कृषि क्रॉन्ति में ग्रामीण महिलाओं की उत्प्रेरक भूमिका

कृषि क्रॉन्ति में ग्रामीण महिलाओं की उत्प्रेरक भूमिका

डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

         ‘‘भारत में आर्थिक रूप से सक्रिय लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं कृषि एवं इससे सम्बन्धित कार्यों से सम्बद्व हैं। ‘‘महिलाएं’’ आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे इस नए भारत की सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय बदलावों के लिए एक पथ प्रदर्शक हैं। कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत ग्रामीण महिला कार्यबल के सशक्तिकरण एवं उन्हें मुख्यधारा में लाए जाने से देश आर्थिक विकास की ओर अग्रसर होगा।

इससे भारत की खाद्य-सुरक्षा में वृद्वि होगी तथा गरीबी और भुखमरी आदि समस्याओं का भी निदान होगा। संवहनीय विकास के लक्ष्यों को वर्ष 2030 तक प्राप्त करने के लिए यह एक बेहतरीन रणनीति सिद्व होगीं।’’

         भारतवर्ष अपनी स्वतन्त्रता के 75वें वर्ष को ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहा है। इस अवसर पर ‘सशक्त महिला-सशक्त राष्ट्र’ अभियान का संचालन भी किया जा रहा है। चूँकि भारत एक कृषि प्रधान अर्थवयवस्था वाला एक देश है और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश के कुल कार्यबल का लगभग 54.6 प्रतिशत भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित गतिविधियों में ही कार्यरत हैं जिनमें महिलाओं की अपने आप में बहुत बड़ी भागीदारी है।

सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के द्वारा जारी किये गये वर्ष 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत के शहरों में 35.31 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 41.8 प्रतिशत है।

         भारत में सुधारों में महिलाओं के समग्र विकास पर ध्यान दिया जा रहा है जिससे कि उन्हें सामाजिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्य सुरक्षा भी प्राप्त हो सकें। स्वतन्त्रता के समय से ही आजीविका के विभिन्न अवसरों का सृजन कर तथा सवैतनिक रोजगारों में भागीदारी के माध्यम से भारतीय समाज में ग्रामीण महिलाओं के स्तर में सुधार के लिए विभिन्न प्रमुख सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को संचालित किया जा रहा हैं।

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं तथा प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजनाओं के जैसी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से देश में महिलाओं को पुरूषों के बराबर लाने और उनके सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान एवं सशक्तिकरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है।

       वर्तमान समय में ग्रामीण महिलाएं सरकार के द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से शिक्षा, उत्पादक संसाधनों, क्षमता निर्माण, कौशल विकास, स्वास्थ्य सुविधाओं तथा आजीविका के विविध अवसरों तक अपनी पहुँच को बनाने में सफल रही हैं।

भारतीय कृषि क्षेत्र में संलग्न ग्रामीण महिला कार्यबल

        ग्रामीण समुदायों में कृषि तथा कृषि से सम्बन्धित क्षेत्र आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है। गाँवों में आर्थिक तौर पर सक्रिय 80 प्रतिशत से अधिक महिलाएं इन्हीं क्षेत्रों के साथ जुड़ी हुई हैं। इनमें से 32 प्रतिशत खेतीहर मजदूर और शेष स्वरोजगारी में रत किसान हैं। ग्रामीण महिलाएं कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उत्पादन, कटाई के पूर्व एवं पश्चात् प्रसंस्करण, पैकेजिंग तथा विपणन सहित मूल्य श्रृंखला के समस्त स्तरों पर सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

समय गुजरते और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्वि के साथ ही कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाली महिलाओं के अनुपात में पुरूषों की अपेक्षाकृत वृद्वि हुई है। खाद्य और कृषि संगठन मंत्रालय के द्वारा महिलाओं को संवहनीय खाद्यान्न प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय समूह के रूप में उद्घृत किया है।

संगठन के अनुसार महिलाओं को पुरूषों के बराबर संसाधनों तक पहुँच, कौशल विकास एवं अवसर उपलब्ध कराने वाले सुधारों से विकासशील देशों में कृषि उत्पादन 2.5 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।

        आत्मनिर्भर भारत अभियान के अन्तर्गत कृषि के विकास में कार्यरत महिलाओं को मुख्य धारा में लाने और ग्रामीण सेवाओं में उन्हें पुरूषों के समान भागीदारी प्रदान करने के लिए धन का आवंटन किया गया है।

महिलाओं को कृषि क्षेत्र की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास

        भारत के प्रधानमंत्री की परिकल्पना ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अनुरूप केन्द्र सरकार के द्वारा भारतीय कृषि के अन्तर्गत लैंगिक समानता के एजेण्डे को प्राथमिकता प्रदान की गई है। इसका उद्देश्य कृषि और इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में कार्य कर रही ग्रामीण महिलाओं को संसाधनों एवं योजनाओं तक उनकी पहुँच मुहैया कराना है।

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के द्वारा इन महिलाओं को मुख्यधारा में शामिल करने के उद्देश्य से कुछ विशेष योजनाओं को आरम्भ किया गया है। इन विशेष योजनाओं के अन्तर्गत राज्यों तथा अन्य क्रियान्वयन एजेंसियों को महिला किसानों पर कम से कम 30 प्रतिशत धन का व्यय करना होगा।

         महिला किसानों के कौशल विकास एवं क्षमता निर्माण के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। केन्द्र सरकार कृषि विस्तार पर उप-मिशन के तहत विभिन्न राज्यों के कार्यक्रमों और सुधारों में भी अपेक्षित सहयोग प्रदान कर रही है।

सम्पूर्ण देश में महिला किसानों के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थानों, राज्य कृषि प्रबन्धन एवं विस्तार प्रशिक्षण संस्थानों, कृषि विज्ञान केन्द्रों तथा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा  कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्रों में कम से कम 200 घण्टे के कौशल पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं (कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, 2021)।

       स्त्री-सहायक पहल कदमियों में बढ़ोत्तरी के साथ ही देश में महिला संचालित जोतों की संख्या वर्ष 2010-11 में 12.78 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 13.78 प्रतिशत हो गई थी (कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, 2021)। मंत्रालय के सहयोग से देश में अनेक संस्थाएं कृषक महिला खाद्य-सुरक्षा समूह में कार्य कर रही हैं।

वे कृषि कार्यों में कार्यरत महिलाओं से सम्बन्धित विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सूक्ष्म तथा वृहद्-स्तरीय अध्ययन संचालित करते हैं। ये समूह राष्ट्र, क्षेत्र तथा राज्य स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ाने के अतिरिक्त महिलाओं के अनुकूल साधनों तथा प्रौद्योगिकियों के संकलन एवं प्रलेखन में शामिल हैं। मंत्रालय महिला किसानों के लिए हैण्डबुक तथा सर्वश्रेष्ठ आचरण तथा उनकी सफलताओं की गाथाओं का प्रकाशन भी करता हैं।

महिला कृषक सशक्तिकरण: उनके कौशल एवं क्षमताओं का निर्माण

        भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की पहलों ने महिला किसानों की पहुँच आवश्यक संसाधनों तक बनाने तथा आजीविका और सामाजिक-आर्थिक लाभ की वृद्वि करने में अतुलनीय सहायता प्रदान की है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण महिला किसानों की भागीदारी में वृद्वि दर्ज की गयी है।

       ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा एक महिला किसान सशक्तिकरण की परियोजना को आरम्भ किया गया है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं के लिए कौशल विकास और क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों का संचालन करना है। इस परियोजना को पण्ड़ित दीनदयाल अन्त्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के तहत संचालित किया जा रहा है।

इसे राज्य ग्रामीण मिशनों के माध्यम से समस्त देश में लागू किया जा रहा है। डीएवाई-एनआरएलएम के तहत महिला किसानों को सामुदायिक संसाधन-कर्मियों तथा विस्तार एजेन्सियों के माध्यम से खेती और सम्बन्धित क्षेत्र की आधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग तथा कृषि पर्यावरण से जुड़े सर्वश्रेष्ठ आचरण का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

विस्तार एजेन्सियाँ विशेषरूप से महिला किसानों के लिए रसोई, बागवानी एवं पोषण बागवानी के माध्यम से घरेलू खाद्य-सुरक्षा, न्यूनतम खर्च तथा उच्च पोषकता वाले आहार का विकास, प्रसंस्करण एवं पाककला, स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को मुख्यधारा में लाने, भण्ड़ारण के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने वाली प्रौद्योगिकियों, मूल्य संवर्धन, महिला सशक्तिकरण, स्थान विशेष के लिए श्रम की आवश्यकता को कम करने वाली प्रौद्योगिकियों, ग्रामीण शिल्प तथा महिलाओं और बच्चों की देखभाल आदि विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जाता है। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों से ग्रामीण महिलाओं के लिए आजीविका के नए अवसरों का प्रादुर्भाव हुआ है।

     कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अधीन सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट फॉर वुमैन इन एग्रीकल्चर भुवनेश्वर के द्वारा नए हस्तक्षेपों पर समानान्तर अनुसंधान परियोजनाओं को आरम्भ किया गया जिनके अन्तर्गत प्रौद्योगिकी परीक्षण तथा परिष्करण, कटौति तथा लैंगिक रूप से संवेदनशील विस्तार दृष्टिकोण जैसे विषयों पर शोध करने के लिए यह पहल की गई है।

         गत कुछ वर्षों के दौरान इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी में कई गुना वृद्वि दर्ज की गई है। इन प्रशिक्षण एवं जागरूकता शिविरों के माध्यम से विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के लिए हस्तक्षेपों को अपनाएं जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। डीएवाई-एनआरएलएम के माध्यम से 735 राज्य-स्तरीय संसाधन कर्मियों के द्वारा लगभग 58,298 कृषि सखियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेष महिला कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों में 1.23 लाख महिला किसानों को भी शामिल भी किया जा चुका है।

        प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में अल्प अवधि के अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जाने के अतिरिक्त, पूर्व में ही अर्जित ज्ञान को मान्यता प्रदान की जाती है। कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय की इस योजना से ग्रामीण युवाओं एवं महिलाओं को आजीविका अर्जित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई है। पण्ड़ित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना वास्तव में नियोजन से जुड़ा ही एक कौशल विकास कार्यक्रम है, जिसके माध्यम से ग्रामीण युवाओं को वेतन आधारित रोजगार उपलब्ध कराया जाता है।

       कृषि उत्पादन संगठन और महिला स्वयंसहायता समूह ग्रामीण महिलाओं के मध्य इन कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करने के में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के महिला शक्ति केन्द्र के द्वारा सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से तथा बालिका शिक्षा, मातृ देखभाल तथा महिला स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता को फैला कर ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण किया जा रहा है।

       जैव प्रौद्योगिकी कृषि नवोन्मेष विज्ञान अनुप्रयोग नेटवर्क (बायोटेक-किसान) देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के किसानों के लिए वैज्ञानिक समाधान उपलब्ध कराता है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग का यह कार्यक्रम क्षेत्र के लघु एवं सीमाँत किसानों तथा विशेष रूप से महिला कृषकों को उपलब्ध नवोन्मेषी कृषि प्रौद्योगिकियों का खेती में उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ स्थित कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर में प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष हैं।