कंपनी में महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें स्वावलंबी बना दिया

            कंपनी में महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें स्वावलंबी बना दिया

                                                                                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर

तिनका तिनका जोड़कर महल खड़ा करने की कहावत तो आपने सुनी ही होगी, उसे अक्षरशः चर्चात करने वाले बेहद सामान परिवार के लड़के राहुल सिंह के पास कभी आईआईटी की तैयारी के लिए ट्यूशन फीस देने तक के पैसे नहीं थे। नतीजा आर्थिक तंगी की वजह से अपने साथियों की तरह वह ट्यूशन नहीं पढ़ पाए। मगर आर्थिक अड़चन आत्मविश्वास से भरे दृढ़ निश्चयी राहुल की राह में रोड नहीं बन पाए।

                                                                        

हिम्मत हारने के बजाय उसने दोगुने उत्साह से स्वयं तैयारी शुरू कर दी और एनआईटी में दाखिला लेने में कामयाब हो गए। यह तो बस उनकी बस एक शुरुआत ही थी। आगे उन्होंने तमाम कठिनाइयों को पार करते हुए कामयाबी के कई मुकाम हासिल किए और आज इकोसॉल हब के नाम से कई देशों में संचालित कंपनी के स्वामी है। अपनी मेहनत दृढ़ संकल्प और कभी हार ना मानने की प्रवृत्ति की बदौलत ही उन्होंने खुद अपनी तकदीर की इबारत लिखी है और उसी का परिणाम है कि आज उनकी कंपनी 600 करोड रुपए का व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा करने में सफल हो सकी है।

सरकारी स्कूल में पढ़ाई की थी

राहुल का जन्म छत्तीसगढ़ के भिलाई में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। राहुल ने स्थानीय सरकारी स्कूल से पढ़ाई की जहां बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव हुआ करता था। वर्ष 2001 में 12वीं की कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद राहुल ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, सूरत से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। फिर जमशेदपुर के जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए पास किया। जैसा कि भारत में ज्यादातर मां-बाप का सपना होता है कि उनकी संतान विदेश में ऊंचे वेतन वाली कंपनियों में नौकरी करें। राहुल के माता-पिता भी यही चाहते थे कि उनका बेटा भी विदेश जाए और वहां पर ऊंचे वेतन पर कम करें।

वर्ष 2008 में राहुल विदेश चले गए, और उन्होंने वहां वर्ष 2019 तक अलग-अलग कंपनियों में काम किया। जब उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया, तब वह एक बड़ी कंपनी के ग्लोबल हेड थे। अपनी कंपनी खड़े करने का फैसला राहुल ने तब किया जब वह अमेरिका में नौकरी ही कर रहे थे। उन्हें अरविंद गणेशन के बारे में पता चला और जल्दी ही दोनों दोस्त बन गए और फिर दोनों ने मिलकर वर्ष 2020 में इकोसॉल हब नामक कंपनी की स्थापना की। शुरुआत में राहुल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी वह कोशिश करते रहे। पूंजी जुटाने के लिए काफी हाथ-पांव मारने पड़े, लेकिन काम नहीं बना तो अंततः उन्होंने अपना घर बेच दिया।

पेड़ों के पत्तों से पत्तल एवं कटोरी जैसी पर्यावरण अनुकूल उत्पाद बनाने का व्यवसाय शुरू करने के बाद, जब वह इस क्षेत्र में पहले से लगे कारीगरों से मिलने जाते तो कोई उन्हें बैठने तक के लिए नहीं कहता था। लोग उनसे पूछते कि आखिर आप हैं कौन और मैं आपके लिए उत्पाद क्यों बनाऊं। हालांकि इस दौरान कुछ ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने उनकी बात को समझा और उनके साथ भी दिया।

बेकार चीजों से बनाए उत्पाद

आमतौर पर ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार का व्यक्ति किसी बड़ी कंपनी में काम करता है, तो वह अपना व्यवसाय शुरू करने के बारे में नहीं सोचता, लेकिन राहुल के पास यह जोखिम उठाने का साहस था। इसके अलावा उन्हें पर्यावरण से भी लगाव था इसलिए उन्होंने बेकार की चीजों से पर्यावरण अनुकूल उत्पाद बनाने का फैसला किया। राहुल जब अपने गांव जाते थे तो देखते थे कि लोग डिस्पोजेबल उत्पादों का इस्तेमाल तो कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि यह किस चीज से बने हैं और उनसे लोगों के जीवन और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है।

भारत में पहले भी इस तरह के उत्पाद बना रहे थे, लेकिन निर्यात के लिए तो बिल्कुल भी नहीं बनाया जा रहा था। राहुल सोचते थे कि जब सभी उत्पादों के अपने ब्रांड हो सकते हैं तो फिर इन उत्पादों की क्यों नही?ं रिसर्च करने पर उन्हें पता चला कि स्थानीय स्तर पर लोग रद्दी से भी पत्तल कटोरी आदि बना रहे हैं। उन्होंने देखा कि यह तो सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए ही नुकसानदेह है। ऐसे में अगर पर्यावरण अनुकूल सामग्रियों से उत्पाद बनाए जाए तो न सिर्फ लोग इन्हें स्वीकार करेंगे बल्कि पर्यावरण का संरक्षण भी आसानी से हो सकेगा।

बेकार चीजों को सोना समझ कर उत्पादन बनाना किया प्रारंभ

हमारे देश में अधिकांश यानी करीब 95 प्रतिशत बेकार चीजों और कचरे को निष्पादन के नाम पर जला दिया जाता है। जिसे पर्यावरण में और अधिक प्रदूषण फैलता है। लेकिन राहुल जानते थे कि इन्हीं कचरा समझे जाने वाली बेकार चीजों को सोने में तब्दील किया जा सकता है। जिन बेकार चीजों का अपने देश में कोई मोल नहीं है, चीन उन्हें ही आयात करता है। पर्यावरण संरक्षण और सेहत के प्रति दुनिया भर के लोगों में बढ़ती जागरूकता के कारण पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की तरफ लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। यही वजह है कि आज राहुल का व्यवसाय भारत सहित अमेरिका, कनाडा आदि कई देशों में फैला हुआ है। पूरी दुनिया में इकोसॉल हम की 1 से 50 से ज्यादा विनिर्माण इकाइयां कम कर रही हैं।

युवाओं को इससे क्या मिलती है सीख

  • आत्मविश्वास के साथ कोई भी व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता की मंजिल को हासिल की जा सकती है।
  • जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए नए विचार और नवाचार बेहद जरूरी है।
  • दुनिया में कोई भी चीज बेकार नहीं होती और सही नजरिये को अपना कर कचरे को भी सोने में तब्दील किया जा सकता है अर्थात कई अच्छे उत्पाद बनाकर उससे मुनाफा कमाया जा सकता है।
  • अगर पूरी लगन से मेहनत की जाए तो एक न एक दिन सफलता जरूर मिलती है।
  • खुद पर विश्वास और व्यवसाय क्षेत्र के बढ़ते परिदृश्य पर नजर रखकर सफलता पाई जा सकती है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।