
जैव उर्वरक के प्रयोग की विधियां, लाभ व सावधानियाँ Publish Date : 23/02/2025
जैव उर्वरक के प्रयोग की विधियां, लाभ व सावधानियाँ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
जैव उर्वरक या बायो फर्टिलाइजर को जीवाणु खाद भी कहते हैं। बायो फर्टिलाइजर एक प्रकार के जीवित उर्वरक है, जिसमें सूक्ष्मजीव विद्यमान होते हैं। इन्हें फसलों में उपयोग करने से वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन, पौधों को अमोनिया के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। मृदा में पहले से उपस्थित अघुलनशील फॉस्फोरस व अन्य पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में परिवर्तित होकर पौधों या फसल को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
ये जीवाणु प्राकृतिक होते हैं, इसलिए इनके प्रयोग से मृदा की उर्वराशक्ति बढ़ती है और जीवों के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। बायो फर्टिलाइजर रासायनिक उर्वरकों के पूरक होते हैं, परन्तु विकल्प नहीं है।
रासायनिक खाद के लगातार और असंतुलित प्रयोग से हमारी कृषि भूमि और वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मृदा में जीवांश की मात्रा घटने से उसकी उपजाऊ शक्ति लगातार घटती जाती है। हमारे जलाशयों और जमीन का पानी दूषित होता है। बायो फर्टिलाइजर से काफी हद तक इस स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने तथा रासायनिक खादों के प्रभाव को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने प्रकृति द्वारा प्रदत्त जीवाणुओं को पहचान कर उनसे विभिन्न प्रकार के पर्यावरण हितैषी जैव उर्वरक तैयार किए गए हैं।
जैव उर्वरकों के प्रयोग में सावधानियाँ
जैव उर्वरक खरीदते समय उर्वरक का नाम, प्रयोग होने वाली फसल और अंतिम तारीख अवश्य जांचनी चाहिए। बायो फर्टिलाइजर को हमेशा छायादार स्थान पर ही रखना चाहिए। जैव उर्वरक को तारीख समाप्ति के बाद बिलकुल भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसल के अनुसार ही जैव उर्वरक का चयन करना चाहिए, नहीं तो फसल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। फसल और कम्पनी के मापदंड़ों के अनुसार खाद का प्रयोग उचित मात्रा में ही करना चाहिए।
जैव उर्वरक के प्रकार
राइजोबियमः राइजोबियम, जैव उर्वरक मुख्य रूप से सभी तिलहनी और दलहनी फसलों में सहजीवी के रूप में रहकर पौधों को नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है। राइजोबियम को बीजों के साथ मिश्रित करने के बाद बुआई करने पर जीवाणु जड़ों में प्रवेश करके छोटी-छोटी गांठें बना लेते हैं। इन गांठों में जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में रहते हुए, प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ग्रहण करके पोषक तत्वों में परिवर्तित करके पौधों को उपलब्ध करवाते हैं।
पौधों की जितनी अधिक गांठें होती हैं, पौधा उतना ही स्वस्थ होता है। इसका उपयोग दलहनी और तिलहनी पफसलों जैसे चना, मूंग, उड़द, अरहर, मटर, सोयाबीन, सेम, मसूर और मूंगफली आदि में किया जाता है।
एजोटोबैक्टरः एजोटोबैक्टर, मृदा और जड़ों की सतह में मुक्त रूप से रहते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पोषक तत्वों में परिवर्तित करके पौधों को उपलव्ध करवाता है। एजोटोबैक्टर सभी गैर दलहनी फसलों में प्रयोग होता है। एजोस्पिरिलम बैक्टीरिया और नीलहरित शैवाल जैसे कुछ सूक्ष्मजीवों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग करने और फसलीय पौधों को इस पोषक तत्व को उपलब्ध करवाने की क्षमता होती है।
यह खाद मक्का, जौ, जई और ज्वार चारा वाली फसलों के लिए बहुत उपयोगी होती है। इसके प्रयोग से फसल उत्पादन में 5 से 20 प्रतिशत तक वृद्वि होती है। बाजरा की 30 और चारा वाली फसलों की उत्पादन क्षमता में 50 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी सम्भव होती है।
मइकोराइजाः यह संवहनी पौधों की जड़ों के साथ कवक का सहसंभव संयोजन है। यह फॉस्फोरस को तेजी से पौधों को उपलब्ध करवाने में सहयोगी होता है। यह फल वाली फसलों के लिए पैदावार में बहुत फायदेमंद रहता है जैसे-पपीता आदि। फॉस्फोरस विलायक जीवाणु फॉस्फोरस विलायक जीवाणु, मृदा के अंदर की अघुलनशील फॉस्फोरस को घुलनशील फॉस्फोरस में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध करता है। इसका उपयोग सभी फसलों में किया जा सकता है, यह फॉस्फोरस की कमी को पूरा करता है।
जैव उर्वरकों की प्रयोग विधिः
बीज उपचार विधिः एक लीटर पानी में लगभग 100 से 110 ग्राम गुड़ के साथ जैव उर्वरक अच्छी तरह मिलाकर घोल बना लें। इस घोल को 20 कि.ग्रा. बीज पर अच्छी तरह छिड़ककर बीजों पर इसकी एक परत बना दें। इसके बाद बीजों को छायादार जगह पर सुखा लें, जब बीज अच्छे से सूख जाएं उसके तुरंत बाद बिजाई कर दंे।
कंद उपचार विधिः गन्ना, आलू, अरबी और अदरक जैसी फसलों में बायो फर्टिलाइजर के प्रयोग के लिए कंदों को उपचारित किया जाता है। एक कि.ग्रा. एजोटोबैक्टर और एक कि.ग्रा. फॉस्फोरस विलायक जीवाणु का 25 से 30 लीटर पानी में घोल तैयार कर लें। इसके बाद कंदों को 10 से 15 मिनट घोल में डुबो दें और फिर निकाल कर रोपाई कर दें।
पौध जड़ उपचार विधिः सब्जी वाली फसलें, जिनके पौधों की रोपाई की जाती है जैसे- टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी और प्याज इत्यादि फसलों में पौधों की जड़ों को जैव उर्वरकों द्वारा उपचारित किया जाता है। इसके लिए चौड़ा और खुला एक बर्तन लें। अब इसमें 6 से 8 लीटर पानी लें, एक कि.ग्रा. एजोटोबैक्टर और एक कि.ग्रा. फॉस्फोरस विलायक जीवाणु व 250 से 300 ग्राम गुड़ मिलाकर घोल बना लें। इसके बाद पौध को उखाड़कर उसकी जड़ें साफ कर लें और 70 से 100 पौधों के बंडल बना लें और अब उनको जैव उर्वरक के घोल में 10 से 15 मिनट के लिए डुबो दें और निकाल कर तुरंत रोपाई कर देते हैं।
मृदा उपचार विधिः 5 से 10 कि.ग्रा. बायो फर्टिलाइजर फसल के अनुसार, 80 से 100 कि.ग्रा. मृदा या कम्पोस्ट खाद का मिश्रण करके 10 से 12 घंटे के लिए छोड़ दें। इसके बाद अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें। जैव उर्वरक कृषि के लिए सरल व सुरक्षित होते है। बेहतर कल के लिए, इसका प्रयोग करना चाहिए और लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए। इसका प्रयोग करने से अपने खेत, पानी, पर्यावरण और स्वास्थ्य को बचा सकते हैं इसके अलावा फसल का उत्पादन भी हम कम लागत में अधिक ले सकते हैं।
जैव उर्वरक के लाभ
- जैव उर्वरक जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
- इन प्रयोग से अंकुरण जल्दी होता है। पौधों की शाखाओं में वृद्वि होती है या पाधों में फुटाव अधिक होता है।
- जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से रासायनिक खादों, विशेष रूप से नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की लगभग 15 से 25 प्रतिशत तक की आपूर्ति होती है।
- जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होने से खेती की लागत में कमी आती है।
- मृदा के काबर्निक पदार्थ में वृद्वि होती है। इसके साथ ही मृदा की भौतिक और रासायनिक संरचना में सुधार होता है।
- जैव उर्वरकों का उपयोग करने से फसल के उत्पान में 10 से 15 प्रतिशत तक की वृद्वि भी होती है।
- मृदा की क्षारीयता में भी उल्लेखनीय सुधार देखने को मिलता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।