पीन है और इसमें टेट्राहाइड्रोयूरेन रिंग नही होती है।

     टर्पीन ट्राइलैक्टोन्स की संरचना में कई ऑक्सीजन के अणु गतिशील होते हुए भी टर्पीन ट्राइलैक्टोन्स काफी स्थिर होते हैं। इन्हे नाइट्रिक एसिड में उबालने पर भी इन पर कोई प्रभाव नही होता है। इसकी पत्तियों के सार में सक्रिय तत्व उपलब्ध होने के साथ काफी मात्रा में एपोलर यौगिक भी पाए जाते हैं, जैसे कि जिंकगोलिक एसिड, बाइलेवोन्स एवं क्लोरोफिल आदि।

जिंकगो बाइलोबा में टर्पीन ट्राइलैक्टोन्स की मात्रा सदैव एकसमान नही होती है, जिसका सम्भावित कारण पौधों का स्रोत, इसके पत्तों को तोड़ने का समय और पौधों में वृद्वि की अवस्था आदि। बाइलोबालाइड और जिंकगोलाइड ।

A, B, C और J का विश्लेषण करना बहुत कठिन होता है, क्योंकी इसमें पैराबैंगनी किरणों का समावेश नही हो पाता है और यदि यह होता भी है तो वह बहुत ही कम होता है, जिसका कारण इसकी संरचना में अच्छे क्रामोफोर का नही होना होता है।  

फ्लेवोनॉयड पॉलिफिनॉलिक, कम अणुभार वाले यौगिक होते हैं, जो कि अधिकतर समस्त हरे पौधों में पाए जाते हैं। अभी तक किए गए विश्लेषणों में जिंकगो में 30 से भी अधिक फ्लेवोनॉयड उपलब्ध पाए गए हैं।

फ्लेवानॉयड अधिकाँशतः पॉलीफिनॉल्स ही होते हैं, और इनमे फ्लेवोनॉयड्स, फ्लेवोनॉल्स ग्लाइकोसाइड्स, एसाइलेटिड फ्लेवोनॉल,ग्लाइकोसाइड्स, बाइलैवानॉयड्स, फ्लेवन-3-ऑल और परोएनथोसानाइड आदि भी पाए जाते हैं।

जिंकगो के पत्तों में सबसे अधिक मात्रा में फ्लेवोनॉल ग्लाइकोसाड्स पाए जाते हैं और उनमें से अधिकतर क्वेर्सेटिन, कैम्पफेरॉल एवं आइसोरैहमनेटिन के डैरिवेटिव्स होते हैं। साधारणतया, एम्लाइकोन्ज स्वयं ही बहुत कम मात्रा में उपलब्ध होते हैं।

 लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ के कृषि महाविद्यालय में प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।  

डिस्कलेमरः प्रस्तुत लेख में प्रकट किए गए विचार डॉ0 सेंगर के मौलिक विचार हैं।