एग्री-बिजनेस से होगा किसानों का कायाकल्प

                          एग्री-बिजनेस से होगा किसानों का कायाकल्प

                                                                                                                                                                 डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

एग्री-क्लीनिक और एग्री-बिजनेस सेंटर स्थापित करने के लिए सरकार कृषि स्नातकों को निःशुल्क विशेष प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। दो माह का यह प्रशिक्षण देश के चुनिंदा संस्थानों के द्वारा ही प्रदान किया जा रहा है, जिसमें उद्यमिता और व्यवसाय प्रबन्धन तथा कौशल सुधार मॉड्यूल शामिल है। प्रशिक्षण प्राप्त उम्मदवारों द्वारा एग्री-बिजनेस उद्यम स्थापित करने हेतु सरकार आसान किस्तों पर ऋण भी उपलब्ध करा रही है।

     किसानों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण और जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कृषि का व्यवचसायीकरण और औद्योगीकरण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए कृषि क्षेत्र में अत्याधुनिक वैज्ञानिक, तकनीकी व दयांत्रिकी के प्रयोग सहित विषय एवं विपरीत स्थितियों में भी कृषि उत्पादन बढ़ाने, कृषि उत्पादों को संरक्षित करने, परंपरागत कृषि के स्थान पर कृषि के विविधीकरण को बढ़ावा देने, खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन करने, कृषि का वाणिज्यिकरण करने के साथ-साथ कृषि को ‘व्यवसाय‘ का दर्जा प्रदान करना होगा। उल्लेखनीय है कि देश की 60-65 फीसदी आबादी कृषि अथवा कृषि-आधारित उद्यमों में संलग्न है। इसके बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान मात्र 17 फीसदी है।

एग्रीकल्चर से एग्री-बिजनेस की ओर अग्रसर

                                                          

     कृषि में आधुनिक प्रबन्धकीय और व्यवसायिक तकनीकी का उपयोग कर इसे मुनाफे का सौदा बनाना है, जिसके लिए किसानों को प्रशिक्षित कर आधुनिक यांत्रिकी और तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया जाना चाहिए। ‘एग्री-बिजनेस‘ खेती के व्यवसाय को सन्दर्भित करता है। इस शब्द का उपयोग सर्वप्रथम ‘गोल्डबर्ग और डेविस‘ द्वारा वर्ष 1957 में किया गया।

इसके अंतर्गत फसल का व्यवसायिक उत्पादन, कृषि उत्पाद संरक्षण, खाद्य-प्रसंस्करण, कृषि विपणन, आधुनिक मशीनरियों का प्रयोग, जैविक एवं आर्गेनिक फार्मिंग, आधुनिक प्रसंस्कृत बीजों की आपूर्ति, फ्रूट कल्टीवेशन तथा फ्लोरी कल्चर, पशुपालन, मुर्गी पालन एविं फशरी इत्यादि सम्मिलत हैं। एग्रीजिनेस द्वारा युवाओं को कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित कर बेरोजगारी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

वर्तमान में अनेक मल्टीनेशनल कंपनियां एग्रीबिजनेस के क्षेत्र में कदम रखकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। निकट भविष्य में एग्रीबिजनेस क्षेत्र में रोजगार के विविध अवसर उपलब्ध होंगे।

औद्योगिक एवं सहकारी कृषि

                                                                 

     कृषि क्षेत्र से युवाओं का पलायन रोकने और किसानों को आर्थिक रूप से स्वालंबी बनाने हेतु कृषि का व्यवसायीकरण किया जाना आवश्यक है। अन्य उत्पादों की तुलना में कृषि उत्पादों की मांग बाजार में सदैव बनी रहती है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या की भोजन संबधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आने वाले समय में कृषि उत्पादों की मांग उसी तेजी के बढ़नी तय है। परिणामस्वरूप, कृषि के क्षेत्र में रोजगार भी तेजी से ही बढ़ेंगे। अतः कृषि क्षेत्र में बढ़ती मांग  का सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करने के लिए कृषि का वाणिज्यिकरण किया जाना चाहिए।

कृषि जनित उत्पादों की मार्केटिंग, बिजनेस सिद्वांतों के आधार पर कर अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। केवल इतना ही नही, कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन कर, किसानों की अच्छी कमाई हो सकती है। आने वाले समय में प्रोफेशनल व व्यवसायिक कृषि का एक नया ट्रेंड विकसित हो रहा है जिसे औद्योगिक कृषि प्रणाली के नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली से अधिकतम लाभ लेने के लिए सहकारी कृषि पद्वति का भी विकास हो रहा है, जिसमें कई लोग संयुक्त रूप से मिलकर किसी एक फसल का व्यवसायिक उत्पादन करते हैं जिससे संयुक्त रूप से मानवीय श्रमशक्ति, आर्थिक सहयोग व वैज्ञानिकता और प्रबन्धकीय मूल्यों का उपयोग कर, मोटा मुनाफा कमाया जा सके और जोखिम प्रबन्धन किया जा सके।

देश में अनेक फसलों के औद्योगिक व सहकारी कृषि उत्पादन के उदाहरण व केस स्टडी उपलब्ध है, जिनके द्वारा किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। आवश्यकता है औद्योगिक एवं सहकारी कृषि प्रणाली का तेजी से प्रचार-प्रसार किए जाने की जिससे कि यह पद्वति बड़े पैमाने पर आम किसानों के सामान्य व्यवहार में सम्मिलत हो सकें।

कृषि व्यवसाय प्रबन्धन

     कृषि के आर्थिक उन्नयन हेतु,परंपरागत विधा के स्थान पर आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी का प्रयोग कर पैदावार में वृद्वि करने के साथ-साथ, कृषि उत्पादों को लंबे समय तक संरक्षित किया जाना आवश्यक है जिससे किसानों को उनकी उत्पादों का अच्छा मूल्य प्राप्त हो सके और कृषि क्षेत्रों में रोजगार के विविध अवसर पैदा हो सके। फसल उत्पादन में जैव-उर्वरक एवं जैव-प्रौद्योगिकी के बढ़ते अनुप्रयोग और बढ़ती निया्रत की संभावना, कृषि वस्तुओं का एक श्रंखला में उत्पादन, कृषि उत्पादन में भारी वृद्वि, कृषि का आधुनिकीकरण, मृदा परीक्षण, प्रसंस्कृत जिंस का अनुप्रयोग, कृषि उत्पाद का भण्ड़ारण, विपणन, खुदरा बिक्री को बढ़ावा, कृषि क्षेत्र में भारी निवेश द्वारा एग्रीबिजनेस को बढ़ावा देकर किसानों को समृद्व किया जा सकता है।

एग्री-क्लीनिक और एग्री-बिजनेस उद्यम

                                                            

     भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने नाबार्ड के सहयोग से किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने और कृषि कार्यों में आधुनिकतम तगनीकों को अपनाने के लिए एग्री-क्लीनिक एवं एग्री-बिजनेस  कार्यक्रम की शुरूआत की है। इस कार्यक्रम का सबसे प्रमुख उद्देश्य किसानों के द्वारा फसल उत्पादन के क्रम में आधुनिक तकनीकों को अपनाने की प्रक्रिया को प्रात्साहित करना है। इसके अंतर्गत युवाओं को कृषि तकनीकी और मैनेजमेंट तकनीकी के लिए प्रशिक्षित करने के साथ-साथ, स्वयं का एग्री-क्लीनिक तथा एग्री-बिजनेस सेन्टर्स स्थापित करने के लिए सक्षम बनाना है।

इसके अंतर्गत कृषि स्नातकों को बागवान, सोरीकल्चर, चिकित्सा विज्ञान, डेयरी, पोल्ट्री-फार्मिंग और मतस्य-पालन इत्यादि कृषि संबंधित विषयों पर परिशिक्षण प्रदान किया जाता है। सरकार ने कृषि उद्यमों की स्थापना हेतु विशेष स्टार्ट-अप ऋण सहायाता योजना को भी प्रारम्भ किया है। कृषि व्यवसाय केन्द्र, फसलोत्पादन बढ़ाने और किसानों की आय में ये तत्व वृद्वि करने में सहायक है। इन केन्द्रों में किसानों को फसल चयन की सर्वोत्तम विघा, आधुनिक कृषि पद्वतियों, कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन, बाजार समाचार, जोखिम प्रबन्धन, फसल बीमा, क्रेडिट और इनपुट एक्सेस जैसी जानकारी प्रदान की जाती है।

     एगी-क्लीनिक और एग्री-बिजनेस सेन्टर्स स्थापित करने के लिए सरकार कृषि स्नातकों को विशेष एवं निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। दो माह का यह प्रशिक्षण देश के चुनिंदा संस्थानों के द्वारा ही प्रदान किया जा रहा है जिसमें उद्यमिता तथा व्यवसाय प्रबन्धन तथा कौशल सुधार मॉड्यूल शामिल है। प्रशिक्षण प्राप्त अभियर्थियों के द्वारा एग्री-बिजनेस सेंटर स्थापित करने के लिए सरकार व्यक्तिगत परियोजना हेतु 20 लाख रूपये, बेहद सफल व्यक्तिगत परियोजना के लिए 25 लाख रूपये और समूह परियोलना के लिए एक करोड़ रूपये तक का ऋण आसान किश्तों पर उपलब्ध कराया जा रहा है।

एग्री-बिजनेस से संबंधित प्रशिक्षण का संचालन राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबन्धन संस्थान (मैनेज) द्वारा प्रदान किया जाता है। मैनेज की स्थापना वर्ष 1987 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार एक स्वायत संस्थान के रूप में हैदराबाद में की गई थी। यह संस्थान कृषि स्नातकों को एग्री-बिजनेस में एमबीए तथा एमएससी जैसे संचालित करता है। मैनेज संस्थान-विविध कृषि विस्तार कार्यक्रम, कृषि की चुनौतियों और पुनर्विकास व आधुनिकीकरण की दिशा में प्रयासशील है। इस संस्थान द्वारा प्रबंधन प्रशिक्षण, कन्सलटेंसी, प्रबन्धन शिक्षा, अनुसंधान एवं कृषि तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

एग्री-बिजनेस के प्रमुख चरण

खाद्य-प्रसंस्करण एवं मूल्य-संवर्धन

                                                                        

     फल और सब्जियों के उत्पादन में भारत का द्वितीय स्थान होने के बावजूद देश के आमजन को पर्याप्त मात्रा में फल एवं सब्जियां उपलब्ध नही हो पाती हैं। सब्जियों एवं फलों को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए शीतगृहों की व्यवस्था अपूर्ण होने के कारण बड़े पैमाने पर ये फल एवं सब्जियां नष्ट हो जाती हैं जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर आर्थिक क्षति होने के साथ-साथ आम जन को भी ये समुचित मूल्य पर उपलब्ध नही हो पाती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष 30-35 प्रतिशत फल एवं सब्जियां नष्ट हो जाती हैं।

फल एवं सब्जियों के शीघ्रता से खराब अथवा नष्ट होने की प्रकृति के कारण मूल्यों में भी तीव्रता के साथ उतार-चढ़ाव जारी रहता है। फल एवं सब्जियों को खाद्य-प्रसंस्करण विधा क्षरा लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है।

खाद्य प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धान उद्योग की स्थापना के द्वारा ग्रामीण एवं स्थानीय स्तर लाखों युवाओं को रोजगार उपलब्ध करया जा सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की आर्थिक स्थिति में व्यापक सुधार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, किसानों को फसलों का समुचित मूल्य प्राप्त होगा और उपभोक्तओं को भी उचित मूल्य पर खाद्य पदार्थ उपलब् ध होंगे।

     खाद्य-प्रसंस्करण तकनीकी विधाओं का उपयोग कर कृषि उत्पाद, वन, मतस्य, मीट और मुर्गा इत्यादि को मूल रूप से कैनिंग, टेट्रा पैकिंग, शीत श्रंखला में पैकिंग अथवा भातिक एवं रासायनिक अवसंरचना का रूपांतरण कर मूल्य संवर्धन करने के साथ-साथ सामान्य तापक्रम पर लंबे समय तक संरक्षित किया जाता है। इसमें अल्पकालिक एवं शीघ्रता से खराब होने तथा गलने-सड़ने वाले कृषि उत्पाद, डेयरी उत्पाद, मांस एवे मीट उत्पाद और फल-सब्जियां इत्यादि को नष्ट करने वाले कारकों को प्रतिबंधित एवं नियंत्रित कर, शेल्फलाइफ बढ़ाकर दीर्घकाल तक संरक्षित किया जाता है।

प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा कृषि उत्पादों के जीवाणु तथा कवक आदि को नष्ट कर, उनके प्रजनन व विकास को नियंत्रित करने की प्रक्रिया प्रयुक्त की जाती है। कृषि उत्पादों में ऑक्सीकरण की गति अको कम करने के साथ एंजाइम उपापचय की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाता है। जीवाणु एवे कवक के जीवन के लिए अनुकूल वातावरण एवं परिस्थितियां नमी, पानी और ऑक्सीजन पर नियंत्रण स्थापित कर कृषि उत्पाद को लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है।

     प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा खाद्य उत्पादों का विविधीकरण और व्यवसायीकरण कर उनका मूल्य संवर्धन किया जाता है। प्रसंस्करण में किण्वन, स्प्रेड्राइंग, प्रशीतन, थर्मल प्रसंस्करण, निर्जलीकरण, धूप में सुखाना, नमक में परिरक्षण, शुगर में परिरक्षण, विभिन्न प्रकार से पकाना, रस सांद्रण, हिम शुष्कन, सिरका, साइट्रिक ऐसिड, तेल, कृत्रिम मिठास तथा सोडियम बेंजोएट जैसे परिरक्षकों के द्वारा कवक एवं जीवाणुओं को नष्ट कर फल एवं सब्जियों को संरक्षित किया जाता है।

कृषि उत्पादों की भौतिक एवं रासायनिक असंरचना में परिवर्तन कर अचार एवं मुरब्बा जेम, जैली, वेजिटेबिल सॉस, सब्जियों एवं फलों के मूल रूप में नमक/मीठे पानी से कैनिंग प्रणाली के द्वारा अथवा इनका जूस/रस निकाल कर वैक्यूम/टेट्रा पैकिंग द्वारा लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है। प्रसंस्करण के प्राकृतिक परिपक्वन को भी नियंत्रित किया जाता है। संरक्षण के लिए खाद्य पदार्थ को उपचार के पश्चात् सीलबंद पैकिंग की आवश्यकता पड़ती है, जिससे संरक्षित खाद्य-पदार्थों को जीवाणुओं द्वारा पुनः दुषित करने से बचाया जा सके।

     खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाओं को देखते हुए, सरकार इसके तीव्र विकास के लिए अनेक प्रयास कर रही है। सरकार ‘मेक इन इंडिया‘ योजना के अंतर्गत ‘मेगा फूड पार्क‘ की स्थापना, ‘शीत श्रंखला‘ का निर्माण, युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए ‘कौशल विकास‘ योजना, ‘प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना‘ आदि योजनाओं के माध्यम से सरकारी अनुदान एवं सहायता, नाबार्ड और मुद्रा योजना के द्वारा आसान शर्तों एवं सस्ते ब्याज की दर पर ऋण उपलब्ध करा रही है।

खाद्य-प्रसंस्करण, एग्री-बिजनेस का एक महत्वपूर्ण अंग है। वर्तमान में अनेक एफएमसीजी कंपनियां इसके माध्यम से मोटा मुनाफा कमा रही हैं। प्रसंस्कृत और मूल्य-सवंर्धित खाद्य पदार्थों का निर्यात कर बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा का अर्जन भी किया जा रहा है।

डेयरी उद्योग

                                                         

     दुग्ध उत्पादन के मामले में भारत दुनिया के प्रथम पायदान पर स्थित है। दूध एवं दुग्ध उत्पादन तथा प्रसंस्करण के क्षेत्र में भी रोजगार की अपार संभावानाएं उपलब्ध हैं। इसके लिए दुग्ध का व्यवसायिक उत्पादन और दुग्ध उत्पादों के माध्यम से मूल्य- संवर्धन करना होगा। दूध एक अत्यंत शीघ्र ही खराब होने वाला पदार्थ है, इसलिए दुग्ध को संरक्षित करने के लिए इसे पाश्चुरीकृत किया जाता है।

दूध को पाश्चुरीकृत करने के लिए 63 डिग्री सेंटीग्रेछ पर 30 मिनट तक गर्म किया जाता है। इसके बाद इसे अचानक ही तेजी से ठंड़ा कर दिया जाता है, जिससे इसके समस्त जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। पाश्चुरीकृत दूध को नियंत्रित अवस्था में पैकिंग कर शीतश्रंखला में उपभोक्ताओं तक भेजा जाता है। पाश्चुरीकरण से दुग्ध की औसत आयु में वृद्वि हो जाती है। पाश्चुरीकृत दुग्ध को टेट्रा पैकिंग द्वारा महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।                 

     प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा दूध की अवस्था,स्वरूप एवं प्रकृति में परिवर्तन कर दुग्ध उत्पाद जैसे- पनीर, खोया, दही, छाछ, घी, मक्खन, स्किम्ड मिल्क पाउडर इत्यादि का निर्माण किया जाता है। दुग्ध उत्पादों का व्यवसियक स्तर पर निर्माण कर इन्हें टैट्रा पैकिंग एवं वैक्यूम पैकिंग के जरिए दीर्घकाल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। सर्द मौसम में दुग्ध का उत्पादन अधिक होने तथा मांग कम होने के कारण दूध की कीमतों में भी गिरावट आती है।

इस समय में दुग्ध का वाष्पीकरण कर शुष्क रूप से ‘स्किम्ड मिल्क पाउडर‘ का निर्माण किया जाता है, जिसका गर्मियों के मौसम में, जब दूध की कमी होती है, तो इसका प्रयोग किया जाता है। स्किम्ड मिल्क पाउडर में गर्म पानी मिलाकर पुनः दूध बनाया जा सकता है। दुग्ध निर्मित पदार्थों का औद्योगिक उत्पादन और इसकी मार्केटिंग कर, देश के अन्य भागों में भेज कर अथवा इसका निर्यात कर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। सरकार डेयरी उद्योग के विकास के लिए प्रशिक्षणख् ऋण और अनुदान सहायता योजनाओं का संचालन कर रही है।

सुगंधित एवं शोभकारी पादप एवं पुष्प उद्योग

     मानव दैनिक जीवन में पुष्पों का आध्यात्मिक एवं औषधीय महत्व और सौन्दर्यकरण तथा साज-सजावट में पुष्पों की उपयोगिता एवं महत्व के कारण, देश-विदेश में पुष्पों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। परिणामस्वरूप पुष्पों का व्यवसाय आर्थिक रूप से लाभदायक बनता जा रहा है। फ्लोरीकल्चर के अंतर्गत पुष्पों का व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन, मार्केटिंग, कॉस्मेटिक, और परफ्यूम उद्योग के अतिरिक्त मेडीकल इंडस्ट्री में भी सप्लाई की जाती है।

हाल ही के दिनों में लैमनग्रास, सिट्रोनेला, पामारोजा, जामारोजा, तुलसी, मिंट, कैमोमाइल, गैंदा, आर्टीमिशया, जिरेनियम, स्याहजीरा, तेजपात, गुलाब, थाइम इत्यादि पुष्पों का उत्पादन एग्रीबिजनेस फर्मों द्वारा किया जा रहा है।

     गुलाब के तेल का समर्थन मूल्य पांच लाख रूपये प्रति लीटर निर्धारित किया गया है जबकि खुले बाजार में इसकी कीमत छह से सलाख रूपये प्रति लीटर बिकता है। जिला चमोली के जोशीमठ क्षेत्र के 12 गांवों में गुलाब की सफल खेती की जा रही है तथा गुलाब जल एवं गुलाब का तेल उत्पादित किया जा रहा है। यहां तैयार हुए गुलाब को पछिले वर्ष प्रधानमुत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी को भी भेंट किया गया था। जिसकी उन्होंने मुक्तकंठ से प्रशंसा की थी।

एग्रीबिजनेस फर्मों के द्वारा पुष्पों का बड़े स्तर पर उत्पादन करने से नकेवल किसानों की किस्मत चमक रही है, बल्कि बंजर खेतों में फिर से हरियाली लहलहा रही है। एग्री-बिजनेस के अंतर्गत सरकार फ्लोरीकल्चर को भी बढ़ावा दे रही है।

पशु-पालन, मांस एवं पोल्ट्री उद्योग

     देश में दूध और दुग्ध उत्पाद तथा मांस एवं मांस उत्पाद के लिए बड़े पैमाने पर पशु-पालन किया जाता है। किसान फसल उत्पादन के अतिरिक्त गाय, भैंस, बकरी, भेड़, मर्गी इत्यादि जानवरों को अपनी आवश्यकतानुसार पालता है। दूध एवु दुग्ध उत्पाद, मांस तथा मांस उत्पाद के संक्रमण एवं खराब होने का अधिक खतरा रहता है। इसलिए इन्हें संरक्षित रखने के लिए प्रसंस्करण तकनीकी का उपयोग, डीप फ्रीजर आदि में रखकर शीत-श्रंखला में परिवहन किया जाना चाहिए जिससे प्रसंस्करण स्थल से उपभौक्ता तक पहुंचने में सूक्ष्म जीवाणुओं के संक्रमण से इन्हें सुरक्षा प्रदान की जा सके, इसकी कैनिंग एवं वैक्यूम पैकिंग कर निर्यात किया जाता है।

एग्री-बिजनेस के अंतर्गत व्यवसायिक स्तर पर पशुपालन द्वारा मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसके लिए सरकार युवाओं को व्यवसायिक प्रशिक्षण देने के अतिरिक्त ऋण एवं अनुदान सहायता, बीमा योजना और विपणन सुविधाओं व निर्यात प्रक्रिया को सुगम बना रही है।

कृषि बाजार तंत्र

     किसानों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौति कृषि उत्पादों को बेचकर उनका उचित मूल्य प्राप्त करना होता है। बाजार-तंत्र पर सेठ, साहूकार और बिचौलियों का कब्जा होने के कारण किसान कृषि उत्पाद औने-पौने दामों में बेचने के लिए विवश होता है। यद्यपि सरकार द्वारा किसानों को फसल के न्यूनतम मूल्य की गारंटी देने के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है, और बड़े पैमाने पर खाद्यान्न की खरीददारी भी करती है, परन्तु इससे किसानों को केवल कृषि लागत का मूल्य ही प्राप्त हो पाता है।

वहीं दूसरी ओर, सेठ, साहूकार और संगठित व्यापारी उसी कृषि उत्पाद को खरीद कर मार्केटिंग स्ट्रेटजी के अंतर्गत बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं, जिसके कारण किसानों को प्राप्त कीमत और उपभोक्ताओं से वसूले गए मूल्य में भारी अंतर होता है। इस बड़े अंतर का लाभ व्यापारी ही प्राप्त करता है। सरकार इस लाभ को सीधे किसानों को ही प्रदान करने के लिए विपणन संबंधी प्रक्रिया में सुधार कर रही है।

     मंड़ी-आधारित विपणन प्रणाली को राज्य सरकारों की कृषि व्यवसाय विनिमय प्रक्रिया द्वारा नियंत्रित किया जाता है। राज्य की विभिन्न मंड़ियों का संचालन अलग-अलग कृषि उपज बाजार समितियों (एपीएमसी) द्वारा किया जाता है। एपीएमसी अधिनियम औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की देन है। इसे व्यवसाय विनिमय शुल्क एवं लाईसेंस के माध्यम से संचालित किया जाता है जो कि मंड़ियों के आधारभूत ढांचे का विकास कर किसानों और व्यापारियों की विपणन प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

एपीएमसी की जटिल प्रक्रिया तथा राजस्व संग्रह के लिए निर्मित कराधान प्र्रणाली के कारण किसानो को उनकी  उपज का उचित मूल्य प्राप्त नही हो पाता है। मंड़ी शुल्क की भिन्नता के कारण, किसानों द्वारा बिना लाभ प्राप्त किए भी कृषि उत्पाद के मूल्य में वृद्वि हो जाती है। इतना ही नही, एक ही राज्य के अंदर अलग-अलग बाजार होने के कारण एक बाजार से दूसरे बाजार तक कृषि उत्पादों का मुक्त आवागमन नही हो पाता है। कई स्तरों पर मंड़ी शुल्क देने पड़ते हैं, इस जटिल विपणन प्रणाली के कारण किसान बिचौलियों को कृषि उत्पाद बेचने के लिए विवश होता है।

केन्द्र सरकार ने वपणन प्रक्रिया की जटिलता को सरल बनाने और कृषि विपणन प्रणाली में सुधार करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक ‘राष्ट्रीय कृषि बाजार‘, (ई-नाम) प्रणाली और स्थानीय स्तर पर ‘‘ग्रामीण कृषि बाजार‘‘ की स्थापना की है। ई-नाम एक पैन इंडिया इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है जो कृषि संबंधी उपजों के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण करने के लिए उपलब्ध एपीएमसीमंड़ी का विस्तार है जिससे राष्ट्रीय-स्तर पर मांग तथा आपूर्ति के आधार पर खाद्य-पदार्थों की कीमत निर्धारण हो सकेगा एवं किसानों की पहुंच राष्ट्रीय बाजार व्यवस्था तक हो सकेगी। किसानों को खाद्य-उत्पाद की गुणवत्ता के अनुसार समुचित कीमत तथा उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर बेहतरीन खाद्य उत्पाद भी प्राप्त हो सकेंगे।

ई-नाम के द्वारा किसान अपने उत्पादों को ई-नाम बाजार में प्रदर्शित करेगा तथा खरीददार देश के किसी भी स्थान से इस उत्पाद पर ऑनलाईन बोली लगा सकेगा। खुली बोली और प्रतिस्पर्धा के कारण किसानों को अपने उत्पाद के बेहतर मूल्य प्राप्त हो सकेगा। ई-नाम पोर्टल हिन्दी एवं अंग्रेजी के अतिरिक्त स्थानीय भाषाओं यथा, गुजराती, तेलगू, मराठी और बंगाली आदि भाषाओं में भी उपलब्ध है। गूगल प्ले स्टोर पर भी ई-नाम मोबाइल ऐप लॉंच किया गया है। किसान भाई इस मोबाइल ऐप की सहायता से ई-नाम में पंजीकरण और राज्य-स्तरीयएकल लाईसेंस प्राप्त कर सकते हैं, तथा विभिन्न कृषि उत्पादों की खरीद और बिक्री कर सकते हैं।

                                                              

पेमेंट गेटवे को अब राष्ट्रीय कृषि बाजार मंच से एकीकृत किया गया है। इसमें 90 उपजों को व्यापार मनकों के अनुरूप वकसित किया जा रहा है। सरकार किसानों को ई-नाम के अंतर्गत व्यापारिक हिस्सेदा सरल बनाने के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण दे रही है। ई-नाम द्वारा किसानों को स्थानीय मंड़ी के अतिरिक्त फसल बेचने के अन्य विकल्प प्रदान कर रही है, जिससे किसानो को उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो सकेगा।

वित्तमंत्री ने वर्ष 2018-19 के बजट में उपलब्ध 22,000 ग्रामीण हाटों को ‘ग्रामीण कृषि बाजार‘ के रूप में विकसित और उन्नत किए जाने का प्रस्ताव भी रखा है। इलेक्ट्रॉनिक रूप से ई-नाम से जुड़े तथा एपीएमसी के विनिमय से छूट प्राप्त किए ग्रामीण कृषि बाजार किसानों को उपभोक्ता एवं थोक व्यापारियों से सीधा जोडेंगेजिससे किसानों को अपने उत्पादों को बेचने में सुविधा हो सकेगी। 22,000 ग्रामीण कृषि बाजार और 585 एपीएमसी में कृषि विपणन अवसंरचना के विकास एवं उन्नयन के लिए बजट में 2,000 करोड़ रूपये की स्थाई निधि के साथ एक कृषि बाजार अवसंरचना कोष की स्थापना का प्रस्ताव भी किया है।

साथ ही किसानों को खेत से ही कंपनियों को उनकी उपज बेचने की छूट भी प्रदान की जा रही है, जिसके लिए कानूनी जटिलताओं को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

कृषि उत्पादन से लेकर विपणन तक के प्रत्येक चरण को कृषि व्यवसाय/एग्री-बिजनेस के रूप में वर्णित किया जा सकता है। यद्यपि कुछ आलोचकों के द्वारा औद्योगिक कृषि, एकीकृत खाद्य उत्पादन, कृषि व्यसाय का शब्द के प्रयोग का नकारात्मक रूप से किया है, जो सामान्य रूप से कॉरपोरेट कृषि का पर्याय है। परंतु हाल ही के रूझानों में एग्री-बिजनेस फर्मों को एक नैतिक ड्राइव के साथ देखा जा रहा है जो किसानों के आर्थिक उन्नयन में सहायक हैं। इसके माध्यम से युवाओं का ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र में पलायन रोकने के अतिरिक्त स्थानीय-स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार के साधन विकसित किए जा सकते हैं।   

        

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।