अरहर दाल की बढ़ती कीमत ने सरकार की चिंता बढाई

                  अरहर दाल की बढ़ती कीमत ने सरकार की चिंता बढाई

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

                                                                             

सरकार की पूरी कोशिश के बावजूद भी अरहर की दाल की कीमतों में पिछले कई महीनो से लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। अब सरकार ने इसकी कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सभी कंपनियों से इस दाल की सप्लाई को और तेज करने के लिए कहा है। इसके साथ ही दाल की जमाखोरी करने वाले व्यापारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है। मुख्य रूप से अरहर दाल की कीमतों में हो रही तेजी से सरकार चिंतित है। अरहर दाल के आयात को सुगम बनाने का प्रयास भी किया जा रहा है। साथ ही दाल के उत्पादन को बढ़ाने के उपायों पर भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है और हो सकता है कि नई सरकार में इसे लेकर कोई घोषणा भी की जाए। खपत के मुकाबले दाल का कम उत्पादन कीमत में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण है। काफी किसान इस बार अरहर दाल की खेती प्रारंभ कर सकते हैं, क्योंकि अरहर दाल की मांग बाजार में भी अच्छी है और इसकी कीमत भी अच्छी प्राप्त होती है। ऐसे में यदि किसान अरहर की दाल की खेती को अपनाते हैं तो निश्चित रूप से उनकी आय में बढ़ोतरी हो सकेगी।

पिछले साल दिसंबर में दाल की खुदरा कीमत में 20.7 3 प्रतिशत, इस साल जनवरी में 19.5 प्रतिशत, फरवरी में 18.90 प्रतिशत तो मार्च में 17 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस स्थिति को देखते हुए सरकार ने वर्ष 2025 के मार्च तक तुअर, उड़द एवं मसूर आदि की दाल के आयात को शुल्क मुक्त कर दिया है। पिछले साल अप्रैल से लेकर इस साल मार्च तक वित्तीय वर्ष 2023 और 24 में 3.7 अरब डॉलर कीमत की दाल का आयात किया गया जो पूर्व के वित्त वर्ष 22 और 23 के दाल आयात के मुकाबले 93ः अधिक है इस साल पीली मटर का भारत में 10 लाख तन आयात हो चुका है

पिछले तीन महीनों में ₹20 प्रति किलो बड़े अरहर की दाल के दाम

                                                                                    

    पिछले तीन माह में अरहर दाल के थोक दाम में ₹20 प्रति किलो तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। तो खुदरा बाजार में अरहर दाल की कीमत 160 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। अब सरकार म्यांमार, मोजांबिक, तंजानिया और केन्या जैसे देशों से अरहर दाल के आयात को सुगम बनाने की कोशिश कर रही है। म्यांमार के साथ स्थानीय करेंसी में व्यापार को प्रोत्साहित किया जा रहा है। हालांकि इन देशों की कमजोर राजनीतिक स्थितियों के चलते कई बार आयत प्रभावित भी हो जाता है। सरकारी स्तर पर इस दिशा में भी प्रयास किया जा रहा है। अरहर का उत्पादन इन चार-पांच देशों के अलावा किसी अन्य देशों में नहीं किया जाता है और इसकी खपत मुख्य रूप से एशिया के देशों में ही होती है। यदि भारत में भी अरहर की खेती को बढ़ावा दिया जाए और किसानों को उत्तम गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराए जाएं, तो शायद कई प्रदेशों के किसान अरहर की खेती प्रारंभ कर सकते हैं। जिस प्रकार से देश में तिलहन की खेती को बढ़ावा मिल रहा है ठीक इस प्रकार से दलहनी फसलों पर भी यदि उचित ध्यान दिया जाए तो इसका रकबा भी बढ़ सकता है और फिर इसके उत्पादन में भी बढ़ोतरी निश्चित् रूप से होगी।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।