किसान की समृद्वि का मंत्र ‘‘खेत एक, फसलें अनेक’’ Publish Date : 11/04/2024
किसान की समृद्वि का मंत्र ‘‘खेत एक, फसलें अनेक’’
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 कृषाणु एवं मुकेश शर्मा
खेती किसान के लिए जल संकट, जलवायु परिवर्तन और आए दिन आने वाली नित नई बीमारियों से बचने, अपनी आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ रखने और खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिए बिना खर्चे वाली ‘‘प्राकृतिक खेती’’ और ‘‘खेत एक, फसलें अनेक’’ के मंत्र का जाप करना बेहद जरूरी है। यही वर्तमान समय की मांग है और इसी में हम सबकी विभिन्न प्रकार की समस्याओं से सम्बन्धित सभी प्रश्नों के हल भी छिपे हुए हैं।
ओमीक्रॉन बहुत से देशों में तेजी से फैलता जा रहा है और वह भी तब, जब अधिकतर देशों में शत-प्रतिशत वैक्सीनेशन का कार्य पूर्ण हो चुका है। तो क्या अब हम यह मानकर चलें कि इंसान के शरीर में अब इतनी ताकत नहीं रही कि वह किसी भी रोग से लड़ सके? क्या इंसानी शरीर पर आधुनिकता के दुष्प्रभाव दिखने लगे हैं? क्या हमारा भोजन पहले जैसा पौष्टिक और शुद्ध नहीं रहा? क्या हम पैसों के लालच में गुणवत्ता युक्त खाद्य सामग्री का उत्पादन करना भूल गए हैं? क्या हमें सिर्फ दवाइयों के दम पर ही जिंदा रहना पड़ेगा? क्या हम कोरोना जैसी महामारियों से बच पाएंगे?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके उत्तर हम सबको खोजने ही पड़ेंगे, अन्यथा हम आगे आने वाली पीढ़ी को जवाब देने लायक नहीं रहेंगे। इसलिए जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी इन प्रश्नों के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू करें। हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना ही होगा और इस आधुनिक जीवनशैली में तमाम बदलाव करना पड़ंेगे, ताकि हमारा शरीर पहले जैसा मजबूत हो सके, इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले जैसी ही हो सके।
हमारे शरीर की मजबूती और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है, हमारे द्वारा लिए जाने वाले दैनिक आहार में अन्न का और इस अन्न को यूं ही ब्रह्म नहीं कहा गया है। हमारे अस्तित्व के सात तलों में से जो पहला तल है, यानी कि हमारा भौतिक शरीर, उसे योग की भाषा में ‘‘अन्नमय कोष’’ कहते हैं, अर्थात जो अन्न या आहार से बनता हो, वह होता है ‘‘अन्नमय कोष,’’ यानी हमारा भौतिक शरीर। हम समझ सकते हैं कि शुद्ध और पौष्टिक आहार की अपने शरीर को स्वस्थ व ऊर्जावान बनाए रखने में क्या अहमियत है।
सबसे पहले हमें इस बात पर विचार करना है कि हमारे परिवार को शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक भोजन कैसे प्राप्त हो। अभी समय के अभाव और आधुनिकता के कारण हम लोग ‘‘फास्ट फूड्स’’ का सेवन अधिक कर रहे हैं, जो कि हमारे शरीर के लिए बिल्कुल भी सही नहीं होता है। वहीं दूसरी ओर हम जो फल, सब्जी और अनाज खा रहे हैं उनको उगाने और पकाने में इतना केमीकल इस्तेमाल किया जा रहा है कि हमारा पूरा भोजन ही जहरयुक्त हो चुका है। इसको खाकर हम दिन-प्रतिदिन बीमार होते जा रहे हैं और हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कमजोर हो चुकी है कि हमारा शरीर किसी भी रोग से दो दिन भी नहीं लड़ पाता, और इसके निदान के लिए हमें तुरंत ही डॉक्टर के पास भागना ही पड़ता है।
यहां फिर एक सवाल आता है कि हमारे इतने आधुनिक और अमीर होने का क्या फायदा जब हमारा शरीर ही स्वस्थ नहीं है? इस परिप्रेक्ष्य में बस आप इतना समझ लीजिए कि आने वाला समय आपके लिए बहुत कठिन होने वाला है। यदि आपने अपने भोजन और अपनी जीवनशैली में परिवर्तन नहीं किया तो आगे और भी भयंकर परिणाम भुगतने होंगे। अब वक्त है संभल जाने का। बेहतर होगा कि जल्द-से-जल्द आप अपनी खेती करने के अपने वर्तमान तरीके को बदल लें और वापस अपने पूर्वजों के तौर-तरीकों को अपना लें, यानी कि फिर से बिना खर्चे की और बिना जहर वाली बहुफसली खेती प्रणाली को ही अपना लें इसी में हम सभी की भलाई है।
इसी बहुफसली प्रणाली में ही हमारी इन सभी समस्याओं का समाधान व्याप्त है। हमें एकल फसल प्रणाली और रासायनिक खेती से छुटकारा पाने के लिए लड़ना होगा, तभी हमारी दन सभी समस्याओं का हल निकलेगा। पहले अपने घर की जरूरत की हर चीज को अपने खेत में लगाएं और फिर बचे हुए रकबे में सरकार और बाजार के लिए अन्य कुछ उगाएं। अधिक-से-अधिक फसलें अपने खेतों में लगाएं और रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के स्थान पर देशी खाद तथा प्राकृतिक कीटनाशकों को अपनाएं।
वर्तमान में रासायनिक खादों व कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप आज गांव-गांव तक कैंसर जैसी बीमारी ने पैर पसार लिए हैं। वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन की एक नई समस्या से भी हमें दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। रासायनिक खेती के कारण हम सिर्फ उत्पादन के लालच में एक या दो फसलों तक ही सीमित हो गए हैं और भारत में फिलहाल यह स्थिति है कि ‘‘एकल फसल प्रणाली’’ के चलते किसान अपने परिवार की जरूरत का अनाज भी अपनी जमीन से पैदा नहीं कर पा रहा है, उसे अपने परिवार की खाद्य सामग्री को खरीदने के लिए भी बाजार जाना पड़ रहा है।
इस समस्या का समाधान केवल यही है कि हमें ‘‘बहुफसली प्रणाली’’ या मिश्रित खेती प्रणाली को ही अपनाना होगा, जिसमें हत पहले अपने परिवार की जरूरत की सभी फसलों का उत्पादन करना होगा। साथ ही रासायनिक खादों व कीटनाशकों का पूर्णतः बहिष्कार करना होगा। यदि आप एक स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं और अपने परिवार को बीमारियों से दूर रखना चाहते हैं तो इतना तो आपको करना ही पड़ेगा। हमें फिर से अपने खेत में ज्वार, बाजरा, जौ, मक्का, रागी, अलसी, चना, मसूर, धनिया, मूंगफली एवं हर उस फसल का उत्पादन करना होगा जो हमारा परिवार इस्तेमाल करता है। हमें मोटे अनाज को अपने भोजन में शामिल करना होगा। तभी हम इन अनिमंत्रित बीमारियों के जाल से बच सकते हैं।
हम सब को प्रकृति का सहायक बनना है, उसका दुश्मन नहीं। ‘‘एकल फसल प्रणाली’’ से तौबा कर लें और प्रकृति की रक्षा करने वाली प्राकृतिक खेती की एक बार फिर से शुरूआत करें। हमेशा याद रखें कि श्खेत एक, फसलें अनेक से ही होगा, कृषि में परिवर्तन इसी से निकलेगा खुशहाली का रास्ता सिर्फ एकल फसल से कृषि में परिवर्तन नहीं होने वाला, क्योंकि हम किसान होकर भी यदि अनाज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं और खुद जहरयुक्त अनाज खा रहे हैं तो फिर हम पूरे विश्व को कैसे स्वस्थ रख पाएँगे। इसलिए हमें अभी से जहरमुक्त खेती की ओर कदम बढ़ाना होगा, और प्राकृतिक खेती करनी होगी, क्योंकि ‘‘जब होगा जहरमुक्त अनाज हमारा, तब होगा जहरमुक्त समाज हमारा।’’
अगर आप यह सोच रहे हैं कि इस तरह की खेती मुनाफा नहीं देगी तो आप बिलकुल गलत सोच रहे हैं। अपना स्मार्टफोन उठाकर देखिए, इंटरनेट प्राकृतिक खेती करके बड़ा मुनाफा कमाने वालों की दास्तानों से भरा पड़ा है। आने वाले समय में भांति-भांति के और जहरमुक्त भोज्य पदार्थों की भारी मांग होने वाली है। जो कोई अभी से खुद को इस मांग की आपूर्ति करने के लिए तैयार कर लेगा वह जमकर लाभ कमाएगा और जो इस बदलाव से अछूता रहेगा वह बाजार से बाहर हो जाएगा।
जल संकट, जलवायु परिवर्तन और आए दिन आने वाली नई बीमारियों से बचने, अपनी आने वाली पीढ़ियों को सलामत रखने और खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिए बिना खर्चे की ‘‘प्राकृतिक खेती’’ और ‘‘खेत एक, फसलें अनेक’’ के मंत्र को अपनाना जरूरी है। यही फिलहाल समय की मांग है और इसी में हम सबकी सभी समस्याओं और सभी प्रश्नों के हल छिपे हुए हैं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।