नई गन्ना प्रजाति को.15023

                                 नई गन्ना प्रजाति को.15023

                                                                                                                          डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 कृषाणु एवं गरिमा शर्मा

                                                       

नई गन्ना किस्मों में गन्ना प्रजाति को.15023 चीनी मिलों व कोल्हू क्रेशरों की सर्वाधिक मांग वाली साबित हो रही है !

 यह किस्म ख्यातिलब्ध वरिष्ठ गन्ना वैज्ञानिक “पदम् श्री” पुरस्कार से सम्मानित डा. बख्शी राम सर के मार्ग दर्शन में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.रविंदर सिंह जी और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित की गई है।

   तीव्र बढ़वार,कोमल तना एवम् शीघ्र जमाव वाली यह किस्म कम खर्च में गेहूं की कटाई के बाद की बुवाई में भी अच्छा उत्पादन दे रही है ।

नत्रजन की अधिक मात्रा के प्रति यह किस्म संवेदनशील है, इसलिए यूरिया की संतुलित मात्रा में प्रयोग करने की जरूरत है।

 इसके कोमल होने व ज्यादा मीठास के कारण जंगली पशुओं और मानवों द्वारा ज्यादा हानि की संभावना रहती है, गन्ना ज्यादा वजनी होने के कारण गिरने से बचाने के इसकी बँधाई अत्यंत आवश्यक है

                                                             

      फिलहाल किसान इसकी खेती सावधानी पूर्वक करें तो बहुत ही अच्छा परिणाम दे रही है ! निम्न बातों पर ध्यान देना जरूरी है !

  1. बंधाई अत्यंत आवश्यक हैं । 
  2. मिट्टी चढ़ाना अत्यंत आवश्यक है ।

 3- मिट्टी चढाई के समय पोटाश का प्रयोग जरूर करे !

 4- यूरिया का संतुलित प्रयोग करे !      

  ✓ शरदकालीन बावक को.15023 का उत्कृष्ट प्रदर्शन!!

किसान भाई कृपया ध्यान दे-

लाल सड़न रोग (कोलेटोट्राइकम फाल्केटम फफूंद) के पहचान:-

                                                          

1. गन्ने की ऊपरी तीसरी - चौथी पत्ती किनारे से सूखने लगती है। नीचे की पत्तियों को हटाने पर ऊपर की सारी गाठों से जड़ें निकलती दिखाई देने लगती है।

2. पत्तियों के मध्य शिरा पर रुद्राक्ष की माला जैसी लाल - भूरे धब्बे पत्ती के दोनों तरफ दिखाई देने लगते है।

3. उपरोक्त दोनों लक्षण दिखाई देने के कुछ ही दिनों बाद पूरा गन्ना सूखता हुआ दिखाई देगा।

उपचारः-

प्रभावित गन्ने के झुण्ड (clump) को जड़ सहित प्लास्टिक के खाली बोरे में भरकर खेत से बाहर निकाल कर जला दें, जिस स्थान से प्रभावित झुण्ड (थान) को निकाले, प्रति स्थान पर 10 -15 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का गड्ढे में बुरकाव मिट्टी से ढक दे। उसके एक दिन बाद 1 मिली प्रति लीटर पानी के साथ टेण्डर /गोडिवा/ सुपर/अजोल 200 मिली/एकड का पर्णीय छिड़काव अवश्य करें।

इस स्प्रे के 48 घंटे बाद जैव शक्ति ट्राइकोडर्मा 4-5 किलो सड़ी गोबर की कम्पोस्ट खाद में अच्छी तरह मिला कर कम से कम 2-3 तक छायादार जगह पर तैयार करके गन्ने की लाइनों के साथ जड़ों के पास डाल दे। अथवा ट्राइकोडर्मा 2 ली को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड सायंकाल ड्रेंचिंग कराए।

ध्यान रहे यह ला-इलाज रोग है, इसे लगने के बाद इसका उपरोक्तानुसार उपचार ही बचाव है, अन्यथा पूरा का पूरा खेत सूख जायेगा और आपकी सारी लागत बेकार चली जाएगी।

आगे से जो भी गन्ने की बुवाई करें उसमें बीज उपचार एवं भूमि उपचार अवश्य करें एवं गन्ना प्रजाति का बदलाव अवश्य जरूर करना है जैसे- CO-0118, CO-15023, COI 16202 (COI14201- केवल शरदकालीन हेतू) की ही बुवाई करे, जिससे लाल सड़न रोग के प्रकोप का खतरे से बचा जा सके ।

प्रिय कृषक बंधुओं

✓आप अपनी गन्ने की फसल में रुटॉप बोरर (चोटी बोधक) की पहचान कर इसका निदान जरूर करें क्योंकि इसके प्रकोप से आप की उपज प्रभावित होती है, उपज प्रभावित होने से आर्थिक क्षति होना स्वाभाविक है इसलिए महंगाई के इस दौर में आपको अपनी आर्थिक क्षति को बचाना है!

✓ गन्ने में लगने वाले इसके पुरूष कीट सफेद रंग के होते हैं और मादा कीट के पीछे नारंगी रंग की रोयेदार बालों की संरचना लिए हुए होती है। इस कीट के लगने के बाद पत्तियां भूरी हो जाती हैं। इसके अलावा पत्तियों में छर्रे जैसे छेद पाए जाते हैं!

✓     टाप बोरर में कीट पत्तियों की गोभ में लगता है। फैलते हुए यह अगोले तक पहुंचता है और गन्ने की पोरियों की आंखों को क्षतिग्रस्त कर देता है। कुल मिलाकर गन्ने के उत्पादन व गुणवत्ता दोनों पर प्रभाव पड़ता है।

✓ नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से बचना चाहिए। स्वस्थ पौधों को नुकसान पहुंचाए बिना मृत पौधों को हटा दें और कोराजन 150 मिली. को /400 लीटर पानी में एक एकड़ की दर से उपयोग करे!!!

कोराजन को विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें महंगी होने के कारण डुप्लीकेसी की संभावना ज्यादा रहती है।

✓इसकी पहचान कर इसका निदान अवश्य करें..️

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।