ढैंचा खेती से बढ़ाएं अपनें खेतों में पोषक तत्व

                     ढैंचा खेती से बढ़ाएं अपनें खेतों में पोषक तत्व

                                                                                                                                                                           डॉ0 आर. एस. सेंगर

ढैंचा एक कम अवधि वाली ( 45 दिन) की हरी खाद की एक फसल है। गर्मियों के दिनों में 5-6 सिंचाई करके ऊँचा की फसल को तैयार कर लेते हैं तथा इसके बाद धान की फसल की रोपाई की जा सकती है। ढैंचा की फसल से प्रति हेक्टेयर भूमि में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन एकत्र हो जाती है। जुलाई या अगस्त में ढैंचा की फसल की बुआई कर, 45-50 दिन बाद खेत में दबाकर, हरी खाद का काम इस फसल से ले सकते हैं। इसके बाद गेहूं या अन्य रबी की फसल को उगा सकते हैं।

ढैंचा की फसल को शुष्क व नम जलवायु व सभी प्रकार की भूमियों में उगा सकते हैं। जलमग्न वाली भूमियों में ही यह 1.5-1.8 मी. ऊंचाई तक बढ़वार कर लेता है। यह एक सप्ताह तक 60 सेंटीमीटर पानी में खड़ा रह सकता है।

                                                                         

भूमि का पी. एच. मान 9.5 होने पर भी इसे उगा सकते हैं। अतः लवणीय व क्षारीय भूमियों के सुधार के लिए यह एक सर्वाेत्तम फसल है। भूमि का पी. एच. मान 10-5 तक होने पर लीचिंग अपनाकर या जिप्सम का प्रयोग करके इस फसल को उगा सकते हैं। इस फसल से 45 दिन की अवधि में लवणीय भूमियों में 200-250 क्विंटल जैविक पदार्थ भूमि में मिलाया जा सकता है। इसकी खेती से मिट्टी के पोषक तत्वों में तो वृद्धि होती ही है कार्बनिक पदार्थों के साथ जीवाश्म की मात्रा भी बढ़ जाती है।

एक दशक पूर्व तक यहां के किसान खेतों में पोषक तत्वों को बढ़ावा देने के लिए सनई व ढैंचा की खेती किया करते थे। इससे उन्हें हरी खाद तो मिलती ही थी। सनई से रस्सी भी बनाने का लाभ मिलता था। लेकिन हाल के वर्षों में किसानों ने खेतों में रासायनिक खादों की मात्रा बढ़ा दी है, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरा शक्ति दिन ब दिन कम होती जा रही है।

                                                                   

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ढैंचा की खेती के लिए मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह में इसकी बोआई कर देनी चाहिए। प्रति एकड़ हरी खाद के लिए 10 किलो बीज होना चाहिए। जुलाई के प्रथम सप्ताह तक 2 से ढाई फीट के पौधे हो जाते हैं। इसे हल द्वारा पलटाई करके दूसरे तीसरे दिन धान की रोपाई आसानी से की जा सकती है। इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ के साथ जीवाश्म की मात्रा बढ़ जाती है। जो मिट्टी में नमी कायम रखने के साथ पानी की आवश्यकता को भी कम कर देता है।

ढैंचे की हरी खाद प्रायः सभी प्रकार के मिट्टी के लिए आवश्यक है। मिट्टी में हरी खाद डालने से किसानों को रासायनिक खाद डालने की जरूरत नहीं महसूस होती।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।