अजोला के द्वारा पादप उपचार

                                 अजोला के द्वारा पादप उपचार

                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं डॉ0 कृषाणु

‘‘ताजे पानी की प्रचुर उपलब्धता के चलते हमार ग्रह पृथ्वी, सौरमण्ड़ल के अन्य गृहों की तुलना में अद्वितीय स्थान रखता है। चूँकि पृथ्वी पर जल ही जीवन का आधार है और जल के बिना जीवन का अस्तित्व होना सम्भव ही नही है और चालू सदी में जल संकट सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है। विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगीकरण पर्यावरण क्षरण आदि जल प्रदूषण के मुख्य कारण है। विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों के खिलाफ कार्य करने के लिए कई प्रकार की प्रौद्योगिकियों का विकास किया गया है।

                                                                     

भारी धातुएं सबसे प्रमुख संदूषक के रूप में सामने आई हैं, जो कीटनाशकों या फिर पैट्रोलियम उप-उत्पादों जैसे अन्य प्रदूषकों की तुलना में लम्बे समय तक अपने प्रभाव छोड़ती रहती हैं। चूँकि भारी धातुएं पर्यावरण में उपलब्ध समस्त जैविक घटकों के लिए अत्याधिक विषाक्त होती हैं, अतः जल में भारी धाुलओं के होने से पर्यावरण, जलीय जीवन के साथ ही मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं। इसके लिए प्राकृतिक पारिस्थिमिकी तन्त्र सेेेवाओं को सुनिश्चित् करने के लिए जल की विषाक्तता का निवारण करना बहुत ही आवश्यक है’’।

    वैज्ञानिकों ने जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र में भार धातुओ के सम्मिलन को एक गम्भीर खतरे के रूप में स्वीकार किया है, और इसमें यह भी लगातार खतरा बना हुआ है कि यह हमारी खाद्य-श्रंखला में भी शामिल हो सकती हैं। भारी धातुओं में एक उच्च विशिष्ट गुरूत्व (जल की अपेक्षा पाँच गुना अधिक) होता है, जो जलीय जन्तुओं के शरीर में प्रवेश करने के बाद उसमे ऊतक स्तर पर भी जमा हो सकता है।

इन धातुओं में कैडमियम (Cd), लेड (Pb), पारा (Hg), क्रोमियम (Cr) और आर्सेनिक (Ar) आदि शामिल होती है और इन धातुओं का जीवों की शारीरिक गतिविधियों में कोई कार्य नही होता है, जबकि कुछ अन्य धातुएं जैस- कॉपर (Cu), कोबाल्ट (Cu), लोहा (Fe), मॉलिब्डेनम (Mo) मैगनीज (Mn), निकिल (Ni), और जस्ता (Jn) आदि को पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों के रूप में जाना जाता है।

                                                                        

प्रमुख औद्योगिक स्रोतों के अन्तर्गत विभिन्न उद्योगों के अपशिष्ट शामिल होते हैं जैसे- पेन्ट, रंगद्रव्य, बैटरी, सिरेमिक ग्लेज और वस्त्र उद्योग इत्यादि। वर्तमान की परिस्थितियों से पार पाने का एक कुशल समाधान पादप उपचार है, जिसके अन्तर्गत प्रदूषकों के उपचार पौधों के माध्यम से किया जाता है।

    इस प्रकार अपशिष्ट जल से धातुओं को पृथक करने के लिए रसायनों के माध्यम से किए जाने वाले पारम्परिक तरीकों के उपयोग करने की बहुत आलोचानाएं की जा रही हैं, क्योंकि यह रसायन विषाक्त प्रकृति के माध्यमिक यौगिकों का उत्पादन कर उनकी वृद्वि कर सकते हैं।

पादप उपचार की उपलब्ध विभिन्न प्रकार की तकनीकें

    पर्यावरणीय विषाक्तता को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा विभिन्न पादप उचार की प्रक्रियाओं का विकास किया गया है-

  • राइजो निस्पंदन: राइजो निस्पंदन प्रक्रिया के तहत अति संचयी पौधें पयर्रवरण से प्रदूषकों को सोख लेते हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो यह उन्हें अवशाषित कर लेते हैं।
  • पादप निष्कर्षण: पादप निष्कर्षण एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसके अन्तर्गत पौधें जल में उपस्थित भारी धातुओं को ग्रहण करते हैं और उन्हें अपने शरीर में जमा कर लेते हैं। यह प्रक्रिया धातुओं का संचय करने वाले पौधो का उपयोग करके प्राप्त की जाती है, ऐसे पौधें भारी धातुओं के लिए भारी प्रतिरोधक का कार्य करते हैं।
  • पादप परिवर्तन: इस प्रक्रिया के अन्तर्गत पौधे अपनी चयापचय क्रिया के माध्यम से प्रदूषकों को संशोधित, निष्क्रिय कर उन्हें स्थिर करने में सहायता करते हैं।
  • पादप अस्थिरता: पादप अस्थिरता एक वाष्पीकरण की प्रक्रिया होती है, जिसके अन्तर्गत पौधें प्रदूषकों को हवाई भागों में स्थानांतरित कर देते हैं और वायु में उनका वाष्पीकरण कर देते हैं।
  • पादप स्थिरीकरण प्रक्रिया:  यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे अन्तर्गत पौधे भारी धातुओं के जैसे प्रदूषकों को स्थिर कर देते हैं और पर्यावरण में उनकी उपलब्धता को कम कर देते हैं।

पादप उपचार

                                                                        

    प्रदूषकों को पर्यावरण से दूर करने की इस विधि के अन्तर्गत पौधों की विभिन्न प्रजातियों का उपयोग किया जाता है। प्रदूषित जल के उपचार के दूसरे रासायनिक एवं भौतिक विधियों की अपेक्षा यह विधि आर्थिक एवं पर्यावरण के अनुकूल सिद्व होती है। अत्याधिक पोषक जल में पौधों की वृद्वि और इन पोषक तत्वों का उपयोग शीघ्रता के साथ कर पाने की क्षमता इन्हें अपशिष्ट जल का उपचार करने के लिए आवश्यक रूप से आकर्षक बनाती है। चूँकि अनकी विकास दर भी उच्च स्तर की होती है औश्र यह अपने द्रव्यमान को 3 से 4 दिनों के अन्दर दोगुना करने में सक्षम होते हैं।

    जलीय वातावरण में जैव अवशोषण के अन्तर्गत उपयोग की जाने वाली अन्य जैव दसामग्रियों में अजोला प्रजाति जैसे जलीय फर्न भी अपनी तेजी के साथ वृद्वि करने की प्रकृति के चलते अपेक्षाकृत कम अवधि में प्रचुर मात्रा में बायोमास का उत्पादन करने में समर्थ होती है। अजोला, एक जलीय फर्न है जो कि जल की सतह पर तैरता रहता है, जो शैवाल की सामान्य वृद्वि और उसके विकास के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान करने में सक्षम है।

अजोला की अनुपस्थिति में ग्रीन-बल्यू षैवाल मात्र 2 से 3 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर तक नाईट्रोजन को स्थिर करने की क्षमता रखते हैं। जबकि यह एक सहजीवी सम्बन्धस होने के कारण 200 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर नाइट्रोजन को स्थिर करने में सक्षम होते हैं। वहीं बाढ़ की स्थ्ज्ञिति में जलीय फर्न इनोकुलम जल के पी.एच. को 2 यूनिट तक कम करने के साथ ही यूरिया की इदक्षता में भी सुधार करने में सक्षम होते हैं।

    इस प्रकार से अजोला टीकाकरण वायुमण्ड़लीय नाईट्रोजन और मृदा के पोषक तत्वों को पृथक कर तराई क्षेत्र में चावल के उत्पादन को प्रभावित करने में सक्षम सिद्व होते हैं। बाढ़ युक्त मृदा में कृषि की उत्पादकता में वृद्वि करने के साथ-साथ जलीय पर्यावरण से भारी धातुओं की सफाई में अजोला एक जैविक एजेन्ट के रूप में प्रभावी कार्य करता है।

    जब अजोला को भारी धातुओं से विषाक्त जल में उगाया जाता है तो यह सूखे बायोमास के 1.8 प्रतिशत तक लेड ;च्इद्ध को जमा करने में समर्थ होता है। अजोला प्रजाति माध्यम में उपलब्ध धातू की मात्रा का 500-1000 गुणा अधिक धातुओं को जमा करने में सक्षम होता है। अजोला में क्रोमियम (Cr), लेड (Pb) और कैडमियम (Cd), का संचयन करने की उच्च क्षमता उपलब्ग्ध होती है।

अजोला की जैव-अवशोषण क्षमर्ता N>Cu>Pe>Cr>Cd के क्रम में पाई गई थी, जो अपशिष्ट जल से धातु के तत्वों के एक महत्वपूर्ण हिस्से (लगभग 65 से 95 प्रतिशत) तक को हटाने में समर्थ है। फाइटोचेलेटिन का संलेषण एक तन्त्र है, जो कि प्रेरित करता है। पौधों में भारी धातुओं के प्रति सहनशीलता (धातु-फियो चेलेटिन परिसरों का निर्माण) जीवित पौधों की सहनशीलता के अन्तर्गत शामिल हो सकता है।

    जलीय माध्यम से भारी धातुओं और अन्य दूषित सामग्रियों का अवशोषण करने में अजोला की प्रजातियाँ बहुत कुशल हैं। सीवेज अपशिष्ट, घरेलू अपशिष्ट, डेयार अपशिष्ट तथा उद्योगों से प्राप्त अपशिष्ट जल में अजोला इनोकुलम जल के पुनः उपयोग के लिए उसकी गुणवत्ता में सुधार करने में सक्षम होंते हैं।

  

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।