ई-कचरे के चलते खतरे में हमारी धरती

                    ई-कचरे के चलते खतरे में हमारी धरती

                                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 वर्षा रानी एवं मुकेश शर्मा

‘‘कहा जाता है कि यदि दुनिया भर के ई-कचरे को ट्रकों में भरकर, उन्हें कतार में खड़ा कर दिया जाए, तो यह ट्रक भूमध्यरेखा के चारों ओर एक लाइन बना सकते हैं।’’

                                                                        

वर्तमान समय के तकनीकी और डिजिटल युग में इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-वेस्ट) पूरी दुनिया में एक चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है। हम सबके पास मोबाइल फोन, टीवी, लैपटॉप जैसे बहुत से इलेक्ट्रॉनिक सामान की भरमार हैं, जिन्हें खराब हो जाने पर हम कचरे में डाल देते हैं। परन्तु इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की बढ़ती चाहत हमारे वातावरण का गला घोंट रही है।

ई-कचरे पर संयुक्त राष्ट्र की ‘‘द ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनीटर 2024’’ की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सालाना 6.2 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हो रहा है। वर्ष 2010 के बाद से इसमें 82 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अगर ई-कचरा ऐसे ही बढ़ता रहा, तो वर्ष 2030 तक 32 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर यह 8.2 करोड़ टन के स्तर पर पर पहुंच सकता है। ई-कचरा प्रति वर्ष 23 लाख टन की दर से बढ़ रहा है। जिन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों ने हमारी जिंदगी को आसान बनाया, आज यह उत्पाद ही हमारी जिंदगी में जहर घोल रहे हैं।

ई-कचरे की असली समस्या उस समय शुरू होती है, जब इनका सही तरीके से संग्रहण (कलेक्शन) और पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) नहीं होता है, जिससे मिट्टी, पानी और हवा जहरीली होती जा रही है। बहुत से ऐसे देश हैं, जहां ई-कचरा बड़ी मात्रा में निकलता है, लेकिन उसके संग्रहण एवं पुनर्चक्रण का कोई उचित प्रबंधन नहीं किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में उत्पन्न हुए ई-कचरे का सिर्फ 22.3 प्रतिशत हिस्सा ही एकत्रित और पुनर्चक्रित किया जा सका था।

                                                                       

वर्ष 2030 तक इसके संग्रहण और पुनर्चक्रण की दर घटकर सिर्फ 20 फीसदी ही रह जाने की आशंका है। दुनिया का करीब एक तिहाई यानी 2,000 करोड़ किलोग्राम ई-कचरा खिलौनों, माइक्रोवेव ओवन, वैक्यूम क्लीनर और ई-सिगरेट जैसे छोटे उपकरणों से पैदा हो रहा है। जिस तरह से जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया की समस्या है, ठीक उसी तरह से ई-कचरा भी पूरे विश्व की एक बड़ी समस्या है जिसका ठोस समाधान करना बहुत आवश्यक है।

दुनिया में ई-कचरे की मात्रा कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा केवल इससे लगाया जा सकता है कि अगर इस ई-कचरे को 40 मीट्रिक टन क्षमता वाले ट्रकों में भर दिया जाए, तो इसके लिए करीब 15.5 लाख से ज्यादा ट्रकों की जरूरत पड़ेगी। इन ट्रकों को कतार में खड़ा किया जाए, तो ये भूमध्यरेखा के चारों ओर एक लाइन बना सकते हैं। वैश्विक स्तर पर ई-कचरे की रीसाइक्लिंग की दर मात्र 12 फीसदी है। बड़ी मात्रा में ई-कचरे को नदियों, समुद्रों में बहा दिया जाता है, जिससे पर्यावरण के साथ- साथ जीव-जंतुओं को भी नुकसान हो रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ‘‘चिल्ड्रन ऐंड डिजिटली कनेक्टेड साइट’’ के अनुसार, 1.29 करोड़ महिलाएं ई-कचरे से जुड़े क्षेत्र में काम करती हैं। ये महिलाएं या तो ई-कचरा जमा करती हैं या पुनर्चक्रण के काम में लगी हुई हैं। ई-कचरे के संपर्क में आने पर इन महिलाओं की सेहत पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही उनके गर्भ में पल रहे अजन्मे बच्चे पर भी इसक कुप्रभाव पड़ता है। इसी तरह करीब 1.8 करोड़ बच्चे और किशोर, जिनमें से कई पांच वर्ष से भी कम उम्र के हैं, भी इस काम में जुटे हुए है।

ई-कचरे में मौजूद सीसा और पारा इन बच्चों की दिमागी क्षमता को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ई-कचरे के पुनर्चक्रण से न केवल पर्यावरण बचेगा, बल्कि कीमती धातुओं को भी बचाया जा सकता है। जैसे, वर्ष 2022 में जो ई-कचरा इकट्ठा हुआ, उसमें 7.50 लाख करोड़ रुपये की बहुमूल्य धातुएं भी मिली थीं।

                                                               

यदि आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो भारत पूरी दुनिया में ई-कचरा पैदा करने के मामले है तीसरे नंबर पर है। वर्ष 2021 से 2022 तक भारत में 16 लाख टन ई-कचरा पैदा हुआ था। वर्ष 2030 तक भारत में 1.4 करोड़ टन ई-कचरा उत्पन्न होने का अनुमान है। हालांकि भारत ने इस ई-कचरे से निपटने के लिए कई बड़े कद उठाए हैं।

देश की नई स्क्रैप पॉलिसी के तहत सरकार वर्ष 2022 में मोबाइल फोन, लैपटॉप, फ्रिज, टीवी और एसी समेत 134 इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग की अतिम तिथि (एक्सपायरी डेट) तय कर दी। इसके बाद इनका उपयोग बंद करना होगा। जिस तरह से पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग का काम ‘‘रीसाइक्लिंग एजेंसीज’’ करती है, ठीक उसी तरह इलेक्ट्रॉनिक सामान के कलेक्शन और स्क्रैपिंग का काम भी ‘‘प्राइवेट एजेंसियां’’ कर रही हैं।

ऐसे में ई-कचरे की बढ़ती मात्रा पृथ्वी के लिए खतरनाक है। इसलिए इन पर अंकुश लगाने के साथ इनकी बेहतर रीसाइक्लिंग का भी ठोस प्रबन्ध करना होगा, ताकि हम पृथ्वी के अनमोल संसाधनों का न सिर्फ सावधानीपूर्वक इस्तेमाल कर सकें, बल्कि उसकी सेहत का भी ध्यान रख सकें।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।