प्राकृतिक खेती से बढ़ाएं आय Publish Date : 28/08/2024
प्राकृतिक खेती से बढ़ाएं आय
डा. आरस सेंगर
“शून्य बजट/कम बजट प्राकृतिक खेती, खेती का एक नया तरीका है, जिसे ‘पुनः पारंपरिक खेती की और ’ या खेती के आधार के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसमें उत्पादन की लागत शून्य मानी जाती है (एफ.ए.ओ., 2016)। इसे ‘जरो बजट अध्यात्मिक खेती’ के रूप में भी जाना जाता है। इसमें पारंपरिक कृषि पद्धतियों को शामिल किया जाता है, जिनमें खेत पर उपलब्ध संसाधनो से ही खेती होती है। तथा बाहरी फसल आदानों की आवश्यकता नहीं होती है। खेती के लिए खेत के बाहर से कुछ भी नहीं खरीदना पड़ता है।”
खेत में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग पौधों की वृद्धि के लिए किया जाता है, ताकि मृदा की उत्पादकता और फसल की उपज में सुधार हो सके।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती के स्तंभ
शून्य बजट प्राकृतिक खेती टिकाऊ कृषि-पारिस्थतिक प्रणाली के दृष्टिकोण पर आधारित है और यह पारिस्थतिक तंत्र को संतुलित करने में मदद करती है । शून्य बजट प्राकृतिक खेती के सिद्धांत सुभाष पालेकर द्वारा वर्णित शून्य बजट प्राकृतिक खेती के चार संचालक जीवमृत, बीजमृत, आच्छादन (पलवार) एवं व्हापासा (नमीध्मृदा वातन) हैं।
जीवामृत
यह गाय के गोबर और मूत्र, गुड़, दाल के आटे, पानी एवं मृदा से तैयार सूक्ष्मजीवों का किण्वित मिश्रण होता है। यह मृदा लाभकारी सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ता है और मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि करता है। विभिन्न प्रक्षेत्र परीक्षणों के परिणामों ने पुष्टि की है कि जवामृत, फसलों के विकास और उपज कारकों की वृद्धि में सहायक है। सुभाष पालेकर के अनुसार, प्रति हैक्टर भूमि पर लगभग 500 लीटर जीवामृत की आवश्यकता होती है । इसका महीने में दो बार छिड़काव करना चाहिए। 12 हैक्टर क्षेत्रफल के लिए जीवामृत बनाने के लिए एक गाय पर्याप्त होती है।
बीजामृत
इसको गाय के गोबर एवं मूत्र तथा दलहनी फसलों के बीजों को बीजामृत से उपचारित करके बुआई करते है, तो अंकुरण दर, अंकुर वृद्धि और बीज ओज सूचकांक में वृद्धि होती है।
आच्छादन (पलवार)
इससे अभिप्राय मृदा सतह को फसल अवशेषों या आवरण फसलोें से ढकना है। इसका मुख्य उद्देश्य मृदा नमी का संरक्षण, मृदाजलधारण क्षमता में वृद्धि एवं खरपतवारें का प्रबंधन में परिवर्तन है जहां मृदा में मौजूद हवा और पानी के अणु पानी की उपलब्धता और पानी के उपयोग की दक्षता को बढ़ाने में मदद करते है।ं अंतर-फसल, वर्षा जल संग्रह के लिए समोच्च एवं मेंड़ का निर्माण, केंचुओं की स्थानीय प्रजातियों का उपयोग अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती एवं आय
शून्य बजट प्राकृतिक खेती से होने वाले लाभों पर साक्ष्य एवं तथ्य जुटाने के लिए व्यापक प्रक्षेत्र अध्ययनों की आवश्यकता है। देश में लागू करने से पहले शून्यध्कम बजट प्राकृतिक खेती पद्धति की प्रभावकारिता का मूल्यांकन अग्रगामी परियोजना के रूप में किया जाना नितांत आवश्यक है। व्यापक प्रसार से पहले शून्य बजट प्राकृतिक खेती की आर्थिक व्यवहार्यता एवं दीर्घकालिक प्रभाव का वैज्ञानिक आकलन बहु-स्थानीय अध्ययनों के द्वारा किया जाना चाहिए।
सारणी 1. दलहनी फसलों के अंकुरण, अंकुर वृद्धि एवं बीज ओज सूचकांक पर बीजामृत का प्रभाव
फसल उपचार अंकुरण प्रतिशत अंकुरण की लंबाई (सें.मी) पौध की लंबाई (सें.मी) बीज ओज सूचकांक
मोठ नियंत्रण 83 3.48 5.42 450
जीवामृत 95 4.26 7.1 675
मूंग नियंत्रण 97 3.12 5.51 534
जीवामृत 85 2.54 4.16 354
मूंगफली नियंत्रण 81 2.75 8.45 684
जीवामृत 93 6.48 18.22 1694
सारणी 2. आधं्र प्रदेश में शून्य बजट प्राकृतिक खेती एवं गैर-शून्य बजट प्राकृतिक खेती के बीच उपज और शुद्ध आय में अंतर
फसल उपज(क्विंटलध् हैक्टर) शुद्ध आय (रू हैक्टर)
शून्य बजट प्राकृतिक खेती गैर-शून्य बजट प्राकृतिक खेती प्रतिशत
अंतर शून्य बजट प्राकृतिक खेती गैर-शून्य बजट प्राकृतिक खेती प्रतिशत
अंतर
धान (सिंचित) 54.18 49.60 9.23 60,743 40,355 50.52
रागी 15.39 13.13 17.2 31,590 25,195 25.38
मक्का 56.91 51.02 11.54 95,304 62,050 53.59
मंूग 43.04 35.13 22.52 48,000 34,186 40.01
सारणी 3. कर्नाटक में शून्य बजट प्राकृतिक खेती को अपनाने से सामाजिक, आर्थिक एवं कृषि-पारिस्थितिक प्रतिशत लाभ (अध्ययन में शामिल कृषक परिवारांे की संख्या 90 )
घटक कमी कोई बदलाव नही वृद्धि
उपज 12.80 8.50 78.70
मृदा संरक्षण 2.10 4.30 93.60
बीज विविधता 12.80 10.30 76.90
कीट आक्रमण 84.10 4.50 11.40
उत्पाद गुणवक्ता 4.40 4.40 91.10
बीज स्वायत्तता 2.40 4.90 92.70
घरेलु खाद्य स्वायत्तता 4.90 7.30 87.80
बिक्री मूल्य 7.90 34.20 57.90
आय 4.80 9.50 85.70
उत्पादन लागत 90.90 2.30 6.80
ऋण की आवश्यकता 92.50 3.80 3.80
शून्य बजट प्राकृतिक खेती की आशंकाए
जीरो बजट प्राकृतिक खेती ने अपने संभावित आर्थिक और र्प्यावारण लाभों के कारण ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया है। कई विशेषज्ञों को शून्य बजट प्राकृतिक खेती पद्धति के प्रर्दशन और प्रभाविता पर संदेह है। केवल सीमित अध्ययनों से यह दावा करने के लिए उपलब्ध है। कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती कृषि आदानों की लागत में उल्लेखनीय कमी और उपज में वृद्धि करती है। कई अध्ययनों से यह भी पता चला है कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती को अपनाने के कुछ वर्षों के बाद आमदनी में गीरावट आनी शुरू हो जाती है। शून्य बजट प्राकृतिक खेती में उत्पादन लागत शून्य नहीं है। उन्हें सिंचाई, मशीनरी और उपकराणों जैसे आदानों पर खर्च करना पड़ता है लाभप्रदता के मुद्दे पर किए गये अध्ययनों से ज्ञात हुआ हैै कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती को अपनाने के कुछ वर्षों के बाद किसानों ने पुनः पारंपरकि खेती की ओर रूख किया है (आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिकी, वर्ष 2019)