भारत की सिलिकॉन वैली में पानी की किल्लत

                       भारत की सिलिकॉन वैली में पानी की किल्लत

                                                                                                                                          डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

भारत का आईटी हब कहा जाने वाला बेंगलुरु शहर इन दिनों हर रोज बीस करोड़ लीटर पानी की कमी झेल रहा है।

                                                                   

लगभग डेढ़ करोड़ की आबादी वाले इस शहर के लिए कावेरी नदी से 145 करोड़ लीटर पानी 95 किलोमीटर का सफर तय करके कर्नाटक की राजधानी में लाया जाता है।

समुद्र तल से करीब 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस शहर की जरूरत का शेष 60 करोड़ लीटर पानी वोरवेल के जरिए आता है।

बेंगलुरु शहर में इस जल संकट का एक महत्वपूर्ण कारण यहाँ का गिरता हुआ भूजल स्तर है, जो दक्षिण-पश्चिम मॉनसून और उत्तर-पूर्वी मॉनसून कमजोर रहने के चलते लगातार गिरता जा रहा है।

इस जल संकट की सबसे ज्यादा मार उन 110 गांवों में रहने वाले लोगों पर पड़ रही है जिन्हें हाल ही में बेंगलुरु शहर में मिलाया गया है।

बारिश में कमी की वजह से बेंगलुरु शहर का भूजल स्तर काफी गिर चुका है।

बेंगलुरु शहर के अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि यह जल संकट अगले 100 दिन से ज्यादा नहीं चलेगा।

शहर में स्थित कुल 186 झीलों में से सिर्फ 24-25 झीली को पुनर्जीवन दिया जा सका है।

मौजूदा जल संकट हमारे लिए एक तरह की चेतावनी जैसा ही है।

हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जीवन चलाने के लिए जरूरी तीन चीजें हवा, पानी और खाना आदि अति आवश्यक हैं।

                                                               

हवा के मामले में बेंगलुरु की स्थिति दिल्ली की तुलना में कुछ बेहतर है। वहीं अगर खाने की बात की जाए तो यहां अच्छा खाना मिलता है। परन्तु असली मुद्दा तो पेयजल का है। जब भूजल का स्तर गिरता है तो यह उस स्थान पर निवास करने वालों के बारे में काफी कुछ बताता है और स्थिति अत्याधिक चिंताजनक स्वरूप ग्रहण कर चुकी है।

जल संकट की वजह से राज्य सरकार ने यहां के 240 में से 223 तहसीलों को सूखाग्रस्त  घोषित कर दिया है।

कुल 1.4 करोड़ की आबादी वाले बेंगलुरु शहर में वॉलमार्ट, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां कार्य कर रही है लेकिन बेंगलुरु कमजोर मॉनसून, लगातार कम होते भूजल, जलाशय और अत्यधिक शहरीकरण होने की मार झेल रहा है।

1 करोड़ 40 लाख की आबादी वाले इस शहर में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 150 लीटर पानी की खपत होती है। बेंगलुरु के लिए आवश्यक कुल मात्रा 200000 एमएलडी (प्रति दिन मिलियन लीटर) जल की है।

अभी कावेरी से 10450 एमएलडी पानी मिल रहा है। वर्तमान में, जलाशय 34 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसी) पानी प्रदान करता है।

बेंगलुरु को अगले पांच महीने तक सिर्फ आठ टीएमसी पानी को जरूरत है और जुलाई तक कावेरी का पानी ही पर्याप्त रहेगा।

शहर की सड़कों पर दिन-रात टैंकर दौड़ रहे हैं। पानी के इन टैंकरों की कीमत पहले 400-600 रुपए होती थी, जो कि अब 800-2000 रूपये तक पहुंच चुकी है।

बेंगलुरु में जल संकट के लिए केवल अनिश्चित बारिश और बदलती हुई जलवायु के जैसी परिस्थितियों को दोषी नहीं व्हराया जा सकता है। जनसंख्या विस्फोट, अनियोजित शहरीकरण, मैत्रीपूर्ण औद्योगिक और कृषि नीतियों के कारण भी यह समस्या उत्पन्न हुई है। निस्संदेह, जल नियोजन से वांछित परिणाम प्राप्त नही हुए हैं।

                                                              

वोडक्ल्यूएसएसवी जो मुख्य रूप से शहर को पानी की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार संस्था है, ने स्वीकार किया है कि कावेरी पर शहर की अत्यधिक निर्भरता और समन्वित जल प्रबंधन की कमी के कारण बेंगलुरु की जल आपूर्ति भ होती जा रही है। इन परिस्थितियों को देखते हुए आने वाले समय में बेहतर समय की कल्पना करना बिलकुल ही कठिन है, क्योंकि वर्ष 2031 तक बेंगलुरु की आबादी 20.3 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो एक बार फिर पानी की आपूर्ति और मांग के अंतर को असंतुलित कर देगी।

जल प्रशासन के प्रति दृष्टिकोण तकनीक केंद्रित के बजाय अधिक मानव-केंद्रित होना चाहिए। इससे आम लोगों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि जल नियोजन के संबंध में क्या हो रहा है और जल परियोजनाओं के वास्तविक लाभार्थी कौन हैं। यह समझना जरूरी है कि शहर की प्यास राजनीति का विषय नहीं हो सकती। इसलिए संवेदनशील होकर तत्काल प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।

अब बंगलोर जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड ने स्विमिंग पूल में पीने के पानी के उपयोग पर रोक लगा दी है।

बोर्ड ने कहा है कि आदेश का उल्लंघन करने पर 5000 रुपये तक का जुर्माना लगेगा।

राज्य सरकार ने पेयजल के अन्य कार्यों में उपयोग पर रोक लगा दी है। इस संबंध में 15 मार्च से सख्त कानून लागू किया जा रहा है।

कर्नाटक जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड ने कार धोने, बागवानी, निर्माण, पानी के फवारे और सड़क निर्माण और रखरखाव के लिए पीने के पानी के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।

कुछ इलाकों में हालात इतने खराव हो गए है कि यहां के कोचिंग सेंटर और स्कूल अपने बच्चों से घर पर ही रहकर क्लास लेने के लिए बोल रहे हैं।

पिछले दिनों बंगलूरु के विजयनगर में स्थित एक कोचिंग सेंटर ने अपने छात्रों को एक सप्ताह के लिए आपातकाल के कारण ऑनलाइन स्टडी की बात कही तो वहीं, शहर के वन्नेराटा रोड पर एक स्कूल में भी ऐसा ही किया गया। स्कूल प्रशासन ने छात्रों को बहुत कम कक्षाओं में भाग लेने के लिए भी कहा है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।