अब हड्डी के 1 सेंटीमीटर टुकड़े से हो सकेगी शरीर में जहर की पुष्टि
अब हड्डी के 1 सेंटीमीटर टुकड़े से हो सकेगी शरीर में जहर की पुष्टि
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
मृत्यु के बाद भी हड्डी से जहर का लगेगा पता, जहर हड्डी में बना लेता है अपनी जगह-
किसी व्यक्ति की जहर खाने से हुई मृत्यु के लगभग 100 साल बाद तक अब शरीर की राख और हड्डियों के माध्यम से जहर की पुष्टि आसानी से की जा सकती है। हड्डी के एक सेंटीमीटर के सैंपल या किसी पात्र में एकत्र की गई अस्थियों और राख से, एक निश्चित प्रक्रिया से जांच के आधार पर पता लगाया जा सकता है कि किसी व्यक्ति जहर दिया गया है या नहीं। यदि जहर देने से उसकी मृत्यु होती है तो अब यह आसानी से पता किया जा सकेगा।
जांच की यह सुविधा आईएमएस की फोरेंसिक विभाग की टॉक्सिकोलॉजी लैंब में भी उपलब्ध है। इस लैब में हड्डी और राख की जांच से मौत के रहस्याओं से पर्दा उठाया जाता हैं। कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद इसकी जांच की चर्चा शुरू हो गई है, क्योंकि उसकी मृत्यु जहर देने से होने का आरोप लगाया गया था। आईएमएस की फोरेंसिक विभाग के एक डॉक्टर के अनुसार जहर भारी धातुओं की श्रेणी में आता है, जिसमें आर्सेनिक, मरकरी, एलईडी फिल्म के जैसे तत्व होते हैं और यह आसानी से शरीर की हड्डी में जगह बना लेते हैं और जांच के उपरांत इसका पता लगाया जा सकता है।
जांच के लिए क्या होती है प्रकिया
फोरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ मनोज पाठक का कहना है कि जहर की जांच के लिए हड्डी या राख आदि का सैंपल लिया जाता है और इसका टीएलसी चेक किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि किस ग्रुप का जहर दिया गया है। ग्रुप की जानकारी होने के बाद यह पता किया जाता है कि जहर हैवी मैटेलिक है या नहीं। इसके बाद एटॉमिक ऑब्जरवेशन, स्पेक्ट्रो फोटोमेट्री, से जहर की गुणवत्ता और उसकी मात्रा चेक की जाती है। जांच में 200 से 300 मिलीग्राम के बीच और आर्सेनिक मिलता है तब मौत का कारण जहर माना जाता है।
बाल और हड्डी से भी की जाती है पहचान
फोरेंसिक विभाग के डॉक्टर सुरेंद्र पांडे ने बताया कि जहर का तत्व शरीर में 100 साल से अधिक समय तक उपलब्ध बना रहता है। इसकी पहचान बाल हड्डी और नाखून से की जा सकती है। फिर सब दफना दिया गया हो या उसका अंतिम संस्कार हुआ हो हड्डी का एक सैंपल और 80 सुरक्षित हैं तो उसकी मौत के कारणों का पता आसानी से लगाया जा सकता है।
हड्डी से लिंग, उम्र और लंबाई का भी चल जाता है
डॉ मनोज पाठक ने बताया की हड्डी के मात्र 1 सेंटीमीटर टुकड़े से पीड़ित व्यक्ति के लिंग, उम्र और लंबाई आदि की जानकारी मिल जाती है। इसके लिए सबसे पहले हड्डी का चूरा बनाकर दाना निकाला जाता है और फिर आर्टिफिशियल जिनोम सीक्वेंसिंग की जाती है इसके बाद पूरा जेनेटिक मेकअप तैयार किया जाता है, इससे यह भी पता चल जाएगा की मौत किसी बीमारी से तो नहीं हुई है।
लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ में मेडिकल ऑफिसर हैं।