क्या है रिंग पिट विधि और क्या हैं इसके लाभ

                         क्या है रिंग पिट विधि और क्या हैं इसके लाभ

                                                                                                                                                   डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 कृषाणु एवं गरिमा शर्मा

रिंग पिट विधि: जिससे गन्ने का उत्पादन 4 गुना हो सकता है, कृषि एक्सपर्ट की राय

                                                               

धान और गेहूं के मुकाबले गन्ने की फसल किसानों को अच्छी आमदनी देती है। गन्ने की फसल में मौसम की मार को झेलने की ज्यादा क्षमता होती है। भारत में गन्ने का औसत उत्पादन 62 टन प्रति हेक्टेयर माना गया है। लेकिन गन्ने की नई-नई विधियों के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि गन्ने की पैदावार को 3 से 4 गुना तक बढ़ाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किसान परंपरागत विधि को छोड़कर रिंग पिट विधि का इस्तेमाल करें तो गन्ने का उत्पादन ज्यादा लिया जा सकता है।

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया कि गन्ने की फसल किसानों की पसंदीदा फसलों में से एक है। ऐसे में अगर किसान गन्ने की परंपरागत विधि को छोड़कर रिंग पिट विधि से गन्ने की फसल लगाएं तो किसानों को अच्छा उत्पादन मिलेगा।

परंपरागत विधि से गन्ने की बुवाई में नुकसान

डॉ0 सेंगर ने बताया कि परंपरागत तरीके से गन्ने की खेती करने के लिए 90 सेंटीमीटर पर कूड़ निकाले जाते हैं। तीन आंख के टुकड़े से गन्ने की बुवाई की जाती है, जिससे जमाव बेहद कम रहता है। 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक ही जमाव हो पाता है। परंपरागत विधि से गन्ने की खेती करने में फुटाव भी कम होता है। करीब 40 प्रतिशत कल्ले गन्ने में तब्दील होते हैं। जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है। इस विधि से गन्ने की खेती करने में पूरे खेत में सिंचाई करनी होती है तो पानी की खपत भी ज्यादा होती है।

परंपरागत विधि से गन्ने की बुवाई करने के लिए 60 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज की आवश्यकता होती है। परंपरागत तरीके से गन्ने की खेती करने से 600 से 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने का उत्पादन मिलता है।

कितना फायदेमंद है रिंग पिट विधि?

                                                                      

डॉ0 सेंगर ने बताया कि रिंग पिट विधि किसानों को सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली एक विधि है। लेकिन इस विधि से गन्ने की खेती करना थोड़ा सा महंगा पड़ता है। क्योंकि अगर किसान के पास रिंग डिगर नहीं है तो किसानों पर बुवाई के दौरान लेबर खर्च ज्यादा आता है। वही इस विधि से खेती करने के लिए परंपरागत विधि के मुकाबले ज्यादा बीज की जरूरत होती है। क्योंकि बीज तैयार करते समय मातृ पौधे ही उपयोग में लिए जाते हैं।

इस विधि से गन्ना उगाकर इसके साथ सहफसली नहीं कर सकते हैं। लेकिन इस विधि से बोई हुई गन्ने की फसल में मौसम की मार को झेलने की क्षमता ज्यादा हो जाती है। इस विधि से गन्ने की बंधाई अच्छे से हो जाती है और बारिश के दौरान तेज हवा चलने से गन्ना गिरता नहीं है।

कैसे करें गन्ने की बुवाई ?

                                                                

डॉ0 सेंगर ने बताया कि रिंग पिट से बुवाई करने के लिए किसानों को 90 सेंटीमीटर व्यास का गड्ढा खोदना होता है। गड्ढे की गहराई 30 से 45 सेंटीमीटर रहती है जबकि गड्ढे से गड्ढे की दूरी केंद्र से करीब 120 सेंटीमीटर रखी जाती है। एक हेक्टेयर में करीब 6750 गड्ढे बनाए जाते हैं। हर गड्ढे में दो या तीन आंख वाले गन्ने के पीस रखे जाते हैं।

एक गड्ढे में 35 से 40 आंखों की बुवाई की जाती है। इस विधि से गन्ने की बुवाई करने से निकलने वाले ज्यादातर कल्ले गन्ने में तब्दील हो जाते हैं। रिंग पिट विधि से उगाए हुए गन्ने से चीनी का परता भी ज्यादा मिलता है। इस विधि से किसान 900 से 1100 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से उपज ले सकते हैं।

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लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।