वर्षा ऋतु में पशुओं में लगने वाले प्रमुख रोग

                    वर्षा ऋतु में पशुओं में लगने वाले प्रमुख रोग

    पशुओं के माध्यम अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए पशु का स्वथ्य रहना अत्यंत आवश्यक है। इस मौसम का प्रभाव पशु के स्वास्थ्य पर काफी पड़ता है। बरसात के दौरान फैलने वाली प्रमुख बीमारियों में गलघोंटू, लीवर पल्यूक, अपच और थनैला आदि हैं।

गलघोंटूः

                                                             

यह वायरस के द्वारा फैलने वाला एक प्रमुख रोग है, जो कि वर्षा ऋतु में फैलता है। इस रोग में प्रभावित पशु के गले, गर्दन और जीभ पर सूजन आ जाती है और उसकी नाक से गाढ़ा पानी निकलता है। मुँह, नाक, कान और आँख आदि की झिल्लियाँ बैंगनी रंग की हो जाती हैं,  पशु का गोबर पतला और रक्तयुक्त हो जाता है। पशु के गले की सूजन कड़ी होने के साथ ही दर्दभरी भरी रहती है। गले में सूजन की अधिकता के कारण पशु के गले से खर्र-खर्र की आवाज आती है।

उपचारः इस रोग से मुक्ति के लिए पशु को एच. एस. का एंटी सीरम देना चाहिए। इसके साथ ही रोगी पशु को स्वस्थ्य अन्य पशुओं से अलग कर देना चाहिए।

रोकथामः ऑयल एडजूकेन्ट का टीका प्रत्येक छह माह के ऊपर उम्र के पशुओं को प्रतिवर्ष बरसात से पूर्व ही लगवा देना चाहिए।

लीवर पल्यूक या जिगर का कीड़ाः

                                                        

यह रोग गसय, भैंस और बकरियों में पाया जाता है। इस रोग का कारण कीट होता है, जो कि अपना प्रकोप पशु के जिगर पर करता है। अधिकांशतः यह रोग रूके हुए पानी जैसे जोहड़, तालाब के आसपास लगी घास खाने या उसके पानी को पीने से होता है।

रोग के लक्षणः इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु अथवा इसके बाद होता है। इस रोग की चार अवस्थाएं होती है। रोग की पहली अवस्था में यह कीडे पशु के जिगर पर आक्रमण करते हैं, इसके दो महीने के बाद इस रोग की दूसरी अवस्था प्रारम्भ हो जाती है। इस अवस्था में कीड़े बड़े हो जाते हैं और पशु सुस्त हो जाता है तथा उसकी आँखों की झिल्ली सफेद या पीली होना शुरू हो जाती हैं।

    रोग की तीसरी अवस्था में पशु का रक्त पतला होना शुरू हो जाता है तथा पशु की आँखें धंस जाती हैं। प्रभावित पशु चारा खाना बन्द कर देता है। इस अवस्था में पशु के जबड़ों के नीचे पानी उतर आता है, यह अवस्था सबसे खतरनाक मानी जाती है, क्योंकि इस रोग के कारण लगभग 50 से 60 प्रतिशत पशु मर जाते हैं। चौथी अवस्था के आते आते जो पशु तीसरी अवस्था से बच जाते हैं, उनके अन्दर रहने वाले कीड़े गोबर के रास्ते से बाहर आकर तालाब के पानी में जाकर बीमारी को फैलाते हैं।

बचावः इस रोग से बचाव के लिए जहाँ तक सम्भव हो सके बीमार पशु को चारागाह में छोड़ने से पहले ही घर से भरपेट पानी लिाकर भेजें। पशुओं का स्वच्छ पानी पिलाएं। बीमारी का उपचार कराने से पहले पशु के गोबर की जाँच पशु रोग निदान प्रयोगशाला से करानी चाहिए।

अपच या इन्डाईजेशनः

                                                                

वर्षा ऋतु में अक्सर पशुओं को अपच रोग की समस्या हो जाती है, जिसका कारण पशुओं के चारे में मिट्टी का शामिल होना होता है। इससे पशुओं की पाचन शक्ति अत्यन्त क्षीण हो जाती है।

रोग से बचावः पशुओं को तालाब, नदी आदि का पानी न पिलाएं। चारागाह में घोघे आदि की रोकथाम कर पशु को साफ और अच्छा चारा खाने को दें। प्रति दो या तीन दिन नमक अथवा हाजमे का चूर्ण 25 से 30 ग्राम दें। गोबर और पेशाब की जाँच पशु चिकित्सक से कराएं क्योंकि हो सकता है कि पशु के पेट में कीड़ें हो, यदि ऐसा है तो पशु का उपचार पशु चिकित्सक से कराएं।