ईश्वरीय जगत में बहती है आशा की नदीः आदमी की पहचान-

              ईश्वरीय जगत में बहती है आशा की नदीः आदमी की पहचान-

                                                                                                                                                                                  डॉ0 आर. एस. सेंगर

कहा जाता है कि संसार में कोई भी फूल-पत्ती ऐसी नहीं है, जिसमें औषधि का गुण न हो और कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, जिसकी प्रकृति में थोड़े बहुत देवताओं के भाव न हों। इसलिए ‘‘किसी को बुरा कहने में जल्दी न करो’’ यह सबक मुझे अपने ही जीवन में कई बार मिला है।

                                                                   

किसी भी आदमी को पहचानना बहुत कठिन काम है। किसी आदमी के पूरे गुण उसके जीवन के केवल एक अंग को लेकर नहीं जाने जा सकते। मनुष्य की पूरी परीक्षा उसके घरेलू जीवन और सार्वजनिक जीवन, दोनों को दृष्टिगोचर रखने से ही की जा सकती है। संभव है कि उसके नौकर-चाकर और स्त्री-बच्चे, जो राय उसके बारे में रखते हों, उसमें और उन लोगों की राय में अंतर हो, जो उसके साथ व्यापार आदि में संबंध रखते हों। मनुष्य की मनोवृत्ति को जानना बड़ी जटिल समस्या है। उसका स्वभाव किस समय किस बात से प्रेरित होकर क्या करेगा, साधारणतः यह बतलाना कठिन है।

लॉर्ड रॉबर्ट्स थे तो बड़े बहादुर सेनापति, पर बिल्ली से डरते थे। उन्हें बिल्ली से डरते समय देखकर कौन कह सकता था, कि वह एक साम्राज्य के सेनाध्यक्ष हैं। इसलिए किसी की एक कमजोरी देखकर उसके सारे जीवन पर लांछन न लगाना चाहिए। मेरा सिद्धांत है, कि जब तक इसका प्रमाण न मिल जाए कि अमुक आदमी चोर है, उस पर पूरा विश्वास करो। दार्शनिक हर्बर्ट स्पेंसर ने ठीक कहा है कि जो अविश्वास से जीवन आरंभ करता है, वह अपना और दूसरे का जीवन दुखमय बना देता है और जो जगत में विश्वास से काम लेता है, उससे संसार सच्चाई का व्यवहार रखता है।

ईश्वर के जगत में आशा की नदी बहती है, कोई उसमें से एक लुटिया भर लेता है, कोई एक लोटा, कोई गगरा; कुछ अभागे लोग नदी का बहाव ही देखते ही रह जाते हैं, पर उसमें आचमन करने का भी उनको अहोभाग्य नहीं प्राप्त होता ।

आदमी की पहचान...

                                                                  

किसी भी आदमी को परखना कोई आसान काम नहीं होता है, इसलिए किसी को बुरा कहने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। जब तक कोई प्रमाण न हो, तब तक किसी के बारे में कोई निश्चित राय बनाने से बचना ही चाहिए। हर व्यक्ति के जीवन का हर पक्ष न तो कमजोर होता है और न ही मजबूत। इसलिए किसी व्यक्ति की पहचान करते समय उदारता की दृष्टि से काम लेना चाहिए।

    किसी व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उसका सूक्ष्म नि रीक्षण बहुत जरूरी होता है। जब हम किसी व्यक्ति के बारे में कोई राय बनाते हैं तो अमुमन हमें उसके बारे में पूर्ण रूपेण जानकरी प्राप्त करके ही उसके बारे में कोई राय बनानी चाहिए, क्योंकि मानव के व्यक्तित्व के बहुत से पहलू होते हैं। व्यक्तित्व के यह पहलू ही किसी के चरित्र का निर्माण करते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।