जलवायु परिवर्तन के कारण इस बार अप्रैल से जून तक पड़ेगी भयंकर गर्मी

जलवायु परिवर्तन के कारण इस बार अप्रैल से जून तक पड़ेगी भयंकर गर्मी

                                                                                                                                डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं डॉ0 कृषाणु सिंह

बढ़ती गर्मी के कारण काम हो रहे हैं बसंत के दिन

6 ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ ऋतु बसंत ऋतु को माना जाता है। यह सदैव से प्रकृति की अपरिमेय सुंदरता का प्रतिबिंब रहा है। बसंत के आते ही सभी के चेहरे खिल उठते हैं। काव्य, गद्य, शास्त्रों व प्राणों से लेकर आधुनिक साहित्य ही नहीं, अपितु आने वाले काल के हर क्षेत्र पर इसका सुंदर और संजीव प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। परन्तु जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऋतुओं के इस राजा पर भी अब खतरा मंडराने लगा है। झुलसाने वाली गर्मी अब लगातार लंबी होती जा रही है तो अब सर्दी भी सुधरने लगी है। इसका नतीजा यह रहा है कि इन दोनों मौसमों के बीच में फंसे बसंत के दिन लगातार कम होते जा रहे हैं। उत्तर भारत में मौसम का यह बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। अमेरिकी संस्था क्लाइमेट सेंट्रल के एक अध्ययन में यह चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। इस अध्ययन के मुताबिक सर्दियों के मौसम में तापमान में आसमान वृद्धि हो रही है, बसंत ऋतु की अवधि फरवरी अप्रैल के बीच तापमान में सामान्य से भी ज्यादा बढ़ रहा है। देश के कुछ क्षेत्रों में सर्दियों में गर्मी का अनुभव होता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में एक यह विपरीत पैटर्न के रूप में दिखाई देता है। फरवरी के तापमान में तेजी से वृद्धि विशेष रूप से उत्तर भारत में बसंत ऋतु को प्रभावी ढंग से संकुचित कर देती है। इससे पारिस्थितिकी तन्त्र और पारंपरिक मौसम पैटर्न पर भी दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में चिंताएं बढ़ गई है। वर्ष 1970 से 2023 की अवधि पर केंद्रित इस अध्ययन में पाया गया है कि जीवाश्म ईंधन जलाने से बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग ने भारत में सर्दियों के मौसम दिसंबर-फरवरी को काफी प्रभावित किया है। वर्ष 1970 के बाद से हर क्षेत्र में सर्दियों के तापमान में वृद्धि लगातार दिखाई दे रही है।

फरवरी में सभी क्षेत्रों में गर्मी का अनुभव हुआ जो विशेष रूप से उत्तर भारत में अधिक था, जहां दिसंबर और जनवरी में ना के बराबर ठंड देखी गई। फरवरी माह में जम्मू कश्मीर में सबसे अधिक तापमान में बढ़ोतरी (3.1 डिग्री) दर्ज की गई तो तेलंगाना में सबसे कम (0.4 डिग्री) तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। फरवरी के तापमान में इस वृद्धि से एहसास होता है कि भारत के कई हिस्सों में बसंत तो अब सिमटकर ही रह गया है। उत्तर भारत में जनवरी ठंडक या हल्की गर्मी और फरवरी में तेज गर्मी के बीच तापमान का रुझान मार्च में पारंपरिक रूप से अनुभव की जाने वाली ठंड सर्दियों जैसी स्थितियों से ज्यादा गर्म स्थिति में बदलाव भी इसी ओर इशारा करते हैं।

तेजी से गर्म हो रहा है पूर्वोत्तर भारत

                                                                                   

पूर्वोत्तर भारत भी तेजी से गर्म हो रहा है। आंकड़ों के अनुसार मणिपुर में 1970 के बाद से सर्दियों के औसत तापमान दिसंबर से फरवरी में 2.3 डिग्री सेल्सियस और सिक्किम में 2.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि दिल्ली में सबसे कम 0.2 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि हुई है। दिल्ली जैसे उत्तर भारत के क्षेत्र में औसतन तापमान में दिसंबर में 0.2 डिग्री सेल्सियस जनवरी में 0.8 डिग्री सेल्सियस और लद्दाख में दिसंबर में 0.1 डिग्री सेल्सियस की मामूली वृद्धि देखी गई है, लेकिन कुल मिलाकर ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातार तापमान में वृद्धि की जा रही है जो कि एक खतरे का ही संकेत है।

अधिक गर्मी पड़ी तो घटेगा मतदान

                                                                       

इस बार जैसा की वैज्ञानिकें के द्वारा अनुमान लगाया जा रहा है कि अप्रैल से जून के महीनों में विगत वर्षों की अपेक्षा अधिक तापमान रहेगा, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। यदि वृद्धि ऐसी होती रही तो गर्मी के कारण मतदान कम होने की संभावना रहेगी क्योंकि प्राय यह देखा गया है कि अधिक गर्मी के कारण लोग अपने घरों से नहीं निकलते हैं और वह मतदान में हिस्सा नहीं लेते हैं इसलिए मतदान प्रतिशत कम हो जाता है। लेकिन मतदाताओं को कोशिश करना चाहिए कि वह अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें।

                                                                 

मतदान एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में एक नागरिक की राय व्यक्त करने का बहुत ही सुंदर और प्रभावी तरीका है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिए मतदान करना बहुत महत्वपूर्ण है। हम सभी को इस महापर्व को एक बड़े अवसर के रूप में लेना चाहिए। बढ़ते तापमान से बचने के लिए घर में नहीं बैठना चाहिए बल्कि राष्ट्र की सरकार के गठन में हमारी भूमिका मुद्दों पर हो विषय आधारित हो। इसका एजेंडा तय करना ही हम मतदाताओं की जिम्मेदारी होती है। मतदाता को प्रभावित करने वाले जातीय, धर्म और लालच आदि माध्यमों से प्रभावित कर आधिकाधिक मतों को अपनी झोली में डलवाने हेतु तमाम प्रयास किए जाते रहे हैं। लेकिन समझदार मतदाता अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेते हुए अपने मतदान का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। चूँकि लोकतंत्र में प्रत्येक वोट का समान महत्व होता है यह बराबरी का अधिकार है। ऐसे में मतदान के प्रति उत्साह रखना भी हमारी ही जिम्मेदारी बनती है। एक बेहतर सोच और समग्र दृष्टि रखने के बावजूद हम अगर मतदान के प्रति उदासीन होकर लोकतंत्र के महापर्व में भागीदारी नहीं करेंगे तो कम से कम अपनी पसंद की उम्मीदवार क्षेत्र की जरूरत विकास को एक कदम पीछे ही ढकेलेंगे। क्योंकि जीत हार का चुनाव मतों की गणना के बाद ही तय होता है तो हम सभी को प्रयास करना होगा कि इस लोकतांत्रिक यज्ञ में सभी चुने और सही चुने के मंत्र को पढ़ें और अपने मत की आहुति अवश्य दें और बढ़ते तापमान से डर कर घर पर ही ना बैठे रहें।

                                                                              

ग्लोबल वार्मिंग का कारण जीवाश्म ईंधन

अध्ययन में 1970 से अब तक के मौसम के उतार-चढ़ाव का विश्लेषण वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया और पाया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह बदलाव देखने को मिल रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह जीवाश्म ईंधन जलने से कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर माना जा रहा है। वर्ष 1850 के बाद से वैश्विक औसत तापमान 1.3 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ चुका है, जिससे जलवायु पर प्रभाव बढ़ गया है और वर्ष 2023 रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म दिखाई दे रहा है। आने वाले महीनों में इसी के कारण तापमानें अधिक रहने की संभावनाएं भी जताई जा रही है।

03 डिग्री तक तापमान सद़ी के अंत तक रहने की संभावना

जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में औद्योगिक क्रांति का अहम योगदान रहा है। जलवायु के जानकार वैज्ञानिकों का कहना है कि विश्व में औसत तापमान वृद्धि को 3.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कटौती करनी होगी। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर मौजूदा स्थिति जारी रही तो शादी के अंत तक दुनिया का तापमान लगभग 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा जो कि पर्यावरण के लिहाज से काफी खतरनाक होगा।

मार्च में गुलाबी ठंड हुई गायब जो है चिंताजनक

                                                                                   

भारत में सर्दियों का मौसम धीरे-धीरे शुष्क होता जा रहा है और गर्मी बढ़ती जा रही है। बसंत ऋतु की अवधि भी लगातार सिकुड़ती ही चली जा रही है। देश के कई हिस्सों से बसंत लगभग गायब हो चुका है। अमेरिका स्थित क्लाइमेट सेंट्रल के शोधकर्ताओं के शोध में यह जानकारी सामने आई है। शोधकर्ताओं के अनुसार शुक्रता वसंत आने वाले समय में पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नई चुनौती उत्पन्न कर सकता है। इस वर्ष उत्तर भारत में जनवरी में ठंड के साथ कुछ दिन हल्की गर्मी का भी एहसास किया गया था तो वहीं फरवरी में ही तेज गर्मी के साथ मार्च में रहने वाली गुलाबी ठंड गायब हो रही है। हालांकि कुछ दिन हल्की ठंड पड़ी, लेकिन मौसम आमतौर पर गर्म ही रहा। इसका असर फरवरी मार्च में फूलों के खिलने की प्रक्रिया पर भी देखा गया। इस मौसम में फूल गेंदा, कनेर, गुड़हल और गुलाब आदि में काफी तीव्र बदलाव देखने को मिला। इसके फलस्वरूप पैदावार कम हुई और फूल जल्दी मुरझाने लगे, क्योंकि तापमान में वृद्धि तेजी से हो रही है।

बढ़ते तापमान के कारण जनवरी और फरवरी में 2 डिग्री सेंटीग्रेड का अंतर रहा

                                                                                   

तापमान के आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष राजस्थान में जनवरी और फरवरी के तापमान में 2.6 डिग्री सेल्सियस का अंतर देखने को मिला। कुल 9 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, पंजाब, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड में जनवरी-फरवरी में दो डिग्री सेल्सियस से अधिक का अंतर देखा गया। पूर्वोत्तर राज्यों में भी ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिला है। यह अंतर मणिपुर में 2.3 डिग्री सेल्सियस, सिक्किम में 2.4 डिग्री सेल्सियस का रहा। यह लुप्त हो रहे बसंत की धारणा का समर्थन करता है। इसलिए हम सभी को सचेत रहने की आवश्यकता है और इस ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए हर संभव प्रयास हम सभी लोगों को उठाने होंगे। एक सामुहिक प्रयास से ही हम इस आने वाली आपदा का सामना करने में सक्षम हो सकेंगे।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।