प्रदूषण मुक्ति से ही बचेगा जीवन

                           प्रदूषण मुक्ति से ही बचेगा जीवन

                                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी

‘‘वायु प्रदूषण वर्तमान में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा बन चुका है। केवल यही नहीं दिन प्रति दिन न्यूरोकाग्निटिव विकृतियां बढ़ने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। इस स्थिति को देखते हुए ही हमारे नीति निर्माताओं के द्वारा इस मामले पर व्यापक स्तर पर विचार करना बेहद जरूरी है।’’

आज के समय में प्रदूषण के मामले में हमारा देश नित्य नयं कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। हालांकि यह बात अलग है कि प्रदूषण के चलते लोग जन स्लेवा बीमारियों के चंगुल में आकर अनचाहे मौत के मुंह में जा रहे हैं और उनकी संख्या भी दिन प्रति दिन तेजी से बढ़ती जा रही हो, लेकिन वर्तमान हालात इसका जीता जागता सबूत हैं कि सरकार के लाख दावे करने के बावजूद भी प्रदूषण की समस्या पर कोई विशेष अंकुश नहीं लग पा रहा है।

                                                                               

आई क्यू एयर द्वारा जारी की गई एक हालिया रिपोर्ट इस तथ्य को भलीभांति प्रमाणित करती है कि हमारा देश अब दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल है और वह दुनिया में तीसरे स्थान पर आता हैं। और तो और देश की राजधानी दिल्ली दुनिया में सबसे प्रदूषित राजधानियों यथा ढाका, उवागाडोगू, दुशानवे और बगदाद के साथ शीर्ष पर है। जबकि बांग्लादेश पहले और पाकिस्तान दूसरे स्थान पर है। भारत के बाद ताजकिस्तान और बुर्किनोफासो का नम्बर आता है।

दरअसल बढ़ता प्रदूषण जहां पर्यावरणीय चुनौतियों को और भयावह बना रहा है, वहीं आबादी के लिए स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ाने में भी यह अहम भूमिका निवाह रहा है, जिसके चलते अनचाहे होने वाली मौतों में बेतहाशा बढोतरी दर्ज की जा रही है। इसके पीछे पी एम 2.5 कणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिनका आकार 2.5 माइक्रोन के करीब होता है। इसके बढ़ जाने से धुंध छाने, साफ न दिखाई देने, सांस के रोगों, गले में खराश होने, जलन और फेफड़ों की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है जो कि मानव के लिए जानलेवा स्थिति साबित होती हैं।

आई क्यू एयर की हालिया रिपोर्ट दक्षिण एशियाई देश भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश आदि के लिए एक गंभीर चेतावनी है क्योंकि इन देशों की जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा पर निर्भरता अधिक है। इस सम्बन्ध में यह बात अलग है कि हमारे देश में सौर ऊर्जा के उपयोग को न केवल सरकार बढावा दे रही है बल्कि उस पर राहत देकर जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर निर्भरता को कम करने का प्रयास भी कर रही है।

                                                                 

भारत सरकार वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 5 लाख मेगावाट विद्युत उत्पादन के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। सरकार का यह प्रयास पर्यावरण के साथ साथ ऊर्जा क्षमता की दृष्टि से भी अति महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ऊर्जा के परंपरागत स्रोत पर्यावरण में प्रदूषण का जहर घोल हो रहे हैं, वे मानव स्वास्थ्य के भी दुश्मन साबित हो रहे हैं। भारत लगातार वायु गुणवत्ता की खराब होती समस्या से जुझ रहा है जिसमें पी एम 2.5 की सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन के सालाना स्तर से भी 10 गुणा अधिक है।

इसका दुष्परिणाम यह है कि हमारे देश के तकरीब 1.36 अरब लोग पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता को चपेट में हैं। यह डब्ल्यू एच ओ द्वारा अनुशासित सालाना स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से कहीं अधिक है।

यहां सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि मानव जीवन तो प्रदूषण की मार से बेहाल तो है ही, पेड़-पौधे भी तापमान वृद्धि के चलते सांस नहीं ले पा रहे हैं जो पेड़ वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड को अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में मदद कर रहे थे, वे अब उसमें खुद को असमर्थ पा रहे हैं।

हालिया शोध इसके प्रमाण हैं कि अब पेड़ों में सांस लेने और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की क्षमता भी कम हो गई है। इस प्रकार यदि हम वायु प्रदूषण से मानवीय स्वास्थ्य को होने वाले दुष्प्रभावों पर सिलसिलेवार गौर करें तो पाते हैं कि दावे चाहे कुछ भी किए जायें, लंकिन हकीकत में वायु प्रदूषण अब एक नासूर बन गया है।

यह अब किसी खास मौसम की ही नहीं, बल्कि सालभर रहने वाली एक स्थायी समस्या बन चुकी है। यह तो अब लोगों की उम्र पर भी बुरा असर डाल रहा है। इससे जहां देशभर में रहने वाले लोगों की उम्र में 5.3 वर्ष की कमी आई है, वहीं राजधानी दिल्ली के लोगों की उम्र में 11.9 वर्ष की औसतन कमी दर्ज की गई है। शिकागो यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस अध्ययन के अनुसार सम्पूर्ण भारत में एक भी स्थान ऐसा नही है जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरा उतरता हो। इसके साथ यह भी कि हृदय संबंधी बीमारियों से औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 4.05 वर्ष कम हो जाती है। जबकि बाल और मातृ कुपोषण से जीवन प्रत्याशा 1.8 वर्ष कम हो जाती है।

                                                                   

देश के सबसे प्रदूषित उत्तरी क्षेत्र में 52.2 करोड़ यानी 38.9 फीसदी आबादी निवास करती है। यदि प्रदूषण का वर्तमान स्तर ऐसा ही बना रहता है तो इस आबादी की जीवन प्रत्याशा में इब्ल्यूएचओ के दिशा निर्देश के सापेक्ष औसतन आठ वर्ष व राष्ट्रीय मानक के सापेक्ष 4.5 वर्ष की कम हा जाने का खतरा है। भारत में 67.4 प्रतिशत आबादी ऐसी जगहों पर रहती है जो भारत के खुद के बनाये मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा प्रदूषण को झेल रही है।

इस शोध का निष्कर्ष, जो नेचर सस्टेनेबिलिटी जर्नल में प्रकाशित हुआ है, के अनुसार चीन में पिछले पांच सालों में वायु प्रदूषण घटने से वहां आत्महत्या के चलते मौत के मामलों में तेजी से कमी दर्ज की गयी है। यहीं नहीं यदि आप वायु प्रदूषण के बीच दो घंटे भी रह लेते हैं तो आपके मस्तिष्क के कामकाज में अवरोध पैदा हो सकता है। क्योंकि इससे मस्तिष्क की फंक्शनल कनेक्टिविटी कम हो जाती है। एन्वायरमेंटल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित यूनीवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलविया के अध्ययन में वायु प्रदूषण तथा मस्तिष्क के संज्ञानात्मक कार्यों के बीच संबंधों के मिले नये प्रमाणों से यह खुलासा हुआ है।

अब तो यह साफ हो गया है कि जिस तरह से वायु प्रदूषण का मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है, उसी तरह जंगल की आग से निकलने वाले धुंए का भी स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

हालांकि यह भी अपने आप में एक असलियत तो है ही कि नित्य प्रति खुले में हो रहे निर्माण कार्यों से उड़ने वाली और सड़कों की धूल से सांसों पर सबसे ज्यादा संकट है। एक तरह से यह वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह है जिसके चलते लोगों की जिंदगी से लोग खांसी और सांस की तकलीफ से जूझने विवश है।

एम्स के फारेंसिक विभाग के अध्यक्ष डा. सुधीर गुप्ता के अनुसार, 22 फीसदी मौतों की मुख्य वजह श्वसन तंत्र में अवरोध का उत्पन्न होना है। यदि भारत डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश के अनुरूप ही पार्टिकुलेट प्रदूषण कम कर लेता है तो देश की राजधानी दिल्ली के निवासियों की जीवन प्रत्याशा 11.9 वर्ष बढ़ जाएगी। वह बात अलग है कि दिल्ली में प्रदूषण मुक्ति की दिशा में वायु गुणवत्ता में सुधार लाने हेतु 2025 तक दिल्ली सरकार की 4 हजार ई बसे लाने और ई मोबिलिटी बढ़ाने के लिए 2,62,066 चार्जिंग स्टेशन के अलावा और लगाने की योजना है लेकिन केवल इतना ही काफी नहीं है।

                                                                     

इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि सड़क पर जाम में फंसने पर गाड़ी का कांच नीचे करने से पहले भलीभांति सोच विचार कर लें। यह भी कि आपकी कार का एयर फिल्टर ठीक से काम कर रहा है या नहीं और मोटर साईकिल से या पैदल जाते समय कम व्यस्त सड़क पर ही चलें। यह थोड़ी सी सावधानी हमें काफी हद तक राहत दिलाने में मददगार हो सकती हैं। कुलमिलाकर निष्कर्ष यह कि इसमें अब दो राय नहीं है कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा बन चुका है।

यहीं नहीं दिन प्रति दिन न्यूरोकाग्निटिव विकृतियां बढ़ने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इस स्थिति को देखते हुए नीति निर्माताओं द्वारा इस मामले पर व्यापक स्तर पर विचार करना बेहद जरूरी है तभी कुछ बदलाव की उम्मीद संभव है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।