
जैविक कृषि से प्राप्त होने वाले लाभ, समस्याएं और सम्भावनाएं Publish Date : 26/01/2025
जैविक कृषि से प्राप्त होने वाले लाभ, समस्याएं और सम्भावनाएं
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
लाभ-
- जैविक कृषि से भूमि की उपजाऊ क्षमता में पर्याप्त वृद्वि होती है।
- जैविक कृषि से सिंचाई के अंतराल में वृद्वि होती है।
- रासायनिक खाद पर निर्भरता के कम होने से लागत में भारी कमी आती है।
- फसलों की उत्पादकता में वृद्वि होती है।
- जैविक खाद का उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार होता है।
- भूमि की जलधारण क्षमता में भी वृद्वि होती है।
- भूमि से जल की वाष्पीकरण की दर कम हो जाती है।
- भूमिगत जल के स्तर में वृद्वि होती है।
- मृदा, खा़द्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आती है।
- कचरे के उपयोग से बनने वाली खाद से गंदगी कम होती है और इससे बीमारियां भी कम हो जाती हैं।
समस्याएं-
- जैविक खेती की तकनीकों के सम्बन्ध में जागरूकता का अभाव।
- किसानों में कम्पोस्ट खाद को तैयार करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने की जानकारी के साथ ही कम्पोस्ट खाद के प्रयोग करने के बारें में भी जानकारी पर्याप्त नही होती है।
- जैविक कम्पोस्ट तैयार करने के सम्बन्ध में किसानों को समुचित प्रशिक्षण प्रदान करना समय की माँग है।
- कुछ ऐसे प्रमाण भी उपलब्ध हैं कि देश में विभिन्न स्थानों पर गेहूँ की जैविक खेती करने वाले किसानों को पारंपरिक विधि से गेहूँ की खेती करने वाले किसानों की तुलना में कम कीमतें प्राप्त हुई, जबकि दोनों प्रकार के उत्पादों की विपणन लागतें भी समान थी और गेहूँ के खरीदार जैविक गेहूँ की अधिक कीमतें देने के लिए भी तैयार नही थे।
- उपलब्ध जैविक पदार्थ खाद की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त नही है, अर्थात जैविक पदार्थों का अभाव भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है।
- देश में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के खुदरा विक्रेताओं को अधिक लाभ प्राप्त होने के कारण और उत्पादकों के द्वारा व्यापक स्तर पर विज्ञापन अभियान के चलते भी जैविक सामग्रियों के बाजारों के लिए अनेक समस्याएं हैं।
- जागरूकता की कमी का होना भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- सहायता के लिए पर्याप्त सुविधाएं भी उपलब्ध नही हैं।
- वित्तीय समर्थन का अभव।
- निर्यात की माँग को पूरा करने में असक्षमता।
जैविक कृषि से सम्भावनाएं
- जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत में सामाजिक साँस्कृतिक पर्यावरण अनुकूल है। देश के कई छोटे और सीमांत किसानों के द्वारा अभी तक भी पूरी तरह से कृत्रिम खेती नही अपनाई गई है। ऐसे किसान पर्यावरण हितैषी और पारंपरिक प्रणाली का ही अनुसरण कर रहें हैं।
- भारत के जैसे देश में जैविक खेती प्रणाली को अपनाकर विभिनन प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। जैविक उत्पादों के लाभकारी मूल्य, मृदा की उर्वरता और जल उपयोग के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, मृदाक्षरण की प्रभावी रोकथाम, प्राकृतिक और कृषि जैव विविधता का संरक्षण आदि सभी शामिल हैं। इस विधा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन, उन्नत घरेलू पोषण, स्थानीय खाद्य सुरक्षा तथा बाहरी वस्तुओं पर निर्भरता में कमी जैसे आर्थिक तथा सामाजिक लाभ भी प्राप्त होंगे। इस प्रकार से जैविक खेती से पर्यावरण का संरक्षण और मानव के जीवन में गुणवत्ता में वृद्वि होगी।
- भारत में जैविक खेती की सम्भावनाओं के लिए मध्य प्रदेश एक उत्तम राज्य है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही बाजारों में अधिक लाभकारी कीमतें और उनकी आपूर्ति में कमी होना भारत के लिए तो किसी अवसर के जैसा ही है।
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन पिछड़े और अगड़े क्षेत्रों के बीच सम्पर्क को सुनिश्चित करता हुआ अनेक क्रियाकलापों को अंजाम देता है। इसके लिए यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसके अंतर्गत केवल वही क्रियाकलाप शामिल किए जाएं, जिनका उत्पादकता और उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में सकारात्मक प्रभाव पड़ता हो।
- भारत के प्रत्येक राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए जारी किए गए मार्ग-निर्देशकों और तकनीकी पुस्तिकाओं के आधार पर जैविक खेती पर आधारित कार्यक्रमों को लागू किया जाना चाहिए।
- भारत के राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को केवल उन्हीं के क्षेत्रों के लिए जैविक खेती के लिए प्रस्ताव दाखिल करना चाहिए जिन्हें वह पहले से जैविक खेती के अंतर्गत शामिल कर चुके हो।
स्वास्थ्य एवं पोषण के सम्बन्ध में जैविक कृषि के लाभ अपने आप में काफी लोकप्रिय हैं। अतः अधिक से अधिक किसानों को जैविक कृषि, जैविक आदानों का खेतों में उत्पादन एवं ऐसे खेतों में जैविक प्रबन्धन के अंतर्गत लाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही जैविक किसानों को पर्याप्त प्रोत्साहन की भी महत्ती आवश्यकता है, जिसे कि उत्पादों की मात्रा एवं उनकी गुणवत्ता में अपेक्षित वृद्वि की जा सके। इसके अतिरिक्त उचित विपणन रणनीतियों को तलाश करने की आवश्यकता है जिससे किसानों के लिए उनके उत्पादों के प्रति एक प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों को सुनिशिचत किया जा सके।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।