पशुओं के नवजात बच्चों को अच्छा दुधारू पशु बनाने के उपाय      Publish Date : 22/06/2025

पशुओं के नवजात बच्चों को अच्छा दुधारू पशु बनाने के उपाय

                                                                                                                                       डॉ0 डी. के. सिंह एवं प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

भारत में पशुपालन खेती के साथ एक रोजगार के रूप में पुराने समय से ही किया जाता रहा है। आजकल दूध की बढ़ती कीमतों के चलते इसमें अच्छा मुनाफा होने के चलते अब बेरोजगार युवा भी इसे एक व्यवसाय के रूप में अना रहे हैं। गाँव-देहात में कम आयु के पशु कम कीमतों पर ही मिल जाते है और यदि इनके पालन-पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाए तो भविष्य में यह अच्छे दुधारू पशु बन सकते हैं।

स्के सम्बन्ध में सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा महाविद्यालय के डॉ0 डी. के. सिंह बता रहे हैं कि गाय और भैंस के द्वारा बच्चा जनने से पूर्व एवं पश्चात् दिए गए सुझावों पर ध्यान देने से पशु के बच्चों को एक अच्छा दुधारू पशु बनाया जा सकता है-

                                                    

  • गाय और भैंस का गाभिन काल औसतन 282 और 310 दिन का होता है।
  • गाभिन पशु को अपने शरीर की आवश्यकता और उसके पेट में पल रहे बच्चे के लिए कुछ विशेष पोषक ततवें की आवश्यकता होती है, ऐसे में यदि गाभिन पशुओं को पोषक तत्वों की उचित खराक न मिले तो इससे बच्चा कमजोर होगा और साथ ही वह पशु अपने अगले ब्यांत में भी दूध कम ही देगा।
  • पशु के ब्याने से 2 महीने पहले से उसके ब्याने तक पोषक तत्वों की खुराक को बढ़ा देना चाहिए। पशु की इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए पहले से खिलाई जा रही खुराक के अतिरिक्त 1 किग्रा. दाना मिरण या 10 से 15 किग्रा. हरा मुलायम और रसदार चारे के साथ थोड़ी सी मात्रा में सूखा चारा मिलाकर दिया जा सकता है।
  • गाभिन पशु को चोट लगने और दूसरे पशुओं से सुरक्षित रखने के लिए यदि सम्भव हो तो गाभिन पशु को अन्य पशुओं से अलग ही रखना चाहिए।
  • बच्चा जनने के दौरान पशु का अयन (थन का ऊपरी भाग) फूल जाता है अर्थात पशु के बाहरी जननांग कुछ फूल जाते हैं और पूंछ के पास वाले अस्थि बंधक तंतु ढले पड़ जाते हैं, इस दौरान पशु का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

पशु को बच्चा जनने में आमतौर पर 1 से 2 घंटे का समय लगता है। इस दौरान पशु का आवास पूरी तरह से हवादार और साफ-सुथर, छूत के रोगों को रोकने वाले पदार्थ का छिड़काव और अच्छी बिछावन से युक्त होना अनिवार्य है।

यदि आपका पशु स्वस्थ है तो उसके बच्चा जनने के दौरान किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता नहीं होती है, फिर भी बच्चा पैदा होने के समय आपातकाल के लिए किसी न किसी को वहां उपस्थित रहना चाहिए, यदि बच्चा पैदा होने में किसी प्रकार की कोई परेशानी महसूस हो तो तुरंत ही पशु चिकित्सक को बुलाना चाहिए।

                                             

बच्चे के पैदा होने के बाद पशु के बाहरी जननांगों व उनके आसपास के भाग और पूंछ को नीम के पत्तों के पानी से साफ कर देना चाहिए अथवा स्वच्छ पानी में पोटेश्यिम परमैगनेट डालकर, लाल दवा से उसे धो देना चाहिए। ऐसा करने से पशु के ऊपर लगी सारी गन्दगी साफ हो जाती है और कीटाणु नहीं पनप पाते हैं।

 ब्यांने के बाद पशु को लगभग आधा कि.ग्रा. गुड़, 3 किग्रा. चोकर, 50 ग्राम नमक और 40 ग्राम खनिज मिश्रण के साथ ही भरपूर चारा देना चाहिए।

इस दौरान पशु को ठंड़ से बचाकर रखना चाहिए। इसके लिए गुनगुना पानी या गुड़ का गर्म शरबत भी दिया जा सकता है। पशु के ब्यांने के दो दिन बाद चोकर के स्थान पर जई का चोकर तथा अलसी का दलिया पशु को देना चाहिए।

ब्यांने के बाद आमतौर पर पशु जेर डाल देता है, परन्तु यदि पशु ब्यंने के 8-10 घंटे बाद भी जेर न डाले तो पशु को अरगट मिक्सचर देना चाहिए और यदि इसके बाद भी पशु जेर न डाले तो पशु चिकित्सक की सहायता अविलंब लेनी चाहिए।

पशु के बच्चा जनने के तुरंत बाद ही अयन में दूध आ जाता है, जिसके चलते वह फूल जाता है इसलिए घास के टुकड़े अथवा नाखून आदि से उसे कोई नुकसान न पहुँचे इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए।

बरूांने के बाद पशु को कैल्शियम की कमी से दुग्ध ज्वर हो सकता है। इस रोग से बचाव का अच्छा तरीका यह है कि पशु के ब्यांने के 2 से 3 दन तक अयन से पूरा दूध नहीं निकालना चाहिए से कैल्शियम की पूर्ती होती रहती है।

पशु के ब्यांने के बाद मैग्नीशियम कमी के चलते पशु को मैगनीशियम टिटनी नामक रोग हो सकता है। इस रोग से बचाव के लिए पशु को माइफॉक्स का इंजेक्शन देना चाहिए। इसके अलावा कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट का इंजेक्शन दिय जाता है। दूध देने वाले पशुओं में थैला रोग के होने का खतरा अधिक रहता है अतः इसके विारण के लिए पशु चिकित्सक से जांच अवश्य ही करानी चाहिए।

पशु के बच्चे की देखभाल

                                                    

गाय और भैंस के नवजात बच्चों की मृत्युदर काफी अधिक है, इसलिए उनकी देखभाल वैज्ञानिक तरीके से करनी चाहिए। जैसे ही बच्चा पैदा हो उसकी नाक, कान और शरीर पर लगी झिल्ली अथवा गंदगी को साफ कर देना चाहिए, ताकि वह अच्छी तरह से सांस ले सके।

आमतौर पर गाय या भैंस अपने बच्चे को अपने आप चाट कर ही साफ कर देती हैं, यदि किसी कारणवश पशु अपने बच्चे को नहीं चाटे तो बच्चे के रूारीर पर थोड़ा सा नमक छिड़क देने से पशु अपने बच्चे को चाटने लगता है।

यदि नवजात सांस लेना शुरू न करे तो उसे साईड से लिटाकर उसकी छाती को बार बार दबा कर छोड़ने से वह सांस लेना शुरू कर देता है।

पशु के बच्चे की नाभी पर टिंचर आयोडीन लगाकर उसके बाद बोरिक एसिड का पाउडर भर देना चाहिए। यदि बच्चे का नेवल कोर्ड लम्बा है तो उसे बच्चे के शरीर से 2 इंच नीचे से आयोडीन टिंक्चर के लगाने से पूर्व ही काट देना चाहिए, इससे बच्चे में संक्रमण फैलने की आशंका कम हो जाती है।

अधिकतर बच्चे अपने जन्म के घंटेभर बाद ही अपने पैरों पर खड़ा होर दूध पीना शुरू कर देता है। लकिन यदि बच्चा सही तरीके से दूध न पी सके तो उसे सहारा देकर दूध पिलाने में उसकी सहायता करनी चाहिए। बच्चे को दूध पिलाने से पूर्व अयन के साथ-साथ थनों को भी अच्छी तरह से धो लेना चाहिए, ऐसा करने से बच्चे का बीमारी से बचाव होगा।

बच्चे को उसक जन्म के 48 घंटे तक पशु का शुरूआती दूध (जिसे कोलैस्ट्रम तथा आम भाषा में खीस कहते हैं) अवश्य ही देना चाहिए, क्योंकि इस दूध से बच्चे को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।

जब बच्चा 15 दिन का हो जाए तो उसे एचएस का 30-40 मिली. सीरम का टीका लगवाना चाहिए।

बच्चे के जन्म के 15 दिन के बाद कॉस्टिक छड़ी के द्वारा सींग रोधन कर देना चाहिए।

बच्चे की 3 महीने की उम्र हो जाने के बाद एंथै्रक्स का टीका और इसके 15 दिन के बाद बीक्यू का टीका जरूर लगवाना चाहिए।

पशुओं के बच्चों की देखभल इस प्रकार से करें-

उम्र/दिन

खीस/दूध (लीटर)

बीमारी

बचाव के लिए दवा

1

2

सूंड बंद करना

सफेद दस्त

नाभि के रोग

ओरोमोइसिन पोषक फार्मूला 2 चम्मच (मुंह के द्वारा)

 

2

2

रतौंधी

विटामिन ‘ए’ शुद्व (विटा ब्लैंड)1 मिली.

3

2

एस्कोरिएसिस व दस्त रोग

एक टिकिया एंट्रोवायोफार्म, इसके 6 घंटे बाद 1 औंस पैराफिन ऑयल

4

2

पेचिस या सफेद दस्त रोग

1/2-1 टिकिया स्ट्रनासिन

5

2

प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए (भैंस के बच्चों में)

भैंस का एटीसीएम 50 मिली. एससी

8

3

काक्सीडियोसिस

सल्मिट कोर्स 4 दिनों तक

*10 ग्राम खनिज मिश्रण प्रतिदिन, टीएम 5 या आरोफैंक प्रतिदिन, 1 लाख आईयू वाली विटामिन ‘‘ए’’ सप्ताह में एक बार।

लेखकः सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रोफसर के पद पर कार्यरत हैं।