हमारी बोझल पढ़ाई और खुदकशी के मामले

                    हमारी बोझल पढ़ाई और खुदकशी के मामले

                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

                                                                      

वर्तमान समय में शिक्षा ने नौजवानों में निराशा को बढ़ा दिया है और इसका सीधा प्रभाव यह पड़ा है कि भारत में आत्महत्या की दर बढ़ रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे यहां आत्महत्या दर वैश्विक औसत से भी अधिक है। आज युवा अभ्यर्थी शैक्षणिक दबाव महसूस कर रहा हैं, जो उनको अपने सपनों के पीछे दौड़ने के बजाय स्वयं को जीवन की प्रतियोगिता की जंग में डूबो देता है। यह अवस्था उनके मानसिक स्वास्थ्य को बहुत अधिक प्रभावित करती है। हमारी शिक्षा प्रणाली सिर्फ अंकों और परीक्षाओं के आधार पर ही मूल्यांकन करती है।

परिणााम स्वरूप, परीक्षार्थियों पर परीक्षा का दबाव अधिक रहता है, जिसमें वे कहीं न कहीं खो ही जाते हैं। यह भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक गंभीर कमी है, जिस पर हमारे नीति-नियंताओं को अविलम्ब ध्यान देना चाहिए।

इस समस्या का हल तो हमें ढूंढना ही होगा। पहले से ही हमारे पास उपयुक्त और व्यावसायिक मार्गदर्शन की बहुत अधिक कमी है। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को बदलने की आवश्यकता है, ताकि हम बच्चों को केवल अंकों के लिए नहीं, बल्कि उनके मानसिक विकास के लिए भी प्रोत्साहित कर सकें। शिक्षा प्रणाली में ऐसा सुधार हो कि बच्चों को सोचने-समझने और समस्याओं के समाधान की क्षमता हासिल हो।

इसके अलावा, हमें अपने बच्चों को मानसिक समस्याओं के निराकरण के लिए भी शुरू से ही संजीवनी देने की जरूरत है, ताकि उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सहायता मिल सके।

समस्या का समाधान ढूंढने के लिए हमें शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करने के साथ-साथ अभिभावकों को भी जागरूक करने की जरूरत है। ताकि वे अपने बच्चों से सिर्फ शैक्षणिक सफलता के लिए नहीं, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी समय-समय पर उनसे मधुर संवाद करते रहें। माता-पिता को अपने बच्चों से सकारात्मक संवाद करने और उन्हें उनके दबाव को समझने में सहायता करने की आवश्यकता है। इससे पहले कि हमारे युवाओं के मन में आत्महत्या जैसी चिंताजनक भावनाओं का निर्माण हो, हमें इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा।

                                                              

शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन, मानसिक स्वास्थ्य के लिए संदेश व समर्थन और अभिभावकों के साथ सकारात्मक संवाद, ये सभी कदम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आखिरकार हमारे युवा हमारे भविष्य हैं। उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करना और उनके मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना हमारी ही जिम्मेदारी बनती है। इससे न केवल हम एक समर्थ और स्वस्थ समाज बना सकते हैं, बल्कि हरेक छात्र अपनी सच्ची क्षमता को पूरी तरह से विकसित कर सकता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।