अप्रैल और मई में करें यह काम करे गन्ने में होगा अच्छा फुटाव।
अप्रैल और मई में करें यह काम करे गन्ने में होगा अच्छा फुटाव।
गन्ना बोने के लगभग 40 दिन बाद कल्ले फूटने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यह प्रक्रिया करीब 120 दिनों तक चल सकती है। यह गन्ने के तने के जोड़ों की शाखाकरण की एक प्रक्रिया होती है, जो निचली भूमि में भी गन्ने की अच्छी फसल देने के लिए जानी जाती है। कई मामलों में पोषक तत्वों की कमी के कारण गन्ने में सही से फूटाव नहीं हो पाता है। अगर आप भी गन्ने की खेती कर रहे हैं तो बेहतर अंकुरण के लिए किए जाने वाले काम के बारे में जानना बहुत जरूरी है। तो आइए आज हम अपनी इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको गन्ने के बेहतर विभाजन के लिए किए जाने वाले विभिन्न कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
गन्ने में फुटाव कम होने के प्रमुख कारण
- पिछली फसल की कटाई जमीनी स्तर से मिलाकर न करें।
- उर्वरकों की कमी या मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होना।
- 1 फुट से अधिक खाली जगह को छोड़ देना।
- खेत में खरपतवार की अधिकता होना।.
गन्ने में फुटाव बढ़ाने के वैज्ञानिक तरीकें
- खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की अधिक से अधिक निराई-गुड़ाई करें।
- उपचारित पौधों का ही उपयोग बुआई करने के लिए करें।
- एज़ोस्पिरिलम का प्रयोग करें, यह गन्ने की फसल को वायुमंडलीय नाइट्रोजन प्रदान करता है।
- बेहतर उपज के लिए सही समय पर बुआई करें। वसंतकालीन गन्ने की बुआई फरवरी-मार्च माह में ही कर दें।
- खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 4 से 4.8 टन FYM उर्वरक डालें।
- रोपाई के लगभग 30 दिन बाद प्रति एकड़ भूमि में 2 किलोग्राम एज़ोस्पिरिलम और 2 किलोग्राम फॉस्फोबैक्टीरिया का उपयोग करके भूमि की सिंचाई करें। इन औषधियों का प्रयोग तालाबों के पास करें।
- गन्ने की फसल के लिए प्रति एकड़ भूमि में लगभग 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 24 किलोग्राम फास्फोरस और 16 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
- खेत तैयार करते समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा के साथ पोटाश एवं फास्फोरस की पूरी मात्रा खेत में मिला दें।
- 15 किलोग्राम नाइट्रोजन बुआई के 50-60 दिन बाद या सिंचाई के 2-3 दिन बाद खेत में डालें।
- 15 किलोग्राम नाइट्रोजन बुआई के 80-90 दिन बाद या सिंचाई के 2-3 दिन बाद दोबारा खेत में मिला दें।
गन्ने के अच्छे अंकुरण के लिए 100 से 150 ग्राम देहात ग्रो प्रो को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह मात्रा प्रति एकड़ भूमि की दर से दी जाती है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।