UNIQUE CHARACTERISTICS OF A GIR COW Publish Date : 19/04/2023
UNIQUE CHARACTERISTICS OF A GIR COW
Dr. R. S. Sengar, Dr. Reshu Chaudhary and Mukesh Sharma
- HUMP: Bulgy humps containing a specific vein called Surya-Ketu Nadi.
- EYES: Hooded and Black Pigmented. They have a lot of loose skin around their eye area.
- FOEHEAD: They have a prominent forehead which is round in shape.
- EARS: Long and pendulous, resembling a curled–up leaf.
- DEWLAP: Floppy skin below the neck. It gives them immunity power.
- HORNS: They grow downwards and backwards with a curvy upward.
डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के लिए कोरोना अधिक घातक
कोरोना संक्रमण और इसके दुष्प्रभावों को लेकर शोधकर्ता नित नई जानकारियां जारी करने का सिलसिला निरंतर चल रहा है। भारत में एक बार फिर से बढ़ रहे कोरोना के मामलों के बीच अब एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि सार्स-कोव-2 वायरस डिमेंशिया से पीडित मरीजों की बीमारी को और अधिक बढ़ाता है।
यह अध्ययन बंगाल के एक क्लीनिक के माध्यम से किया गया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष अल्जाइमर्स डिजीज के द्वारा प्रकाशित किया गया है। हालांकि, सार्स-कोव-2 मानवीय अनुभूति को किस हद तक प्रभावित करता है, यह न्यूरोलोजिस्ट अभी तक स्पष्ट नहीं कर पाए हैं।
शोधकर्ताओं के द्वारा डिमेंशिया के समस्त प्रकार के प्रभिागियों पर किए गए अपने इस अध्ययन में पाया कि सार्स-कोव-2 इन सभी के ऊपर अपना प्रभाव तीव्र गति से छोड़ता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने डिमेंशिया से पीड़ित 14 मरीजों की संज्ञनात्मक बघिरता का परीक्षण किया, वे लम्बे समय तक सार्स-कोव-2 से संक्रमित रहे थे। डिमेंशिया के इन रोगियों में से चार अल्जाइमर, पांच वैस्कुलर डिमेंशिया, तीन पॉकिन्सन और दो फ्रंटोटेम्परोल डिमेंशिया से पीड़ित थे। इसी कारण शोधकर्ताओं ने डिमेंशिया रोग से पीड़ित लोगों को कोविड-19 से सावधान रहने की सलाह दी है।
कीड़ों को चूमने वाली डिवाइस
जानवरों के प्रति लगाव रखना अपने आप में काफी आम बात है, परन्तु अमेरिका के जस्टिन का विभिन्न प्रकार के कीड़ों के प्रति लगाव आज एक चर्च का विषय बन चुका है। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर के द्वारा कीड़ों को चूमने के लिए एक विशेष प्रकार की डिवाइस ‘‘बगकिस’’ को तैयार किया गया है। इस डिवाइस में आगे की ओर छोटे-छोटे होंठ लिप्स बने है और एक लम्बी स्प्रिंग भी लगाई गई है।
सिलिकॉन बाइट पीस को व्यक्ति अपने मुँह से पकड़ कर किसी भी कीड़े को नुकसान पहुंचाए बिना चूमा जा सकता है। जस्टिन ने बताया कि इस दौरान कीड़ों से अपनी आंखों के सम्पर्क में आने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर कीड़े डर भी सकते हैं।
जस्टिन स्वयं इस डिवाइस की सहायता से चीटियों, कैटरपिलर, टिड्ड़ा, मच्छर, घोंघा, मकड़ी और केंचुआ आदि के सहित अन्य कई कीड़ों का चुम्बन कर चुके हैं।
सबसे अधिक पढ़े-लिखे एवं शोधकर्ताओं की आवश्यकता इस समय खेती में
हमारे गांवों के अधिकांश नवयूवक कॉलेज तक की अपनी पढ़ाई को पूरी करने के बाद खेती-किसानी से दूरी यह सोचकर बनाते हैं कि यह काम कम पढ़े-लिखे लोगों का होता है। परन्तु अब हमारी नई पीढ़ी धीरे-धीरे ही सही अब इस बात को समझनें लगी है कि खेती के बिजनेस पर सबसे कम ध्यान दिया गया है, जबकि इस क्षेत्र में बहुत अवसर उपलब्ध हैं, जिसके कुछ साक्ष्य इस प्रकार से हो सकते हैं-
हममें से कई लोगों ने देखा होगा कि इस वर्ष के मार्च माह में दिल्ली में हुई जी-20 विदेश मंत्रियों की मीटिंग में 1.3 लाख ट्यूलिप बल्ब (फूल) नीरलैण्ड़ से मंगाए गए थे और उन् क्षेत्र को खुशबुदार बनाने के लिए एनडीएससी के आसपास पास लगाया गया था।
इसी के बीच चर्चा चली कि अभी 5 लाख ट्यूलिप और मंगाए जाएंगे। हिमाचल प्रदेश के लाहौल एवं स्पीति जिले के मुदग्रान गाँव के रहने वाले विक्राँत ठाकुर (29) प्रदेश ऐसे 20 किसानों में से एक हैं जिन्होनें ट्यूलिप को उगाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था, जो उन्होंने काउंसिल ऑफ सांइटिफिक एण्ड इंडस्ट्रियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी से प्राप्त किया था।
विक्राँत ठाकुर को ट्यूलिप में अवसर को पहिचाना और अपनी पारिवारिक जमीन पर होने वाली पत्तागोभी-प्याज की फसल को छोड़कर उन्होंने अपनी ऊर्जा को पुष्पों की खेती अथवा कहा जाए तो महंगे ट्यूलिप की खेती करने में व्यय की। ट्यूलिप की खेती करने के दौरान ही उन्हें ज्ञात हुआ कि फूलों की खेती करने में किसी प्रकार के कीटनाशक अथ्वा किसी भी प्रकार के स्प्रे ादि की आवशयकता नही होती, इनमें कोई बीमारी भी नही लगती और इसी के साथपिु ही फूलों को एक बार लगाने के बाद कोई विशेष मेहनत भी नही होती है।
अटल टनल के शुरू हो जाने के बाद परिवहन के दौरान आने वाली लाग भी काफी कम हो गई है। वर्तमान में विक्राँत ठाकुर के 40 हजार ट्यूलिप जून में बाजार में आने के लिए तैयार हैं, जबकि यह इन फूलों का सीजन भी नही होता है, तो ऐसे में उन्हें दिल्ली के बाजार में इसके 100 रूपये प्रति फूल बिक जाने की पूर्ण आशा है। केवल लेह, लाहौल एवं स्पीति ही नही अपितु हैदराबाद, ऊँटी और तंजौर आदि के किसान भी अब इसी फूल के साथ प्रयोग कर रहे हैं, जिसके परिणाम भी उन्हें उचित ही प्राप्त हो रहे हैं।
महाराष्ट्र राज्य में स्थित कोल्हापुर के पहाड़ी क्षेत्रों के 15 से अधिक किसानों ने जनवरी से मई माह के बीच नचनी को उगाने का निर्णय किया है, जबकि इस फसल की बुआई खरीफ के मौसम में जून से अक्टूबर के मध्य की जाती है। वर्ष 2018 में किया गया यह प्रयोग अपने आप में काफी अनोखा था, क्योंकि कृषि विश्वविद्यालयों के छात्रों को भी इस फसल को गर्मी की फसल के रूप में उगाना नही सिखाया गया था और न ही उनके पास ऐसा कोई डाटा उपलब्ध था, जो कि इस फसल की सफलता के बारे में कोई साक्ष्य उपलब्ध करा सके।
Writer: Dr. R. S. Sengar, is the professor of Sardar Vallabhbhai Patel Uniersity of Agriculture & Technology Meerut and Head of the Department of Agriculture Bio-Technology of the College of Agriculture.
Disclaimer: The Word that given above is his own words.