रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती      Publish Date : 30/01/2025

                          रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती

                                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

हरित क्रांति ने भारतीय कृषि को न केवल खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर किया, बल्कि कृषि आय में भी आशातीत वृद्वि की है। इस गौरवशाली उपलब्धि को प्राप्त करने में कृषि विस्तार ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विश्व विकास रिपोर्ट (वर्ष 2008) ने भी बढ़ती माँग-आपूर्ति के दबाव के खिलाफ कृषि की विकास क्षमता को साकार करने, टिकाऊ, समावेशी और गरीबी-उन्मूलन कृषि और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए कृषि विस्तार को केंद्रीय रूप में पहचाना है।

                                                                      

भारत में कृषि विस्तार सेवाओं का प्रमुख उद्देश्य किसानों तक नवीनतम कृषि तकनीकों, वैज्ञानिक जानकारी और नवाचारों का प्रभावी प्रसार करना है, ताकि वे फसल उत्पादन में सुधार कर सकें और अपनी आजीविका को बेहतर बना सकें। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि विज्ञान केंद्र भाकृअनुप, देश में कृषि अनुसंधान और विस्तार के लिए एक प्रमुख संगठन है। यह वैज्ञानिक अनुसंधान और कृषि शिक्षा के माध्यम से किसानों तक नई कृषि तकनीकों को पहुंचाने का काम करता है।

परिषद के अधीन कृषि विज्ञान केंद्र, पूरे भारत में 700 से अधिक स्थानों पर स्थित हैं, जो कृषि की जरूरतों के अनुसार किसानों को प्रशिक्षित और प्रदर्शन परियोजनाओं के माध्यम से जानकारी प्रदान करते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र कृषि तकनीक, जैविक खेती, फसल विविधीकरण, भूमि सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन जैसी  विभिन्न तकनीकों के प्रचार-प्रसार में प्रमुख भूमिका ‘कृषि ज्ञान प्रसार केवल जानकारी प्रदान करने तक ही सीमित नहीं है, यह किसानों को प्रशिक्षित करके उनकी क्षमताओं का विकास करने पर भी केंद्रित है।

हाल के वर्षों में, कृषि विस्तार के पारंपरिक तरीकों के स्थान पर बहुलवादी कृषि विस्तार का प्रचलन बढ़ा है। इस प्रणाली में सरकार, निजी, गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.), किसान संगठनों और अन्य हितधारकों की सहभागिता शामिल होती है। यह बहुलवादी दृष्टिकोण कृषि विस्तार में विविधता और नवाचार लाता है। इससे विभिन्न स्तरों पर किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता में वृद्वि होती है।

                                                                   

इस परिवर्तन से कृषि में अधिक समग्र और प्रभावी समाधान उत्पन्न हो रहे हैं, जो किसानों की जीवन स्थिति को बेहतर बनाने में सहायक सिद्व हो रहे हैं।

विभिन्न प्लेटफॉर्म और मोबाइल आधारित प्रसार मोबाइल और डिजिटल प्लेटफार्मों ने कृषि ज्ञान के प्रसार को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया है। किसान सुविधा ऐप, ई-नाम पोर्टल और किसान कॉल सेंटर जैसी सरकारी पहलें किसानों को फसल प्रबंधन, बाजार मूल्य और अन्य कृषि सेवाओं की जानकारियां मोबाइल के माध्यम से प्रदान कर रही हैं। किसान कॉल सेंटर पर कृषक अपनी स्थानीय भाषा में विशेषज्ञों से परामर्श लेकर खेती संबंधी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

मोबाइल ऐप जैसे किसान सुविधा, मेघादूत और स्काईमेट किसानों को उनके क्षेत्र के मौसम का सटीक पूर्वानुमान प्रदान करते हैं। यह ऐप बारिश, तापमान, आर्द्रता और हवा की स्थिति जैसी जानकारी देकर किसानों को फसल की बुआई, सिंचाई और फसल कटाई के सही समय के विषय में निर्णय लेने में सहायता प्रदान करते हैं।

ड्रोन तकनीक का उपयोग सरकार ने ड्रोन तकनीक को कृषि में लागू करने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं। ‘कृषि ड्रोन’ पहल के तहत, ड्रोन किसानों की फसल का सर्वेक्षण करने, कीटनाशकों का छिड़काव करने और फसलों की वृद्वि की निगरानी करने आदि कार्यों में मदद करते हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों के द्वारा आयोजित किसान खेत प्रदर्शन (ओ.एफ.टी.), प्रशिक्षिण कार्यक्रम और कार्यशालाएं किसानों को नई तकनीकों को समझने और उन्हें अपनाने में सहायता करती हैं।

                                                             

पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.) मॉडल सरकार और निजी कंपनियों के बीच साझेदारी के माध्यम से तकनीकों का प्रसार एक प्रभावी तरीका है। निजी कंपनियां किसानों को तकनीकी सहयोग, उपकरण और बाजार तक सीधी पहुंच प्रदान करती हैं, जबकि सरकार  नीतिगत  सहायता  और  सब्सिडी उपलब्ध करवाती है। आई.टी.सी0 का ई-चौपाल एक सफल पी.पी.पी. मॉडल है।

इसके माध्यम से किसानों को मौसम की जानकारी, बाजार मूल्य और खेती के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में जानकारी ऑनलाइन माध्यम से उपलब्ध करवाई जाती है। यह पहल 35,000 से अधिक गांवों में 4 मिलियन किसानों तक पहुंच चुकी है। इसके माध्यम से किसान सीधे बाजार से जुड़कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं। ड्रोन को बढ़ावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान केंद्र, राज्य कृषि विश्वविद्यालय और अन्य सरकारी कृषि संस्थानों के द्वारा ड्रोन की खरीद पर 100 प्रतिशत या अधिकतम 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

किसान उत्पादक संगठनों (एफ.पी.ओ.) को किसानों के खेतों में ड्रोन के प्रदर्शन के लिए 75 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है, जबकि ड्रोन किराये पर लेने वाली एजेंसियों को 6000 रुपये प्रति हैक्टर आकस्मिक व्यय और अधिकतम 40 लाख रुपये तक की सहायता प्रदान की जाती है।

किसानों की सहकारी नई पहलें हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने कृषि में नवाचार और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई नई पहलें लागू की गई हैं। इनमें ‘कृषि 4-0’ जैसे कार्यक्रम शामिल हैं, जो डेटा एनालिटिक्स, आर्टिपिफशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आई.ओ.टी.) के माध्यम से किसानों को बेहतर निर्णय लेने में सहायता करते हैं।

इसके साथ ही, प्रधानमंत्राी किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना ने किसानों की वित्तीय सहायता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे उन्हें उन्नत तकनीकें अपनाने में मदद मिली है। हाल ही में शुरू की गई कार्बन क्रेडिट योजना भी कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल है। इस योजना के तहत, किसान अपनी खेती में हरित प्रौद्योगिकियों और पर्यावरण के अनुकूल पद्वतियों को अपनाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्राप्त कर सकते हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्वि होती है, बल्कि वे पर्यावरण संरक्षण में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

उदाहरण के लिए, अगर किसान जैविक खेती या अन्य टिकाऊ पद्वतियों को अपनाते हैं, तो उन्हें कार्बन क्रेडिट के रूप में लाभ मिल सकता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

भारत में कृषि ज्ञान प्रसार तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारी को किसानों तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान केंद्र, निजी कंपनियां और एन.जी.ओ. मिलकर किसानों को नवीनतम कृषि तकनीकें, नवाचार और बाजार की जानकारी तक पहुंच प्रदान कर रहे हैं। लेकिन किसानों की विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, इन प्रसार सेवाओं को और अधिक  सुलभ, समावेशी और प्रभावी बनाना आवश्यक है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।