पोटाश का कब और कैसे करें प्रयोग

                          पोटाश का कब और कैसे करें प्रयोग

                                                                                                                                                            डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

                                                                      

यदि फसल में एक बार किसी तत्व की कमी के लक्षण दिखाई दें तो आप समझ लीजिए कि इस तत्व की कमी से फसल को जो नुकसान होना था वह हो चुका है और फिर से उसकी पूर्ति कर पाना संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में उस तत्व की कमी के लक्षण दिखाई देने के बाद प्रयोग करने से पूरा लाभ नहीं हो पाता है। पौधों में पोटाश की कमी के लक्षण नहीं दिखाई दें लेकिन पोटाश के प्रयोग के कारण स्वस्थ पौधे अपेक्षाकृत बहुत अधिक उपज दिखें तो यह मानना होगा की फसल में पोटाश के लिए भूख है। जिसे हम छिपी हुई भूख भी कह सकते हैं।

इसलिए फसल में किसी पोषक तत्व की कमजोरी दिखाने पर यदि आप प्रतीक्षा करेंगे तो समझ लीजिए कि अब काफी विलंब हो चुका है और आप फसल से पूरी उपज प्राप्त नहीं कर सकेंगे। इसलिए आप जो भी वैज्ञानिकों के द्वारा पोटाश की रिकमेंड मात्रा विभिन्न फसलों के लिए बताई गई है, उसका प्रयोग अवश्य करें। इससे आपकी फसल की बढ़वाऱ ठीक होगी और उसकी उत्पादकता भी अच्छी प्राप्त की जा सकेगी।

मृदा में पोटाश की पर्याप्त मात्रा नहीं है

वर्षों पहले के परीक्षणों में भारत की भूमि में पोटाश की मात्र पूरी होने के संकेत मिले थे, किंतु बाद में अधिक उपज देने वाले बीजों के प्रयोग और सघन कृषि अपनाने से भूमि में पोटाश की कमी हो गई और पोटाश की पूर्ति उस अनुपात में नहीं हो पाई है। इसलिए अब भारतवर्ष की मिट्टी में पोटाश का अभाव प्रकट होने लगा है। मिट्टी के नैनो की जांच के आधार पर अब यह पाया जा रहा है कि भारत की अधिकांश मिट्टी में पोटाश का स्तर कम या मध्यम ही है। जहां पोटाश युक्त उर्वरकों का समान रूप में उपयोग करना आवश्यक हो गया है। मिट्टी का परीक्षण किए जाने पर खेत की मिट्टी में पोटाश उच्च माना गया।

किंतु आश्चर्य की बात है कि पोटाश के प्रयोग से अच्छी उपज मिली, इसका कारण है की भूमि में नमी और जीवाश्म की कमी प्रतिकूल वातावरण और भूमि व्याप्त पोटाश की उपलब्धता घाट देती है। ऐसे में उर्वरक के रूप में पोटाश देना लाभप्रद रहता है। उच्च पोटाश वाली भूमियों में भी फसल को अनुरक्षण खुराक के रूप में कुछ मात्रा में पोटाश अवश्य देना चाहिए। यह फसल की गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक होगा।

पोटाश की आवश्यक मात्रा एक बार में ही ना डालें

                                                                  

पौधों को पोटाश की आवश्यकता उनके पूरे जीवन काल में होती है। पौधों की सक्रिय बढ़वार के समय पौधों को सबसे अधिक पोटाश की आवश्यकता होती है। अतः एक ही बार में पूरी पोटाश देने से कुछ मात्रा पौधों की जड़ों के नीचे दूर तक घुलकर चले जाने अथवा एक जगह पर फिक्सेशन हो जाने कारण पौधों को नहीं पर्याप्त रूप में मिल पाती है।

प्रायः देखा गया है कि किसान भाइयों द्वारा वैज्ञानिकों के द्वारा विभिन्न फसलों में पोटाश की जो रिकमेंडेशन दी जाती है उसके अनुसार एक ही बार में पोटाश की पूरी मात्रा खेत में या प्रति पौधा डाल दी जाती है। जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए बल्कि वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई पोटाश की मात्रा को थोड़ा-थोड़ा करके फसलों/पौधे के पूरे जीवन काल में दी जानी चाहिए।

पोटाश का प्रयोग एक बार ना करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में समय-समय पर दें। ऐसी भूमि में जहां पोटाश के ह्यस की संभावना कम हो, वहां तो बुवाई अथवा रोपाई के समय पोटाश देना पर्याप्त हो सकता है। जिन भूमियों में पोटाश की कमी है तथा भूमि पोटाश तत्व का अधिक ह्यस होता है तो वहां फसल को बुवाई के समय तथा सक्रिय बढ़वार की अवस्था पर दो-तीन बार में पोटाश दिया जाना चाहिए।

फसलों में पोटाश के प्रयोग का उपयुक्त समय क्या है

पौधों में पोटाश तत्व का स्थानांतरण पुरानी पत्तियों से नई पत्तियां की ओर होता है। पौधों को आरंभिक अवस्था में ही पर्याप्त पोटाश मिल जाना चाहिए, जिससे कि पत्तियों में आवश्यक मात्रा में पोटाश संग्रहित रह सके। लंबी अवधि व अधिक पोटाश शोषण करने वाली फसलों में पोटाश का प्रयोग बुवाई के बाद खड़ी फसलों में, सक्रिय बढवार एवं बाली निकलने से पहले भी किया जा सकता है।

पोटाश का प्रयोग खड़ी फसल में कब और कैसे करें

                                                                     

पौधे प्रारंभिक अवस्था में पोटाश की कुल आवश्यकता का थोड़ा सा भाग ही ग्रहण कर पाते हैं। इसके बाद पौधों की पोटाश के लिए दैनिक आवश्यकता बहुत तेजी से बढ़ती है और पौधों को पोटाश की दैनिक आवश्यकता फूल आने के समय सबसे अधिक होती है। यदि इस समय पौधों को पोटाश उपलब्ध नहीं हुआ तो फसल की उपज और गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

अतः इस समय खड़ी फसल में पोटाश का उपयोग करना लाभकारी रहता है। कहा जाता है कि पोटाश का प्रयोग नाइट्रोजन के सार्थक उपयोग में सहायक होता है। अधिक उपज वाली फसल में नाइट्रोजन की जरूरत भी अधिक होती है। नाइट्रोजन के उपयोग से पौधों की वानस्पतिक बढ़वार के साथ पत्तियां मुलायम भी हो जाती हैं।

इसके परिणाम स्वरुप पौधों में कीड़े, व्याधियों सूखा, गर्मी और सर्दी का प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है। पोटाश के उपयोग से इन समस्यों के विपरीत परिस्थितियों को सहने की शक्ति बढ़ जाती है। इस तरह पोटाश का उपयोग नाइट्रोजन के सार्थक उपयोग में भी सहायक होता है और नाइट्रोजन और अन्य सभी तत्वों के प्रभावी उपयोग में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

फसलों को कीड़ों के आक्रमण से बचाने में भी पोटाश अत्यंत लाभकारी

                                                                     

पौधों के अंदर पोटाश की उपस्थित विभिन्न तत्वों का संतुलन बनाकर खासकर नाइट्रोजन की अधिकता से उत्पन्न को प्रभाव का अवरोध बनाकर पौधों के समान विकास में सहायक होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से वृद्धि होने से पौधों की मजबूती बढ़ती है और वह स्वस्थ बने रहते हैं। पोटाश फसल को सूखा, गर्मी-सर्दी आदि से बचाने में भी मदद करती है। पौधों की पत्तियों के छिद्रों को खोलने और बंद करने में भी पोटाश का बहुत बड़ा हाथ होता है।

इस प्रक्रिया से पौधों में वाष्पोत्सर्जन अर्थात ट्रांसपोर्टेशन नियंत्रित होता है और जिन पौधों में पोटाश की कमी रहती है उनमें वाष्पोत्सर्जन भी बहुत कम होता है। जिससे सूखा और गर्मी के कारण पौधे मुरझा जाते हैं। पौधों के जीवाश्म गाढ़़ापन होने से उनकी नलिकाओं में पानी रोकने की सामर्थ बढ़ती है। जिन पौधों में पर्याप्त पोटाश होता है उन पर गर्मी सर्दी का असर बहुत कम पड़ता है और साथ ही उनकी जड़ें अधिक दूर तक फैल कर गहराई से पानी को सोख लेती है।

फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ाने में पोटाश है महत्वपूर्ण

                                                                     

पोटाश फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने वाला एक आवश्यक तत्व है। अधिकांशतः यही देखा गया है की फसल उत्पादन के रंग, सुगंध, मिठास, मजबूत तंतु और सामान्य वजन बनाए रखने में पोटाश महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। गन्ना और चुकंदर से अधिक मिठास, आलू में मादी का, बहुमूल्य तंबाकू के कोमल पत्ते और ज्वलनशीलता कपास के लंबे और एक समान रेशे इत्यादि विभिन्न पैदावारों की श्रेष्ठता के कुछ उदाहरण है।

इसके अलावा फलों एवं सब्जियों की गुणवत्ता और उत्पादकता को बढ़ाने में भी पोटाश महत्वपूर्ण योगदान देता है।

इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी किसान भाई अपनी मृदा की जांच अवश्य कराएं और उसके उपरांत पोटाश की भरपूर मात्रा का अपनी फसलों में प्रयोग करें। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि एक ही बार में पूरी पोटाश की मात्रा खेत में ना डाली जाए। इसकी थोड़ी-थोड़ी मात्रा करके पूरे फसल चक्र के दौरान दी जाए तो इसके बहुत ही अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।