वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि      Publish Date : 23/12/2024

                          वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि

                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

वर्मी कम्पोस्ट बनाने हेतु उचित नमी, तापक्रम एवं वायु संचार होने के साथ-साथ भूसा, गन्ने की लुगदी या पत्तियों, सूखा हुआ कम्पोस्ट या गोबर की खाद, घासफूस या वनस्पति अवशेष आदि की आवश्यकता होती है। कम्पोस्ट बनाने हेतु भूमि के ऊँचाई वाले हिस्सों का चयन करना चाहिए, जिससे कम्पोस्ट बनते समय वहाँ उपयुक्त नमी, ताप एवं छाया का इंतजाम किया जा सके। सर्वप्रथम भूमि की सफाई करके 40 फीट लंबी एवं 3 फीट चौड़ी क्यारी बनाते हैं। इस क्यारी में गन्ने की लुगदी, भूसा, वनस्पति अवशेष, तिनके आदि को बिछाकर 3 इंच मोटाई की परत बिछानी चाहिए।

                                                                        

इस परत पर पर्याप्त पानी छिड़कना चाहिए। इस परत के ऊपर 2 इंच मोटाई की एक अन्य परत सूखे हुए कम्पोस्ट अथवा गोबर की खाद की बनानी चाहिए। इस परत को भी पानी डालकर गीला कर देते हैं। इस परत के ऊपर एक तीसरी परत बनाई जाती है। यह परत केंचुए युक्त वर्मी कम्पोस्ट को बिछाकर बनाई जाती है, इसकी मोटाई एक इंचरखी जाती है। अब इस तीसरी परत पर 2 इंच मोटी कम्पोस्ट या गोबर की खाद की एक चौथी परत बनाई जाती है।

ध्यान रखें कि चौथी परत के लिए कम्पोस्ट अथवा गोबर की खाद को एक समान रूप से फैलाएं। अंत में इस चौथी परत के ऊपर 10 से 12 इंच मोटाई की घास-फूस, पत्तियां एवं गोबर के मिश्रण की एक परत बनाएं। प्रत्येक परत में कम से कम 30 प्रतिशत नमी होनी चाहिए। इसके लिए हर परत पर पानी का छिड़काव करना चाहिए। पांचों परतों की कुल ऊँचाई लगभग डेढ़ फीट हो जाती है। अंत में इन परतों को टाट की बोरियों से ढककर पानी डिड़कते रहना चाहिए, जिससे कि परतों में 30 प्रतिशत नमी बाकी रहे।

गर्मियों में नमी का स्तर बनाए रखने के लिए विशेष्ज्ञ सावधानी की आवश्यकता होती है। अपनी उदरपूर्ति के लिए केंचुए ऊपर की परतों को खाना शुरू कर देते हैं और आहार नाल से पाचित कार्बनिक पदार्थ एवं कम्पोस्ट मल के रूप में बाहर निकलते हैं तो वह अनेक पोषक तत्वों से युक्त वर्मी कम्पोस्ट बन जाता है। केंचुए के द्वारा 1000 टन कार्बनिक पदार्थों से 300 टन जैविक खाद तैयार  किया जाता है। वर्मी कम्पोस्ट की परत बनाते समय ध्यान रखें कि 5 वर्ग मीटर जगह में लगभग 150 केंचुए पहुँचने चाहिए।

                                                              

इस प्रकार वर्मी कल्चर विधि से उपयोग किए गये समस्त पदार्थों का मिश्रण दो माह में वर्मी कम्पोस्ट बन जाता है। वर्मी कम्पोस्ट का रंग गहरा काला होता है। अतः रंग के आधार पर यह निश्चित कर सकते हैं कि कम्पोस्ट तैयार हो चुका है।

इस प्रकार तैयार खाद को अलग कर लेना चाहिए एवं इस जगह को पुनः खाद बनाने के लिए प्रयोग करना चाहिए। इस अलग किए गये खाद में केंचुए एवं उनके अण्डों की उपस्थित रहती है। केंचुओं को अलग करके इनका उपयोग पुनः कम्पोस्ट बनाने के लिए किया जाता है। केंचुओं को अलग करने के लिए कम्पोस्ट को ढेर बनाकर धूप में रखना चाहिए कर्मी के कारण केंचुए नीचे जमा होने लगते हैं, जिन्हें आसानी से उठाया जा सकता है।

सावधानियाँ:-

1. खाद बनाने के सम्पूर्ण कार्य कला के ढेर से 30 प्रतिशत नमी का स्तर उपस्थित होना चाहिए।

2. केंचुओं को खाने वाले जन्तुओं एवं पक्षियों से उनकी रक्षा करनी चाहिए।

3. खाद ऐसी जगह बनायें, जहां केंचुओं को सीधी धूप एवं बहुत अधिक पानी का सामना न करना पड़े। अत्यधिक पानी एवं धूप दोनों ही केंचुओं को नुकसान पहुंचाते हैं।

4. गोबर की परत बनाने के लिए ताजे गोबर का उपयोग करें, क्योंकि ताजा गोबर केंचुओं का प्रिय भोजन है।

5. वर्मी कम्पोस्ट की परत में केंचुओं की पर्याप्त संख्या आवश्यक रूप से होनी चाहिए।

उपयोग:

1. विभिन्न फसलों में: विभिन्न फसलों में वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग बुआई से पूर्व नमी की अवस्था में 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से करना चाहिए। इसके साथ गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट का उपयोग भी करना चाहिए। फसल कटाई के बाद भी थोड़ी नमी बनाए रखनी चाहिए, जिससे कि खेत में मौजूद केंचुए जीवित रह सकें। उनके भोजन के लिए वनस्पति अवशेष्ज्ञ खेत में डालना चाहिए। खेत में उपस्थित केंचुए वानस्पतिक अवयवों एवं मिट्टी को खाद रूप में परिवर्तित करते रहते हैं, जिससे फसलों को पोषक तत्वा प्राप्त होते हैं।

2. सब्जी वाली फसलों में: सब्जी उगाने वाले खेतों में 7.5 टन प्रति हैक्टेयर वर्मी कम्पोस्ट को खेत की मिट्टी में मिलाकर उपयोग करना चाहिए। तत्पश्चात सब्जियों की रोपाई या बिजाई का कार्य करना चाहिए।

3. फलदार वृक्ष: बड़े फलदार वृक्ष में तने के आसपास एक मीटर की परिधि में 5 किलो वर्मी कम्पोस्ट प्रति वृक्ष की दर से मिट्टी में मिलाकर उपयोग करें। इसके बाद ताजा गोबर व जैविक खाद उतनी ही मात्रा में डालकर हल्की सिंचाई करें एवं नमी निरन्तर बनाए रखें। समय-समय पर गोबर व वानस्पतिक अवयव डालते रहें, जिससे कि केंचुए अपना भोजन प्राप्त कर सकें व उसे खाद रूप में परिवर्तित कर सकें। इस प्रकार परिवर्तित रूप में बने वर्मी कम्पोस्ट से वृक्षों को निरन्तर पोषक तत्व मिलते रहते हैं।

लाभ:

                                                           

1.   केंचुए की खाद के उपयोग से पर्यावरण को काई नुकसान नहीं पहुँचता है। मृदा की रचना एवं संरचना में सुधार होता है। केंचुए प्राकृतिक रूप से खेत की गहराई तक जुताई करते हैं और खेत की मिट्टी को पलटने में सहायक होते हैं। इस प्रकार खेत की मिट्टी की उर्वराशक्ति कायम रहती है।

2.   भूमि जनित फसल के रोगाणुओं को केंचुए नष्ट करते हैं,जिससे फसलों में कम रोग लगते हैं।

3.   केंचुए की खाद भूमि के कणों को आपस में जोड़ने का कार्य करती है, जिससे जल एवं वायु के द्वारा होने वाले भूमि क्षरण की दर में कमी आ जाती है।

4.   केंचुए की खाद द्वारा संतुलित मात्रा में पोषक तत्व खेत में पहुंचते हैं, जिससे अच्छा फसलोत्पादन प्राप्त होता है। इस प्रकार कृषक-बंधु वर्मी कम्पोस्ट अथवा केंचुए की खाद का निर्माण कर खेतों में उसके उपयोग द्वारा मिट्टी की उर्वराशक्ति में वृद्धि प्राप्त करके भरपूर फसलोत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। कम लागत अधिक उत्पादन तकनीक के अन्तर्गत यह एक सर्वोत्तम खाद है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।