पादप सूत्रकृमि नियंत्रण जैविक विधि से
पादप सूत्रकृमि नियंत्रण जैविक विधि से
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा, शोध छात्रा
सूत्रकृमि (निमैटोड) एक अनोखा सूक्ष्मजीवी है जो संसार के प्रत्येक भाग में पाया जाता है। परन्तु पादप परजीवी सूत्रकृमि मुख्य रूप से मिट्टी में पाया जाता है जिसे हम सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देख सकते है। पादप सूत्रकृमियों की विभिन्न प्रजातियाँ हमारे आर्थिक व्यवस्था को परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से प्रभावित करती है, जिनके दुष्प्रभाव् से प्रायः 10-12 प्रतिशत फसलें प्रतिवर्ष नष्ट हो जाती है।
कुछ ऐसे भी पादप परजीवी सूत्रकृमि होते हैं जो पीथों को कलिकाओं, तनों, पत्तियों पर परजीवी होते हैं एवं अपना भोजन इन्हीं भागों से प्राप्त करते हैं परन्तु अधिकतर पादप परजीवी सूत्रकृमि अपना भोजन पौधों की जड़ों से प्राप्त करते हैं। पादप परजीवी सूत्रकृमियों से प्रभावित पौधों पर तरह-तरह के लवण पाये जाते हैं जैसे जड़ों में गाँठें बनना, जड़ों पर लाल-भूरे रंग की धारियों का बनना, जड़ों का सड़ जाना, पौधों का पीला पड़ना, पत्तियाँ छोटी एवं पौधे बोने होना आदि मुख्य है। इस तरह इन हानिकारक पादप परजीवी मूत्रकृमियों का नियंत्रण अति आवश्यक हो जाता है।
पादप परजीवी सूत्रकृमियों के नियंत्रण के लिए विधियों का प्रयोग किया जाता है परन्तु पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए जैविक नियंत्रण की खोज हुई। यह एक ऐसी विधि है जिसे अपनाकर सूत्रकृमियों के आक्रमण एवं संख्या को कम किया जा सकता है एवं उपज संतोषजनक स्तर तक बढ़ायी जा सकती है। आजकल प्रयोग में लाये जाने वाले मुख्य जैविक नियंत्रण निम्न हैः-
कवकीय जैविक नियंत्रण
विश्व के प्रत्येक भाग में बहुत सारे कवक एवं जीवाणु मिट्टी में पाये जाते हैं तथा इनको कई विधियों से तरह-तरह के पादप सूत्रकृमियों को अवस्थापना से अलग किया जा चुका है। यह कई प्रकार के होते है-
यह एक बहुत महत्वपूर्ण कवक है जो सभी स्थानों पर पाया जाता है। इस को आसानी से पहचाना एवं अलग किया जा सकता है। इस कवक के द्वारा जब पादप सूत्रकृमि संक्रमित होता है तब पादप सूत्रकृमि का पूरा शरीर कवक हाइफीा कोनिडियोस्पोर से भर जाता है एवं ये मे तरह-तरह की रचनायें सूत्रकृमियों से निकलते हुए दिखाई देते हैं। ये अपना जीवनचक्र मुख्य रूप सूत्रकृमि के शरीर में ही पूरा करते हैं। इनके मुख्य उदाहरण हैं- कैटीनेरिया ऐनगुलूली, ड्रेस्चमीरिया कोनियोस्पोरा, निमैटोटाक्टस लियोस्पोरस, हिरसूटेला रोसाईलेन्सिस आदि।
सूत्रकृमि ट्रेपिंग कवक
यह तरह-तरह की आकृति बनाकर सूत्रकृमियों को ग्रसित करता है एवं बाद में कुछ विषैला पदार्थ इनके द्वारा स्रावित किया जाता है जिसके प्रभाव से सूत्रकृमियों की मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार ये कवक सूत्रकृमियों को मिट्टी में पकड़कर उनकी संख्या को कम कर देते हैं। जैसे आथ्रोबोट्राइटिस प्रजाति।
अण्डा एवं गादा परजीवी कवक
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कवक है जो पादप सूत्रकृमियों को समाप्त कर देते हैं। यह मुख्यरूप से जड़गाँठ एवं सिस्ट प्रकार के पादप सूत्रकृमि को अपना निशाना बनाते है। जैसे वर्टीसीलियम क्लामाइडोस्पोरियम, निमैटोरथोरा गाइनोफिला पेसीलोमाइसीज लिलासिनस आदि।
कुछ ऐसे भी कवक होते हैं जो पौधों की उपज बढ़ाते हैं एवं पादप सूत्रकृमियों की संख्या को एक निश्चित स्तर के नीचे गिरा देते हैं। जैसे ट्राईकोडर्मा हरजियानम।
पादप सूत्रकृमियों का जीवाणु नियंत्रण
जीवाणु प्रत्येक स्थान पर पाये जाने वाले सूक्ष्म जीव हैं जिनका अध्ययन मात्र सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ही संभव है। कुछ जीवाणु पादप सूत्रकृमियों पर परजीवी होते हैं औ वे अपना पूर्ण जीवनचक्र इन्हीं सूत्रकृमियों पर पूरा करते हैं। इस प्रकार से जीवाणु पादप सूत्रकृमियों की संख्या को समाप्त कर देते हैं जिसक फलस्वरूप पौधों की उपज बढ़ जाती है। जैसे पास्चुरिया पेनीट्रांस।
पादप वृद्धि मूल जीवाणु
यह एक महत्त्वपूर्ण जीवाणुओं का समूह है जिसका वर्तमान कृषि में महत्वपूर्ण योगदान है। इस प्रकार के जीवाणु एक तरफ पौधों की उपज बढ़ाने में अपना सक्रिय योगदान प्रदान करते हैं तथा दूसरी तरफ पादप सूत्रकृमियों को एक निश्चित संख्या के नीचे रखते हैं। इस प्रकार के जीवाणुओं के कई प्रकार के उत्पाद बाजार में उपलब्ध है। जिनका प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता हैं। विभिन्न प्रकार के ये जीवाणु मिट्टी में नत्रजन की मात्रा को संचित करते हैं तथा मिट्टी में अघुलनशील फॉस्फेट को पुलनशील फॉस्फेट में परिवर्तित करते हैं एवं पौधों की बढ़वार में मदद करते हैं। जैसे फ्लोरिसेन्स, बैसीलस सबर्टिलिस आदि।
समन्वित पादप परजीवी सूत्रकृमि प्रबंधन
यह एक ऐसा तन्त्र है जिसमें बहुत सारी विधियों को एक साथ समन्वित करके पादप सूत्रकृमियों का नियंत्रण करते हैं। इस विधि में पर्यावरण दूषित न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। इस विधि का मुख्य उद्देश्य पादप परजीवी सूत्रकृमियों की संख्या को हानिकारक स्तर से नीचे रखना एवं फसल उपज को बढ़ाना है। इस तरह की विधि में मुख्यतया जैविक नियंत्रक प्रतिरोधी पौधों का भरपूर समावेश होता है। इस विधि को प्रयोग में लाने के लिए व्यक्ति को प्रत्येक नियंत्रण विधि की जानकारी होनी आवश्यक है।
भारत का प्रमुख व्यवसाय कृषि है एवं जैविक नियंत्रण पर्यावरण की दृष्टि से अति उत्तम होते हैं तथा कम खर्च में इनको प्रयोग में लाया जा सकता है। रासायनिक सूत्रकृमिनाशक विपरीत प्रभाव से पूरी दुनिया अब जाग चुकी है एवं भविष्य में पर्यावर्णीय हितकारी विधियों का प्रयोग करके पादप सूत्रकृमियों से होने वाले विनाश से बचा जा सकता है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।