आर्थिकी और पारिस्थितिकी एक साथ कैसे चलेंगी, भरत दुनिया को बताएगा

आर्थिकी और पारिस्थितिकी एक साथ कैसे चलेंगी, भरत दुनिया को बताएगा

                                                                                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम और मिशन लाइफ यानी पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली का मंत्र देने वाले भारत को अब वैश्विक मंचों पर गंभीरता से सुना और समझा जाने लगा है। हाल ही में दुबई में आयोजित कॉप-28 में भारत ने जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अपनी चिंताओं को दुनिया के सामने प्रमुखता से रखा। इसके साथ ही भारत विकासशील और जरूरतमंद ऐसे देशों का एक बड़ा हिमायती भी बनकर उभरा है, जिनकी बातें अब तक वैश्विक मंचों पर गम्भीरता से नहीं सुनी जाती थी।

                                                                     

भारत ने ऐसे देशों की न सिर्फ जमकर पैरवी की, बल्कि उनके खिलाफ लाए जाने वाले कई प्रस्तावों का विरोध भी किया और उन्हें स्थगित भी कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक आयोजित इस कॉप से जुड़े पहलुओं और उसके परिणामों के प्रमुख अंश कुछ इस प्रकार से हैं-

ऽ काप-28 कई मायनों में ऐतिहासिक था। इसके पहले दिन ही सबसे अहम विषय नुकसान और क्षति (डैमेज एंड लास) निधि पर चर्चा की गई, जो लंबे समय से विकासशील देशों की एक प्रमुख मांग रही है। भारत ने खुले तौर पर इस पूरी प्रक्रिया का समर्थन किया है। अतः अब हम इसे सबसे अधिक जरूरतमंद देशों की मदद करने के एक साधन के रूप में देखकर बहुत खुश हैं। कॉप-28 का एक और महत्वपूर्ण परिणाम यह भी रहा कि जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों के बीच एक लचीले और दुनिया की जरूरतों को समझते हुए अनुकूलन के वैश्विक लक्ष्यों (जीजीए) और उसके ढांचे को नया रूप देने पर सभी देश सहमत हुए हैं। इस शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी ने भारत में वर्ष 2028 में कॉप-33 की मेजबानी का प्रस्ताव भी रखा, जो कि अपने आप में एतिहासिक है।

                                                                         

ऽ भारत की विभिन्न पहलों और प्रस्तावों को विभिन्न एलएमडीसी और जी- 77 और चीन जैसे देशों का समर्थन भी मिला। उदाहरण के तौर बेसिक (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) देशों के साथ भारत द्वारा उठाए गए एक तरफा व्यापार संबंधी उपायों के मुद्दे को इस समूह के बाहर का समर्थन भी मिला, जब कई जी-77 और चीन जैसे देशों ने बेसिक के प्रस्ताव का समर्थन किया। इसी तरह विकसित देशों द्वारा ऐतिहासिक उत्सर्जन और जिम्मेदारी के मुद्दे को एलएमडीसी देश, जैसे अफ्रीका के साथ ही मध्य पूर्व के देशों से भी बड़ा समर्थन मिला। कोयले के मुद्दे पर भारत को बातचीत के दौरान चीन और पाकिस्तान जैसे देशों ने खुलकर समर्थन किया। पीएम मोदी ने स्वीडन के पीएम और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष के साथ मिलकर वैश्विक जलवायु कार्रवाई पर ‘ग्लोबल ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव’ नामक एक अभूतपूर्व पहल की शुरुआत भी की।

ऽ भारत लगातार साउथ ग्लोबल की दो प्रमुख चिंताओं ‘प्रौद्योगिकी और जलवायु वित्त’ को उजागर करता रहा है। विकासशील देशों को तकनीकी व वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए विकसित देशों की प्रतिबद्धताओं के कार्यान्वयन पर भारत द्वारा कॉप-28 पर भी प्रकाश डाला गया। पीएम ने भी इस मुद्दे को कॉप में अपने संबोधन के दौरान पूरी ताकत के साथ रखा। सम्मेलन में विकसित देशों द्वारा 2020 तक संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 बिलियन अमरीकी डालर जुटाने का लक्ष्य 2021 में भी पूरा नहीं करने पर चर्चा हुई।

                                                                     

ऽ ग्लासगो से कोयला का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से कम करने पर सहमति बनी है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा की अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जीएसटी निर्णय में कोयला से पैदा होने वाली बिजली पर दायरे को बढ़ाने की अनुमति नहीं है। सम्मेलन में ‘नई और निर्वाध कोयला बिजली उत्पादन की अनुमति पर सीमाएं’ को लेकर एक मसौदा पेश किया गया था। भारत ने इसका विरोध किया और इसे ग्लासगो समझौते तक ही सीमित रखने को कहा गया। जिसमें कोयले से पैदा होने वाली बिजली को चरणबद्ध तरीके से बंद करने या कम करने के प्रयासों में तेजी लाना शामिल है।

ऽ जी-20 देश पहले से ही विकास व जलवायु चुनौतियों का समाधान करने, सतत विकास के लिए पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली (लाइफ) को बढ़ावा देने को लेकर प्रतिबद्ध है। इनमें हरित विकास समझौता भी शामिल है। स्वीडन, यूरोपीय संघ और मोजाम्बिक ने दुबई में कॉप-28 के दौरान पीएम मोदी और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद की सह-मेजवानी में ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम में भाग लिया। जापान ने भी मिशन लाइफ की तर्ज पर एक कार्यक्रम शुरू किया है।

                                                                      

ऽ भारत ने 2030 के लिए निर्धारित एनडीसी लक्ष्यों को करीब 11 साल पहले यानी वर्ष 2019 में ही प्राप्त कर लिया है, जिसके तहत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 33 प्रतिशत की कमी लाना था। इसके साथ ही हमने 2030 तक गैर-जीवाश्व ईंधन स्रोतों से 40 प्रतिशत विद्युत क्षमता का लक्ष्य भी करीब नौ साल पहले 2021 में ही हासिल कर लिया है। जीडीपी वृद्धि दर की तुलना में उत्सर्जन में लगातार कमी ही इसका रोडमैप है। आगे भी हम अपने इन लक्ष्यों को कमी की ओर लेकर जाएंगे।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।