ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते तापमान से निपटने के लिए करें अधिक से अधिक वृक्षारोपण

ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते तापमान से निपटने के लिए करें अधिक से अधिक वृक्षारोपण

                                                                                                                                          डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                          

इस तेज धूप और गर्मी के चलते एयर कंडीशनर और कूलर आदि के बिना रह पाना संभव नहीं हो पता है और अब इनकी डिमांड शहर में ही नहीं बल्कि हमारे गांवों में भी तेजी से बढ़ने लगी है। विद्युत द्वारा संचालित होने वाले यह सभी उपकरण बिजली चले जाने पर जब बंद पड़ जाते हैं तो ज्यादा परेशानी होती है। यह स्थिति मौसम को अनुकूल बनाए रखने वाले पेड़ों के लगातार कम होने के चलते ही उत्पन्न हो रही है। पेड़ पौधे प्राकृतिक एयर कंडिशनर्स और कूलर्स होते है। दिनों दिन बढ़ती आबादी के साथ पेड़ों की संख्या भी बढ़ायी जानी चाहिए, लेकिन लोगों का ध्यान अभी इस ओर कम है।

                                                                                

इसी का परिणाम है कि गांव तथा शहरों के आसपास विकास कारण पेड़ों की संख्या में बहुत अधिक कमी आई है, जिस कारण लोग आज छाया के लिए भी तरसने लगे हैं। पहले लोग पेड़ की छांव में बैठकर गर्मी से राहत पा लेते थे या अपनी चारपाई पेड़ के नीचे डालकर प्राकृतिक ठंड़क का मजा लेते थे, लेकिन अब लगातार पुराने पेड़ काम हो जाने के कारण लोगों को छांव के लिए इधर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।

पर्यावरणविदो के अनुसार जब देश स्वतंत्र हुआ था तब से अब तक देश की आबादी और पेड़ों की स्थिति में काफी अंतर आ गया है। वृक्षों की सर्वाधिक कटाई विकास कार्यों के दौरान की जाती है। लंबी चौड़ी सड़कों के निर्माण के समय लंबे, घने और अत्यंत मजबूत पेड़ काट दिए जाते हैं। इन पेड़ों की जगह डिवाइडर्स पर जो पेड़ लगाए जाते हैं, प्रथम तो यह सूर्य की घातक किरणों से संघर्ष करने वाले पेड़ नहीं होते और दूसरा यह पर्याप्त पानी के अभाव में पेड़ सूख जाते हैं, और यह पनप नहीं पाते। सामाजिक संस्थाओं द्वारा जो पौधारोपण अभियान चलाया जाता है।

                                                                 

प्रायः देखभाल के अभाव में रोपित वृक्ष केवल एक वर्ष तक ही हरे रहते हैं। पर्यावरण असंतुलन के चलते वर्षा भी काम हो रही है और स्थिति यह है कि सावन और भादो माह में भी भीषण धूप एवं गर्मी होती है, जिसके चलते पौधारोपण के तहत लगे पौधों का पूरा विकास नहीं हो पाता है। जबकि होना तो यह चाहिए कि जिस क्षेत्र में कोई परियोजना लागू होनी होती है वहां पहले से पौधरोपण अभियान चलाया जाना चाहिए।

ध्यान रहे कि यदि हमें अपनी पृथ्वी को बचाना तो यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। इसके लिए जरूरी है कि जो हाईवे आदि बना रहे हैं, उनके दोनों तरफ जो स्थान खाली पड़ा हुआ है वहां पर फलदार वृक्ष लगा देने चाहिए और उन वृक्षों की देखभाल के लिए हाईवे के आसपास जिन किसानों के खेत पड़ते हैं, वहां उन्हीं को उनके रखरखाव की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

इस विधि से शायद लगाए गए वृक्ष अच्छी तरह से फल फूल सकेंगे। ऐसे में यदि फल पट्टी को हाईवे के किनारे विकसित कर दिया जाएगा तो हमारे देश के नागरिकों के लिए खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा को और मजबूती मिल सकेगी और किसानो की आय भी अपने आप ही बढ़ने लगेगी।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।