मसाले के क्षेत्र में भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश

मसाले के क्षेत्र में भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश

                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं आकांक्षा सिंह

स्वास्थ्य के मामले पर कंपनियां रहे सजग

                                                                        

मसाले बनाने वाली दो मशहूर भारतीय कंपनियां एमडीएच और एवरेज के कुछ उत्पादों पर हांगकांग और सिंगापुर की सरकारों ने प्रतिबंध लगा दिया है। यह देश की प्रतिष्ठा और शह के लिए कोई अच्छी बात नहीं हैय अब तक चीन के उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर मजाक बनाया जाता रहा है, मगर वह इतने सस्ते होते हैं कि दुनिया भर के बाजार में चीन के उत्पादों की मांग फिर भी बनी रहती है। लेकिन हम यहां किसी प्रकार के बिजली के उपकरणों या प्लास्टिक के समान व कपड़ों की बात नहीं कर रहें हैं। अपितु हम यहां खाद्य पदार्थों की बात कर रहें हैं, जिनका सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से होता है।

हांगकांग के खाद्य सुरक्षा विभाग का दावा है कि इन ब्रांडों के कुछ मसाले जैसे मद्रास करी पाउडर, सांभर मसाला मिक्सड पाउडर और करी पाउडर मिक्सड मसाले आदि में कीटनाशक इथाईलीन ऑक्साइड पाया गया है, जिससे कैंसर होने की आशंका बनी रहती है।

भारतीय मसाले की मांग दुनिया भर में रहती है, भारतीय खानपान की लोकप्रियता में मसाले की मुख्य भूमिका है। लेकिन इसको हम भारतीय लोगों मान-सम्मान या स्वाभिमान का मुद्दा बिल्कुल नहीं बनना चाहिए। क्योंकि खाने-पीने की चीजों का स्वास्थ्य और पोषण की कसौटी पर पूरा-पूरा खरा उतरना बहुत जरूरी है। हमारे देश के लाखों घरों में इन मसालों की खपत होती है और यदि उनमें कोई भी ऐसा तत्व है जो किसी रोग को बढ़ाने में मदद करता है तो हमारे अपने लोगों की सेहत को जोखिम हो सकता है। इसलिए उचित यही है कि ऐसे किसी राष्ट्रवाद के चश्मे से देखने की बजाय विशुद्ध मानवीय आधार पर जांचा जाना चाहिए। हमें इसलिए भी इस मामले को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है कि यहां हांगकांग और सिंगापुर से कहीं विशाल उपभोक्ता हैं जो इनका सेवन करते हैं और उनमें से ज्यादातर की माली हालत इन दोनों देशों के नागरिकों के मुकाबले काफी कमजोर हैं।

                                                                 

इसलिए बेहतरी इसी में है कि केवल इन मसालों की ही नही बल्कि खाने-पीने के सभी भारतीय उत्पादों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और उनके उत्पादन से जुड़ी कंपनियों के लिए सख्त दिशा निर्देश जारी किए जाएं। यह न सिर्फ देश की प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है, बल्कि आम उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिहाज से भी जरूरी है वह किसी ब्रांड की चीज गुणवत्ता के भरोसे भी खरीदते हैं। ऐसे में उनके साथ किसी किस्म का धोखा नहीं होना चाहिए। खाने पीने की चीजों के सुरक्षित होने की मान्यता देने वाली सरकारी महत्व व अफसरों की जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए ताकि वह गुणवत्ता की ठीक से जांच करें और उसके उपरांत ही उनका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात की अनुमति प्रदान करें।

वैज्ञानिकों द्वारा स्वयंय-स्वयंय पर मसाला उत्पादक किसानों का चयन करने के उपरांत प्रशिक्षित किया जाता है जिससे कि वह मसाला उत्पादन के स्वयंय कम से कम कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करें जिससे कि उनको जैविक उत्पाद मिल सके, क्योंकि इन उत्पादों की कीमत बाजार में अच्छी है और यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ठीक रहते हैं। देश के काफी हिस्सों में किसानों ने कदम उठाए हैं और वह जैविक मसाला उत्पादन कर रहे हैं जिससे उनको अच्छी कीमत भी मिल रही है और वह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ठीक है।

कहीं भारतीय उद्योगों के खिलाफ साजिश तो नहीं

                                                                

भारतीय व्यंजनों और मसाले की दुनिया भर में मांग बढ़ रही है इसके कारण भारतीय मसाला उद्योग और रेस्टोरेंट क्षेत्र को अमेरिका से लेकर यूरोप तक में कई बढ़त हासिल हो रही है। मसलन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है साल 2022-23 में इसने 3.7 अरब डॉलर के मसले निर्यात किए थे। ऐसे में हांगकांग और सिंगापुर द्वारा दो ना मशीन ब्रांडों के उत्पादों पर पाबंदी को एक सामान्य कार्रवाई के रूप में नहीं दिया जाना चाहिए। तब तो और जब हम सब मानते हैं कि भारत और भारतीयों की बढ़ती हैसियत को बचा पाना बहुत सारे देशों के लिए मुश्किल हो रहा है।

कुछ वर्षों पहले यह प्रवृत्ति देखी गई कि हमारे पारंपरिक ज्ञान पर आधारित चीजों का भी पश्चिमी देश डालने से पेटेंट करा ले जा रहे थे। उनके पेटेंट को चुनौती देने और उसे अपने नाम करने में हमें काफी ऊर्जा और भारी संसाधन व्यय करने पड़े थे। अब नई-नई अर्चना के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति के मार्ग में रुकावट डाली जा रही है। हम मानते हैं कि कुछ मामलों में हमारी कंपनियों से चूक हुई लेकिन अब कभी भी किसी ने वेद आपत्ति उठाई तो हमने संघ शहर उन कंपनियों को दूर करने का प्रयास किया। ऐसे में या जरूरी देखा जाना चाहिए कि सिंगापुर वह हांगकांग के अधिकारियों ने इन मसाले पर रोक से पहले क्या भारत के संबंधित विभाग को आग्रह किया था। यदि किया गया था तो हमारे अधिकारियों ने उसे पर क्या कदम उठाया इस बात को बहुत गंभीरता से लेना होगा।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विकसित देश कृपया गंदा वार करते ही आए हैं और अब तो बिजी भी इस क्षेत्र में पश्चिम को बराबरी से टक्कर देता है इसलिए मसाले तो महज मोहरा है। दरअसल उनके निशाने पर भारत की विश्व सुचिता है जिसे सदियों की सहनशीलता और धैर्य से हमने अर्जित किया है। भारत विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने वाला है और उसके बाद उसका प्रतिबंध दो बड़े देश ही बचेंगे तो बाकी देशों को लग रहा है कि भारत की तरक्की रफ्तार बढ़ती गई तो वह अगले दशक में ही एक ऐसी जगह पर होगा जहां उसकी बराबरी संभावना रह जाएगी। इसलिए इसके ब्रांडों की विशेषता पर हमला बोल ताकि उसकी गति पर लगाम लग सके। भारत सरकार को इस नजरिए से भी इस प्रकरण को देखना चाहिए कि हमें भी दूसरे देशों के उत्पादन की गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए और उसे जांच के उपरांत भी जो भी खाने वाली चीज हमारे देश में उन कंपनियों की बेची जा रही है उसे पर निगरानी रखी जाए और यदि स्वास्थ्य के प्रति वह ठीक नहीं है तो उस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।