लू-प्रकोप (हीटवेव) से कृषि फसलों की सुरक्षा

                     लू-प्रकोप (हीटवेव) से कृषि फसलों की सुरक्षा

                                                                                                                                               डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

लू-प्राकोप (हीटवेव) से फसलों की सुरक्षा  कैसे करें

                                                                    

लू- प्राकोप (हीटवेव) से कृषि फसलों की सुरक्षा/भूमि में जल एवं नमी संरक्षण के लिए प्रस्तावित की गई सामान्य संस्तुति एवं कार्ययोजनाएं

प्रदेश में लू- प्राकोप (हीटवेव) से कृषि फसलों की सुरक्षा/भूमि में जल एवं नमी संरक्षण के लिए प्रस्तावित की गई सामान्य संस्तुति एवं कार्ययोजनाएं इस प्रकार से हैं-

1. प्रदेश में उत्तर प्रदेश राज्य कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) के स्तर पर मौसम आधारित राज्य स्तरीय कृषि परामर्श समूह (क्रॉप वेदर वॉच ग्रुप) गठित किया गया है। उक्त समूह में आंचलिक भारतीय मौसम विज्ञान केन्द्र, अमौसी, लखनऊ के मौसम वैज्ञानिक एवं भारतीय कृषि अनुसंधान से सम्बन्धित लखनऊ स्थित संस्थानों के वैाानिक हैं। मौसम आधारित राज्य स्तरीय कृषि परामर्श समूह के द्वारा मौसम पूर्वानुमान के अन्तर्गत साप्ताहिक/पाक्षिक रूप से कृषकों के उपयोगार्थ प्रदेश में लू- प्राकोप (हीटवेव) से कृषि फसलों की सुरक्षा/भूमि में जल एवं नमी संरक्षण के लिए संस्तुति एवं कार्ययोजनाएं निर्गत की जानी हैं।

2. लू- प्राकोप (हीटवेव) से कृषि फसलों की सुरक्षा/भूमि में जल एवं नमी संरक्षण के लिए प्रस्तावित की गई सामान्य संस्तुतियाँ-

                                                              

भूमि के अन्दर नमी के संरक्षण हेतु मल्चिंग एवं खरपतवार नियंत्रण की व्यवस्था को सुनिश्चित् किया जाना चाहिए। मल्च के लिए विशेष रूप से बायोमास (जैविक उत्पाद) का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।

फसलों की सीडलिंग (पौध अवस्था) अवस्था में मल्चिंग करना सुनिशिचत् करें।

सिंचाई के जल की न्यूनतम क्षति हेतु अपनी फसलों की सिंचाई करने के लिए स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई प्रणाली का ही उपयोग करना चाहिए।

खेतों की सिंचाई विशेष रूप से संध्याकाल में नियमित अंतराल पर हल्की सिंचाई करें।

स्मय-समय पर अन्तःकर्षण क्रियाओं के माध्यम से तैयार मल्च के द्वारा भूमि की सतह से वाष्पीकरण क्रिया के द्वारा होने वाली नमी की हानि सीमित करने का प्रयास करें।

किसानों को अपने खेतों में विशष रूप से जैविक खादों का ही उपयोग करना चाहिए।

फसलों की बुआई सदैव पंक्तियों में ही करना उत्तम रहता है।

                                                                      

सिंचाई के लिए बनाई गई नालियों से होने वाली जल की क्षति को कम करने के लिए सबसे आसान एवं किफायती तकनीक के लिए पॉलीथिन शीट का उपयोग करना चाहिए और सिंचाई पूरी हो जाने के बाद इस शीट को एकत्र करके सुरक्षित रख देना चाहिए। इसके अलावा सिंचाई के लिए कन्वेंस पाईप का भी उपयोग किया जा सकता है।

खेत का पूरी तरह से समतल होना भी आवश्यक होता है। इससे सिंचाई जल का वितरण पूरे खेत में एकसनान रूप से ही होता है।

उपरहार भूमियों की सिंचाई करने हेतु कन्टूर ट्रैनच विधियों का प्रयोग करना उत्तम होता है।

जितना भी सम्भव हो सके, वर्षा के जल का संग्रहण/संरक्षण करने का प्रयास करना चाहिए, इससे फसलों की जीवन रक्षक सिंचाई एवं फसलों की वृद्वि की क्राँतिक अवस्थाओं के दौरान की जाने वाली सिंचाई प्रक्रिया को सुनिश्चित् किया जा सके।

                                                                         

हमस ब जानते हैं कि भूजल ही सर्वाधिक भरोसे का एक जल स्रोत है, अतः इसका अनियिमित दोहन से बचने को प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिए।

कठोर अवमृदा/चट्टानी क्षेत्रों में कुँओं के जल की उपलब्धता को निरंतरता को जारी रखने के लिए निरंतर पंपिंग के स्थान पर निशिचत् समयान्तराल पर ही पंपिंग करना उचित रहता है।

धान की नर्सरी में पर्याप्त नमी के स्तर को बनाए रखें और इसमें जल-निकास की उचित व्यवस्था को बनाए रखें। 

खेती-बाड़ी एवं नई तकनीकी से खेती करने हेतु समस्त जानकारी के लिए हमारी वेबसाईट किसान जागरण डॉट कॉम को देखें। कृषि संबंधी समस्याओं के समाधान एवं हेल्थ से संबंधित जानकारी हासिल करने के लिए अपने सवाल भी उपरोक्त वेबसाइट पर अपलोड कर सकते हैं। विषय विशेषज्ञों द्वारा आपकी कृषि संबंधी जानकारी दी जाएगी और साथ ही हेल्थ से संबंधित सभी समस्याओं को आप लिखकर भेज सकते हैं, जिनका जवाब हमारे डॉक्टरों के द्वारा दिया जाएगा।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।