खरीफ के मौसम के प्रमुख कीट एवं उनसे बचाव

                 खरीफ के मौसम के प्रमुख कीट एवं उनसे बचाव

                                                                                                               डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं गरिमा शर्मा, शोध छात्रा

खरीफ मौसम में बहुत से छोटे-बड़े कीट हमारी फसलों को हानि पहुंचाते हैं। जिनमें मुख्य कीट एवं उनका प्रबंधन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

दीमकः यह कीट एक सर्वभक्षी कीट है। यह कीट खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली लगभग सभी फसलों जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया, अरहर, गन्ना, मूंगफली, मिर्च और बैंगन आदि को भारी क्षति पहुंचाता है। दीमक पौधों की जड़ों तथा भूमि से सटे हुए तने के भाग को खोखला कर देती है। दीमक के प्रकोप से फसलों को बचाने के लिये निम्नानुसार प्रबंध किया जाना चाहिये, जो इस प्रकार है-

                                                             

  • फसल के कटने के बाद खेत की दो या तीन बार गहरी जुताई करें, साथ ही गर्मी में खेत की जुताई आवश्यक रूप से करें।
  • प्रभावित खेत में समय-समय पर सिंचाई करते रहें। खेत में हमेशा अच्छी प्रकार से सड़ी हुई गोबर की खाद का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • बीज को बुवाई से पूर्व इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू, एस.0.1 प्रतिशत से या क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 4 मिली प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके बुवाई करें।
  • खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी की 3 से 4 लीटर मात्रा, बालू रेत में मिलाकर प्रतिहेक्टेयर प्रयोग करें।
  • एक किलोग्राम विवेरिया तथा एक किलोग्राम मेटाराइजियम को लगभग 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद में अच्छी तरह मिलाकर छाया में 10 दिन के लिए रख देनी चाहिए, इसके बाद इस मात्रा को प्रति एकड़ की दर से दीमक से प्रभावित क्षेत्र में बुवाई करने से पूर्व इसका प्रयोग करना चाहिए।

सफेद लटः खरीफ की अधिकांशतः फसलों मूंगफली, ज्वार, बाजरा, गन्ना, भिंडी, बैंगन आदि में यह कीट भारी क्षति पहुंचाता है। इस कीट की प्रौढ अवस्था व लट अवस्था दोनों की नुकसान पहुंचाती है। फसलों में साधारणतया लट (ग्रब) एवं पेड़-पौधों में प्रौढ़ कीट (बीटल) द्वारा नुकसान होता है। इसकी रोकथाम निम्नानुसार की जानी चाहिये-

                                                             

इस कीट के भृंग मानसून की प्रथम वर्षा पर पश्चात सूर्यास्त के पश्चात प्रतिदिन भूमि से बाहर निकलते हैं तथा आसपास के पौषी वृक्षों जैसे बेर, खेजड़ी, नीम, गुलर, सेंजना आदि पर बैठते है तथा इनकी पत्तियां खाते है। सफेद लट से फसलों को बचाने के लिये भृंग नियंत्रण सबसे कारगर उपाय है। इसके लिये चुने गये वृक्षों पर कीटनाशी दवाओं का छिड़काव किया जाता है। 15 मीटर अर्द्धव्यास क्षेत्र में केवल एक ही परपोशी वृक्ष का चयन कर उसी पर कीटनाशी इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1.5 मिली प्रति लीटर अथवा क्विनालफॉस 25 ईसी 2 मिली प्रति लीटर या कार्बाेरिल 50 डब्ल्यू पी 4 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें।

इसके अतिरिक्त चयनित वृक्ष पर 3 4 फेरोमोन स्पन्ज प्रति दिन शाम को भृंग निकलने के समय ही तैयार कर वृक्षों पर लटकाये। फेरोमोन विधि द्वारा भृंग नियंत्रण सबसे सस्ता एवं कम प्रदूषण फैलाने वाला उपचार है।

बुवाई या रोपाई से पूर्व दानेदार दवा द्वारा भूमि उपचार किया जाना चाहिये। इसके लिये 1 हेक्टेयर में 25 किग्रा फोरेट 10 प्रतिशत या क्विनालफॉस 5 प्रतिशत या कार्बाेफ्यूरान 3 प्रतिशत में से कोई एक दवा को बुवाई से पूर्व हल द्वारा कतारों में ऊर कर दें तथा इन्हीं कतारों पर बुवाई करें।

फड़काः फड़का खरीफ की लगभग सभी फसलों को अत्यंत भारी क्षति पहुंचाता है। यह सर्वभक्षी कीट है। इसकी शिशु (निम्न) एवं प्रौढ़ (वयस्क) दोनों अवस्था पौधों को हानि पहुंचाता है।

                                                         

  • प्रकाश प्रपंच का उपयोग करें।
  • ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें।
  • मक्का के खेत के चारों ओर दो-तीन कतार ज्वार के बोने से इसका प्रकोप ज्वार पर ही ज्यादा रहता है। ज्वार को ट्रेप के रूप में काम में लिया जाना चाहिए।

खेत की समस्त पालियों एवं धोरों पर मिथाइल पेराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण का भुरकाव 25 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना चाहिये। इसके अतिरिक्त क्लोरोपायरीफॉस 1.25 ली या प्रोफेनोफोस 1.25 ली. या डायक्लोरोवॉस 1 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

मक्का तना भेदकः छोटे लावां मक्का, बाजरा, ज्वार, गन्ना आदि की पत्तियों को खुरच कर खाते हैं और फिर तने में सुराख करके प्रवेश कर जाते हैं। छोटे पौधों का बढ़ने वाला सिरा मर जाता है नियंत्रण हेतु पौधे के कीटग्रस्त भाग को जलाकर नष्ट कर दें। फसल बुवाई के 15 से 30 दिन के भीतर फोरेट 10 जी या कार्बाेफ्यूरान 3 जी 7-8 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों के पोरों में डालें अथवा कार्बाेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें।

                                                          

कातराः खरीफ की फसलों में खासतौर से दलहनी फसलों में कातरे का प्रकोप अधिक होता रहा है। इस कीट की लट अवस्था ही फसलों को नुकसान पहुंचाती है। इसका नियंत्रण निम्न प्रकार से किया जाना चाहिए।

मानसून की वर्षा शुरू होते ही इसके पतंगों का जमीन से निकलना शुरू हो जाता है।

  • पतंगों को प्रकाश की ओर आकर्षित कर खेतों की मेड़ों, चारागाहों व खेत में गैस लालटेन या बिजली का बल्ब (जहाँ बिजली की सुविधा उपलब्ध हो) जलायें तथा इसके नीचे मिट्टी के तेल में मिले पानी की परात रखें जिससे कि रोशनी की ओर आकर्षित होकर इसके पतंगे पानी में गिर कर नष्ट हो जाएं।
  • खेत के आसपास जगह-जगह पर घास कचरा एकत्रित कर जला देना चाहिये, जिससे पतंगे रोशनी की ओर आकर्षित होकर तथा जल कर नष्ट हो जाए।

कातरे की छोटी अवस्था खेतों के पास उगे जंगली पौधों एवं जहां फसल उगी हुई हो, वहां पर कातरा वयस्क के अंडों से निकलने वाी लटें व इसकी प्रथम व द्वितीय अवस्था में क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत दवा का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें। बंजर जमीन या चारागाह में उगे जंगली पौधों से खेतों की फसलों पर कातरे की लट का आगमन रोकने के लिए खेत के चारों तरफ खाइयां खोदकर इनमें मिथाईल पेराथियॉन 2 प्रतिशत चूर्ण भुरक देना चाहिए, जिससे कि खाई में आने वाली लटें नष्ट हो जाए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।