मिर्च की जैविक खेती      Publish Date : 05/11/2024

                              मिर्च की जैविक खेती

                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के किसान विजय शंकर की कहानी हमें बताती है कि कैसे पारंपरिक खेती के साथ आधुनिक जैविक तरीकों का मेल मुनाफा और सेहत दोनों बढ़ा सकती है। देसी मिर्च की जैविक खेती में माहिर विजय शंकर न केवल अपने खेतों में बिना रसायनों का प्रयोग किए फसल उगाते हैं, बल्कि उनकी गायों का गोबर और मूत्र उनकी खेती के लिए उर्वरक का काम करता है. किसान विजय शंकर नें किस प्रकार से अपनी मेहनत और ज्ञान के माध्यम से अपने खेतों को लाभकारी बना दिया है और यह स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं को एक नई उम्मीद की एक किरण है।

                                                                 

किसान विजय शंकर, मेरठ जिले के एक सफल किसान हैं, जो पिछले कई साल से देसी मिर्च की जैविक खेती कर रहे हैं और उनकी मेहनत और समर्पण के चलते उन्हें इस खेती से अच्छा मुनाफा भी हो रहा है।

विजय शंकर ने दो गाय पाल रखी हैं, जिनसे प्राप्त गोबर और मूत्र का उपयोग वह जैविक खेती में करते हैं। ये प्राकृतिक सामग्री उनकी खेती के लिए उर्वरक का काम करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है।

जैविक खेती में सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है, इसके स्थान पर किसान प्राकृतिक तरीकों से कीड़ों, बीमारियों और खरपतवारों से निपटते हैं। गाय का गोबर और मूत्र इस काम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

                                                                          

जैविक खेती का सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि जैविक तरीके से उत्पादित की गई फसलें स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं। यह फसलें विटामिन, प्रोटीन और स्वाद में समृद्ध होती हैं, और इनके सेवन से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है।

मिर्च की पौध तैयार करने के लिए उचित स्थान का चुनाव करना बहुत जरूरी है, जहां पर्याप्त धूप मिल सके। मिर्च के बीजों की बुवाई के लिए उपयुक्त मिट्टी में वर्मी कंपोस्ट या गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद को मिलाकर फसलीय पौधों की अच्छी वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है। मिर्च की पौध के तैयार होने में लगभग एक महीने का समय लग जाता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।