जल संकट का समाधान आवश्यक

                          जल संकट का समाधान आवश्यक

                                                                                                                                                                          डॉ0 आर. एस. सेगर

जल संकट से बचने के लिए एक सामाजिक क्रांति की आवश्यकता

हम सभी जानते हैं कि भारत एक बड़ी आबादी वाला राष्ट्र है और भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है, इसी का परिणाम है कि अब हम चीन से भी आगे निकल गए हैं और अब भारत विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। यहां विश्व की करीब 18 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, जबकि भारत का क्षेत्रफल विश्व की कुल भूमि का करीब 3.45 प्रतिशत ही है। इतनी कम भूमि पर सबसे अधिक आबादी के लिए विश्व के कुल जल संसाधन का मात्र चार प्रतिशत ही उपलब्ध है। इतनी बड़ी आबादी को पानी पीने और अन्य ज़रूरतें पूरे करने के लिए देश के संसाधन भी अब कम पड़ने लगे हैं।

भारत जहां जल संकट के मुहाने पर खड़ा हुआ है वहीं प्रदूषण की मार भी काफी परेशानी लोगों को झेलनी पड़ रही है। यूं तो भारत में छोटी-बड़ी करीब 40 से 42 लाख जल संरचनाएं अर्थात तालाब, जोहड़ और बावरी आदि मौजूद है, लेकिन इनके प्रति लपरवाही एवं लालच के कारण अधिकतर जल संरचनाओं का स्वरूप ही विकृत हो चुका है। अब उनमें जल ग्रहण और जल पूर्ण भरण करने की क्षमता भी बहुत कम हो चुकी है। यह स्थिति तब है जब भारत में मौजूद प्रत्येक जल स्रोत को सम्मान देने की परंपरा वैदिक काल से ही रही है।

                                                                                  

पानी का आधार हमारी पूजा पद्धतियों में भी शामिल है एवं तालाब एवं अन्य जल स्रोत आदि को बनाने का आवाहन पहले किया जाता है कि ही जल के देवता आप यहां स्वच्छ स्रोत के रूप में उपस्थित होकर हमारा कल्याण करें। लेकिन पिछले तीन-चार दशकों से भारत के जल संसाधनों में लगातार गिरावट देखी जा रही है और चिंता की बात तो यह भी है कि हमारे जलसंसाधन प्रदूषित होते जा रहे हैं।

हमारे देश में अत्यधिक जल दोहन एवं उसे अनुपात में पूनः जल-भरण ना होने के कारण भारत में हर वर्ष जल संकट गहराता हुआ ही दिखाई पड़ता है। यह एक प्रथा सी बन गई है कि अगर किसी स्थान पर पानी की कमी है तो दूर से नदी का पानी वहां पर ले आओ। ऐसा बड़े शहरों में वर्तमान में खूब किया जा रहा है। इसका दुष्परिणाम जहां नदियों को भुगतना पड़ रहा है, वही नदी का भूजल स्तर एवं आबादी भी इससे प्रभावित हो रही है। इस प्रकार हम जिस राह पर चल रहे हैं, यह समाधान कभी भी स्थाई हो ही नही सकता।

यह चिंताजनक है कि गर्मियों के पहले ही बेंगलुरु, जो की हैदराबाद का एक आईटी हब के नाम से शहर के नाम से जाना जाता है और जहां पर काफी आबादी है, वहां पर इस बार जल संकट की खबरें आना शुरू हो गई है। इसके अलावा भी कई अन्य शहर हैं जो अभी से ही जल संकट से जूझने लगे हैं। यह एक चिंता का विषय है और जल संकट के स्थाई समाधान के लिए हमें जल संकट वहीं समाधान की रणनीति पर काम करना होगा। देश में यह कार्य अधिकतर राज्यों में संभव भी है क्योंकि वहां तो हर जगह होती है जहां पर 200 से 600 मिली मीटर या उससे अधिक वार्षिक वर्षा होती है। अतः यहां यदि उसके जल को संचित करने के साधन विकसित कर लिए जाएं तो उसे क्षेत्र की आबादी के लिए पानी की व्यवस्था आसानी से की जा सकती है।

                                                                                 

इसके साथ ही हमें जल प्रदूषण को लेकर भी सचेत होना होगा। जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट है। अधिकतर फैक्ट्रियां दूषित जल को शोधित किए बिना उसे नदियों में जाने देती है, कुछ उद्योग तो प्रदूषित पानी को बोरिंग करके जमीन के अंदर डाल देते हैं जो भूजल को भी प्रदूषित करता है। उद्योगों को इसके लिए बाध्य किया जाना चाहिए कि वह अपने यहां उपयोग में लिये गए पानी को शोधित करके उसे पुनः उपयोग में लें।

शहरों से निकलने वाले कुल घरेलू जल का महत्व 10 से 20 प्रतिशत तक ही शोधित हो पाता है शेष गैर शोधित घरेलू बहे जल का स्राव अंततः नदियों में ही चला जाता है। इसी कारण हमारी नदियां भयंकर प्रदूषण से ग्रस्त हैं। नदियों में बहने वाले प्रदूषित पानी के कारण ही हमारा भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। इसे रोकने के लिए नगर निकायों को ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जिससे सीवेज जल शोधन के बाद निकलने वाले पानी को कृषि कार्यों के लिए उपयोग किया जा सके।

जल संकट के स्थाई समाधान के लिए हमें अपनी पुरातन पद्धतियों की ओर पुनः लौटना ही होगा और इस क्रम में जल संरक्षण के तौर तरीकों को पुनर्जीवित करना होगा। देश में सभी जल पुनर्जन स्रोतों को पुनर्जीवित करने का एक कार्यक्रम बनाकर उसे समाज के सहयोग से लागू करना चाहिए। छोटे एवं बड़े शहरों में वर्षा जल संरक्षण संसाधन को जमीन पर उतरने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है।

वर्षा जल के भूजल में पहुंचने से भू-जल का स्तर तो बढ़ेगा ही साथ ही जल के प्रदूषण में भी कमी आएगी। भारत को जल संकट से बचाने के लिए यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक इसमें अपेक्षित सहयोग करें क्योंकि यह हम सभी का दायित्व है कि जल संरक्षण की दिशा में अपने स्तर पर कुछ ना कुछ प्रयास अवश्य ही करें।

                                                                              

भारत ने अपना विजन 2047 प्रस्तुत किया है इसके अनुसार जब देश आजादी के 100 वर्ष पूरे करेगा तब पानी के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। ऐसा तभी होगा जब हमारे जल स्रोत पानी से समृद्ध होंगे और हमारी नदियां निर्मल एवं अविरल होकर बहेंगी। इसके लिए हमें अभी से ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। वास्तव में देश को एक सकारात्मक जल आंदोलन की आवश्यकता है क्योंकि अब हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं है।

अब समग्र प्रयास करने का वक्त आ चुका है। अगर इस समय पानी को बचाने के लिए कुछ करने से चूक गए तो बहुत देर हो जाएगी और इस संकट के कारण देश को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण मानव जाति के लिए एक बहुत बड़ा खतरा होगा। इसलिए आज जरूर इस बात की है कि हम सभी मिलकर एक सामाजिक क्रांति के रूप में जल संकट को लें और इसके बचने हेतु आगे आए और जल का संरक्षण प्रति व्यक्ति के स्तर पर करें।

ऋग्वेद मैं कहा गया है जो दिव्य जल आकाश से वर्षा द्वारा हमें प्राप्त होता है और जो खुद जलाश्यों से निकाला जाता है और जो नदियों में प्रवाहित होकर पवित्रता बिखरते हुए समुद्र की ओर प्रस्थान करता है। हम उस दिव्य और पवित्र जल को प्रणाम कर अपने जीवन की रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। वास्तव जिन देवी देवताओं को हमने कभी देखा ही नहीं है, उनके मंदिरों और उनकी संस्कृतियों ने हमारे जीवन का बड़ा हिस्सा घेर रखा है। मगर इसके विपरीत जो जीवित देवी देवता हमारी आंखों के सामने हैं उनकी हमें मानो सुधि ही नहीं है।

                                                                       

यदि हमने उनकी भी इतनी ही चिंता की होती तो यह दुनिया आज स्वर्ग से भी सुंदर होती। आखिर यह जीवित देवी देवता है कौन हमारे वास्तविक देवी देवताओं के ऊपर सूरज है तो नीचे धरती व जल और बीच में हवा यही चार प्रमाणिक देवी देवता है, जो सृष्टि की रचना करते हैं और उसका पालन भी करते हैं और इनके बगैर कोई भी जीवन संभव ही नहीं है। सूरज हमारे नियंत्रण में नहीं उसकी अपनी गति है, जिस पर हम सब आश्रित हैं।

धरती हमारी देखभाल की मोहताज नहीं वह हमारी गंदगी भी अपने सीने में छुपा कर हमें हरियाली और अन्य सम्पदा शानदार तरीके से लुटाती रही है। अब बाकी के दो देवता हवा और जल ऐसे हैं जिनको हमारी देखभाल सम्मान और संरक्षण की जरूरत है। मगर अफसोस इस बात का है कि आज विकास की इस अंधी दौड़ में जो विश्व स्तर पर हम हवा और पानी को प्रदूषित करने में लगे हुए हैं, उससे पृथ्वी के अस्तित्व पर ही संकट उपस्थित हो गया है। नित्य नई आने वाली रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि अब जल संकट से बचने की आवश्यकता है।

आज हमारे अनाचार के कारण नदियां जहरीली हो रही हैं और सिमट रही है। तालाब और जलाशय भी अनवरत मर रहे हैं। धरती के भीतर यानी भूमिगत पानी का स्तर भी लगातार तेज गति से गिरता चला जा रहा है जिसके प्रति हमें पिछले कुछ वर्षों से निरंतर सचेत भी किया जा रहा है।

जाहिर कि भविष्य में जल संकट की आयतें अब सुनाई देने लगी है। कई इलाकों में स्वच्छ जल की कीमत की खबरें मीडिया में भी लगातार दिखाई जा रही है। यदि समय रहते हम नहीं जागे तो मानव जाति का विनाश अब ज्यादा दूर नहीं है। यह तो अब कहा भी जा रहा है कि अब अगला विश्व युद्ध भूमि या सत्ता के लिए नहीं बल्कि जल के लिए लड़ा जाएगा। 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पानी के संरक्षण और उसकी उचित खपत के संदेश को प्रसारित करने के लिए पूरी दुनिया इस दिवस को मानती है। आज के दिन हम सबको बधाई या शुभकामनाओं की नहीं बल्कि चेतावनी देने की जरूरत है हमें अब तो सचेत हो जाना ही चाहिए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।