बकरी पालन करने की विधि

                                 बकरी पालन करने की विधि

                                                                                                                                                                        प्रोफेसर वीरेश भदोरिया

Goat Farming बकरी एक साल में दो बार बच्चे देती है बकरी को घर पर बांधकर भी इसका पालन कर सकते हैं।

                                                                         

बकरी एक छोटा जानवर होता है, इसलिए इसके रखरखाव का खर्च भी बहुत कम होता है। बकरी पालन में मुख्य रूप से तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए। जिनमें से पहली है बकरी की नस्ल, दूसरी है बकरी का भोजन या चारा और तीसरा है बकरी का प्रबंधन. यहां पर हम यदि नस्ल की बात करें तो बकरी को पाने के लिए उसी नस्ल का चयन करना चाहिए जो कि सम्बन्धित वातावरण में अच्छी प्रकार से रह सके।

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बकरी पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय बन गया है.। कम खर्च और ज्यादा मुनाफे के कारण बड़ी संख्या में किसान इस व्यवसाय की ओर रुख कर रहे हैं। हालांकि किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि किस नस्ल की बकरी पालने (Goat Farming) से उन्हें अच्छा मुनाफा मिल सकेगा।

बकरी पालन में नस्ल की बात करें तो उसी नस्ल का चयन करना चाहिए जो उस वातावरण में अच्छे तरीके से रह सके। हालांकि बकरी पालन के लिए बरबरी या जमुनापारी नस्लें बहुत अच्छी मानी जाती है। जबकि कुछ पशुपालक सिरोही और बीटल नस्लों को भी पालते हैं।

एक साल में 2 बार बच्चे देती है यह बकरी

यदि पशुपालक बरबरी नस्ल के साथ अपने बकरी पालन के व्यवसाय शुरू कर रहे हैं, तो इन्हें घर पर रखकर ही इनका अच्छी तरह से पालन-पोषण कर सकते हैं। यह नस्ल आमतौर पर साल में दो बार बच्चे पैदा करती है और एक बार में 2 या 3 बच्चों को जन्म देती है। केवल इतना ही नहीं यह नस्ल कभी-कभी 4 बच्चों तक भी जन्म दे देती है। यदि बकरियों को चरागाह में चरने के लिए नहीं भेजा जाता है तो उन्हें दिन में तीन बार चारा देना बहुत जरूरी है।

एक औसत बकरी को एक दिन में 3.5 से 5 किलो चारा मिलना चाहिए। बकरियों को आपस में लड़ने से बचाना चाहिए। इसलिए गर्भवती बकरियों को किसी अन्य सामान्य बकरियों के साथ नहीं रखा जाना चाहिए जिनका तुरंत गर्भपात हुआ हो या जो बीमार हों। पशु चिकित्सकों के अनुसार पीपीआर, खुरपका-मुंहपका रोग, घेंघा रोग, एंटरोटोक्सिमिया और आफरा आदि कुछ खतरनाक बीमारियां हैं और इनके प्रति पशुपालकों को सदैव ही सचेत रहना चाहिए।

बरबरी नस्ल की बकरी पालने का सही तरीका

                                                                   

बरबरी बकरियां को पालना कोई बहुत अधिक मुश्किल भरा काम नहीं है। इस नस्ल की बकरी को पालने के लिए नमी वाली जगह का चयन करना चाहिए होता है। बकरियों के चरने के लिए खुला मैदान की व्यवस्था करें, ताकि चरने के लिए हरा चारा उपलब्ध हो सके। जिस स्थान पर इन्हें बांधा जाए वह स्थान साफ-सुथरा होना चाहिए। ताकि रखरखाव की लागत को कम किया जा सके।

साथ ही एक शेड में 7-8 से ज्यादा बकरियां नहीं रखी जानी चाहिए। बारबरी नस्ल की बकरियां आमतौर पर कुछ भी खा लेती हैं, लेकिन वे झाड़ियां, पेड़ की पत्तियां, अनाज, ग्वार की भूसी और मूंगफली का चारा आसानी और चाव से खाती हैं।

जमुनापारी बकरी को पालने का तरीका

                                               

भारत में जमुनापारी बकरी पालन यमुना नदी के आसपास के क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है। बकरियों की यह नस्ल मुख्यतः उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पाई जाती है। इसके अलावा ये बकरियां पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश राघ्ज्यों में भी पाई जाती हैं और यह बकरी हमारे पडोसी मुल्क पाकिस्तान में भी पाई जाती है।

इस नस्ल से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है क्योंकि यह नस्ल अधिक मांस और दूध देती है। जमुनापारी नस्ल की बकरी का रंग सफेद होता है। इस नस्ल की बकरियों की पीठ पर बाल लंबे और सींग छोटे होते हैं। इन बकरियों के कान बड़े और मुड़े हुए होते हैं। यह बकरियां अन्य नस्लों के मुकाबले ऊंची और लंबी होती हैं।

जमुनापारी बकरी की विशेषताएं

                                                                 

इस बकरी का वजन सामान्य बकरीयों के वजन से ज्यादा होता है। यह बकरी अपने पूरे जीवनकाल में 12 से 14 बच्चों को जन्म देती है। इस नस्ल की बकरियां प्रतिदिन औसतन 1.5 से 2 लीटर दूध देती हैं। जमुनापारी बकरी का दूध स्वादिष्ट और गुणकारी होता है। इस बकरी को पालने के लिए केंद्रीय अनुसंधान संस्थान में प्रशिक्षण भी दिया जाता है। बाजारों में इसके मांस की काफी मांग रहती है। इसके बकरों की कीमत करीब 15 से 20 हजार रुपये तक होती है।

 लेखकः प्रोफेसर वीरेश भदोरिया सरदार वल्लभाभाई पटेल कृषि एवं प्रौ0 विश्वविद्यालय मरेठ स्थित कॉलेज ऑफ वेटेनरी (पशु चिकित्सा महाविद्यालय) में कार्यरत हैं।

सौजन्यः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।