नाकाम हो रहे रैगिंग रोकने के सभी उपाय

                      नाकाम हो रहे रैगिंग रोकने के सभी उपाय

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में रैगिंग से एक छात्र की दर्दनाक मौत के जैसे विवरण सामने आ रहे हैं, वे रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। दुखद यह है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी के दिशानिर्देशों के बाद भी हर साल कई प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों में रैगिंग के नाम पर छात्रों का उत्पीड़न जारी है।

                                                                           

बीते महीने ही देश के कई विश्वविद्यालयों और कालेजों से रैगिंग की खबरें आई हैं। कुछ दिन पहले हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा मेडिकल कालेज में रैगिंग की घटना के बाद 12 छात्रों को दंडित किया गया था। यह वही मेडिकल कालेज है, जहां दो साल पहले रैगिंग के कारण एक छात्र ने आत्महत्या की थी। कुछ दिन शोर हुआ और उसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। हिमाचल में ही आइआइटी मंडी में जुलाई में रैगिंग की एक घटना में दस छात्रों को निलंबित किया गया था।

इसी तरह तेलंगाना के काकतीय मेडिकल कालेज में भी रैगिंग का मामला सामने आया, जिसमें तीन छात्रों को निलंबित किया गया। चंद दिनों पहले देहरादून के दून बिजनेस स्कूल में बीकॉम के छात्र के साथ रैगिंग हुई। इसी सप्ताह झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज में सीनियर छात्रों ने एक जूनियर छात्र को मुर्गा बनाकर प्रताड़ित किया। जब कुछ छात्रों ने इसका विरोध किया तो उन्हें बुरी तरह से पीटा गया। इस मामले में दो सीनियर छात्रों को छह माह के लिए निष्कासित किया गया। इसी कालेज में कुछ महीने पहले भी रैगिंग का एक मामला सामने आया था। ये घटनाएं यही बताती हैं कि रैगिंग का रोग खत्म होने का नाम नहीं ले रहा।

वर्ष 2021 में यूजीसी के पास रैगिंग की 511 शिकायतें दर्ज कराई गईं। यह हाल तब है, जब 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग रोकने के लिए सख्त निर्देश दिए थे। रैगिंग रोकने के लिए 2009 में बनी राघवन कमेटी ने भी दिशानिर्देश जारी किए थे, लेकिन शिक्षा संस्थानों में रैगिंग रूक ही नहीं रही है। कहना कठिन है कि दुनिया में कोई ऐसा देश है, जहां के शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के चलते छात्र आत्महत्या करने या फिर पढ़ाई को बीच में ही छोड़ने के लिए विवश नही होते हों। जादवपुर विश्वविद्यालय में हुई इस रैकिंग के मामले में यह भी सामने आया है कि कुछ पुरातन छात्र अवैध रूप से छात्रावास में ही रह रहे थे? आखिर डिग्रियों की होड़ में हमें छात्रों को अच्छा नागरिक और संवेदनशील मनुष्य बनाने पर भी ध्यान देना होगा।

रैगिंग रोकने के लिए समाज को भी आगे आना चाहिए

                                                                     

एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 13 वर्षों में इस विश्वविद्यालय में रैगिंग के 31 मामले दर्ज किए गए, लेकिन शायद ही किसी में गंभीरता से कार्रवाई की गई हो। यह दुखद है कि जिन शिक्षा संस्थानों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे बेहतर नागरिकों का निर्माण करेंगे, वहीं छात्रों को प्रताड़ित किया जाता है। अनेक शिक्षा संस्थानों में प्रवेश तमाम संघर्ष और अथक प्रयास के बाद मिलता है। इस संघर्ष की गाथाएं भी दुखद हैं। कोटा से छात्रों की आत्महत्या की खबरें लगातार आ रही हैं। स्पष्ट कि रैगिंग रोकने के साथ हमें उन कारणों की तह तक भी जाना होगा, जिनके चलते छात्र असफलता के डर से अपनी ही जान ले लेते हैं।

संस्थानों के साथ समाज भी जिम्मेदार है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को रैगिंग न करने की सीख दें और उन्हें इस क्रूरता के अंजाम का अहसास कराएं। डिग्रियों की होड़ में हमें छात्रों को एक अच्छा नागरिक और संवेदनशील मनुष्य बनाने पर भी ध्यान देना होगा। यह जिम्मेदारी केवल शिक्षा संस्थानों या सरकार की ही नहीं, समाज की भी है। अभी नई शिक्षा नीति पर अमल किया जा रहा है और नया पाठ्यक्रम भी बनाया जा रहा है। अच्छा हो कि नए पाठ्यक्रम में रैगिंग के पक्ष को भी यथासंभव शामिल किया जाए। इसी के साथ रैगिंग के मामलों में शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों को भी जवाबदेह बनाया जाए।

यह सामने आया कि पुराने छात्र अवैध रूप से पाते हैं, क्योंकि सभी पीड़ित छात्र शिकायत करने छात्रावास में रह रहे थे? आखिर किसने उन्हें रहने का साहस नहीं जुटा पाते। रैगिंग के लिए शिक्षा रैगिंग एक बड़ा अपराध है। रैगिंग सीनियर छात्र करते हैं, जिन्हें नए छात्र बड़े भाई की तरह सम्मान देते हैं। यह भी एक विडंबना है कि जो छात्र जूनियर छात्र के रूप में रैगिंग का शिकार हो चुके पुराने छात्र ही अधिकतर इस कृत्य को अंजाम देते हैं।

                                                                       

रैगिंग के गंभीर मामलों में दोषी पाए गए छात्रों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। जब किसी शिक्षा संस्थान के किसी छात्र को कोई कंपनी करोड़ों का पैकेज देती है तो वे उत्साह से सारी दुनिया को बताते हैं, लेकिन रैगिंग के मामलों को छिपाने की कोशिश करते हैं। रैगिंग के कई मामलों की जांच में लीपापोती कर दी जाती है। शायद लीपापोती करने वाले यह भूल जाते हैं कि कल को उनके परिवार के ही किसी बच्चे को रैगिंग का शिकार होना पड़ सकता है।

अपने देश में तमाम शिक्षा संस्थान नेताओं के हैं। उनका प्रबंधन या उनके परिवार के लोग संभालते हैं। वे अपने प्रभाव से रैगिंग के मामलों को छिपाने में सफल रहते हैं। अक्सर ऐसे शिक्षा संस्थानों में ऐसे बिगड़ैल बच्चे भी होते हैं, जो अपने पैसे के दम पर वहां दाखिला लेते हैं और फिर मनमानी करते हैं।

कुछ समय पहले संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह बताया गया था कि बीते पांच वर्षों में केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आइआइटी और आइआइएम में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के 19,000 छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। इसके कारणों का भी निवारण करने की जरूरत है।

मोदी सरकार ने कई मामलों में साहसिक फैसले लिए हैं। उसे राज्य सरकारों से मिलकर शिक्षा संस्थानों में रैगिंग जैसे अपराध को रोकने के लिए मिलकर कठोर कदम पढ़ाई छोड़ने छात्रों की मौत से विश्वविद्यालय में रैगिंग की घटना के मामले में रैगिंग करते हैं। रैगिंग के कुछ ही मामले सामने आ दुखद और कुछ नहीं हो सकता।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।