स्वास्थ्य प्रदायक अनाज

                                स्वास्थ्य प्रदायक अनाज

                                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृषाणु

किसी उत्पाद के लिए किसी मानक या स्टैंडर्ड सुनने में कुछ अजीब सा लगता है, लेकिन अगले कुछ वर्षों में यह संभव हो सकेगा। सरकार ने इस बात की पूरी तैयारी कर ली है कि खेतों में उगने वाले कृषि उत्पाद पूरी तरह से हमारे मन के अनुसार ही पैदा किया जाए। इससे कि किसानों को उनके उत्पादों की कीमत भी अच्छी मिल सके और वह पोषण सुरक्षा को भी बढ़ावा दिया जा सके। ऐसे में खेतों की उपज के लिए मानक तैयार कर लिए गए हैं।

                                                       

खाने पीने की चीजों की क्वालिटी बनाए रखने के लिए फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित अच्छा एग्रीकल्चर प्रैक्टिस को भारतीय परिपेक्ष में अपनाने का फैसला किया है। इसके आधार पर भारतीय गुणवत्ता परिषद ने खाद नियामक को दो तरह के मानक बनाकर दिए हैं, जिनमें एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का है, जिनका फायदा खाद्य उत्पादन के निर्यात को मिलेगा तो दूसरा बेसिक मानक होता है जिनका इस्तेमाल घरेलू बाजार में किया जा सकेगा।

इसके तहत किसानों को अच्छी खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कुछ तौर तरीके भी बताए गए हैं। जिनसे वह प्रदूषण और रासायनिक तत्व रहित कृषि उत्पाद पैदा कर सकेंगे।

किसानों के लिए अच्छा एग्रीकल्चर प्रोडक्ट बनाने के मूल में यूं तो निर्यातक हैं, लेकिन जानकार मान रहे हैं कि इसका असली फायदा घरेलू बाजार में ही मिलेगा। दरअसल विदेश में खाद्य उत्पादों के लिए कड़े मानक लागू होने के चलते ज्यादातर भारतीय उत्पादों को वहां प्रवेश की इजाजत ही नहीं मिल पाती है। इसकी तह में जाने पर मालूम हुआ की दिक्कत खाद्य संस्करण में नहीं बल्कि खेत में ही मौजूद है, क्योंकि कृषि उत्पादों में प्रतिबंधित तत्वों की घुसपैठ यहीं से हो जाती है।

क्योंकि किसान भाइयों को जागरूक न होने के कारण कई ऐसी हर्बिसाइड और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल कर देते हैं, जो कि अनाज के लिए ठीक नहीं होता और उनकी गुणवत्ता काम हो जाती है तथा उनका निर्यात करने में भी परेशानी होती है। इसलिए किसानों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने की आवश्यकता है और उनको यह बताया जाना जरूरी है कि वह कम से कम रासायनिक खाद तथा पेस्टिसाइड आदि का प्रयोग करें, जिससे उनका अनाज गुणवत्तापूर्ण बना रहे।

                                                                   

कृषि उत्पादन में रासायनिक तत्वों की मिलावट को रोकने के लिए ही बढ़िया खेती के मानक बनाने का विचार आया और फूड क्वालिटी ने यह काम भारतीय गुणवत्ता परिषद को सौप दिया। यह मानक किसानों पर लागू होंगे और इनका पालन करने वाले किसानों को सरकार आइसो सर्टिफिकेशन की तरह मान्यता देगी। भारतीय गुणवत्ता परिषद की नेशनल एक्शन बोर्ड के निदेशक का मानना है कि किसानों पर सीधे मानक लागू करना भारत जैसे देश में बहुत मुश्किल काम है।

अतः इसको लोकप्रिय बनाने के लिए बड़ी रिटेल कंपनियों की मदद प्राप्त की जा रही है। यह रिटेल कंपनियां अपने यहां फल और सब्जी समेत कई कृषि उत्पादन भेजते हैं। चूँकी उनकी ब्रांड इमेज उनके यहां बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता से सीधे जुड़ती है, लिहाजा सरकार का मानना है कि यह लोग खुद उन किसानों से कृषि उत्पाद खरीदने पर जोर देंगे जो गैप के तहत सरकारी मान्यता हासिल कर लेंगे। दुनिया में इस तरह के मानक सबसे पहले यूरोप में लागू किए गए थे। अब करीब रिीब सभी देश गैप मानकों को अपना चुके हैं।

भारतीय गैप अंतर्राष्ट्रीय मानक पर आधारित होगा और उसके समकक्ष होगा। अब भारत में भी इस और ध्यान दिया जा रहा है और काफी जागरूक किसान पोषण युक्त खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में आगे आए हैं और वह सेहत के हिसाब से अपने खेतों में उत्पादन भी कर रहे हैं, जिससे मानव जीवन सुरक्षित रहे और उनकी सेहत भी अच्छी ही बनी रहे।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।