स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है अनुलोम विलोम

                 स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है अनुलोम विलोम

                                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर

                                                        

योग को घर-घर पहुंचाकर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति किया जागरूक

हर कामयाबी का एक फार्मूला होता है और यह बाबा रामदेव तभी समझ चुके थे, जब वह  रामकृष्ण यादव हुआ करते थे। दुबले पतले रामकृष्ण ने अपने हट्टे-कट्टे बड़े भाई देवदत्त को गुदगुदी करके कुश्ती में हारने का तरीका ढूंढ लिया था। उनके भाई गैर शिकायती अंदाज में याद करते हुए बताते हैं कि वह जानता था कि मैं गुदगुदी बर्दाश्त नहीं कर सकता, लेकिन वह केवल महत्वपूर्ण मोर्चों में ही इस फार्मूले का इस्तेमाल किया करता था। कालांतर में बाबा रामदेव के रूप में रामकृष्ण की कामयाबी में योग मार्केटिंग और मीडिया से लेकर व्यापार जैसे सभी गुण शामिल होते चले गए। पारंपरिक योग को घर-घर पहुंचाने की उनकी मुहिम में स्वदेशी का नारा और मल्टीनेशनल कंपनियों का विरोध समय के साथ एक बड़े अभियान में परिवर्तित हो गया।

योग से आयुर्वेदिक दवाइयां और फिर रसोई के सभी के सामानों के रिटेल स्टोर खोलने की अपनी यात्रा में उन्होंने पतंजलि को हजारों करोड़ की कंपनी तो बनाया ही लेकिन अपने बयानों से बाबा अपनी पोटली में विवाद भी जोड़ते चले गए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उनके एलोपैथी को बकवास और दिवालिया साइंस वाले बयान को आधार बनाकर इम्युनिटी बढ़ाने वाली पतंजलि आयुर्वेदिक दवा करोनील के विज्ञापन को भ्रामक बताकर उनके खिलाफ कोर्ट में केस दायर कर दिया। सुनवाई के दौरान जस्टिस आयशा मुद्दीन आल्हा ने जो कहा उसमें हिदायत के साथ योग के क्षेत्र में उनके योगदान को स्वीकृति भी शामिल है।

उन्होंने कहा मानते हैं कि रामदेव ने योग के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर चीज में ही कुछ खामियां निकाली जाए।

टायर की चप्पल से दिल्ली के धरने तक

रामदेव का जन्म वर्ष 1965 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के शहर अलीपुर गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। रामनिवास यादव और गुलाब देवी के चार बच्चों में दूसरे नंबर की संतान रामदेव शुरू से मेधावी और अनुशासित थे। उनकी मां, साइकिल के खराब टायर से चप्पल बनाकर उन्हें पहना देती थी और मां ने ही उन्हें संघर्ष करना सिखाया। 70 के दशक में अपने गांव में कर्ज से दबे एक किसान की आत्महत्या की खबर ने उनको रात भर सोने नहीं दिया उनके दिमाग में एक ही सवाल कौंधता रहा कि आखिर पड़ोस के किसान ने खुदकुशी क्यों की।

अगले दिन स्कूल पहुंचकर उन्होंने अपने शिक्षक से पूछा कि सरकार किसानों की मदद क्यों नहीं करती तो शिक्षक ने जवाब दिय कि देश में भ्रष्टाचार बहुत अधिक है। ऐसे में उन्होंने तभी यह तय कर लिया कि देश से भ्रष्टाचार को मिटाना है। वर्ष 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में तत्कालीन सरकार के खिलाफ दिए गए धरने ने एक तरफ ने जहाँ उनकी छवि का खराब किया तो दूसरी तरफ सरकार की विशेषज्ञता भी घेरे में आई।

पिता का हुक्का छुड़वाया

                                                              

रामदेव से जुड़ी एक मजेदार बात यह है की बचपन से ही उनके अंदर दूसरों के व्यसन छुड़वाने की एक अद्भुत कला थी। एक बार जब उन्होंने अपने पिता को हुक्का पीते हुए देखा, तो उन्होंने कहा मैं भी पीना चाहता हूँ। पिता ने मना किया तो उनके साथ बैठे लोगों ने कहा कि आपको भी हुक्का पीना छोड़ना होगा, क्योंकि इससे बच्चों पर गलत असर होता है। रामदेव की पहली सफलता यह थी कि उनकी इसके बाद उनके पिता ने हुक्का पीना छोड़ दिया।

वहीं एक बार स्कूल में शिक्षक को बीड़ी पीते देखकर उन्होंने इसका भी विरोध किया। बाद में जब वे प्रसिद्ध हो गए तो उक्त शिक्षक ने चिट्ठी के माध्यम से बताया कि मैंने भी धूम्रपान करना उसी दिन छोड़ दिया था, जिस दिन आपने मेरा विरोध किया था।

लिया सन्यास और मिला बिजनेस पार्टनर

                                                              

स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर उन्होंने गुरुकुल में पढ़ने का निश्चय किया। उनके गांव में एक संन्यासी आते थे, जिनका कहना था कि योग से असवाद रोग का इलाज संभव है। रामदेव योग से अवसाद रोग को दूर करने के सफल अभियान के अगुवा बने। आठवीं कक्षा की पढ़ाई के बाद वह खानपुर गुरुकुल में पढ़ने चले गए। यहीं पर वर्ष 1990 में उनकी मुलाकात अचार्य बालकृष्ण से हुई। खानपुर से शिक्षा दीक्षा लेने के बाद बालकृष्ण काशी चले गए और उनके बाद दोनों गुरु भाइयों का मिलन वर्ष 1994-95 में हरिद्वार जिले के कनखल स्थित कृपालु आश्रम में हुई।

आश्रम के स्वामी शंकर देव से संन्यास की दीक्षा प्राप्त करने के बाद रामकृष्ण का नाम परिवर्तन हुआ। यहां दोनों मित्रों ने गुरुकुल की शिक्षा का लाभ समाज को देने का निश्चय किया। कृपालु आश्रम में ही दोनों ने 5 जनवरी 1995 में अपने परिचितों से उधार लेकर मात्र 13000 रुपए में दिव्य योग मंदिर फाउंडेशन की स्थापना की। उस समय उनके पास केवल ₹3500 ही थे। यहां निशुल्क योग प्रशिक्षण और इलाज किया जाने लगा।

जब एक लाख करोड़ टर्नओवर का लक्ष्य रखा

वर्ष 2006 में पतंजलि आयुर्वेद की स्थापना की रामदेव योग करने के साथ ही आयुर्वेद के फायदे बताते हैं, जबकि आचार्य बालकृष्ण कंपनी का पूरा प्रबंध संभालते हैं। वह कंपनी के अध्यक्ष और सीईओ भी है। कंपनी में उनकी हिस्सेदारी 94 प्रतिशत की है। हालांकि कंपनी का असली चेहरा योग गुरु रामदेव ही है। दोनों ने तीन दशक के संघर्ष से पतंजलि ग्रुप को करीब 21000 करोड रुपए के वार्षिक टर्नओवर की कंपनी बना दिया है।

बाबा की कंपनी की नेटवर्किंग र्1600 करोड रुपए है। रामदेव ने पिछले साल जून में एक प्रेस वार्ता में दावा किया था कि उनका लक्ष्य अगले 5 वर्षों में पतंजलि ग्रुप के टर्नओवर को एक लाख करोड रुपए तक पहुंचना है। इसके साथ ही स्वदेशी और आयुर्वेद उद्योग में एक नई हलचल बनी हुई है।

विवाद और आरोपों से भी रहा है रामदेव का नाता

                                                                    

बाबा रामदेव की तुलना अमेरिका के सदी के धर्म विचारक एवं मंत्री मिली ग्राहम से की जाती है। जिन्होंने कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों को इसी अधिकारों के लिए प्रेरित किया था। पतंजलि आयुर्वेद ने बीते 18 वर्षों में जिस गति से प्रगति की है, उसी गति से कंपनी के कार्यकर्ताओं पर गड़बड़ी के आप भी लगते रहे हैं। वर्ष 2013 में उनके खिलाफ जमीन की धोखाधड़ी का आरोप में उत्तराखंड सरकार ने 81 मुकदमे दर्ज किए थे।

ईडी और सीबीआई ने भी उनके खिलाफ केस दर्ज कर जांच की। उसके बाद अपने गुरु स्वामी शंकर देव के अपहरण के भी आरोप उन पर लगे और सीबीआई ने केस दर्ज किया था। हालांकि बाबा ने सारे आरोपों को मिथ्या बताया था। इसके सम्बन्ध में उन्होंने कहा था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके द्वारा उठाई गई आवाज को दबाने के लिए षडयंत्र कर उन पर मुकदमे दर्ज कराए हैं।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों की साजिश भी उनका एक अन्य तर्क रहा है, परन्तु चाहे जो भी हो यह अभी योग और आयुर्वेद के मामले में कई लोगों की आशा का केंद्र बना हुआ है। लेकिन यह भी सत्य है कि जब से रामदेव ने यह कदम उठाया और घर-घर तक योग को पहुंचने में उनकी भूमिका से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। इसीलिए वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग गुरु रामदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए और अपनी एक अलग शख्सशियत को बनाया।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।