जलवायु परिवर्तन के चलते तपने लगी है धरती तो दूसरी और पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी

जलवायु परिवर्तन के चलते तपने लगी है धरती तो दूसरी और पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी

                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 वर्षा रानी एवं शोध छात्रा आकांक्षा सिंह

                                                

मार्च का महीना खत्म हो गया है लेकिन इस महीने में ही गर्मी ने अप्रैल और मई वाली गर्मी का अहसास लोगों को करा दिया है। मार्च के महीने में ही इतनी अधिक तपन देखी गई कि लोग गर्मी से अभी से परेशान होने लगे हैं। दोपहर के समय कड़ाके की धूप में लोग अब बाहर कम निकालना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि तेज गर्मी के कारण लोगों का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है।

दिल्ली का न्यूनतम तापमान 21.8 डिग्री सेंटीग्रेड दर्ज किया गया जो सामान्य से लगभग चार डिग्री अधिक था। वहीं दूसरी ओर पहाड़ी राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मु कश्मीर के श्रीनगर में अब भी रुक-रुक कर बराबरी हो रही है।

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण मैदानी राज्यों में समय से पहले गर्मी और पहाड़ी क्षेत्र के राज्यों में देर तक बर्फबार का दौर जारी है। दिल्ली का अधिकतम तापमान लगभग 35 दिसंबर 22 डिग्री के आसपास दर्ज किया जा रहा है, जिसकी अब लगातार बढ़ने की उम्मीद की जा है। यह तापमान सामान्य से तीन से चार डिग्री सेंटीग्रेड अधिक हो गया है। दिल्ली में 29 तारीख को मार्च के महीने में इस साल का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया था। इस दौरान अधिकतम तापमान 37.8 डिग्री रहा जो सामान से 5 डिग्री अधिक था।

                                                                      

हिमाचल कश्मीर और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी दर्ज की जा रही है। कश्मीर के गुलमर्ग और पहलगाम और उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री धाम, बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी में भी बर्फबारी का दौर जारी है। हिमाचल के कल्पा हुकुम सीरी में 5 सेंटीमीटर और केलांग में 3 सेंटीमीटर बर्फबारी दर्ज की गई है।

इस बार पश्चिम विक्षोभ देर से आए हैं और इसके चलते उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिमपात भी देर से शुरू हुआ है और अब भी हिमालय में ऊंचाई वाले स्थानों पर हिमपात जारी है। पश्चिमी विक्षोंभ के देरी से आने की कारण जलवायु परिवर्तन का यह प्रभाव देखने को मिल रहा है।

Global Warming का बढ़ा खतरा!

वैज्ञानिकों ने साल 2024 में सबसे अधिक गर्मी का अनुमान जताया

Global Warming: विश्व मौसम विज्ञान के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है, साल 2023 के मुकाबले 2024 में अधिक गर्मी पड़ सकती है।

Global Warming: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने मंगलवार को कहा कि साल 2023-24 में अल नीनो चरम अपने पर पहुंच गया है. और यह आने वाले महीनों में वैश्विक जलवायु को प्रभावित करना अभी जारी रखेगा। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने यह भी कहा कि मार्च और मई के बीच लगभग सभी भूमि क्षेत्रों में सामान्य से अधिक तापमान बने रहने का अनुमान है।

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा अल नीनो ने दुनिया भर में रिकॉर्ड तापमान और चरम घटनाओं को बढ़ावा दिया, जिससे साल 2023 सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया। यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के अनुसार, वैश्विक औसत तापमान जनवरी में पहली बार पूरे वर्ष के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपने नवीनतम अपडेट में कहा कि मार्च-मई के दौरान अल नीनो के बने रहने की लगभग 60 प्रतिशत संभावना है, जिसकी वजह से साल 2024 सबसे गर्म वर्ष हो सकता है। इसमें कहा गया है कि साल के अंत में ला नीना विकसित होने की संभावना है लेकिन यह संभावनाएं फिलहाल अनिश्चित ही हैं।

ऐसा हुआ तो अच्छी बारिश होगी

भारत में ला नीना पर करीब से नजर रखने वाले वैज्ञानिकों ने कहा है कि जून-अगस्त तक ला नीना की स्थिति बनने का मतलब यह हो सकता है कि इस साल मानसून की बारिश 2023 की तुलना में बेहतर होगी।

अल नीनो और ला नीना क्या हैं?

                                                                  

मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का समय-समय पर गर्म होना अल नीनो कहलाता है। औसतन हर दो से सात साल में यह होता है और आमतौर पर 9 से 12 महीने तक रहता है। इसके विपरीत, ला नीना मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के औसत से अधिक ठंडा तापमान होने को कहा जाता है, जो वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है।

डब्ल्यूएमओ का कहना है कि कमजोर प्रवृत्ति के बावजूद अल नीनो आने वाले महीनों में वैश्विक जलवायु को प्रभावित करना जारी रखेगा। मार्च और मई के बीच लगभग सभी भूमि क्षेत्रों में सामान्य से अधिक तापमान की भविष्यवाणी की गई है। अल नीनो मुख्य रूप से मौसमी जलवायु को प्रभावित करता है। डब्ल्यूएमओ ने कहा की ग्रीनहाउस गैसों की वजह से लंबे समय तक उच्च तापमान बना ही रहेगा।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।