जैविक खेती के प्रभाव      Publish Date : 12/01/2025

                            जैविक खेती के प्रभाव

                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

आमतौर पर पादपों को 100 से भी अधिक पौषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो पर्यावरण में विभिन्न स्वरूप एवं अवस्थाओं में उपलब्ध रहते हैं। ये पौधों के लिए आवश्यक तत्वों को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर उनकों उपलब्ध कराने में सक्षम होते हैं। कुछ सूक्ष्म जीव तो ऐसे होते हैं जो पौधों के सहचर बनकर अनेक रासायनिक पदार्थों का अवशोषण करने मे सहायक होते हैं और अपनी इस क्रिया के द्वारा मृदा में उपलब्ध विषाक्त पदार्थों को दूर करने में सहायता प्रदान करते हैं।

                                                            

कुछ सूक्ष्मजीव ऐसे भी होते हैं जो पौधों की जड़ों में रहकर अथवा पौधो की जड़ों के साथ अथवा सहचर के रूप में उपलब्ध होकर इन विषाक्त पदार्थों को पौधों के जड़-तंत्र में ही रोक देते हैं, जिससे कि पौधों की पत्तियों, तनों एवं फलों तक इन विषाक्त पदार्थों का संचारण बाध्य हो जाता है  और इनके उत्पाद अंत में मानव स्वास्थ्य के लिए अति गुणकारी सिद्व होते हैं। इसके साथ ही साथ कुछ सूक्ष्म जीव ऐसे भी होते हैं जो इन हानिकारक तत्वों को संकुल रूप में बदल देते हैं, जिसको पौधे ग्रहण नही कर पाते और उनके उत्पाद विषाक्त होने से बच जाते हैं।

    इसी के साथ-साथ अक्सर यह भी देखने में आता है कि जैव उर्वरक मृदा में उपस्थित अन्य रासायनिक एवं जैविक क्रियाओं को परिवर्तित कर फसलों के लिए एक उचित वातावरण तैयार करते हैं जो कि पौधों एवं फसलों का विकास अच्छे प्रकार से करने में सहायता प्रदान करते हैं। कुछ ऐसे सूक्ष्मजीव जो कि मृदा एवं पादप आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित तो नही करते अपितु इससे सम्बन्धित अन्य सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता को प्रभावित कर अनुकल बनाते हैं जो कि पौधों एवं मृदा की उर्वरता में अपना योगदान प्रत्यक्ष रूप से प्रदान करते हैं।

कुछ सूक्ष्मजीव तो ऐसे भी होते हैं जो मृदा में उपस्थित हानिकारक रोगाणुओं को मारकर अथवा उन्हें परिवर्तित कर अथवा उनकी क्रियाशीलता को परिवर्तित कर उनके द्वारा होने वाली हानि से फसलों एवं पर्यावरण की रक्षा करने में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैव-उर्वरकों के अनेक प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष लाभ हमें प्राप्त होते रहते हैं।

जैविक खाद के उत्पादन एवं उपयोग में आने वाली बाधाएँ       

                                         

    वर्तमान परिवेश में जैविक खाद के उत्पादन, व्यवसायीकरण एवं उसके रख-रखाव में अनेकों बाधाओं का समाना करना पड़ रहा है। यह भौतिक, पर्यावरणीय, रासायनिक, जैविक एवं तकनीकी अधिनियमन एवं मानव संसाधन विकास आदि से सम्बन्धित होती हैं। वातावरणीय तापक्रम, तीव्र प्रकाश, आर्द्रता एवं परिवहन इत्यादि भौतिक व्यवधानों के अन्तर्गत, जबकि मृदा की रासायनिक अवस्थाएँ, कैरियर मैटेरियल की रासायनिक संरचना एवं अवस्थाएँ इत्यादि कारक रासायनिक व्यवधानों के अन्तर्गत आते हैं। ये सभी कारक प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जैव-उर्वरक एवं उससे सम्बन्धित जीवों की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करते हैं। इस परिस्थिकीय तन्त्र में बहुत से प्राकृतिक शत्रु भी पाये जाते हैं जो कि जैव-उर्वरकों एवं उससे सम्बन्धित जीवों को हानि पहुँचाकर उनकी क्रियाशीलता को प्रभावित करते हैं।

    इसी के साथ कच्चे माल की अनुपलब्धता, अनुपयुक्त भण्ड़ार गृह एवं अन्य पर्यावणीय कारक इनकी जनसंख्या एवं कार्यकुशलता को प्रभावित कर जैव-तन्त्र को हानि पहँुचाते हैं। उच्च गुणवत्तायुक्त आधार कल्चर की अनुपलब्धता भी किसी हद तक इसकी प्रक्रिया में बाधक होती है। मानव संसाधन विकास सम्बन्धी बाधाओं के अन्तर्गत कार्य-कर्ताओं की क्षमता में कमी, किसानों में जैविक खाद के महत्व के ज्ञान की कमी, जैविक खाद के उचित  उपयोग विधियों में कमी इत्यादि सम्मिलित हैं जो कि जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा देने में बाधक बन कर सामने आ रही हैं।

                                                               

कई बार कानूनी बाधाएँ भी इसकी प्रक्रिया को बाधित करती है, जिसके चलते जैव-उर्वरकों का समुचित विकास, परिवहन तथा प्रसार समयानुकूल नही हो पा रहा है जिसके कारण अपेक्षित लाभ प्राप्त नही हो पा रहा है।

    वर्तमान परिवेश एवं आने वाले समय को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि पौधों एवं मृदा की गुणवत्ता तथा स्वास्थ्य विशेष पर ध्यान दिया जाए और बिगड़ते हुए वातावरण एवं कृषि को दीर्घकालिक एवं टिकाऊ बनाने में अपनी पूर्ण सहभागिता सुनिश्चित् करें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।